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Sunday, November 17, 2013

फौजी बाबा का बंकर.......




1962 में चीन ने भारत को करारी शिकस्‍त दी थी, लेकिन उस युद्ध में हमारे देश कई जांबाजों ने अपने लहू से गौरवगाथा लिखी थी। आज 1962 वॉर की 50वीं बरसी है और हम एक ऐसे शहीद की बात करेंगे, जिसका नाम आने पर न केवल भारतवासी बल्कि चीनी भी सम्‍मान से सिर झुका देते हैं। वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई, इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है।

शहीद राइफलमैन को मिलता है हर बार प्रमोशन

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोज जूते पॉलिश किए जाते हैं। उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है और वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं। सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं। अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं। इनका नाम है- कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत। महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है।

पूरे तीन दिन तक चीनियों से अकेले लड़ा था वो जांबाज

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो ऐतिहासिक जंग लड़ी थी। वो 1962 की जंग का आखिरी दौर था। चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी। लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया। पूरी बटालियन लौट गई, लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे। बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की। बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं। उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा। चीनी परेशान हो गए और तीन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं। तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया। इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए। बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली। भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।

चीनी सेना भी सम्मान करती है शहीद जसवंत का

चीनी सैनिकों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो वे हैरान रह गए। चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए। 20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना और सम्‍मान स्‍वरूप न केवल उनका कटा हुआ सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ति भी भेंट की।

उस शहीद के स्मारक पर भारतीय-चीनी झुकाते है सर

जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर में चीन की ओर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है। उधर से गुजरने वाला हर जनरल और जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है। स्‍थानीय नागरिक और नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं। वो जानते हैं बाबा वहां हैं और देश की सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। वो जानते हैं बाबा शहीद हो चुके हैं, वो जानते हैं बाबा जिंदा हैं, बाबा अमर हैं। —

जय जवान । जय हिन्द





साभार : 


भारतीय सेना

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