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Wednesday, November 13, 2013

वसुदैव 'कुटुंबकम

भाषा किसी कि मोहताज़ नहीं होती। आप जितनी भाषाएँ  सीख सकते हैं सीखने का प्रयास कीजिये। यकीन मानिये आप का दायरा बढ़ता चला जाएगा। अपने को किसी एक सीमा ,एक भाषा ,एक क्षेत्र तक सीमित मत कीजियेगा। 'वसुदैव   'कुटुंबकम  '   यही   हमारी परम्परा है।   अधिक से अधिक  भाषा ज्ञान अर्जित कीजिये। भाषा किसी  एक जाति ,मज़हब ,समूह की बपोती नहीं है।  जाट तो इसका एकमात्र उदाहरण  है । कभी भेदभाव में विश्वास नहीं किया। अपना प्राचीन गौरव कायम रखो।  

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