आर्य (जाट) तथा हिन्दू अलग अलग है। वेदों में कहा है, जो वेदों के विपरीत काम करता है वो अधर्म है। पर तेरे हिंदुओं ने पूरी पुराणों में
वेदों के विपरीत लिखा है। ऋग्वेद मेँ कहा गया , न तस्य प्रतिमा अस्ति, पर तुमने प्रतिमाये बना दी । हर काम वेद विरुद्ध ,और फिर भी अपने को आर्य कहते हो। शर्म आनी चाहिए तुम्हे । जब विश्व प्रसिद्ध नालंदा जलाया हिन्दुओ ने तब इस्लाम नहीँ था। सबसे ज्यादा नुकसान धर्म का हिन्दुओँ ने किया है।और आज संस्कृति की बात कर रहे हो। जाटो और किसानो को धर्म के नाम पर बांट रहे हो। जो मुल्ले
कल तक तुम्हें राम राम करते थे तुम उनको सुअर बताते थे। सब आपसी भेदभाव और संकीर्ण सोच की वजह से इतनी खाई गई। सब मिलकर चलो।
साभार:
अभिषेक चौधरी
जाटों की परम्परा वासुदेव कुटुम्बकं वाली है। जाट सब के साथ मिलकर कार्य करता है। जाट सब जातियों को बिना किसी भेद भाव के साथ रखकर चलता है। महाराजा हर्षवर्द्धन ने बुध धर्म अपना लिया था। जाटों की विचारधारा बोद्धिक रही है। जाट कर्म में विश्वास रखता है।
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