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बचपन-
चौधरी गुल्लाराम जी का जन्म जोधपुर जिले की तह्सील भोपालगढ़ के गाँव रतकुड़िया में विक्रम संवत आश्विन कृष्णा १४ (३० सितम्बर १८८३) को एक साधारण बेन्दा गोत्र के जाट किसान परिवार में हुआ. आपके पिताजी का नाम श्री गेनाराम जी बेन्दा और माताजी का नाम श्रीमती लालीबाई था. [2]सात भाई बहिनों में आपका पांचवां स्थान था. आपका बचपन ग्रामीण परम्परा के अनुसार गायें चराते हुए गाँव में ही बीता. आपकी पढ़ने की बहुत इच्छा थी परन्तु गायें चराने के लिए कोई दूसरी व्यवस्था न होने और गाँव में कोई स्कूल न होने के कारण औपचारिक शिक्षा न ग्रहण कर पाए. परन्तु कृषि कार्य से जब भी समय मिलता गाँव के गुरूजी के पास जाकर बैठ जाते और थोड़े समय में अक्षर ज्ञान और गिनती सीख ली. १८ वर्ष की आयु में खांगटा गाँव के चौधरी श्री अमरारामजी गोदारा की पुत्री इंदिराबाई से आपका विवाह संपन्न हुआ.
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मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के संस्थापक
सन् १९३७ में चटालिया गांव के जागीरदार ने जाटों की ८ ढाणियों पर हमला कर लूटा और अमानुषिक व्यवहार किया । चौधरी साहब को इससे बड़ी पीड़ा हुई और उन्होंने तय किया की जाटों की रक्षा तथा उनकी आवाज बुलंद करने के लिए एक प्रभावसाली संगठन आवश्यक है । अतः जोधपुर राज्य के किसानों के हित के लिए २२ अगस्त १९३८ को तेजा दशमी के दिन परबतसर के पशु मेले के अवसर पर "मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा" नामक संस्था की स्थापना की । चौधरी मूलचंद इस सभा के प्रधानमंत्री बने, चौधरी गुल्लाराम जी रतकुडिया इसके अध्यक्ष नियुक्त हुए और भींया राम सिहाग कोषाध्यक्ष चुने गए । इस सभा का उद्देश्य जहाँ किसानों में में फ़ैली कुरीतियों को मिटाना था, वहीं जागीरदारों के अत्याचारों से किसानों की रक्षा करना भी था. उन दिनों जगह-जगह सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें कुरीतियों को छोड़ने के प्रस्ताव पास किए गए. छात्रावासों के चंदे हेतु प्रति हल एक रूपया व विवाह के अवसर पर तीन से ग्यारह रुपये तक लिए जाने तय किए.[24] इन उपदेशकों में ठाकुर हुकुमसिंह व भोलासिंह, उपदेशक, अखिल भारतीय जाट महासभा, हीरा सिंह पहाड़सर, पंडित दत्तुराम बहादरा, चौधरी गणपतराम , चौधरी जीवनराम , चौधरी मोहरसिंह आदि प्रमुख थे. [25]इस प्रकार मारवाड़ के किसानों में कुरीतियों के निवारण में चौधरी गुल्लाराम जी अग्रणी व्यक्ती थे. [26]
रतकुड़िया स्कूल की स्थापना
१९४८ में सरकारी सेवा से अवकाश लेने के बाद चौधरी गुल्लाराम जी पूर्ण रूप से शिक्षा को समर्पित हो गए. आपने गाँव रतकुड़िया में १९५६ में निर्विरोध सरपंच बनाने के बाद एक शिक्षण संस्था स्तापित की. १९५७ में इस संस्था को उच्च प्राथमिक, १९६० में माध्यमिक व १९६२ में इसे उच्च माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत करवाया. १९६३ में इसमें गणित व १९६४ में जीव विज्ञान की कक्षा खुलवा कर तो आपने ग्रामीण विद्यार्थियों के लिए सुनहरे अवसरों के द्वार खोल दिए. आपने रात-दिन परिश्रम कर न केवल इस स्कूल के लिए विशाल भवन बनवाया बल्कि एक विशाल छात्रावास व अध्यापकों के लिए उन्नीस निःशुल्क आवास स्थापित कराये. १९५६ से लेकर १९६८ तक चौधरी गुल्लाराम जी ने इस विद्यालय के लिए घोर परिश्रम किया और अन्तिम समय तक इसकी उन्नति में लगे रहे. आपके प्रयास से ही इस स्कूल का उस समय पूरे राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में एक विशिष्ठ स्थान बन गया और यह विज्ञान के उन्नत शिक्षा केन्द्रों में गिना जाने लगा था, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने यहाँ आने लगे थे. [34]इसके बारे में कहा गया है -
रतकुड़िया कुण जानतो, साधारण सो गाँव ।
गुल्लाराम परकट कियो, मारवाड़ में नांव ।।
धन्य धन्य तुम धन्य हो, चौधरी गुल्लाराम ।
रतकुड़िया निर्मित कियो, विद्यालय शुभ धाम ।। [35][36]
आपके पुत्रों में श्री रामनारायण जी चौधरी व श्री हरीसिंह्जी राजस्थान सरकार में चीफ इंजीनियर, सिंचाई विभाग से सेवानिवृत हुए जबकि चौधरी गोवर्धनसिंह् जी राजस्थान में जाट जाति के पहले आई ए एस आफिसर बनने का गौरव प्राप्त किया और राजस्थान सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी किसानों व जाट जाति के उन्नति के लिए काम करते रहे. [37]
स्वर्गवास
इस महान शिक्षा प्रेमी, किसानों के हितेषी नेता और साहसी समाज सुधारक चौधरी गुल्लारामजी का १२ अक्टूबर १९६८ को स्वर्गवास हो गया. चौधरी साहब के स्वर्गवास के बाद आपके परिवार ने इस संस्था को राजस्थान सरकार को समर्पित कर दिया और सरकार द्वारा आपके नाम पर इस विद्यालय का नाम "चौधरी गुल्लाराम राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रतकुड़िया" रखा गया है.[38]
Courtsey :: Balbir Ginthala
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