जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी,
बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ.
लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ.
तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं
की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का
ह्रदय काँप उठा. वह बोला -
"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर
प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं
तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह
मेरा वरदान है."
तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं
हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा
करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर
गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए.
नागराज ने कहा -
"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम
तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का
काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर
जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा
और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."
नाग
को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और
अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की
रक्षा की।
लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -
"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज
हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार
जनों को आँखों से समझा देना."
तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर
पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह
श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ
सती हो गई.
पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती
है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही
प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी
पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि
को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को
धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही
मेरा अमर आशीष है "
तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल
सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के
किनारे पर बना है.
इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी।
14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai,,,
14 Sept. Teja Dashmi Kharnal Chalo जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के
मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल
माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात - अवतारी
तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को
नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ. लाछां गूजरी को
काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं
वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू
नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा
करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला - "मैं तुम्हारी इमानदारी और
बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ
मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे.
यह मेरा वरदान है." तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह
अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के
लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को
प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. नागराज ने कहा - "तेजा तुम
शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल
के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई
व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा.
किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम
कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है." नाग को उनके
क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत:
तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा
की। लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा - "लीलन तू धन्य
है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए
तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से
समझा देना." तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा
छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों
से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर
बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको
बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई.
लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी
के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद
कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है " तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी
दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी
खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की
तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। 14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh
Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai. Sagley mele mein padharau saa.
JAI VEER TEJAJI
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ.
लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ.
तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला -
"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है."
तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए.
नागराज ने कहा -
"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."
नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की।
लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -
"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना."
तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई.
पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है "
तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है.
इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी।
14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai,,,
14 Sept. Teja Dashmi Kharnal Chalo जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ. लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला - "मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है." तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. नागराज ने कहा - "तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है." नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की। लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा - "लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना." तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि - "भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है " तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। 14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,, Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai. Sagley mele mein padharau saa.
Jat Veer Tejaji Maharaj Ki Jai
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