राम
राम चौधरियो !
राम ए राम !!
विधानसभा चुनावो के नतीजे आने के पहले एक बड़ा सवाल - क्या हमारे
देश में चुनाव का मतलब यह नहीं हो गया की जनता अगले पांच साल के लिए अपना
राजा चुने. जनता यह चुने की अगले पांच साल उसे किसके सामने गिडगिडाना है.
उसकी मेहनत की कमाई पर ऐश करते हुए, उसे कौन लूटेगा?
हर चुनाव की
तरह इसमें भी कोई जीतेगा और कोई हारेगा. लेकिन जनता को क्या मिलेगा? इसके
पहले कि हार और जीत की समीक्षा का नशा उफान पर आए, इन चुनावों की उपयोगिता
पर भी एक आकलन होना चाहिए. यह आकलन इसलिए भी ज़रूरी है कि देश में
भ्रष्टाचार के खिलाफ चले एक आंदोलन के बाद ये चुनाव हैं और इन्हें आगामी
लोकसभा चुनाव के सेमीफाईनल के रूप में भी देखा जा रहा है. बुनियादी सवाल यह
है कि एक सामान्य नागरिक, जो बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान है, इन
चुनावों के बाद उसे क्या मिलेगा ? वह अपनी रोजाना की जिंदगी में स्कूल -
अस्पताल, सड़क से लेकर हर सरकारी दफ्तर के भ्रष्ट कामकाज से दुखी है.
ड्राईविंग लाईसेंस लेना हो या किसी दुकान या फैक्ट्री का लाईसेंस, बिना
रिश्वत के नहीं मिलता. मकान की रजिस्ट्री से लेकर नक्शा
पास कराने तक में फाईल बिना रिश्वत आगे नहीं बढ़ती. किसान की अच्छी खासी
ज़मीन अगर किसी बड़े व्यापारी की नज़र चढ़ जाए तो रातों रात उसे छीनने की
योजना सरकार बना देती है. इसके बाद जब किसान का बेटा कोई सरकारी नौकरी करना
चाहता है तो उससे लाखों रुपए रिश्वत में ले लिए जाते हैं. इसलिए सवाल यह
नहीं है कि चुनाव नतीजों में कौन जीतेगा और कौन हारेगा. सवाल तो यह है कि
एक सामान्य आदमी की जिंदगी में कुछ बदलाव आएगा? अगर नहीं! तो फिर यह चुनाव
का नाटक किसलिए?
चुनाव तो हमारे देश में होते ही रहते हैं. हर चुनाव
में कोई जीतता है और कोई हारता है. लेकिन जनता हर बार हारती है. जनता के
लिए चुनाव का मतलब यह नहीं रह गया कि सरकार किसकी बनेगी. बल्कि यह हो गया
है कि अगले पांच साल उनकी मेहनत की कमाई पर कौन ऐश करेगा? राज्य के
प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट में अरबों का कमीशन कौन खाएगा? बिजली,
सड़क, पानी की व्यवस्था के नाम पर करोड़ों के ठेकों किस पार्टी के
नज़दीकियों को मिलेंगे? किस पार्टी के नेता रिश्वतखोरी और कमीशन के माध्यम
बनेंगे? आदि आदि..... इसलिए कोई हारे, कोई जीते, इन चुनावों के नतीज़े भी
वहीं जाकर टिकेंगे कहना गलत नहीं होगा कि पिछले 66 साल से हमारे देश में
होने वाले चुनावों में जनता अगले पांच साल के लिए अपना राजा चुनती है. वह
यह चुनती है कि अगले पांच साल के दौरान किसके आगे गिड़गिड़ाना है.
चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए एक अहम प्रक्रिया है. लेकिन दुर्भाग्य यह
है कि हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर चुनाव ही एकमात्र प्रक्रिया है.अतः
साम दाम दंड भेद के आधार पर जो भी इस प्रक्रिया को पार कर लेता है वह अगले
पांच साल के लिए राजा बन जाता है. जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें
सरकार बनाने का ख्वाब देख रही किसी भी पार्टी के पास देश या प्रदेश के
विकास का विज़न ही नहीं है. यहां यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि दूसरों के
भ्रष्टाचार की सूची गिनाने या वोटों के बदले लैपटॉप जैसे लॉलीपाप के वादे
करने को विज़न नहीं कहा जा सकता ?
जाट किसान
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