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Wednesday, November 13, 2013

हमें क़ानूनी रूप से आरक्षण चाहिए


समाचार पत्रों के माध्यम से यह भी समाचार आया है कि केंद्र सरकार केंद्र में जाटों को पिछड़ी जातियों के 27 प्रतिशत के कोटे में शामिल न करके अलग से पांच प्रतिशत आरक्षण देना चाहती है, तो यह और भी बढिय़ा बात है क्योंकि इससे न तो पिछड़ी जातियों को कोई ऐतराज होगा और न ही जाटों को कोई नुकसान होने वाला है। 
सरकार जाटों को अलग से 5% कोटा देना चाहती है वह  भी जब चुनाव  सर पर आ गए हैं। जाटों  को नक़ली चीनी की चासनी में डूबी हुई चूसनी  थमा दी। चूसी जाओ और कहते जाओ आहा मीठी! क्या सरकार की इच्छा  आरक्षण देनेकी  है या इस पर राजनीती करने की  है। माननीय   कोर्ट के फैसले से अब 50 % से ज्यादा आरक्षण लागु नहीं हो सकता है। फिलहाल  अब SC को 15% ST को 7.5% OBC को 27% जो कुल मिलाकर 49.5% होजाता है यानि अब 0.50 % ही बचा है 50 % कि सीमा में फिर यह 5 % आरक्षण जाट को कैसे मिलेगा तमिलनाडु ने यह आरक्षण इस फैसले से पहले दिया गया था इसलिए वहा यह ज्यादा लागू है। 

लेकिन हम चाहते हैं कि ऐसा करने के लिए केंद्र सरकार विशेष स्थिति के आधार पर महामहिम राष्ट्रपति से अनुमति लेकर इसको अधिनियम 9 के तहत सूची में शामिल करवाए ताकि बाद में जाट समाज को न्यायालयों में किसी प्रकार की परेशानी न उठानी पड़े। राजस्थान के गुर्जर को बीजेपी सरकार में भी 5 % आरक्षण अलग से दिया जो इस सीमा से ज्यादा होने के कारण अब तक लागू नहीं हो सका है और यह एक राजनीती का मुद्दा बन गया है
अगर यह सम्भव नहीं है और  यदि जाटों  को आरक्षण देना है तो ओ ० बी ० सी (OBC) कोटे में दो।  नहीं तो यह क़ानूनी दाव पेंच में उलझ जायेगा और अरसे के बाद धूल जमकर गुमनामी में खो जाएगा। आरक्षण की  आशा   में  जाट की भावना  का राजनितिक ब्लैकमेल होगा।  चुनाव खत्म  होने के बाद वोही ढाक  के तीन पात।  अंग्रेज़ी में कहते हैं 'बैक  टू  स्क्वायर वन '
 

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