Courtsey- Abhishek Chaudhary
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Monday, October 7, 2013
दो वीरांगनाएं
जब देखा बहनों ने
भाइयों के शवों को क्षत-
विक्षत।
तो खौल
उठा उनका खून,आंखों से
बहने लगी क्रोध
की ज्वाला।
बदला लेने को फड़क
उठीं बहनों की भुजाएं,
पीने गोरों का खून कूद
पड़ीं रण में बन रणचंडी।
मेरठ की क्रांतिधरा से
10 मई 1857 को ब्रिटिश
हुकूमत में शामिल भारतीय
सैनिकों के विद्रोह मुखर
होते ही हर
हिंदुस्तानी सीने में
इन्किलाब की लपटें धधक
उठीं। प्रथम जंग-ए-
आजादी के जौहर में
मर्दानियों ने भी न
सिर्फ अपने अपने
प्राणों की आहुति दी,
बल्कि गुलामी की बेड़ियों
को काटने के लिए
अपनी तलवारें भी खूब
चमकायीं। आक्रोश के शान
से
रणचंड़ी बनीं वीरांगनाओं
की तलवारें खूंखार हुईं
तो उन्होंने फिरंगियों के
लहू से ही अपनी प्यास
बुझाई।
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बड़ौत से भड़की बगावत
प्रथम गदर में
क्रांति की मशाल
बिजरौल
निवासी बाबा शाहमल
सिंह ने थामी।
उन्होंने ब्रितानी हुकूमत
की ईंट से ईट बजाकर
फिरंगियों के छक्के
छुड़ा दिए। 10 मई 1857
को प्रथम जंग-ए-
आजादी का बिगुल बजने के
बाद बाबा शाहमल सिंह
ने बड़ौत तहसील
पर कब्जा करते हुए
आजादी के प्रतीक ध्वज
को फहराया। यहां से लूटे
धन को दिल्ली के अंतिम
मुगल बादशाह बहादुर
शाह जफर को भिजवाया।
इस घटना पर
रोशनी डालते हुए शहजाद
राय शोध संस्थान के
निदेशक अमित राय जैन
बताते हैं कि इसके बाद
बाबा शाहमल सिंह अपने
सहयोगी मेहताब खां व
बागपत के तत्कालीन
थानेदार वजीर खां के
माध्यम से लाल
किला स्थित
दिल्ली दरबार में
बादशाह बहादुर शाह
जफर से मिले। इस मुलाकात
के बाद अंतिम मुगल शासक
ने उन्हें बड़ौत परगने
का सूबेदार घोषित कर
दिया। बाबा शाहमल ने
अपना मुख्यालय बड़ौत में
यमुना नहर के किनारे
डाक बंगले को बनाया और
यहीं से
अपनी गतिविधियां
संचालित की।
बड़का गांव में 18 जुलाई
1857 को गोरी सेना से
आमने-समाने की लड़ाई में
बाबा शाहमल
फ्रांसीसी सैनिक
एटनोकी के हाथों शहीद
हो गए।
गोरों की बर्बरता को
चुनौती
1857
की क्रांति को दबाने के
लिए अंग्रेजों ने बड़ौत
की पट्टी चौधरान स्थित
मकानों को ध्वस्त कर
चबूतरों में तब्दील कर
दिया। लोग बेघर हो गए।
इससे जनाक्रोश भड़का।
उधर, बाबा शाहमल
की शहादत के बाद
उनका साथ देने वाले 32
क्रांतिकारियों को
अंग्रेजों ने एक साथ
बिजरौल गांव के बाहर
बरगद के पेड़ पर फांसी दे
दी।
इस घटना की चश्मदीद
रहीं बड़ौत निवासी जाट
परिवार की शिवदेई और
उनकी सहेली ब्राह्माण
परिवार की किशनदेई
का खून खौल उठा। उन्होंने
दुश्मन को ललकारा और
17 फिरंगियों को तलवार
से मौत के घाट उतार
दिया।
यहां दोनों वीरांगनाएं
भी शहीद हो गई।
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