जाट अद्वितीय
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पिछले
पांच हजार साल से भारत के भाग्य निर्णायक युद्ध हरियाणा की वीर-भूमि में
लड़े जाते रहे हैं । धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भाई से भाई का जो युद्ध
हुआ उसमें ऐसी परम्परा पड़ी कि आज भी इस धरती पर भाई से भाई लड़ता कतराता
नहीं । और इसी हरयाणे की पवित्र भूमि के ठीक मध्य में दिल्ली है जो
न्यूनाधिक अपनी स्थापना से आज तक इस राष्ट्र की राजधानी चली आई है । हजारों
साल से वे देश के स्वातन्त्र्य युद्धों में सामूहिक रूप से भाग लेते आये
हैं । परन्तु इतिहास में उनके अमर बलिदानों की कहानी का उल्लेख नहीं हुआ है
। जाट रणभूमि में अपने जौहर बार-बार दिखला चुका है, फिर भी राजपूत, सिख,
मराठों जैसे युद्ध सम्बन्धी प्राचीन दन्त-कथायें उसके भाग्य में नहीं हैं ।
परन्तु अपनी मातृभूमि के लिए जिस दृढ़ता से जाट लड़ सकता है, उनमें से कोई
भी नहीं लड़ सकता । अधिक से अधिक प्रतिकूल परिस्थिति में भी पूर्ण रूप से
शान्त बने रहने और घबरा न उठने की प्राकृतिक शक्ति से जाट भरपूर होता है ।
भय तो जाट को छू भी नहीं सकता । जो भी चोट उस पर पड़ती है, उससे वह और भी
कड़ा बन जाता है । उद्योग और साहस में तो जाट अद्वितीय होता है । शारीरिक
संगठन, भाषा, चरित्र, भावना, शासन-क्षमता, सामाजिक परिस्थिति आदि के विचार
से जाट ऊँचा स्थान रखता है ।
रोहित नैन
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