महाराजा
सूरजमल ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए जो किया उसे भुलाना कृतघ्नता होगी ।
ढीली पड़ती मुगलिया सल्तनत की कमजोरी से लाभ उठा उन्होंने विशाल राज्य
स्थापित किया । वे शरणागत-वत्सल थे । जिस समय जयपुर पर राजपूताने के राजाओं
और मराठों की सम्मिलित शक्ति का आक्रमण हुआ तो महाराजा ईश्वरी सिंह की
करुण कथा सुन तथा दूत द्वारा केवल पत्र पुष्प ही ग्रहण कर, बीस सहस्र जाट
सैनिकों के साथ आमेर जा पहुंचे । राजपूतों तथा मराठों की सम्मिलित शक्ति को
पराजित कर ईश्वरीसिंह को निष्कंटक राजा तो बना ही दिया, अपने शक्ति की धाक
भी सब पर जमा दी । वे उस समय उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली राजा थे । जिस
समय अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर १७६१ में चतुर्थ आक्रमण किया और पेशवा के
प्रतिनिधि सदाशिवराव भाऊ ने उसके आक्रमण का प्रतिशोध करने के लिए हिन्दू
शक्ति का आह्वान किया, उस समय जहाँ राजपूत राजाओं ने भाऊ का साथ देने से
इन्कार किया, वहां महाराजा सूरजमल अपने पचास हजार रणबांकुरों को लेकर मैदान
में आ पहुंचे । यही नहीं, उन्होंने विशाल मराठा वाहिनी के लिए अपने खजाने
से एक महीने का राशन भी दिया ।
साभार :
रोहित नैन
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