दानव समाज में आरुण पडा,
जल जंतु बिच हो वरुण पडा,
इस तरह भभकता था सुरजा,
मानो सर्पो में गरुड़ पडा,
हय रुंद क़तर, गज मुंड पाछ
तलवार गलोँ पर फिरती थी,
तलवार वीर की तड़प तड़प
क्षण क्षण बिजली सी गिरती थी,
सुरजा ने सर काट काट
दे दिए कपाल कपाली को,
शोणित की मदिरा पिला पिला
कर दिया तुष्ट रन काली को,
पर नित नित लड़ने से तन में
चल रहा पसीना था तर तर,
अविरल शोणित की धार थी
हलधर सर से बहती झर झर,
वह लङता था दुश्मन की छाती को रौँद रौँद,
वह गरजता था रण मेँ ऐसे ज्युँ बदरा घनघोर घोर,
अफलातून अकेला था वो सारे भारतवर्ष मेँ,
जालिमोँ को काटके गाढ दिया लोहागढ के फर्श मेँ,
ये "तेजाभक्त" आज करता इनका गुणगान है,
दुर्लभ मिलना वीर धरा पर सुरजा तू महान है,
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Courtsey::
बलवीर घिँटाला तेजाभक्त
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