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Wednesday, October 9, 2013
भंवर लाल भाकर की वीरता की कहानी
भंवर लाल भाकर की वीरता की कहानी--
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भंवर लाल भाकर राजस्थान में नागोर जिले के थेबड़ी गाँव के रहने वाले थे. भंवर लाल भाकर 13 जून 1999 को करगिल युद्ध में तोलोलिंग पहाड़ी पर शहीद हुए. उनके पिता का नाम भूरा राम भाकर है. वे भारतीय सेना की 2 राजपुतानाराइफल्स में सूबेदार थे.कारगिल युद्ध में सबसे प्रथम और अहम् काम तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करना था. 2 राजपुताना राइफल्स को यह टास्क सौंपा गया. जनरल मलिक ने राजपूताना रायफल्स का गुमरी में दरबार लिया. सभी को तोलोलिंग पहाड़ी को मुक्त कराने का प्लान बताया .[2]प्लान के अनुसार तोलोलिंग पहाड़ी को मुक्त कराने के लिए कमांडो टीम में मेजर विवेक गुप्ता, सूबेदार भंवरलालभाकर, सूबेदार सुरेन्द्र सिंह राठोर, लांस नाइक जसवीर सिंह, नायक सुरेन्द्र, नायक चमनसिंह, लांसनायक बच्चूसिंह, सी.ऍम.अच्. जशवीरसिंह, हवालदार सुल्तानसिंह नरवारिया एवं नायक दिगेंद्र कुमार थे.[3]पाकिस्तानी सेना ने तोलोलिंग पहाड़ी की चोटी पर 11 बंकर बना रखे थे.नायक दिगेंद्र कुमारने प्रथम बंकर एवं 11वां बंकर ख़त्म करने का बीड़ा उठाया. भंवर लाल भाकर को एक बंकर नष्ट करना था. गोला बारूद लेकर वे अभियान पर चल पड़े.[4]कारगिल घाटी में बर्फीली हवा चल रही थी. घना अँधेरा था और दिल को दहला देने वाली दुरूह राहें. अचानक गोलों के धमाकों से कलेजा कांप जाता. मौत के सिवाय दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था. वे पहाड़ी की सीधी चढान पर बंधी रस्सी के सहारे चढ़ने लगे. रेंगते-रेंगते दल अनजाने में वहां तक पहुँच गया जहाँ दुश्मन मशीनगन लगाये बैठा था.दिगेंद्र के हाथ में अचानक दुश्मन की मशीनगन की बैरल हाथ लगी जो लगातार गोले फेंकते काफी गर्म हो गई थी. दुश्मन का भान होते ही बैरल को निकाल कर एक ही पल में हथगोला बंकर में सरका दिया जो जोर के धमाके से फटा और अन्दर से आवाज आई - "या अल्लाह या अकबर, काफिर का हमला !!!".[5]प्रथम बंकर राख हो गया और धूं-धूं कर आग उगलने लगा. पीछे से 250 कमांडो और आर्टिलरी टैंक गोलों की वर्षा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे. पाक आर्मी भी बराबर हिस्सेदारी निभा रही थी. भंवर लाल के साथियों ने जमकर फायरिंग की लेकिन गोलों ने इधर से उधर नहीं होने दिया. आग उगलती तोपों का मुहँ एक मीटर ऊपर करवाया और आगे बढे.मनसुख रणवालिखते हैं कि तोलोलिंग पहाड़ी पर युद्ध करने वाले दल में से एक मात्र जिन्दा बचेदिगेंद्र कुमार, महावीर चक्र विजेता, के अनुसार दुश्मन का मुकाबला करते हुए पाँच शिकार कर चुके सूबेदार भंवाल लाल को माथे पर गोलियां लगी थी तो वह इतना ही बता पाया - "दिगेंद्र मैं जा रहा हूँ दुश्मन को ख़त्म कर देना".[6]जाट समाजपत्रिका में अक्टूबर 1999 अंक में प्रकाशित लेख से जानकारी मिलती है कि भंवर लाल भाकर ने मोर्चे पर रवाना होने से पहले प्रफुल्लित होकर कहा था कि - "देश के लिए कुछ कर गुजरने का सुनहरा मौका मिला है". भंवर लाल केपिता भूरा राम भाकर ने बताया कि उनके बेटे ने कारगिल में रवाना होते समय जो बात कही थी, उससे लगता है कि उसे अपनी सहादत का आभास हो गया था. अपने पुत्र की सहादत पर गर्व करते हुए उन्होंने बताया कि भंवर लाल ने चलते हुए कहा था - "देश की रक्षा के लिये सबसे पहले फौजियों को ही बलिदान देने का मोका मिलता है. अब जब मोका आया है तो मैं हरगिज पीछे नहीं हटूंगा और अपने प्राणों की बाजी लगा कर देश की सीमाओं की रक्षा करूँगा".[7]भंवर लाल जब स्कूल में पढ़ता था तभी से उसकी तमन्ना फौज में भरती होने की थी. वह बचपन से ही बहुत साहसिक प्रवृति केथे.[8]13 जून 1999को शहीद हुए भंवर लाल की अन्तेष्ठी 17 जून 1999 को उनके पैतृक गाँव नागोर जिले के थेबड़ी में की गई. भंवर लाल का पार्थिव शरीर लेकर राजपुताना रायफल्स के बीजा राम कूंकड़ा लेकर आए थे. श्री कूंकड़ा ने बताया कि भंवर लाल ने विजय अभियान में जाने से पहले बताया था कि मैं अपने काम पर जा रहा हूँ और काम को अंजाम देकर ही रहूँगा. श्री कूंकड़ा ने बताया कितोलोलिंग की पहाड़ीपर उसने सेना के अभियान में हमें बड़े जोश के साथ चढाया था. आमने-सामने की लडाई में हम उसके साथ पहाड़ी पर बने बंकर के नजदीक पहुँच गए थे, उसी समय दुश्मन की दो गोलियां भंवर लाल के बाएँ हाथ में आकर लगी, मगर वह शीघ्र ही हाथ पर पट्टी बाँध कर फ़िर घुसपैठियों को खदेड़ने में लग गए. उसी समय किसी ने भंवर लाल को पीछे हटने को कहा लेकिन उसने जोर से दहाड़ लगाकर बाकी सैनिकों का हौसला बंधाते हुए कहा - "भारतमाता के सपूतो, वीरो, दुश्मनों को मारो और कब्जा करलो". इस प्रकार वह सबसे आगे घुसपैठियों को मारते हुए बंकर पर चढ़ गया. घुसपैठिये तो भाग गए, बाकी मारे गए, लेकिन जब बंकर पर चढा भंवर लाल भागते हुए घुसपैठियों से लड़ रहा था तो कहीं दूर छिपे घुसपैठियों ने निशाना साधा और गोलियां भंवर लाल के सीने में आकर लगी. उसके सीने से घुटने तक कई गोलियां लगी. भारतमाता को आखिरी सलाम करते वह वहीं शहीद हो गए.[9]
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Courtsey:: Balveer Ghintala
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