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Friday, February 21, 2014

खाप क्या नहीं है

चिदंबरम साहब सुनिए गौर से...
खाप क्या नहीं है: खाप आपके दक्षिण में होने
वाली कट्टा पंचायतें नहीं हैं| खाप कोई गली-
मोहल्ले पे इकठ्ठा हुए कुछ
मनचलों या दबंगों का टोला नहीं हैं| खाप कोई
सौ-पचासों का समूह नहीं हैं| बीते सप्ताह कुछ
मीडिया वालों द्वारा एक बंगाल की पंचायत
जो खाप बता के उछाली गई, खाप वो नहीं हैं|
जो हॉनर किल्लिंग करते हैं वो खाप नहीं है|
जो औरत पे अत्याचार को स्वीकृति दे खाप
वो नहीं हैं| जो प्यार के जुर्म में सामूहिक
बलत्कार का आदेश दे वो खाप नहीं|
क्योंकि ना ही तो इनका चरित्र खाप की मूल
विचारधारा और सिद्धांत से मेल खाता और
ना ही इन औरों का इतिहास कहीं खापों के बराबर
खड़ा हो पाता| ये खापलैंड यानी प्राचीन
हरियाणा के यौद्धेयों की खापें हैं, जिनका इतिहास
किसी भी राजे-रजवाड़े से किसी भी स्तर पर
कमतर नहीं; अपितु बहुत से मामलों में तो राजे-
रजवाड़े ही इनके पास भी नहीं ठहरते| और यह
बात मैं कितनी सत्यता और धरातलियता से कह
रहा हूँ, इसका प्रमाण आपके ही अंदाज में
यहाँ पढ़िए:
1. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो इनकी मूल
कार्यप्रणाली से प्रभावित हो 643 ईस्वी में
ही महाराजा हर्षवर्धन इनके सत्ता-विकेंद्री
करण के लोकतान्त्रिक मॉडल को स्वीकृति दे,
इनको राजकीय मान्यता ना देते| आज
इनको राजकीय मान्यता मिले या ना मिले, परन्तु
यह भारतीय
संकृति का कितना बड़ा हिस्सा रही हैं, इस
उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है|
2. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो क्यों मलिक
खाप सर्वखाप का आह्वान कर हिन्दू व् सिख
जनता को कलानौर (रोहतक) रियासत के
नवाबों के कोला पूजन के जुल्मों से
छुटकारा दिलाने हेतु उस रियासत की चूलें
हिलाती और उन आततियों को धूल में मिलाती?
3. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों बागपत से
गर्जना लगा देश-खाप के
दादा चौधरी बाबा शाहमल तोमर 1857 के प्रथम
स्वंत्रता संग्राम में दिल्ली के उत्तरी छोर से
अंग्रेजों की नाक भींचते, और बागपत से ले
दिल्ली तक के यमुना नदी क्षेत्र में रण लड़ते?
और क्यों इन खापों से ही तंग आ इनकी ताकत
को विखंडित करने हेतु अंग्रेजों को प्राचीन
हरियाणा के चार टुकड़े करने पड़ते?
आशा करता हूँ कि आप इतना तो ही होंगे
कि वो चार टुकड़े कौन-कौन से थे?
4. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों 1663 में
हरियाणा के तिलपत में औरंगजेब से वीर गोकुल
जी महाराज सर्वखाप आर्मी ले के भिड़ते, और
क्यों हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु आगरा के
लालकिले पे अपने शरीर की बोटी-बोटी कटवाते?
और भारतीय इतिहास के पहले धर्मरक्षक
कहलाते?
5. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों 1669 में
संधि का बहाना दे औरंगजेब द्वारा बुलाये
इक्कीस खाप योद्धा हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु,
हँसते-हँसते अपने शीश उतरवाते| और इन
इक्कीस यौद्धेयों में सब एक जाति के नहीं थे,
इनमें ग्यारह जाट,
तीन राजपूत,
एक ब्रह्मण,
एक वैश्य,
एक सैनी,
एक त्यागी,
एक गुर्जर,
एक खान (जी हाँ मुसलमान भी थे इनमे),
और एक रोड थे|
क्या देखी है ऐसी अनोखी मिशाल भारतीय
संस्कृति के किसी अन्य अध्याय में? अगर
किसी धर्म तक में भी ऐसी मिशालें
मिलती हों तो, ला देंगे ढून्ढ के?
6. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों गोहद
की सर्वखाप किसान क्रांति खड़ी करती?
7. क्यों बालियान खाप के चौधरी बाबा महेंद्र
सिंह टिकैत हिन्दू-मुस्लिमों की एकता से
बनी भारतीय किसान यूनियन खड़ी करते, जिसमें
कि अगर मंच से नारा लगता "अल्लाह-हू-अकबर
" तो जनता नारा लगाती "हर-हर महादेव", मंच
से नारा लगता "हर-हर महादेव"
तो जनता नारा लगाती "अलाह-हू-अकबर"!
दिखाएंगे खापों को छोड़ कौनसी अन्य भारतीय
संस्कृति में यह मिशाल देखने को मिलती है?
8. खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो बाबर
जैसा बादशाह इनके दर पे शीश नवाने नहीं आता|
मुझे नहीं पता आप किसको भारतीय
संस्कृति मानते हैं, लेकिन
क्या आपकी मान्यता वाली संस्कृति में दिखाएंगे
कभी ऐसा कीर्तिमान हुआ
हो कि विदेशी आक्रांता ने जा के जहाँ शीश नवायें
हो?
9. यही खापें अगर भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो ब्राहम्णों तक
पर जजिया कर लगा देने वाले औरंगजेब के
खिलाफ सर्वप्रथम कौन आवाज उठाता?
इन्हीं खापों ने 1663 में हरियाणा में तिलपत
मचाया था, जो कि अंग्रेज इतिहासकारों नें
भी विश्व की सबसे शौर्यतम व् भयंकर
लड़ाइयों में एक बताई है| इस लड़ाई में सर्वखाप
आर्मी ने औरंगजेब को संधि करने को मजबूर कर
दिया था| जरा पलटिये इतिहास के इन्
पन्नों को तब पता लगेगा आपको कि खापें
कौनसी संस्कृति का हिस्सा हैं|
10. ज़रा उठाइये इतिहास और देखिये कि कैसे
इसी भारतीय संस्कृति के हिस्से सर्वखाप ने
तैमूर लंग और गुलाम-वंश की ईंट-से-ईंट
बजा दी थी|
11. पढ़िए कि कैसे हांसी-हिसार के मैदानों में
यौद्धेय शिरोमणी दादा चौधरी जाटवान जी जाट
महाराज के नेतृत्व में गठवाला खाप की आयोजित
सर्वखाप आर्मी द्वारा कुतुबद्दीन ऐबक के
जुल्मों के विरुद्ध मचाई रणभेरी में क्या संग्राम
छिड़ा था| ऐसा संग्राम जिसपे कि दिल्ली वापिस
जा के कुतुबुद्दीन ऐबक खून के आंसू
रो पछताया था, और फूट पड़ा था कि काश मैंने
खापों के समाज को ना छेड़ा होता| यही वो खाप
संस्कृति थी जिसने उसके मुंह से ऐसे उदगार
निकलवा दिए थे|
12. पूछिए दिल्ली की रजिया सुलतान के अंश से
कि कैसे खापों ने शान बचाई थी उनकी और उनके
राज की उनके विरोधियों से|
13. पढ़िए खिलजी के कुलंच और देखिये जा के
तुंगभद्रा नदी के मुहानों और मचानों पर, वो आज
भी खापों के शौर्यों के किस्से गाते मिल जायेंगे|
14. सिकंदर
लोधी बतायेगा आपको कि क्यों आया था वो सर्वखाप
के मुख्यालय शोहरम पर शीश नवाने, पूछिए
उनकी जीवनी से कि खापें भारतीय
संस्कृति का कितना बड़ा हिस्सा रही हैं!
15. 1857 में बहादुशाह जफ़र ने 1857
की क्रांति की कमांड खापों को सौंपते हुए लिखे
गए ख़त की प्रति भी पढ़ लीजिये पढ़िए और जानिये कि ये खापें
ही थी जो बहादुरशाह को एक मात्र सहारा नजर
आई थी भारतीय संस्कृति की लाज बचाने का|
16. बीसवीं सदी में खापें कैसे भारतीय
संस्कृति का हिस्सा रही यह जानना है तो घूमिये
एक बार खापलैंड की धरती पर| हर दस कोस पर
खड़े विभिन्न विद्यालय, गुरुकुल और शिक्षालय
जो आपको मिलेंगे वो इन्हीं खापों की सोच और
पसीने का नतीजा रहे हैं|
17. अभी हाल ही के वर्षों में देखना है तो जाइये
देखिये हरियाणा में कि कैसे खापें कन्या-भ्रूण
हत्या व् हॉनर किल्लिंग के खिलाफ मुहीम चलाये
हुए हैं? उम्मीद है कि जब बीबीपुर की सर्वखाप ने
कन्या भ्रूण हत्या को अपराध बता, ऐसा कुकर्म
करने वालों के लिए मौत की सजा की मांग
की तो वह खबर आपतक पहुंची होगी;
तो क्या कोई असांस्कृतिक या असामाजिक
सभा ऐसा निर्यण ले सकती है? ये इन्हीं खापों ने
लिया है जो इसी भारत
की संस्कृति का हिस्सा हैं|
उम्मीद करता हूँ कि इसको पढ़ने से दो उद्देश्य
पूरे होंगे! एक आपको खापें क्या रही हैं और
क्या हैं, इसका भान होगा और दूसरा खापों पे
अपनी सोच को ले अपने गलत होने का अहसास
भी यह लेख आपको दिलवा जाए|
अगर ये खापें ना होती तो अभी सितंबर 2013 में
देश पर आये मानवता के संकट से इस देश और
धर्मों को कौन उभारता? आपकी तमाम तरह
की सरकारें तो जनता पर हो रहे जुर्म को एक
तरफ़ा पक्ष ले मूक-बधिर हो देख रही थी| और
अगर ये आगे ना बढ़ते
तो अराजकता फैलनी सुनिश्चित थी| इससे यह
भी साफ़ दीखता है कि आज भी उत्तर भारत
की सभ्यता, संस्कृति व् धर्म को बचाये रखने में
इनका कितना बड़ा स्वरूप है|
और एक विशेष बात, यह तो सिर्फ
इनका इतिहास-वर्त्तमान और महत्वता बताई
है, अगर इनके वंशों के राजे-रजवाड़ों का इतिहास
और सुना दूं तो आप सोचने पे मजबूर हो जाओगे
कि देशभक्ति और इसकी शक्ति-संचय के नाम पे
जिनको आप भारतीय संस्कृति का हिस्सा मानते
हैं, उन्होंने किया ही क्या है?
इसलिए जनाब यह पब्लिक appeasing
की राजनीति करने के चक्कर में इतने भी मत
बहकिये कि देश की संस्कृति पे सवाल खड़े कर
धर्म और सभ्यता को ही संकट में डाल दें|
और आपने एक बात और कही कि मैं वकील के
कपडे पहन कर स्वीमिंग पूल में
नहीं जा सकता और स्वीमिंग पूल के कपडे पहन
कर अदालत नहीं जा सकता?
तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि खेती-
बाड़ी करने वालों की कोई ड्रेस कोड
नहीं होना चाहिए अथवा नहीं होता?
क्या आप जानते हैं कि जीन्स पहन के गेहूं काटने
से पायजामा या धोती बाँध के गेहूं
काटना कितना आसान है? या दक्षिण भारत में
लुंगी बाँध के खेतों में काम करना कितना आसान
है, इतना तो आप जानते ही होंगे?
जो आम जिंदगी में जींस पहनते हैं जरा भेजिए
उनको अबकी बार अप्रैल-मई की गेहूं कटाई के
वक्त मेरे खेतों में, समझ में आ
जायेगी उनको कि खापों के लिए भी ड्रेस कोड
जरूरी क्यों होता है और क्यों यह जींस ठीक
उसी प्रकार उनके कार्यक्षेत्र के अनुरूप नहीं,
जैसे आप उदाहरण दे रहे हैं|
रही बात जब कॉलेज या स्कूल वगैरह में इनके
बच्चे जाते हैं तो लगभग सारे के सारे पेंट-जींस
ही पहन के जाते हैं| और जिसको आप
पाबन्दी कहते हैं वो पाबन्दी नहीं, नसीहत
होती है, ठीक वैसी ही नसीहत
जैसी आपको कोर्ट में जाते वक़्त कोट-पेंट पहन
के जाने की होती है अथवा स्वीमिंग पूल में जाते
वक़त स्वीमिंग सूट की|
लेखक: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 05/02/2014
सम्पादन: NH सलाहकार मंडल

साभार:  मनोज फोगाट जाट भारतीय

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