भूतपूर्व
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने जाट सेण्टर बरेली में भाषण दिया - जाटों का
इतिहास भारत का इतिहास है और जाट रेजिमेंट का इतिहास भारतीय सेना का इतिहास
है । पश्चिम में फ्रांस से पूर्व में चीन तक ‘जाट बलवान्-जय भगवान्’ का
रणघोष गूंजता रहा है ।
१ . विख्यात पत्रकार खुशवन्तसिंह ने लिखा
है - (i) "The Jat was born worker and warrior. He tilled his land with
his sword girded round his waist. He fought more battles for the defence
for his homestead than other Khashtriyas" अर्थात् जाट जन्म से ही
कर्मयोगी तथा लड़ाकू रहा है जो हल चलाते समय अपनी कमर से तलवार बांध कर
रखता था। किसी भी अन्य क्षत्रिय से उसने मातृभूमि की ज्यादा रक्षा की है ।
(ii) पंचायती संस्था जाटों की देन है और हर जाटों का गांव एक छोटा गणतन्त्र
है ।
२ . जब 25 दिसम्बर 1763 को जाट प्रतापी राजा सूरजमल शाहदरा
में धोखे से मारे गये तो मुगलों को विश्वास ही नहीं हुआ और बादशाह शाहआलम
द्वितीय ने कहा - जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो जाये । (यह बात विद्वान्
कुर्क ने भी कही थी ।)
३ . टी.वी History Channel ने एक दिन
द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास को दोहराते हुए दिखलाया था कि जब सन् 1943
में फ्रांस पर जर्मनी का कब्जा था तो जुलाई 1943 में सहयोगी सेनाओं ने
फ्रांस में जर्मन सेना पर जबरदस्त हमला बोल दिया तो जर्मन सेना के पैर
उखड़ने लगे । एक जर्मन एरिया कमांडर ने अपने सैट से अपने बड़े अधिकारी को
यह संदेश भेजा कि ज्यादा से ज्यादा गुट्ठा सैनिकों की टुकड़ियाँ भेजो । जब
उसे यह मदद नहीं मिली तो वह अपनी गिरफ्तारी के डर में स्वास्तिक निशानवाले
झण्डे को सेल्यूट करके स्वयं को गोली मार लेता है । याद रहे जर्मनी में
जाटों को गुट्टा के उच्चारण से ही बोला जाता है । - (लेखक)
४ .
एक बार अलाउद्दीन ने देहली के कोतवाल से कहा था - इन जाटों को नहीं छेड़ना
चाहिए । ये बहादुर लोग ततैये के छत्ते की तरह हैं, एक बार छिड़ने पर पीछा
नहीं छोड़ते हैं ।
५ . इतिहासकार मो० इलियट ने लिखा है - जाट वीर जाति सदैव से एकतंत्री शासन सत्ता की विरोधी रही है तथा ये प्रजातंत्री हैं ।
६ . संत कवि गरीबदास - जाट सोई पांचों झटकै, खासी मन ज्यों निशदिन अटकै ।
(जो पाँचों इन्द्रियों का दमन करके, बुरे संकल्पों से दूर रहकर भक्ति करे,
वास्तव में जाट है ।
७ . महान् इतिहासकार कालिकारंजन कानूनगो -
(क) एक जाट वही करता है जो वह ठीक समझता है । (इसी कारण जाट अधिकारियों को
अपने उच्च अधिकारियों से अनबन का सामना करना पड़ता है - लेखक) (ख) जाट एक
ऐसी जाति है जो इतनी अधिक व्यापक और संख्या की दृष्टि से इतनी अधिक है कि
उसे एक राष्ट्र की संज्ञा प्रदान की जा सकती है । (ग) ऐतिहासिक काल से जाट
बिरादरी हिन्दू समाज के अत्याचारों से भागकर निकलने वाले लोगों को शरण देती
आई, उसने दलितों और अछूतों को ऊपर उठाया है । उनको समाज में सम्मानित
स्थान प्रदान कराया है। (लेकिन ब्राह्मणवाद तो यह प्रचार करता रहा कि शूद्र
वर्ग का शोषण जाटों ने किया - लेखक) (घ) हिन्दुओं की तीनों बड़ी जातियों
में जाट कौम वर्तमान में सबसे बेहतर पुराने आर्य हैं।
८ . महान्
इतिहासकार ठाकुर देशराज - जाटों को मुगलों ने परखा, पठानों ने इनकी चासनी
ली, अंग्रेजों ने पैंतरे देखे और इन्होंने फ्रांस एवं जर्मनी की भूमि पर
बाहदुरी दिखाकर सिद्ध किया कि जाट महान् क्षत्रिय हैं ।
९ . पं० इन्द्र विद्यावाचस्पति- जाटों को प्रेम से वश में करना जैसा सरल है, आँख दिखाकर दबाना उतना ही कठिन है ।
१० . कवि शिवकुमार प्रेमी -
जाट जाट को मारता यही है भारी खोट ||
ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट ||
(कोट का अर्थ किला)
इसीलिए तो कहा जाता है - जाटड़ा और काटड़ा अपने को मारता है । (लेखक)
११ . विद्वान् विलियम क्रूक -
(i) जाट विभिन्न धार्मिक संगठनों व मतों के अनुयायी होने पर भी जातीय
अभिमान से ओतप्रोत हैं । भूमि के सफल जोता, क्रान्तिकारी, मेहनती जमीदार
तथा युद्ध योद्धा हैं ।
(इसीलिए तो जाटों या जट्टों के लड़के
अपनी गाड़ियों के पीछे लिखवाते हैं - ‘जट्ट दी गड्डी’, ‘जाट की सवारी’
‘जहाँ जाट वहाँ ठाठ’, ‘जाट के ठाठ’ तथा ‘Jat Boy’ आदि-आदि - लेखक ।
(ii) स्पेन, गाल, जटलैण्ड, स्काटलैण्ड और रोम पर जाटों ने फतेह कर बस्तियां बसाई ।
१२ . विद्वान् ए.एच. बिगले - जाट शब्द की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं
है । यह ऋग्वेद, पुराण और मनुस्मृति आदि अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों से स्वतः
सिद्ध है । यह तो वह वृक्ष है जिससे समय-समय पर जातियों की उत्पनि हुई ।
१३ . विद्वान् कनिंघम - प्रायः देखा गया है कि जाट के मुकाबले राजपूत
विलासप्रिय, भूस्वामी गुजर और मीणा सुस्त अथवा गरीब, कास्तकार तथा पशुपालन
के स्वाभाविक शोकीन, पशु चराने में सिद्धहस्त हैं, जबकि जाट मेहनती जमीदार
तथा पशुपालक हैं ।
१४ . विख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार - जाट
समाज में जाटनियां परिश्रम करना अपना राष्ट्रीय धर्म समझती हैं, इसलिए वे
सदैव जाटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती हैं । वे आलसी जीवन के
प्रति मोह नहीं रखती ।
१५ . प्राचीन इतिहासकार मनूची - जाटनियां
राजनैतिक रंगमंच पर समान रूप से उत्तरदायित्व निभाती हैं । खेत में व
रणक्षेत्र में अपने पति का साथ देती हैं और आपातकाल के समय अपने धर्म की
रक्षा में प्रोणोर्त्सग (प्राणत्याग) करना अपना पवित्र धर्म समझती हैं ।
१६ . जैक्मो फ्रांसी इतिहासकार व यात्री लिखता है – महाराजा रणजीतसिंह पहला
भारतीय है जो जिज्ञासावृत्ति में सम्पूर्ण राजाओं से बढ़ाचढ़ा है । वह
इतना बड़ा जिज्ञासु कहा जाना चाहिए कि मानो अपनी सम्पूर्ण जाति की उदासीनता
को वह पूरा करता है । वह असीम साहसी शूरवीर है । उसकी बातचीत से सदा भय सा
लगता है। उन्होंने अपनी किसी विजययात्रा में कहीं भी निर्दयता का व्यवहार
नहीं किया ।
१७ . यूरोपीय यात्री प्रिन्सेप - एक अकले आदमी द्वारा
इतना विशाल राज्य इतने कम अत्याचारों से कभी स्थापित नहीं किया गया ।
अद्भुत वीरता, धीरता, शूरता में समकालीन सभी भारतीय नरेशों के शिरमौर थे ।
दूसरे शब्दों में पंजाबकेसरी महाराजा रणजीतसिंह भारत का नैपोलियन था।
१८ . महान् इतिहासकार उपेन्द्रनाथ शर्मा - जाट जाति करोड़ों की संख्या में
प्रगितिशील उत्पादक और राष्ट्ररक्षक सैनिक के रूप में विशाल भूखण्ड पर बसी
हुई है। इनकी उत्पदाक भूमि स्वयं एक विशाल राष्ट्र का प्रतीक है ।
१९ . विद्वान् सर डारलिंग - ‘‘सारे भारत में जाटों से अच्छी ऐसी कोई जाति
नहीं है जिसके सदस्य एक साथ कर्मठ किसान और जीवंत जवान हों।’’
२० . महान् इतिहासकार सर हर्बट रिसले - जाट और राजपूत ही वैदिक आर्यों के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं ।
२१ . फील्ड मार्शल माउंट गुमरी - “Jat is true soldier. I will be happy to
die with dignity amongst Jats Regt. My soul will be bless with peace.”
अर्थात् ‘‘जाट एक सच्चा सैनिक है । मुझे खुशी होगी यदि मैं जाटों के बीच
रहकर इज्जत से मर जांऊ ताकि मेरी आत्मा को शान्ति मिल सके ।”
२२ .
अंग्रेज प्रमुख जनरल ओचिनलैक (बाद में फील्ड मार्शल) - ‘‘If things looked
back and danger threatened I would ask nothing better than to have Jats
beside me in the face of the enemy” अर्थात “हालात बिगड़ते हैं और खतरा
आता है तो जाटों को साथ रखने से बेहतर और कुछ नहीं होगा ताकि मैं दुश्मन से
लड़ सकूं ।”
२३ . क्रान्तिदर्शी राजा महेन्द्रप्रताप - “हमारी
जाति बहादुर है । देश के लिए समर्पित कौम है । चाहे खेत हो या सीमा ।
धरतीपुत्र जाटों पर मुझे नाज़ है ।”
२४ . पं. जवाहरलाल नेहरू -
‘‘दिल्ली के आसपास चारों ओर जाट एक ऐसी महान् बहादुर कौम बसती है, वह यदि
आपस में मिल जाये और चाहे तो दिल्ली पर कब्जा कर सकती है ।”
(यह
पंडित नेहरू ने सन् 1947 से पहले कहा था, लेकिन पंडित जी देश आजाद होने के
बाद जाटों को भूल गये और उन्होंने अपने जीते जी कभी किसी हिन्दू जाट को
केन्द्रीय सरकार में किसी भी मंत्री पद पर फटकने नहीं दिया - लेखक)
२५ . स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा वेदव्रत्त शास्त्री - (देशभक्तों के
बलिदान ग्रंथ में) - ‘‘ईरान से लेकर इलाहाबाद तक जाटों के वीरत्व व
बलिदानों का इतिहास चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है । क्या कभी कोई माई का
लाल इनका संग्रह कर पाएगा ? काश ! जाट तलवार की तरह कलम का भी धनी होता।”
२६ . डॉ० बी.एस. दहिया ने अपनी पुस्तक Jats- The Ancient Rulers अर्थात्-
‘‘जाट प्राचीन शासक हैं’’ में लिखा है -‘‘There is no battle worth its
name in The World History where the Jat Blood did not irrigate The
Mother Earth’’ अर्थात्- ‘‘विश्व में ऐसी कोई भी लड़ाई नहीं हुई, जिसमें
जाटों ने अपनी मातृभूमि के लिए खून न बहाया हो ।”
(काश ! यह देश और इस देश के इतिहासकार इसे समझ पाते- लेखक)
२७ . विद्वान् इतिहासकार डॉ० धर्मकीर्ति -
(i) आगरा के ताजमहल और लाल किले को लूट ले जाना, सिकन्दरा में अकबर की
कब्र के भवन और एत्माद्दौला की कब्र के ऐतिहासिक भवन में भूसा भरकर आग लगा
देना, जिसके परिणामस्वरूप इन भवनों के काले पड़े हुए पत्थर आज भी (बौद्ध)
जाटों के शौर्य की वीरगाथा गा रहे हैं ।
(ii) “वर्तमान जाट जाति
को इस बात का गर्व से अनुभव करना चाहिए कि उनके पूर्वज बौद्ध नरेश असुवर्मा
नेपाल के प्रसिद्ध राजा हो चुके हैं।” (इन्हीं विद्वान् ने सम्राट् कनिष्क
से लेकर सम्राट् विजयनाग तक 17 बौद्ध जाट राजाओं का उनके काल तथा संसार
में उनके राज्य क्षेत्र का वर्णन किया है - लेखक)
२८ . विद्वान्
मोरेरीसन - “The Jats and Rajputs of the Doab are descendents of the late
Aryans” अर्थात् दोआबा के जाट और राजपूत आर्यों के वंशज हैं।
२९ . विद्वान् नेशफिल्ड - “जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।”
३० . प्रो० मैक्समूलर - “सारे भूमण्डल पर जाट रहते हैं और जर्मनी इन्हीं आर्य वीरों की भूमि है ।”
३१ . इतिहासकार बलिदबिन अब्दुल मलिक - “अरब की हिफाजत के लिए हमने जाटों का सहारा लिया ।”
३२ . सुल्तान मोहम्मद - “जाट कौम का डर मेरे ख्वाब में भी रहता है । इन्होंने मुझे कभी खिराज नहीं दिया
साभार :
डॉ सोदान सिंह चौधरी
अफ्रीका
No comments:
Post a Comment