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Sunday, October 27, 2013

लोहागढ

लोहागढ रक्षक जाटोँ की एक हुँकार-

वो शोकीन थे अपनी हुकुमत जमाने के,
मगर हम भी शोक रखते थे आजमाने के।
वो चाहते थे हमेँ अपने कदमोँ मेँ झुकाना,
मगर हमने भी लोहागढ मेँ शेर पाले थे।।

हम टूट जायेगे गद्दारो की भाँती समझौता कर,
बिक जायेगे पूर्वजो के मान का युँ सौदा कर।
नादानी थी यह उन गौरो की जो ये सोचा भी,
नित जोश मेँ पालता था हमे ये लोहा-गढ।।

सगी माँ का दूध पिया है ना कि विमाता का,
गुरूर हममे खानदान का, ना कि विलासिता का।
कटना जानते है मगर हक हङपने किसीको नही देते,
वजूद बचाना आता है हमे अपनी इस श्रेष्ठता का।।

संधियाँ तो शायद बुजदिल कर लिया करते है,
मगर जाट तो खून का नँगा नाच किया करते है।
आज देखेगे विदेशी इस रोटी मे दम है कितना,
जो भीख पर जिदगी बसर किया करते है।।

जीतना तो दूर, नजदीक फटक कर भी दिखादे,
औकात है तेरी तो जाटोँ से आज भिङ के दिखादे।
रक्त मेँ नहायेगी लोहागढ की प्यासी धरती आज,
दम है बाजू मे तेरे अगर तो आजा ये दाँव लगाले।।

आज का यह दिन कल का इतिहास बनेगा,
जब मालूम जाट शेरोँ का बलिदान पङेगा।
'तेजाभक्त' गायेगा अमर गाथा हम जाटोँ की,
तो जरुर जाटोँ का सोया हुआ इमान जगेगा।।
 
 
Courtsey::  Balbir Ginthala 





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