जब
राजस्थानी जाट ने आरक्षण का आन्दोलन चलाया तो टी.वी. डिबेटों में बगैर
प्रमाण जाने व बगैर हूणों की कल्चर जाने जाट को हूण - शक कहा गया. इस तरह
उसके इतिहास को पूरी तरह ख़त्म करने की कोशिश हुई.कुछ अपने को पढ़कर
ब्राह्मण कहने वाले जाट ने अप्रमाणिक-अवैज्ञानिक इतिहास जैसा लिखकर जाट को
साका तक सीमित कर दिया. जाट का वैज्ञानिक इतिहास न होने से इन्हें चोर भी
कहा गया. गलत व अप्रमाणिक लिखने से अच्छा होता है न लिखना।
मुझे भाषाई
निरन्तरता ने भी प्रेरित किया कि मैं यह किताब लिखूं ताकि अपनी नई पीढ़ी को
बताऊँ की हम लफ्फाड़ों, घुमक्कड़ों...आदिवासियों की औलाद नहीं हैं. बल्कि
हम वे हैं जिन्होंने भारत-पाक-ईरान को घर बनाने की टेक्नीक, खेती की
टेक्नीक, सिंचाई प्रणाली, घरेलू पशुपालन, रोटी, चूल्हा व तवे की टेक्नोलोजी
देकर मानवता की सेवा की है. हम तलवार बाज नहीं बल्कि सृजनात्मक कौम हैं.
हम संसार की पहली तीन-चार कौम में से एक हैं जिन्होंने पूर्वी ईरान में
खेती की शुरुआत करके इस क्षेत्र के मानव की भूख की समस्या हल करने की
शुरुआत की. हम आज भी भारत-पाक का खाद्य पूल भरते हैं |
' प्राचीन भारत को जाट की देन' पुस्तक से साभार
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