आर्य वर्ग और पंथ है! हिन्दू एक पड़ती है! वेदों में हिन्दू शब्द का जिक्र भले ही न हो पर भारतीय संस्कृति के शुरुआत से ही जो धर्म और पद्धति चली उसे आज हिन्दू कहा जाता है।
इसमें समय समय पर बहुत बदलाव हुए, बहुत से अलग अलग पंथ आये। आज जैन, सिख, बोद्ध आदि ने अपने आप को हिन्दू-धर्म से अलग कर लिया इसलिए धर्म के नाम पर हिन्दू अलग गिना जाता है। बावजूद इसके सांस्कृतिक रूप से आज भी सब वहीँ है! बदलाव चलते रहते हैं, आज बहुत से जाट और दूसरे हिन्दू आज के आधुनिक पंथों से जुड़ रहे हैं जैसे डेरा सच्चा सौदा, कबीर पंथ, आर्य समाज, निरंकारी समाज आदि ये भी दूसरे धर्मों की तरहं ही बढ़ रहे हैं! धार्मिक पद्धति के आधार पर ये मुहर लगा देना कि कोई हिन्दू नहीं है, एक दम बकवास है। हिटलर जैसे कट्टर ईसाई भी अपने आप को आर्य मानते थे और वो थे भी!
तुम्हारा पूर्वजों का इतिहास कैसा भी रहा हो, कुल मिलकर सब सही था। दमन शोषण केवल पाखंडियों ने किया जो आज भी कर रहे हैं, कांग्रेस इसका सबसे बड़ा उदहारण है! और आज ये ही 5-10% लोगों के खिलाफ 90-95%- लोगों को करके मजे लूट रहे हैं!
अनुसूचित जातिओं में जाटों के खिलाफ थ्योरी चलते हैं, जाटों में पंडितों के खिलाफ थ्योरी चलते हैं। ऐसे ही कांग्रेस जमकर जातिवाद का जहर घोल रही और सत्ता सुख भोग रही है जबकि हमारे पढ़े लिखे महानुभाव इसमें भरोसा भी कर लेते हैं!
मैं खुद नास्तिक हूँ, किसी भगवान, देवी देवता आदि में भरोसा नहीं रखता उसके बावजूद मैं जाट भी हूँ, हिन्दू भी और आर्य भी।
पण्डे-पाखंड तो आज भी चल रहे हैं! दयानंद ने आकर असली हिन्दू की परिभाषा दी थी! केवल शब्द का हेर फेर है-- अगर हिन्दू पसंद नहीं तो आर्य सही!
वैदिक काल में पंडित कोई जाती नहीं होती थी, पंडित शब्द पढ़े लिखे लोगों को वर्णित करता था। कुछ लोगों ने जरूर पढाई लिखाई को अपनी जागीर बना लिया था परन्तु किसी को रोका गया ये सरासर गलत है! कुछेक पाखंड-पुराणों को छोड़ कर अधिकतर ग्रन्थ गैर पंडित जातियों के लिखे हैं!
संख्या और शक्ति में भी जाट ऊपर रहे हैं अब कुछेक पण्डे-पाखंडियों पर कोई आरोप लगाना गलत है। आज भी पण्डे पाखंडी पहले से भी मजबूती से समाज की ऐसी तैसी करने में लगे हैं। अच्छा होगा उन्हें सम्भाला जाए। आज नए पाखंडी जन्म ले रहे है और कड़वी सच्चाई है कि जाटों से भी पाखंडी निकल रहे हैं। आज के कांग्रेस जैसे राजनैतिक दल भी इसी तरह के पाखंडी हैं। पाखंडी लोगों से दुनिया भरी पड़ी है। आज हमें इन पाखंडियों से अपने आप को बचाना है।
गोत्रों का इतिहास पढ़कर देख सकते हो बहुत सी पंडित बिरादरियां जाटों से ही निकली हैं!
रही पढने लिखने की बात, जाट आज क्यों नहीं पढ़ लेते? आज तो किसी ने नहीं रोका!
असल में रोकने वाले किसी को दिखाई नहीं देते। आज की शिक्षा प्रणाली ने ऐसी तैसी कर राखी है। शिक्षा प्रणाली शिक्षित करने के बजाये "ट्रेंड" करती है। इतिहास ऐसा जिसमें कभी जाटों को तो कभी किसी दूसरे समाज को नीचा दिखाया जाता है ताकि न कुछ गर्व करने के लिए रहे और न ही कोई मोटिवेशन रहे।
आज जाट समाज के अंदर 45-50% तक बेरोजगारी है। पढ़े लिखे नौजवान घर बैठे हैं। अगर नौकरी कर भी रहे हैं तो अधिकतर पुलिस-फ़ौज की नौकरी कर रहे हैं। अगर जाट समाज आज के "पाखंडियों" से पीछा छुड़ा ले, इनकी बकवास थेओरियों को रटना बंद कर दे, अपने दिमाग से काम ले तो भला हो जाए।
अच्छी बेसिर पैर की चला रहे हो!
हिन्दू मैरिज एक्ट कानून है और 90% हिन्दू शादियां अपने तरीके से करते हैं, जिसमें मैरिज एक्ट फॉलो ही नहीं होता! मैरिज एक्ट तो फॉलो करना मुश्किल होता है, कानून तो एक स्थिति में १/२ को भी मान्यता देता है मतलब १/२ जींस किसी भी तरफ से मतलब अगर कानून को देखा जाए तो बुआ या मौसी के बच्चों से शादी कर सकते हैं। जबकि १/४ जींस तो सीधा सीधा मान्य है। भारत में 99% हिन्दू हिन्दू १/२ में शादी नहीं करते और 90% से अधिक १/४ में शादी नहीं करते।
खुद अमेरिका जैसे देशों में १/६४ तक में लोग शादियां नहीं करते हैं जबकि ये छठी पीढ़ी में जाकर होता है क्योंकि इससे जेनेटिक गड़बड़ियां होने की सम्भावनाएं रहती हैं।
हरियाणा, यूपी, राजस्थान, पंजाब आदि में कितनी गैर जाट जातियां है वो लगभग सब के सब गोत्र आदि मामलों में जाटों की तरहं ही चलते हैं।
सती प्रथा और बली प्रथा है कहाँ?
सती प्रथा की शुरुआत जब हुई जब मुल्ले हमलावर गावों पर हमला कर देते थे और महिलाओं के साथ बलात्कार कर देते थे, ऐसे में महिलाओं ने अपनी इज्जत बचाने के लिए मरने का रास्ता चुना था। ११वीं शताब्दी से पहले सती प्रथा का कोई इतिहास नहीं है। थोड़े समय बाद ये प्रथा बंद हो गयी थी मुश्किल से १०% राजपूतों में थी वो भी ऐच्छिक थी।
बली प्रथा कुछ भी नहीं है। ये किसी भी जाती से जुडी नहीं है, केवल क्षेत्र से जुडी है और अधिकतर वहाँ थोडा बहुत चलन है जहाँ मासाहार का चलन है।
जनेऊ कोई महत्व नहीं रखता। ऐसी छोटी छोटी भिन्नताएं होती रहती हैं और ये अधिकतर क्षेत्रो से सम्बंधित हैं। हरियाणा में पंडित या दूसरी जातियां ना के बराबर जनेऊ धारण करते हैं।
ये सब बकवास थेओरीस हैं। अपने दिमाग से काम लो। यहाँ भारत में कांग्रेस और दूसरे पाखंडी दुनिया भर की थेओरीस विचारधारा के नाम पर हम पर थोपते रहते हैं।
हमारी अपनी सोच है हमें जो सही लगेगा वो करेंगे।
साभार :
विवेक बेनीवाल
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