अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए न की शर्म आए। अपनी भाषा बेबाक बोलें।
लोग अंदर से डरते हैं जाटों से यह एक सच्चाई है और यही भाषा जाट की शक्ति है ।इसका श्रेय हमारी बेबाक बोली को जाता है जो दिखने में कड़क है पर अंदर से बहुत कोमल। आपने मन में यह धारणा बना ली की दूसरे की थाली में घी ज्यादा लाग भाई। अपनी माँ को ही डाकन बतान लागे। जो मुख से बोलो वोही खारी लागे ।अपने आप को किस से तुलना करो। पंजाब वाले अपनी पंजाबी नहीं छोडते ,तमिलनाडु वाले तमिल नहीं छोड़ते। वोह जब बोलते हैं तो ताहम उनके मूँह कांही देखी जाओ ,कीमी समझ तो आवे कोनी। मन मन में हाँसी जाओ सो क़ब्ज़ी आली हांसी। होल्ली होल्ली। अरे भाई हँसना है तो खुल के हंस ले अक हँसी भी महारी आची कोनी। फलाना कसुत हाँसे से बैरी। बेर न के पा रा सेह। हमारी भाषा जैसा मन वैसी भाषा बिना छल कपट के। आजकल ये ट्रेंड (देखा अंग्रेज़ी आगी बीच में )माहरी भासा ने भजान खातेर।वोह बात अलग है की भाषा जितनी आप सीख़ लो वोहे माड़ी। पर आप अपनी भाषा न छोड़े तथा सबसे पहले बच्चो अपनी मात्र भाषा सिखाएँ जो की नित्यन्त आवश्यक है।
अब आप ऊपर की हर लाइन को गौर से पढ़ें। क्या यह किसी विशेष ज़गह की बोली है। अब फ़िर १ मन ही मन में सोच के रह गए। क्यूँ कुल्हड़ी में गुड़ फोड़ रहे हो। खुल कर बोलो।
हमारी भाषा कोई शुद्ध नहीं है। हम खिचड़ी भाषा बोलते हैं। भाषा से नफरत न करें। बदलना हा तो अपने व्यक्तित्व को बदलें। बदलना है तो अपने चाल चलन को सुधारें। जो बदलनें की वो तो करते नहीं।
क्या जाट का यही गुण है ? ज़रा विचार करें।
लोग अंदर से डरते हैं जाटों से यह एक सच्चाई है और यही भाषा जाट की शक्ति है ।इसका श्रेय हमारी बेबाक बोली को जाता है जो दिखने में कड़क है पर अंदर से बहुत कोमल। आपने मन में यह धारणा बना ली की दूसरे की थाली में घी ज्यादा लाग भाई। अपनी माँ को ही डाकन बतान लागे। जो मुख से बोलो वोही खारी लागे ।अपने आप को किस से तुलना करो। पंजाब वाले अपनी पंजाबी नहीं छोडते ,तमिलनाडु वाले तमिल नहीं छोड़ते। वोह जब बोलते हैं तो ताहम उनके मूँह कांही देखी जाओ ,कीमी समझ तो आवे कोनी। मन मन में हाँसी जाओ सो क़ब्ज़ी आली हांसी। होल्ली होल्ली। अरे भाई हँसना है तो खुल के हंस ले अक हँसी भी महारी आची कोनी। फलाना कसुत हाँसे से बैरी। बेर न के पा रा सेह। हमारी भाषा जैसा मन वैसी भाषा बिना छल कपट के। आजकल ये ट्रेंड (देखा अंग्रेज़ी आगी बीच में )माहरी भासा ने भजान खातेर।वोह बात अलग है की भाषा जितनी आप सीख़ लो वोहे माड़ी। पर आप अपनी भाषा न छोड़े तथा सबसे पहले बच्चो अपनी मात्र भाषा सिखाएँ जो की नित्यन्त आवश्यक है।
अब आप ऊपर की हर लाइन को गौर से पढ़ें। क्या यह किसी विशेष ज़गह की बोली है। अब फ़िर १ मन ही मन में सोच के रह गए। क्यूँ कुल्हड़ी में गुड़ फोड़ रहे हो। खुल कर बोलो।
हमारी भाषा कोई शुद्ध नहीं है। हम खिचड़ी भाषा बोलते हैं। भाषा से नफरत न करें। बदलना हा तो अपने व्यक्तित्व को बदलें। बदलना है तो अपने चाल चलन को सुधारें। जो बदलनें की वो तो करते नहीं।
क्या जाट का यही गुण है ? ज़रा विचार करें।
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