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Monday, September 30, 2013
मुजफ्फरनगर दंगे:
मुजफ्फरनगर दंगे:
जब सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना, तो पाकिस्तान से आने वाली रेलगाडिय़ों में सिख और हिंदुओं की लाशें आने लगीं तो पंजाब के(वर्तमान में हरियाणा भी शामिल था) जाटों का यह लाशें देखकर खून बौखला उठा और इस क्षेत्र में इसके बाद भारी धार्मिक दंगे हुए, लेकिन याद रहे कि ये दंगे सबसे पहले लाहौर के पास ही शुरू हुए थे, जिनका कारण मैंने अपनी पुस्तक असली लुटेरे कौन में विस्तार से बतलाया है, लेकिन इन दंगों का उत्तरप्रदेश के जाटों पर कोई असर नहीं हुआ और वहां के जाटों ने बहुत बड़ा धैर्य और धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण पेश किया, जो आज भी प्रशंसा योग्य है। इसके बाद उत्तरप्रदेश में कई बार धार्मिक दंगे हुए, लेकिन जाटों ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया और इसी सिद्धांत पर चौधरी चरण सिंह और चौधरी महेंद्र ङ्क्षसह टिकैत चलते रहे और हिंदू और मुस्लिम की एकता बनी रही और इन्होंने उत्तरप्रदेश में अपने अधिकारों की लड़ाई हमेशा मिलकर लड़ी, जिस पर हमें बड़ा गर्व है। सन् 1982 में मेरठ में दंगे हुए। मैं वहां ड्यूटी पर तैनात रहा, लेकिन मैंने वहां किसी जाट को इन दंगों में सम्मिलित होते हुए नहीं देखा, जबकि वह क्षेत्र जटलैंड कहलाता है। उसके बाद 1986 में मुरादाबाद में धार्मिक दंगे हुए, मैं वहां भी ड्यूटी पर रहा, मुरादाबाद तक भी जाटों की काफी संख्या है, लेकिन कभी कोई जाट इस बेहूदी कार्रवाई में सम्मिलित नहीं हुआ। सन् 1990 में अयोध्या में धर्म के नाम पर बहुत बड़ा ढ़ोंग रचाया गया। वहां भी मैंने देखा कि कोई इक्का-दुक्का ही जाट वहां गया। इसके बाद 6 दिसंबर, 1992 को बावरी मस्जिद को गिराया गया, उसमें भी जाटों का कोई भी रोल नहीं था। यहां मेरे कहने का अर्थ है कि उत्तरप्रदेश के जाटों ने हमेशा समझदारी से व ईमानदारी से काम लिया। लेकिन लगता है कि इन कुछ वर्षों में चौ. अजीत सिंह की जाटों पर पकड़ ढ़ीली पड़ गई और उस प्रकार की नहीं रही, जिस प्रकार कभी चौ. चरणङ्क्षसह और चौ. महेंद्र सिंह टिकैत की थी वर्ना ये कोई भी दंगे का कारण नहीं हो सकता कि किसी बिगडैल लडक़े ने किसी की भी लडक़ी छेड़ दी हो और पूरी जाट कौम चाहे वह हिंदु हो या मुस्लिम, एक दूसरे को मरने-मारने पर तुल जाएं क्योंकि उत्तरप्रदेश के जाटों की समझदारी खत्म नहीं हुई थी। इस घटना ने किसी भी समझदार जाट को झिंझोडक़र रख दिया है क्योंकि इस दंगे में चाहे हिंदू हो या मुसलमान, अधिकतर जानें हमारे ही खून वालों की ही गई हैं। खून तो खून है, चाहे आप माथे पर तिलक लगाएं या फिर दाढ़ी रख लें या सिर पर पगड़ी बांध लें, इससे खून पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि हम सभी जाट एक ही खून से बने हुए हैं। हमारे महापुरुष चौ. छोटूराम और चौ. चरणङ्क्षसह इसी नीति पर चले और उन्होंने कभी भी धर्म के नाम पर राजनीति नहीं की। इसीलिए ये महान पुरुष भी कहलाते हैं, लेकिन लगता है कि हमने उन्हें भुला दिया, इसीलिए हमें यह हादसा झेलना पड़ा।
मुजफ्फरनगर के दंगों के बारे में हम टीवी चैनलों की रिपोर्टों के आधार पर तथा वहां के हिंदू और मुस्लिम धर्म के जाटों से बात करते हैं, तो यह निष्कर्ष साफ तौर पर निकलकर आता है कि ये दंगे राजनेताओं ने अपने वोटों के लिए करवाए। मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि मुस्लिम जाट वोट कहीं मायावती, कांग्रेस या बीजेपी में न चले जाएं, इसीलिए उन्हें आने वाले चुनावों के लिए मुसलमानों की वोटें चिंतित किए हुए हैं। इसी कारण उनकी पार्टी ने जाटों को आग में झोंकने का कार्य करवाया। वहीं दूसरी ओर भाजपा चाहती है कि सभी हिंदू वोट उसे मिलने चाहिएं क्योंकि वह जानती है कि इस देश में 80 प्रतिशत हिंदू वोट हैं। उनके सामने स्पष्ट अनुभव है कि 1990 में वे इसी प्रकार से हिंदू लोगों की भावनाएं भडक़ाकर और बावरी मस्जिद गिराए जाने पर ही सत्ता में आए थे, लेकिन छह साल तक सत्ता में रहने के बावजूद न तो वे मंदिर बनवा पाए, न ही संविधान की 371 धारा समाप्त कर पाए, जिसके नाम पर उन्होंने उस समय चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। इसीलिए उत्तरप्रदेश के दंगे पूर्णतया वोटों के बंटवारे के लिए थे, जिसमें हमारे जाट समाज को बलि का बकरा बनाया गया।
प्यारे जाट भाईयो और बहनो तथा मित्रो, यदि हमने अपनी कौम को आगे बढ़ाना है, तो हमें निश्चित रूप में धर्म निरपेक्ष रहना होगा और चौ. छोटूराम की नीतियों के अनुसार ही हमें चलना होगा। इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। यदि हम लोगों ने किसी भी चुनाव में धर्म के बहकावे में आकर वोट दिए तो हमारी कौम का स्वरूप बिगडऩा निश्चित है क्योंकि हम जाट सभी धर्मों के मानने वाले हैं। इसलिए हमारे लिए धर्म से बड़ी हमारी जाति है और इस जाति की परंपराओं और गौरव को बनाए रखना हमारी प्राथमिक जिम्मेवारी है। यदि हम इसे नहीं निभा पाए तो हमारी आने वाली पीढिय़ां हमें किसी कीमत पर माफ नहीं करेंगी। आओ, सभी मिलकर एक बार मुजफ्फरनगर में हुए हमारे भाईचारे के नुकसान की भरपाई करने के लिए प्रयास करें और सच्चे प्रयास कभी असफल नहीं होते।
आजकल एक प्रचार केवल उत्तरप्रदेश ही नहीं, देश के दूसरे भागों में बड़ी तेजी से फैलाया जा रहा है कि मुस्लिम तो परिवार नियोजन नहीं करते, वे इस देश में केवल अपनी संख्या बढ़ाने का काम करते हैं ताकि वे हिंदुओं से अधिक हो जाएं। ये प्रचार और ये सोच कौन लोग पैदा कर रहे हैं, हमें अच्छी तरह से समझना होगा। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि जब सन् 1530 में बाबर इस देश में आया तो केवल 25 हजार की सेना लेकर आया था, जिसमें कुछ हिंदू भी थे और उसकी सेना का एक सेनापति रेमीदास नाम का हिंदू भी था और इस देश में उस समय दस करोड़ से अधिक हिंदू थे, फिर ये हिंदू केवल 25 हजार के साथ क्यों नहीं लड़ पाए। इसीलिए मैं कहना चाहता हूं कि हिंदुओं को विशेषकर अपने जाट भाईयों को इस प्रकार की बातों पर विचार नहीं करना है क्योंकि हर मामले में संख्या काम नहीं आती। संख्या से ज्यादा कई बार इच्छाशक्ति प्रबल होती है। इसलिए मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि हम जाट पक्के राष्ट्रवादी हैं, इस बात का इतिहास गवाह है। इसीलिए हमें किसी भी कीमत पर धर्म के नाम से नहीं बहकना है और न ही धर्म के नाम से कभी वोट देना है। धर्म एक व्यक्ति का निजी मामला है और एक ही परिवार में पांच सदस्य अलग-अलग देवताओं की पूजा करते हैं, यह उनका अधिकार है। हमें उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अतिरिक्त एक ही परिवार में अलग-अलग धर्म से जुड़े लोग भी हमारे देश में हैं। ये भी उनका अधिकार है। हमें उस पर टीका टिप्पणी करने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है। इसलिए मेरे जाट भाईयो, बहुत ही सोच-समझकर और विचार और मंथन करके धर्म के मामले में सावधान रहना होगा क्योंकि सामाजिक तौर पर देखा गया है कि लोगों के प्रचार ने हमको न तो पिछड़ा छोड़ा न ही अगाड़ी। किसी भी धर्मग्रंथ में जाटों को क्षत्रिय नहीं कहा गया है, न ही कभी उच्च जाति। सभी जगह शूद्र, मलेच्छ, वर्णशंकर और चांडाल कहा गया है। केवल अंग्रेजों ने हमें एक मार्शल रेस माना है, जो सच्चाई है। लेकिन इसके बावजूद भी हम अपने आप को उच्च जाति का समझते हैं तो यह हमारी भूल है क्योंकि हम केवल पिछड़े हैं, लेकिन कोई शूद्र या उच्च जाति के नहीं।
Courtesy: Hawa Singh Sangwan
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desh kaa dukhad bhavisya hai
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