तेजाजी की चमत्कारी शक्तियां
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आज के विज्ञान के इस युग में चमत्कारों की बात करना पिछड़ापन माना जाता है और विज्ञान चमत्कारों को स्वीकार नहीं करता. परन्तु तेजाजी के साथ कुछ चमत्कारों की घटनाएँ जुडी हुई हैं जिन पर नास्तिक व्यक्तियों को भी बरबस विस्वास करना पड़ता है. कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं:
जोधपुर के राजा अभय सिंह को तेजाजी का दर्शाव -
सन १७९१ में जोधपुर राज्य के राजा अभय सिंह को सोते समय तेजाजी का दर्शाव हुआ. दर्शाव में तेजाजी ने राजा से कहा कि दक्षिण में मध्य प्रदेश तक के लोग मेरी पूजा करते हैं लेकिन मारवाड़ में मुझे भूल से चुके हैं. तेजाजी ने वचन दिया कि जहाँ लीलन , खारिया तालाब, में रुकी थी वहां मैं जाऊंगा. राजा ने पूछा, हम चाहते हैं कि आप हमारी धरती पर पधारो. पर आप कोई सबूत दो कि पधार गए हैं. तेजाजी ने दर्शाव में कहा कि परबतसर तालाब के पास जहाँ लीलन खड़ी हुई थी वहां जो खारिया तालाब है उसका पानी मीठा हो जायेगा एवं टीले पर जो हल का जूडा पेड़ के पास लटका है वो हरा हो जायेगा तथा यह खेजडा बनकर हमेशा खांडा खेजड़ा रहेगा. जोधपुर महाराज ने पनेर से तेजाजी की असली जमीन से निकली देवली लानी चाही लेकिन असफल रहे. अंत में तेजाजी ने दर्शाव में कहा कि मैं बिना मूर्ती के ही आ जाऊंगा, तब राजा ने देवली दूसरी लाकर लगाई. राजा जब वहां पधारे हल का जूडा हरा हो गया तथा खारिया तालाब का पानी चमत्कारी ढंग से मीठा हो गया. जोधपुर राज्य के राजा अभय सिंह को अपार ख़ुशी हुई और लोक देवता वीर तेजाजी का मंदिर खारिया तालाब की तीर पर बनाया.
परबतसर तेजाजी पशु मेला -
परबतसर में एशिया का सबसे बड़ा तेजाजी पशु मेला भरता है. यहाँ बिकने आने वाले पशुओं की अधिकतम संख्या १३०००० है तथा उसमें से बिक्री का रिकार्ड १००००० का है. हर वर्ष परबतसर मेले में सारे पशु रात को अचानक खड़े हो जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि रात्रि को तेजाजी अपनी घोड़ी लीलन पर चढ़कर आते हैं और हर साल एक बार मेले में सभी प्राणियों को दर्शाव देते हैं. इस चमत्कारिक घटना के गवाह मेले में जाने वाले बड़े बुजुर्ग व पशु पालक हैं
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सुरसुरा तेजाजी का बलिदान स्थल -
सुरसुरा तेजाजी का बलिदान स्थल है. इसके स्थापना के पीछे भी ऐतिहासिक और चमत्कारिक घटना है. एक सुर्रा नाम का खाती बैलों को ले जा रहा था. रात्रि हो गई और खाती अराध्य देव तेजाजी की रखवाली में बैलों को छोड़ वहीँ रुक गया. रात को सुर्रा सो गया तब गुर्जरों ने बैलों को खोल लिया. लेकिन तेजाजी की कृपा से सारे गुर्जर आत्मा से अंधे हो गए एवं बैलों के साथ रात भर वहीँ घूमते रहे. सुबह जब सुर्रा उठा तो दूर पहाड़ी पर बैलों को घूमते पाया व गुर्जर पीछे पीछे घूम रहे थे. जब सुर्रा पास गया तो गुर्जरों का अंधापन दूर हो गया तथा उन्होंने सुर्रा से माफ़ी मांगी व भाग गए. सुर्रा तेजाजी के चमत्कार से बड़ा प्रभावित हुआ और वहीँ बस गया. तभी से तेजाजी के बलिदान धाम का नाम सुर्रा के कारण सुरसुरा पड़ गया.
नदी की तलहटी में मिले तेजाजी -
शिवना नदी की साफ-सफाई के लिए इन दिनों प्रत्येक रविवार को गायत्री परिवार के सदस्यों द्वारा श्रमदान किया जा रहा है। इस दौरान इस रविवार 22 मार्च 2009 को नदी से यमराज और वीर तेजाजी की दो प्राचीन प्रतिमाएँ निकली हैं। इन्हें लगभग दो सौ वर्ष पुरानी बताया गया है। यमराज और तेजाजी की प्रतिमाओं को मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के हॉल में रखा गया है। रविवार सुबह लगभग साढ़े ग्यारह बजे श्रमदान के दौरान योगेशसिंह को गाद में दबी यमराज की साढ़े तीन फुट ऊँची प्रतिमा मिली। श्याम सोनी को समीप ही ढाई फुट ऊँची तेजाजी की प्रतिमा दिखी। दोनों प्रतिमाओं को निकालकर घाट पर रखा गया और प्रशासन को सूचना दी गई. गायत्री परिवार के सदस्य निर्मल मंडोवरा ने बताया कि दोनों प्रतिमाएँ अखंडित हैं तथा 150 से 200 वर्ष प्राचीन लगती हैं। [1]
शेर से लड़ी शारदा बंजारा
तेजाजी ने दी लड़की को शेर से लड़ने की शक्ति -
घना जंगल... लकड़ी बीनती कुछ ग्रामीण युवतियाँ और खूँख्वार शेर का आक्रमण... कहानी पूरी तरह किसी एक्शन फिल्म की तरह लगती है, लेकिन है यह बिलकुल सच्ची! इस नायिका प्रधान कहानी की नायिका हैं... १७ साल की शारदा बंजारा, जिन्होंने न केवल शेर महाशय से मुकाबला करने की दिलेरी दिखाई, बल्कि उनके कान उमेठकर उन्हें दुम दबाकर भागने को मजबूर कर दिया। नीमच (मप्र) जिला मुख्यालय की तहसील मनासा के गाँव बाक्याखेड़ी में रहती है शारदा। एक दिन की बात है... उस दिन खेतों में निंदाई के काम से छुट्टी थी सो, शारदा चूल्हा जलाने के लिए जंगल में लकड़ियाँ बीनने गई। साथ में थीं दो बहनें, कमला व संगीता, भाभी टम्मू तथा काकी पन्नी।
जंगल में जाते ही कुछ किलोमीटर की दूरी पर उन्हें जंगल के राजा के दर्शन हो गए, लेकिन महिलाओं ने सोचा कि दूरी काफी है, सो राजा साहब प्रजा के पास शायद ही तशरीफ लाएँ। यह सोचकर वे अपने काम में लग गईं, लेकिन शेर महाशय ने तब तक उनकी उपस्थिति सूँघ डाली थी, सो दबे पाँव वे आ पहुँचे और उन्होंने सबसे करीब लकड़ियाँ चुन रही शारदा पर झपट्टा मार दिया। अचानक हुए इस हमले ने शारदा का संतुलन बिगाड़ दिया और कुछ सेकंड के लिए उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.. उसकी चीख सुनकर अन्य महिलाओं ने उसकी तरफ देखा और एक सम्मिलित चीख के साथ वे सब गाँव वालों को बुलाने के लिए दौड़ गईं। उन्हें लगा शायद शेर ने शारदा को खत्म कर डाला।
इन्हीं कुछ पलों में शारदा ने सोच लिया कि जब लड़ाई तय ही है तो क्यों न पूरे जोश के साथ लड़ा जाए। शेर ने उसकी पिंडली पकड़ रखी थी। शारदा ने तुरंत लपक कर पूरी ताकत के साथ शेर के कान पकड़ लिए और अपनी पिंडली छुड़ाने का प्रयास करने लगी। इसी बीच उसने एक बड़ा पत्थर उठाकर शेर के सर पर दे मारा। शेर महाशय दुम दबाकर भाग लिए।
घायल शारदा खुद ही चलकर जैसे-तैसे घर पहुँची। घर पर वह माँ के सामने डर के मारे सच नहीं बता पाई। बस इतना कह पाई कि जंगल में पेड़ से गिर गई, लेकिन थोड़ी देर बाद उसकी हालत खराब होने लगी और उसे सच बताना पड़ा। उसे तुरंत मनासा के शासकीय अस्पताल ले जाया गया और फिर बाद में एक निजी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। फिलहाल शारदा स्वास्थ्य लाभ ले रही है।
एक पुरानी जींस और टी-शर्ट पहनने वाली दुबली-सी शारदा के साहस के चर्चे चारों ओर हैं। शारदा की माँ कहती है कि उनकी बेटी को शेर पर सवार होने वाली माता और तेजाजी महाराज ने बचाया है। सन्दर्भ - हिंदी वेब दुनिया में दिनेश प्रजापति का लेख "शेर से लड़ी बहादुर शारदा"
Courtsey:: Balveer Ghintala
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