कड़वी बात
जाट के लागी लात
समझ में आजा फट बात
इब न रहा वो गात
महँ तह दिखें तारे सात
आपस में कूटन पीटण का काम
शक्ल न दिखावें ले जा जब दाम
लठ मारण में सदा आगे
ज़िम्मेवारी से पाच्छेय भाजै
जाट जच की काटे जाट
आपसी प्यार की न देखो बाट
नशा करें जमा डट की
घी तहँ रहंव हट की
अपने पराए की परख नहीं
ज़मीं गर्द अब उड़ती नहीं
ठग्ग बकाला ने लगाया रगड़ा
जाट झूठी अहम् में अकड़ा
घटती जा रही अब भूम
घराँ बिक रही धरी टूम
अपने के लगावें ताकू
डट के पीवै दारू तमाखू
उल्टा ज़माना 'हरपाल ' आया
शेर घुर में पड़े गादड़ की बदली काया।
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