छठी
शताब्दी में जाट राजा हर्षवर्धन उत्तर भारत के सर्वशक्तिमान् सम्राट् थे
जिनके राज्य-प्रबन्ध की प्रशंसा चीनी यात्रियों ने भी की है । इन्हीं के
राज्य में बाण जैसा कवि था जिसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि "बाणोच्छिष्टं
जगत् सर्वम्" । संस्कृत साहित्य का कोई ऐसा शब्द न होगा जिसका बाण ने
प्रयोग न किया हो । सौलह सौ वर्ष पूर्व उत्तर भारत में जाटों के अनेक
उदाहरण थे जिनमें रोहतक का यौधेयगण राज्य सर्वाधिक प्रसिद्ध था । यहाँ के
वीर क्षत्रियों ने अपने रक्त की अन्तिम बूंद तक बहाकर पंचायती राज्य की
रक्षा के लिए अकथनीय बलिदान दिये । उनके समृद्धिशाली राज्य की कहानी रोहतक
का खोखरा कोट पुकार-पुकार कर कह रहा है । थानेसर, कैथल, अग्रोहा, सिरसा,
भादरा आदि इनके प्रसिद्ध जनपद थे ।
१०२५ में जब महमूद गजनवी
गुजरात के संसार-प्रसिद्ध देवालय सोमनाथ को लूटकर रेगिस्तान के रास्ते
वापिस गजनवी जा रहा था तब भटिण्डा के जाट राजा
विजयराव ने उसे सिन्ध के मरुस्थल में घेरा और उसकी असंख्य धनराशि अपने
कब्जे में की तथा उसे खाली हाथ लौटने के लिए (प्राण बचाकर भागने के लिए)
विवश किया । नौ सौ साल पहले बुटाना के जाटों ने अत्याचारी मुगलों को घातरट
(सफीदों के पास) के मुकाम पर हराया और गठवाले (मलिक) जाटों ने पठानों को
कलानौर में शिकस्त दी ।
मुगलिया सल्तनत के दौरान में हरियाणा के
वीर-पुत्रों ने सर्वखाप पंचायत के मातहत अनेक लड़ाइयां लड़ीं और महत्वपूर्ण
बलिदान दिये जो अलग ही लेख का विषय है । औरंगजेब ने ब्रज के गोकुला जाट को
मुसलमान न बनने पर जिन्दा चर्खी पर चढ़ा दिया था और माड़ू जाट की जिन्दा
जी खाल (चमड़ी) उतरवा ली थी । उसी समय बोदर के महन्तों की वैरागी फौजों में
शामिल होकर जाट मुगलों से निरन्तर संघर्षरत होते रहे ।
साभार ::
रोहित नैन
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