चारो
तरफ बागियों कि बहार आये हुई है। उन बागियों कि जो सत्ता कि मलाई खाने से
चंद कदम पहले रोक दिए गए और उनकी जगह उनके ही भाई बंधू ज्यादा चांदी के
सिक्को का चढ़ावा देकर,रसूख और गलत सलत तथ्यो और मालिश से दावेदार बन गए।
अच्छा हुआ जो इनके करतब जनता के सामने आ गए। दोनों बड़ी पार्टियो के यही हाल
हैं और दम्भियों के चाल , चेहरे और चरित्र सामने है। अब वोटर के हाथ और
विवेक पर है कि वो सही वोट करता है या हमेशा कि तरह दारु या पैसो में ,जात
के कार्ड में खोकर वोट का कचरा करके आता है। सच्चे बागी तो कामरेड हैं जो
सीमित संसाधनो ,तमाम प्रशासनिक बंदिशों ,माफिआ के घोर षडयंत्रो के बावजूद
दीवानो कि तरह देश और समाज कि बेहतरी के लिए ,निडर होकर इंक़लाब का झंडा
बुलंद किये हुए हैं। मगर क्या कहु कि ये रोजगार के झूठे वादे नहीं
कर सकते , ट्रान्सफर माफिया कि सेटिंग नहीं जानते , उद्योग , ठेके ,खानो
के टेंडर नहीं दिलवा सकते। रुपये खाकर जुल्म के खिलाफ संगर्ष बंद नहीं कर
सकते तो बोलो फिर कोई इस तरह के लाभ चाहने वाला चोर ,ठग ,व्यापारी और
कर्मचारी कामरेड्स का पक्ष क्यों लेगा ? इसलिए लाल झंडे के जो भी समर्थक है
वो झुझारू विद्यार्थी , मेहनतकश किसान और मजदूर या सरहद कि रक्षा करने
वाले सैनिक ही होंगे न ! इसलिए आप खुद ही सोच लो कि आप क्या हो , क्या
चाहते हो और देश आपके लिए क्या है ? आजादी और इंक़लाब को आप क्या समझते हैं।
भैया संघर्ष करते वक़्त तो मौत ,लट्ठ , भूख और मुकदमे सब हिस्से आते हैं
इसीलिए भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव और सुभाष हर दिन नहीं पैदा होते। हां
मगर उनसे प्रेरित होकर उनके बताये रास्ते पर जरुर चला जा सकता है। यह मेरा
दृढ विश्वास है।
साभार :
प्रकाश नवोदयन
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