सचिन को भारत रत्न देना देश के साथ विश्वासघात के समान होगा !
क्रिकेट, एक ऐसा खेल, जो भारत जैसे देश का धर्म बनता जा रहा है। इसके करोड़ों चाहने वाले हैं,तो स्वाभाविक हैऔर इस धरती पर कण कण में भगवन है यह धरती करोड़ों देवी देवताओं की है। यहाँ भगवान/महाराज झट से बना देते हैं। क्रिकेट के भी होंगे। जी हां, इसके भगवान हैं। उस ईश्वर का नाम है सचिन। इस देश में क्रिकेट प्रशंसक इन्हें भगवान मानते हैं। इस भगवान के पास सब कुछ है,धन-दौलत, शोहरत, करोड़ों चाहने वाले हैं । इतना कुछ होने के बाद भी इनके चाहने वालों को लगता है कि 'भगवान' के पास कुछ कमी है। जिस चीज की कमी है, वह है भारत-रत्न।अब तो न जाने क्या क्या समपर्ण करेंगे। अब इनके सारे चाहने वालों (देश के पत्रकार बंधुओं समेत)ने इन्हें भारत-रत्न दिलाने की मुहिम चला रखी है। किन्तु मुझे लगता है कि यह देश का दुर्भाग्य होगा कि सचिन को भारत-रत्न मिले। आखिर उन्हें भारत-रत्न क्यों मिलना चाहिए? आमतौर पर भारत-रत्न उन लोगों को मिलता है, जिनका भारत के लिए अतुलनीय और निरपेक्ष योगदान रहा है। शब्दों पर ध्यान दीजिएगा, अतुलनीय और निरपेक्ष। मैं तो इमरान खान जो पाकिस्तान के प्रतिशिष्ट ख़िलाड़ी थे जिसने अपने देश के लिए कैंसर हस्पताल बनाकर देश को समर्पित किया। सचिन का देश सेवा के लिए क्या सम्पर्पण है। देश को क्या दिया। कभी विचार किया है। निश्चित तौर पर क्रिकेट में सचिन का योगदान अतुलनीय है, भारत क्या पूरी दुनिया में (कुछ मामलों में ब्रेडमैन को छोड़कर)। लेकिन, क्या देश के लिए उनका योगदान (क्रिकेट और व्यक्तिगत) निरपक्ष रहा है? बहुत से लोग यह मानते हैं कि सचिन देश के लिए कम, अपने लिए ज्यादा खेलते हैं। चलिए, छोड़िए इस विवाद को। मान लेते हैं कि सचिन देश के लिए खेलते हैं।
मैं नीचे कुछ उदारहण दे रहा हूं उनकी निरपेक्षता का, निर्णय आपको करना है कि वह देश के लिए निरपेक्ष हैं या नहीं -
1. सचिन ने जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर सर डॉन ब्रेडमैन की सेंचुरी के कीर्तिमान की बराबरी की तो इटली की कार कंपनी फिएट ने गिफ्ट में फेरारी कार दी थी। यह वाकया 23 जुलाई 2002 का है। फेरारी की '360 मॉडेना' मॉडल की इस कार की कीमत करीब 75 लाख रुपये थी। इसे लंदन में रेसिंग की दुनिया के बादशाह माइकल शूमाकर ने सचिन को अपने हाथों दी थी। इस कार पर करीब 120% यानी 1.25 करोड़ रुपये टैक्स लगा। सचिन ने इस टैक्स माफी के लिए भारत सरकार को चिट्ठी लिखी और सरकार ने टैक्स माफ भी कर दिया। बाद में जब यह बात लोगों के सामने आई, तो जमकर हंगामा हुआ। सवाल उठा कि क्या सचिन जैसे संपन्न को टैक्स छूट मिलनी चाहिए? कुछ लोगों ने दिल्ली हाई कोर्ट में पीआईएल ठोंक दी। सचिन चुप्पी साधे रहे। वैसे विवादित मुद्दों पर चुप्पी साधना उनकी खूबी भी है। फिर, इस मामले में फंसते देखे फिएट कंपनी ने टैक्स की रकम अदा की। अब आप बताइए अपने प्रभाव (शोहरत) का इस्तेमाल करके जो व्यक्ति टैक्स 'चोरी' (बचाने) की कोशिश करे, क्या वह भारत-रत्न का हकदार है?
2. हालांकि, सचिन पर खेल भावना से खिलवाड़ करने के कम आरोप हैं, पर विवाद जरूरहै । आपको याद दिला दें । 2001 में साउथ अफ्रीका दौरे के समय पोर्ट एलिजाबेथ में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में सचिन ने बॉल के साथ छेड़छाड़ की थी। बॉल टैम्परिंग की यह तस्वीर कैमरे में भी कैद हो गई थी। उन पर एक टेस्ट मैच नहीं खेलने का बैन भी लगा दिया गया। यह मामला उस वक्त काफी तूल भी पकड़ा। अब आप कहिएगा, खेल में तो यार यह सब तो चलता है। चलिए चलाते हैं इसे, पर यह क्या! जरा तीसरे उदारहण को ध्यान से पढ़ें।
3.सचिन देश के लिए क्रिकेट खेलते हैं। ऐसा वह खुद भी कहते हैं। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते थे, लेकिन क्रिकेट ने उन्हें अथाह दौलत दी। अब वह अति उच्च वर्ग का हिस्सा गए हैं। मुझे लगता है कि उन्हें पैसे की कोई कमी नहीं। अब उन्हें पैसे के लिए तो नहीं खेलना चाहिए। लेकिन, वह पैसे के लिए खेलते हैं। देश के लिए वह ट्वेंटी20 क्रिकेट नहीं खेलेंगे, लेकिन आईपीएल जरूर खेलेंगे। क्यों ना खेलें, आखिर आईपीएल में ऊंची कीमत पर जो बिकते हैं। मैं नहीं जानता, अब आप बताइए वह क्रिकेट और देश के लिए कितने निरपेक्ष हैं?
4. सचिन का तकरीबन 21 साल का लंबा क्रिकेट करियर है। लेकिन आजकल वह थकने लगे हैं। उन्हें आराम की जरूरत महसूस होती है।होनी भी चाहिए, उम्र जो हो चली है। लेकिन, अब सवाल उठता है कि वह आराम कब करते हैं। मैं बताता हूं। सचिन आराम तभी करते हैं, जब राष्ट्रीय टीम कोई टूर्नामेंट खेल रही होती है। लेकिन, अति व्यस्त, अति थकाऊ आईपीएल के दौरान आराम नहीं करते। आखिर आराम क्यों करेंगे आईपीएल के दौरान दौलत मिलती है। एक चीज ध्यान दिला दें । आईपीएल के तीसरे सेशन में मैच के बाद पार्टियां भी होती थीं, जिसमें शामिल होकर खिलाड़ी अपने ‘ग्राहकों’ (अपने पेड फैंस) को भी खुश करते थे। आपने देखी इनकी क्रिकेट और देश के प्रति निरपेक्षता? अभी तक किसी खिलाड़ी को भारत-रत्न नहीं मिला है। देश ने एक और खिलाड़ी को पैदा किया था। यहां मैं उसकी चर्चा करना चाहूंगा। देश के प्रति उसके निरपेक्ष एवं अतुलनीय योगदान की एक मिसाल देता हूं। उस खिलाड़ी का नाम था ध्यानचंद। आपको यह ज्ञात होगा किन्तु फिर भी बता देता हूं। वह शख्स हृदय से देश और खेल दोनों के लिए के लिए समर्पित था। अब पहुँचते हैं 1936 के बर्लिन ओलिंपिक के दौर में । हॉकी का फाइनल मैच चल रहा था। भारत के सामने जर्मनी की टीम थी। जर्मन तानाशाह हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से रौंद डाला। हिटलर शांतचित्त होकर मैच देख रहे थे। मैच खत्म होने के बाद उन्होंने ध्यानचंद के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा,"आप जर्मनी के लिए खेलिए, हम आपको जर्मन सेना में जनरल का ओहदा देंगे।" ध्यानचंद ने यह प्रस्ताव तुरंत ठुकरा दिया। कहा, "मैं भारतवासी हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा। मुझे नहीं चाहिए जनरल का पद।" एक बात और समीक्षा कीजिएगा । अब वापिस चलते हैं दौर -1936 का समय। जर्मनी का तेजी से प्रादुर्भाव हो रहा था। वह उस वक्त दुनिया का पहला नहीं तो दूसरा सशक्त राष्ट्र जरूर था और भारत एक गुलाम देश। एक गरीब देश। उस वक्त जहां करीब 90 फीसदी जनता बुनियादी सुविधाओं से महरूम थी। यह गौर करने लायक है कि ध्यानचंद की जगह कोई और पैसे और पद का लालची रहता तो वह हिटलर के उस प्रस्ताव तो तुरंत स्वीकार कर लेता। अब आप ही बताइए देश के लिए अतुलनीय और निरपेक्ष योगदान किसका है? टैक्स चोरी करने की कोशिश करने वाले सचिन का या फिर देशभक्त ध्यानचंद का? क्रिकेट तो एक लिगल सवैधानिक जुआ है। बेइंतेहा सट्टा लगता है। इसे देखते हुए लगता है सट्टा लीगल हो जाये तो कोई ताज्जुब न होगा ।सरकार के खजानें में टैक्स तो जमा होगा।हमारे देश में खुश हाली तो आएगी।
क्या अब हमें हमारा राष्ट्रीय खेल क्रिकेट नहीं कर देना चाहिए ? दूसरी बात हमें हमारा राष्ट्रीय खेल दिवस २९ अगस्त से २४ अप्रैल कर लें। बदलें तो पूरी तरह से समर्पित हों।
इस पर आप लोगो की क्या राय है अवश्य भेजिएगा। भारत के असली रतनों की तऱफ जाने से पहले ही
हट जाता है हमारा ध्यान ऐसा क्यों हो रहा है ।कभी गौर करने का वक़्त मिला है इस बात पर।
मैं तो आखिर बस यही कहूँगा-
करो तो देश के लिए कुछ करो
कुछ तो देश को समर्पित करो
समर्पण करो ऐसा किसी के काम आ जाये
ऐसा कार्य जो सब को भा जाये।।
क्रिकेट, एक ऐसा खेल, जो भारत जैसे देश का धर्म बनता जा रहा है। इसके करोड़ों चाहने वाले हैं,तो स्वाभाविक हैऔर इस धरती पर कण कण में भगवन है यह धरती करोड़ों देवी देवताओं की है। यहाँ भगवान/महाराज झट से बना देते हैं। क्रिकेट के भी होंगे। जी हां, इसके भगवान हैं। उस ईश्वर का नाम है सचिन। इस देश में क्रिकेट प्रशंसक इन्हें भगवान मानते हैं। इस भगवान के पास सब कुछ है,धन-दौलत, शोहरत, करोड़ों चाहने वाले हैं । इतना कुछ होने के बाद भी इनके चाहने वालों को लगता है कि 'भगवान' के पास कुछ कमी है। जिस चीज की कमी है, वह है भारत-रत्न।अब तो न जाने क्या क्या समपर्ण करेंगे। अब इनके सारे चाहने वालों (देश के पत्रकार बंधुओं समेत)ने इन्हें भारत-रत्न दिलाने की मुहिम चला रखी है। किन्तु मुझे लगता है कि यह देश का दुर्भाग्य होगा कि सचिन को भारत-रत्न मिले। आखिर उन्हें भारत-रत्न क्यों मिलना चाहिए? आमतौर पर भारत-रत्न उन लोगों को मिलता है, जिनका भारत के लिए अतुलनीय और निरपेक्ष योगदान रहा है। शब्दों पर ध्यान दीजिएगा, अतुलनीय और निरपेक्ष। मैं तो इमरान खान जो पाकिस्तान के प्रतिशिष्ट ख़िलाड़ी थे जिसने अपने देश के लिए कैंसर हस्पताल बनाकर देश को समर्पित किया। सचिन का देश सेवा के लिए क्या सम्पर्पण है। देश को क्या दिया। कभी विचार किया है। निश्चित तौर पर क्रिकेट में सचिन का योगदान अतुलनीय है, भारत क्या पूरी दुनिया में (कुछ मामलों में ब्रेडमैन को छोड़कर)। लेकिन, क्या देश के लिए उनका योगदान (क्रिकेट और व्यक्तिगत) निरपक्ष रहा है? बहुत से लोग यह मानते हैं कि सचिन देश के लिए कम, अपने लिए ज्यादा खेलते हैं। चलिए, छोड़िए इस विवाद को। मान लेते हैं कि सचिन देश के लिए खेलते हैं।
मैं नीचे कुछ उदारहण दे रहा हूं उनकी निरपेक्षता का, निर्णय आपको करना है कि वह देश के लिए निरपेक्ष हैं या नहीं -
1. सचिन ने जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर सर डॉन ब्रेडमैन की सेंचुरी के कीर्तिमान की बराबरी की तो इटली की कार कंपनी फिएट ने गिफ्ट में फेरारी कार दी थी। यह वाकया 23 जुलाई 2002 का है। फेरारी की '360 मॉडेना' मॉडल की इस कार की कीमत करीब 75 लाख रुपये थी। इसे लंदन में रेसिंग की दुनिया के बादशाह माइकल शूमाकर ने सचिन को अपने हाथों दी थी। इस कार पर करीब 120% यानी 1.25 करोड़ रुपये टैक्स लगा। सचिन ने इस टैक्स माफी के लिए भारत सरकार को चिट्ठी लिखी और सरकार ने टैक्स माफ भी कर दिया। बाद में जब यह बात लोगों के सामने आई, तो जमकर हंगामा हुआ। सवाल उठा कि क्या सचिन जैसे संपन्न को टैक्स छूट मिलनी चाहिए? कुछ लोगों ने दिल्ली हाई कोर्ट में पीआईएल ठोंक दी। सचिन चुप्पी साधे रहे। वैसे विवादित मुद्दों पर चुप्पी साधना उनकी खूबी भी है। फिर, इस मामले में फंसते देखे फिएट कंपनी ने टैक्स की रकम अदा की। अब आप बताइए अपने प्रभाव (शोहरत) का इस्तेमाल करके जो व्यक्ति टैक्स 'चोरी' (बचाने) की कोशिश करे, क्या वह भारत-रत्न का हकदार है?
2. हालांकि, सचिन पर खेल भावना से खिलवाड़ करने के कम आरोप हैं, पर विवाद जरूरहै । आपको याद दिला दें । 2001 में साउथ अफ्रीका दौरे के समय पोर्ट एलिजाबेथ में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में सचिन ने बॉल के साथ छेड़छाड़ की थी। बॉल टैम्परिंग की यह तस्वीर कैमरे में भी कैद हो गई थी। उन पर एक टेस्ट मैच नहीं खेलने का बैन भी लगा दिया गया। यह मामला उस वक्त काफी तूल भी पकड़ा। अब आप कहिएगा, खेल में तो यार यह सब तो चलता है। चलिए चलाते हैं इसे, पर यह क्या! जरा तीसरे उदारहण को ध्यान से पढ़ें।
3.सचिन देश के लिए क्रिकेट खेलते हैं। ऐसा वह खुद भी कहते हैं। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते थे, लेकिन क्रिकेट ने उन्हें अथाह दौलत दी। अब वह अति उच्च वर्ग का हिस्सा गए हैं। मुझे लगता है कि उन्हें पैसे की कोई कमी नहीं। अब उन्हें पैसे के लिए तो नहीं खेलना चाहिए। लेकिन, वह पैसे के लिए खेलते हैं। देश के लिए वह ट्वेंटी20 क्रिकेट नहीं खेलेंगे, लेकिन आईपीएल जरूर खेलेंगे। क्यों ना खेलें, आखिर आईपीएल में ऊंची कीमत पर जो बिकते हैं। मैं नहीं जानता, अब आप बताइए वह क्रिकेट और देश के लिए कितने निरपेक्ष हैं?
4. सचिन का तकरीबन 21 साल का लंबा क्रिकेट करियर है। लेकिन आजकल वह थकने लगे हैं। उन्हें आराम की जरूरत महसूस होती है।होनी भी चाहिए, उम्र जो हो चली है। लेकिन, अब सवाल उठता है कि वह आराम कब करते हैं। मैं बताता हूं। सचिन आराम तभी करते हैं, जब राष्ट्रीय टीम कोई टूर्नामेंट खेल रही होती है। लेकिन, अति व्यस्त, अति थकाऊ आईपीएल के दौरान आराम नहीं करते। आखिर आराम क्यों करेंगे आईपीएल के दौरान दौलत मिलती है। एक चीज ध्यान दिला दें । आईपीएल के तीसरे सेशन में मैच के बाद पार्टियां भी होती थीं, जिसमें शामिल होकर खिलाड़ी अपने ‘ग्राहकों’ (अपने पेड फैंस) को भी खुश करते थे। आपने देखी इनकी क्रिकेट और देश के प्रति निरपेक्षता? अभी तक किसी खिलाड़ी को भारत-रत्न नहीं मिला है। देश ने एक और खिलाड़ी को पैदा किया था। यहां मैं उसकी चर्चा करना चाहूंगा। देश के प्रति उसके निरपेक्ष एवं अतुलनीय योगदान की एक मिसाल देता हूं। उस खिलाड़ी का नाम था ध्यानचंद। आपको यह ज्ञात होगा किन्तु फिर भी बता देता हूं। वह शख्स हृदय से देश और खेल दोनों के लिए के लिए समर्पित था। अब पहुँचते हैं 1936 के बर्लिन ओलिंपिक के दौर में । हॉकी का फाइनल मैच चल रहा था। भारत के सामने जर्मनी की टीम थी। जर्मन तानाशाह हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से रौंद डाला। हिटलर शांतचित्त होकर मैच देख रहे थे। मैच खत्म होने के बाद उन्होंने ध्यानचंद के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा,"आप जर्मनी के लिए खेलिए, हम आपको जर्मन सेना में जनरल का ओहदा देंगे।" ध्यानचंद ने यह प्रस्ताव तुरंत ठुकरा दिया। कहा, "मैं भारतवासी हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा। मुझे नहीं चाहिए जनरल का पद।" एक बात और समीक्षा कीजिएगा । अब वापिस चलते हैं दौर -1936 का समय। जर्मनी का तेजी से प्रादुर्भाव हो रहा था। वह उस वक्त दुनिया का पहला नहीं तो दूसरा सशक्त राष्ट्र जरूर था और भारत एक गुलाम देश। एक गरीब देश। उस वक्त जहां करीब 90 फीसदी जनता बुनियादी सुविधाओं से महरूम थी। यह गौर करने लायक है कि ध्यानचंद की जगह कोई और पैसे और पद का लालची रहता तो वह हिटलर के उस प्रस्ताव तो तुरंत स्वीकार कर लेता। अब आप ही बताइए देश के लिए अतुलनीय और निरपेक्ष योगदान किसका है? टैक्स चोरी करने की कोशिश करने वाले सचिन का या फिर देशभक्त ध्यानचंद का? क्रिकेट तो एक लिगल सवैधानिक जुआ है। बेइंतेहा सट्टा लगता है। इसे देखते हुए लगता है सट्टा लीगल हो जाये तो कोई ताज्जुब न होगा ।सरकार के खजानें में टैक्स तो जमा होगा।हमारे देश में खुश हाली तो आएगी।
क्या अब हमें हमारा राष्ट्रीय खेल क्रिकेट नहीं कर देना चाहिए ? दूसरी बात हमें हमारा राष्ट्रीय खेल दिवस २९ अगस्त से २४ अप्रैल कर लें। बदलें तो पूरी तरह से समर्पित हों।
इस पर आप लोगो की क्या राय है अवश्य भेजिएगा। भारत के असली रतनों की तऱफ जाने से पहले ही
हट जाता है हमारा ध्यान ऐसा क्यों हो रहा है ।कभी गौर करने का वक़्त मिला है इस बात पर।
मैं तो आखिर बस यही कहूँगा-
करो तो देश के लिए कुछ करो
कुछ तो देश को समर्पित करो
समर्पण करो ऐसा किसी के काम आ जाये
ऐसा कार्य जो सब को भा जाये।।
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