मैं जाटों की गौरव गाथा को सही सुनाना चा हता हूं।
उसका सच्चा इतिहास खाश सबको बतलाना चाहता हूं। ।
धरती ही कर्म, धर्म धरती, धरती ही भरा खजाना है।
धरती ही जननी इनकी, धरती में अन्न उपजाना है।।
धरती ही रक्षा हित इनका होता सब ताना बाना है।
कभी सीम कभी सीमा पर जाटों को बैठा पाता हूं।।
सिर कलम चाहे हो जाए धरती की लाज बचाता हूं।।
भूखे प्यासे भी रहकर जो भरते हैं पेट जमाने का। इनको कभी टेम नहीं मिलता, ना पीने का या खाने का।।
सुबह राम का नाम लिया फिर दिन और रात कमाने का।
सर्दी गर्मी बरसात भी हो आराम कभी नहीं पाने का।।
इन धरतीपुत्र जाटों की मैं बात बताना चाहता हूँ।
सुना-सुना के कथा इन्हें कुछ होश में लाना चाहता हूँ।।
साभार :
मोहन लाल चौधरी
No comments:
Post a Comment