"क्या
आप जानते हैं ? 4 से 7 दिसम्बर 1971 में लोंगेवाला की लड़ाई (Longewale)
में हमारे 120 जवानों ने पाकिस्तान के 2800 सैनिकों को धूल चटा दी थी|
इन्ही दिनों मे लिखी गयी थी बहादुरी एवं देशभक्ति की अनूठी दास्तान| 4 दिसंबर 1971 की शाम पाकिस्तानी सेना ने जैसलमेर पर कब्जे के इरादे से भारतीय इलाके पर हमला कर दिया|, संकल्प था- 'जैसलमेर में नाश्ता। जोधपुर में दोपहर का भोजन। रात्रि का भोज दिल्ली में ..पाकिस्तानी सेना की पहली झड़प लोंगेवाला सीमा पोस्ट पर मौजूद भारतीय जवानों से हुई| इस
लड़ाई के दौरान 23 वीं पंजाब रेजीमेन्टक के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्तानी सेना के तीन हज़ार फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी । भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
शायद आपको जानकारी हो कि 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई का मुख्य-फोकस था सीमा का पूर्वी हिस्सा । पश्चिमी हिस्से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि याहया खान के नेतृत्व में लड़ रही पाकिस्तानी सेना इस इलाक़े पर क़ब्ज़ाल करके भारत-सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दे ।
1971 में नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के सिलहट जिले के अटग्राम में पाकिस्तानी सीमा पोस्टों और संचार-केंद्रों पर जोरदार हमला कर दिया था। मुक्ति वाहिनी ने भी इसी दौरान जेसूर पर हमला कर दिया था। पाकिस्तानी सरकार इन हमलों से घबरा गयी थी। क्योंकि ये तय हो चुका था कि पूर्वी पाकिस्तान अब सुरक्षित नहीं रहा। पाकिस्तांन को बंटवारे से बचाने के लिए याहया ख़ान ने मो. अयूब ख़ान की रणनीति को आज़माया जिसके मुताबिक़ पूर्वी पाकिस्तान को बचाने की कुंजी थी पश्चिमी पाकिस्तान। उनकी कोशिश यही थी कि भारत के पश्चिमी हिस्से में ज्यादा से ज्यादा इलाक़े को हड़प लिया जाये ताकि जब समझौते की नौबत आए तो भारत से पाकिस्तान के 'नाज़ुक-पूर्वी-हिस्से' को छुड़ावाया जा सके ।
पाकिस्तान ने पंजाब और राजस्थान के इलाक़ों में अपने जासूस फैला रखे थे । उनकी योजना किशनगढ़ और रामगढ़ की ओर से राजस्थान में घुसपैठ करने की थी । पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्वास प्रकट करते हुए कहा था--इंशाअल्ला हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा । यानी उनकी नज़र में सारा खेल एक ही दिन में खत्म हो जाना था ।
उन दिनों लोंगेवाल पोस्ट पर तेईसवीं पंजाब रेजीमेन्ट की एक कम्पनी तैनात थी जिसके मुखिया थे मेजर के एस चांदपुरी और उनके कमांड मे थे केवल 120 जवान। बाक़ी बटालियन यहां से सत्रह किलोमीटर उत्तुर-पूर्व में साधेवाल में तैनात थी। लोंगेवाला के बाद एक छोटी सी टुकड़ी रामगढ मे तैनात थी| इसके बाद जैसलमेर तक कोई भी सुरक्षा नहीं थी| यदि पाकिस्तानी सेना लोंगेवाला और रामगढ को पार कर जाती तो उसे जैसलमेर तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता था| भारतीय ख़ुफ़िया अधिकारीयों की लापरवाही से करीब 150 किलोमीटर भारतीय क्षेत्र बिना किसी सुरक्षा के था|
तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने अमृतसर, अवंतीपुर, पठानकोट, उत्तकरलई, अंबाला, आगरा, नल और जोधपुर पर हवाई हमले कर दिए थे। जैसे ही पाकिस्तान ने हवाई हमले किए, मेजर चांदपुरी ने लेफ्टीनेन्टर धरम वीर के नेतृत्वी में कुछ फौजियों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफ़ाज़त के लिए गश्तह लगाने भेज दिया । ये पिलर भारत पाकिस्ता्न की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था । इसी गश्त् ने पाकिस्तानी सेना के हमले को पहचानने मे अहम भूमिका निभाई।
चार दिसंबर की शाम लेफ्टिनेन्ट धरमवीर को गश्त के दौरान सीमा पर घरघराहट की आवाज़ें सुनाई दीं और सीमा पार धूल के गुबार दिखाई देने लगे। जल्दी ही इस बात की पुष्टि हो गयी कि पाकिस्तान का टैंक कॉलम भारतीय सीमा मे बढ़ रहा है। फौरन मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्यालय से संपर्क करके हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया। इस समय तक पाकिस्तान का संभावित संख्याबल 2000 सिपाही, 40 टैंक, व अन्य आर्मी वाहन अनुमानित किया गया| और उनको रोकने के लिए थे पोस्ट पर मात्र 120 भारतीय जवान| मुख्यालय से निर्देश मिला कि जब तक मुमकिन हो भारतीय फौजी डटे रहें, पाकिस्तानी सेना को आगे ना बढ़ने दिया जाए। किन्तु संख्या बल को देखते हुए आखिरी फैसला कंपनी पर छोड़ दिया गया कि यदि वे चाहें तो मुकाबला करें अन्यथा साधेवाल पोस्ट की और कूच कर जाएँ। बहादुर भारतीय जवानों ने अपने सीमित संसाधनों के बल पर ही पाकिस्तानी हमले को रोकने का निश्चय किया|
लोंगेवाला पोस्टे पर पहुंचने के बाद पाकिस्तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी और सीमा सुरक्षा बल के पांच ऊंटों को मार गिराया । इस दौरान भारतीय फौजियों ने पाकिस्ता्न के साठ में से दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी हासिल कर ली । संख्या और हथियारों में पीछे होने के बावजूद भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी । सबेरा हो गया, लेकिन पाकिस्तानी सेना लोंगेवाल पोस्टा पर क़ब्ज़ा नहीं कर सकी।
भारतीय वायुसेना के हॉकर हंटर एयरक्राफ्ट में रात मे देख सकने वाले उपकरण नहीं लगे थे इसलिए दिन का उजाला होने तक वायुसेना हमला नहीं कर सकती थी। सुबह सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही भारतीय वायुसेना के पहले दो हंटर विमानों ने जब उड़ान भरी तो लोंगेवाला पर पाकिस्तासनी सेना का हमला जारी था, हालांकि वो बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं हासिल कर पाई थी । फ्लाईट लेफ्टिनेन्टन डी.के.दास और फ़्लाइंग ऑफीसर आर.सी.गोसाईं अपने विमान को काफी कम ऊंचाई पर लेकर आए और पाकिस्ता्न के T-59 टैंकों पर निशाना साधा । अब लड़ाई भारतीय वायुसेना और पाकिस्तानी तोपख़ाने के बीच थी। हमारे हवाई जांबाज़ पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर रहे थे। पर पाकिस्तानी सेना लोंगेवाल की ओर बढ़ती चली जा रही थी । एक के बाद एक भारतीय वायुसेना के विमान उड़ान भर रहे थे और हमले कर रहे थे। इस बीच थल-सेना की मदद भी आ पहुंची थी और आखिरकार पांच को लगातार हमले करने के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर ही दिया। पाकिस्तानी सेना की बैचैनी का अनुमान 5 दिसंबर की दोपहर दो बजे एक इंटरसेप्टेड सन्देश से लगाया जा सकता था जो कि इस प्रकार है|
“हिन्दुस्तानी हवाई फ़ौज ने हमारी नाक मे दम कर दिया है| मक्खियों के तरह वो हमारे ऊपर भिनभिना रहे हैं| एक हवाई जहाज जाता है और दूसरा आता है और बीस बीस मिनट ऊपर नाचता है| आधे से ज्यादा फौज, रसद, हथियार, टैंक तबाह हो चुके हैं| जल्दी ही हवाई फौज मदद के लिए भेजो, वरना आगे जाना तो क्या पीछे हटाना भी नामुमकिन है|”
आज के दिन हम सभी का दायित्व बनता है कि हम उन बहादुर जवानों को याद करें जिन्होंने कर्तव्यपरायणता एवं देशभक्ति की अनूठी मिसाल पेश करते हुए देश के सम्मान की रक्षा की एवं दुश्मन के नापाक इरादों को नाकाम कर दिया|"
भारत माता की जय
Salute and Respect.
Bravo
वंदे मातरम ! जय हिंद !!
साभार : भारतीय सेना
इन्ही दिनों मे लिखी गयी थी बहादुरी एवं देशभक्ति की अनूठी दास्तान| 4 दिसंबर 1971 की शाम पाकिस्तानी सेना ने जैसलमेर पर कब्जे के इरादे से भारतीय इलाके पर हमला कर दिया|, संकल्प था- 'जैसलमेर में नाश्ता। जोधपुर में दोपहर का भोजन। रात्रि का भोज दिल्ली में ..पाकिस्तानी सेना की पहली झड़प लोंगेवाला सीमा पोस्ट पर मौजूद भारतीय जवानों से हुई| इस
लड़ाई के दौरान 23 वीं पंजाब रेजीमेन्टक के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्तानी सेना के तीन हज़ार फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी । भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
शायद आपको जानकारी हो कि 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई का मुख्य-फोकस था सीमा का पूर्वी हिस्सा । पश्चिमी हिस्से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि याहया खान के नेतृत्व में लड़ रही पाकिस्तानी सेना इस इलाक़े पर क़ब्ज़ाल करके भारत-सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दे ।
1971 में नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के सिलहट जिले के अटग्राम में पाकिस्तानी सीमा पोस्टों और संचार-केंद्रों पर जोरदार हमला कर दिया था। मुक्ति वाहिनी ने भी इसी दौरान जेसूर पर हमला कर दिया था। पाकिस्तानी सरकार इन हमलों से घबरा गयी थी। क्योंकि ये तय हो चुका था कि पूर्वी पाकिस्तान अब सुरक्षित नहीं रहा। पाकिस्तांन को बंटवारे से बचाने के लिए याहया ख़ान ने मो. अयूब ख़ान की रणनीति को आज़माया जिसके मुताबिक़ पूर्वी पाकिस्तान को बचाने की कुंजी थी पश्चिमी पाकिस्तान। उनकी कोशिश यही थी कि भारत के पश्चिमी हिस्से में ज्यादा से ज्यादा इलाक़े को हड़प लिया जाये ताकि जब समझौते की नौबत आए तो भारत से पाकिस्तान के 'नाज़ुक-पूर्वी-हिस्से' को छुड़ावाया जा सके ।
पाकिस्तान ने पंजाब और राजस्थान के इलाक़ों में अपने जासूस फैला रखे थे । उनकी योजना किशनगढ़ और रामगढ़ की ओर से राजस्थान में घुसपैठ करने की थी । पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्वास प्रकट करते हुए कहा था--इंशाअल्ला हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा । यानी उनकी नज़र में सारा खेल एक ही दिन में खत्म हो जाना था ।
उन दिनों लोंगेवाल पोस्ट पर तेईसवीं पंजाब रेजीमेन्ट की एक कम्पनी तैनात थी जिसके मुखिया थे मेजर के एस चांदपुरी और उनके कमांड मे थे केवल 120 जवान। बाक़ी बटालियन यहां से सत्रह किलोमीटर उत्तुर-पूर्व में साधेवाल में तैनात थी। लोंगेवाला के बाद एक छोटी सी टुकड़ी रामगढ मे तैनात थी| इसके बाद जैसलमेर तक कोई भी सुरक्षा नहीं थी| यदि पाकिस्तानी सेना लोंगेवाला और रामगढ को पार कर जाती तो उसे जैसलमेर तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता था| भारतीय ख़ुफ़िया अधिकारीयों की लापरवाही से करीब 150 किलोमीटर भारतीय क्षेत्र बिना किसी सुरक्षा के था|
तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने अमृतसर, अवंतीपुर, पठानकोट, उत्तकरलई, अंबाला, आगरा, नल और जोधपुर पर हवाई हमले कर दिए थे। जैसे ही पाकिस्तान ने हवाई हमले किए, मेजर चांदपुरी ने लेफ्टीनेन्टर धरम वीर के नेतृत्वी में कुछ फौजियों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफ़ाज़त के लिए गश्तह लगाने भेज दिया । ये पिलर भारत पाकिस्ता्न की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था । इसी गश्त् ने पाकिस्तानी सेना के हमले को पहचानने मे अहम भूमिका निभाई।
चार दिसंबर की शाम लेफ्टिनेन्ट धरमवीर को गश्त के दौरान सीमा पर घरघराहट की आवाज़ें सुनाई दीं और सीमा पार धूल के गुबार दिखाई देने लगे। जल्दी ही इस बात की पुष्टि हो गयी कि पाकिस्तान का टैंक कॉलम भारतीय सीमा मे बढ़ रहा है। फौरन मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्यालय से संपर्क करके हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया। इस समय तक पाकिस्तान का संभावित संख्याबल 2000 सिपाही, 40 टैंक, व अन्य आर्मी वाहन अनुमानित किया गया| और उनको रोकने के लिए थे पोस्ट पर मात्र 120 भारतीय जवान| मुख्यालय से निर्देश मिला कि जब तक मुमकिन हो भारतीय फौजी डटे रहें, पाकिस्तानी सेना को आगे ना बढ़ने दिया जाए। किन्तु संख्या बल को देखते हुए आखिरी फैसला कंपनी पर छोड़ दिया गया कि यदि वे चाहें तो मुकाबला करें अन्यथा साधेवाल पोस्ट की और कूच कर जाएँ। बहादुर भारतीय जवानों ने अपने सीमित संसाधनों के बल पर ही पाकिस्तानी हमले को रोकने का निश्चय किया|
लोंगेवाला पोस्टे पर पहुंचने के बाद पाकिस्तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी और सीमा सुरक्षा बल के पांच ऊंटों को मार गिराया । इस दौरान भारतीय फौजियों ने पाकिस्ता्न के साठ में से दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी हासिल कर ली । संख्या और हथियारों में पीछे होने के बावजूद भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी । सबेरा हो गया, लेकिन पाकिस्तानी सेना लोंगेवाल पोस्टा पर क़ब्ज़ा नहीं कर सकी।
भारतीय वायुसेना के हॉकर हंटर एयरक्राफ्ट में रात मे देख सकने वाले उपकरण नहीं लगे थे इसलिए दिन का उजाला होने तक वायुसेना हमला नहीं कर सकती थी। सुबह सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही भारतीय वायुसेना के पहले दो हंटर विमानों ने जब उड़ान भरी तो लोंगेवाला पर पाकिस्तासनी सेना का हमला जारी था, हालांकि वो बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं हासिल कर पाई थी । फ्लाईट लेफ्टिनेन्टन डी.के.दास और फ़्लाइंग ऑफीसर आर.सी.गोसाईं अपने विमान को काफी कम ऊंचाई पर लेकर आए और पाकिस्ता्न के T-59 टैंकों पर निशाना साधा । अब लड़ाई भारतीय वायुसेना और पाकिस्तानी तोपख़ाने के बीच थी। हमारे हवाई जांबाज़ पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर रहे थे। पर पाकिस्तानी सेना लोंगेवाल की ओर बढ़ती चली जा रही थी । एक के बाद एक भारतीय वायुसेना के विमान उड़ान भर रहे थे और हमले कर रहे थे। इस बीच थल-सेना की मदद भी आ पहुंची थी और आखिरकार पांच को लगातार हमले करने के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर ही दिया। पाकिस्तानी सेना की बैचैनी का अनुमान 5 दिसंबर की दोपहर दो बजे एक इंटरसेप्टेड सन्देश से लगाया जा सकता था जो कि इस प्रकार है|
“हिन्दुस्तानी हवाई फ़ौज ने हमारी नाक मे दम कर दिया है| मक्खियों के तरह वो हमारे ऊपर भिनभिना रहे हैं| एक हवाई जहाज जाता है और दूसरा आता है और बीस बीस मिनट ऊपर नाचता है| आधे से ज्यादा फौज, रसद, हथियार, टैंक तबाह हो चुके हैं| जल्दी ही हवाई फौज मदद के लिए भेजो, वरना आगे जाना तो क्या पीछे हटाना भी नामुमकिन है|”
आज के दिन हम सभी का दायित्व बनता है कि हम उन बहादुर जवानों को याद करें जिन्होंने कर्तव्यपरायणता एवं देशभक्ति की अनूठी मिसाल पेश करते हुए देश के सम्मान की रक्षा की एवं दुश्मन के नापाक इरादों को नाकाम कर दिया|"
भारत माता की जय
Salute and Respect.
Bravo
वंदे मातरम ! जय हिंद !!
साभार : भारतीय सेना
No comments:
Post a Comment