समस्त जात और जाट नेताओ के नाम पर एक अपील
मैं भी एक जाट कुल में पैदा हुआ शख्स हूँ। और जो जाट समाज के झंडाबरदार
बने बैठे हैं उनके लिए कुछ मुद्दे सुझाता हूँ। देश को जितना ब्राह्मण ने
भ्रमित और बांटा है उतना शायद मुगलो ने भी नहीं। क्यूंकि मुग़ल एकीकरण चाहते
थे और उनके पहले रियासतो कि क्या हालत थी सब जानते हो।
तेजाजी कि
पुण्यतिथि दशमी कि है और एक सोचे समझे षड़यंत्र के तहत उसी दिन रामदेवजी कि
तिथि घोसित करवा दी। जबकि इस बात के अकाट्य प्रमाण हैं कि श्री रामदेवजी
कि पुण्य तिथि तो ग्यारस कि है। मगर ग्यारस वाले दिन ठाकुरजी भी हैं तो
रामदेवजी को जाटो के पीर वाली तिथि पर बैठा दिया। क्यूंकि ब्राह्मण
ठाकुरजी के नाम पर जलझूलनी ग्यारस पर अपना सिस्टम चलते हैं। उम्मीद है आप
लोग मेरा मंतव्य और गंतव्य समझ गए होंगे। इसलिए जिन पीर तेजाजी के नाम
पर आप समाज में अलख जगाते हो उनकी पुण्यतिथि को आजाद करवाओ। उस दिन कि
राज्य में छुट्टी घोषित करवाओ। तेजाजी का जो राजस्थान के ५ पीर है उनमे
नाम नहीं आता। तो अब तक आप लोगो कि प्रगति शून्य है जब आपने कुलदेवता के
साथ ही न्याय नहीं करवाया।
दूसरी बात यह सर्व विदित है कि पहले
जाट बोद्ध धर्म के पोषक और समर्थक थे। ब्राह्मण समाज को ये बात नागवार
गुजरी। क्यूंकि उनके " यजमान " कम हो रहे थे। किसी भी भी संस्था के सदस्य
टूटे तो आग लगती ही है। और तभी से जाटों के गौरवमयी इतिहास को दफ़नाने का
दौर शुरू हुआ। प्राचीन काल में मगध से लेकर अफगानिस्तान होते हुए मध्य
यूरोप तक जाटो का प्रभाव था। और इस इलाके के चाहे व्यापारी हो या तीर्थ
यात्री जिसमे बोद्ध बहुल थे ,कि सुरक्षा और सुविधाओ का पूरा ख्याल जाटों ने
रखा था।
सीकर के पास जगमालपुरा गांव में एक प्राचीन बोध स्तूप है
जिसको आज " मंदिर " माना जाता है। मेरी बात मत मानो , बल्कि पुरातत्व विभाग
से जाँच करवा लो ,वह जाटों के द्वारा बनाया गया एक प्राचीन बोद्ध स्तूप
ही निकलेगा। उसका जीर्णोद्धार करवाओ। उसको बोद्ध स्तूप घोषित करवाओ। विरोध
भयंकर होगा। मगर वो जाट ही नहीं जो विरोध से न लड़ पाये। चाहे शासक
रहे,किसान रहे ,मजदूर रहे या फिर सैनिक रहे जाटो ने हर जगह लोहा मनवाया है।
जब -२ जाट ढीले पड़े तब -२ विखंडन हुआ। गुरु नानक देव ने हम में से
ही मार्शल कौम सिख बनाये जिसने फिर हथियार उठाये और अपनी सत्ता स्थापित कि।
आज देश कि आबादी का महज २% सिख समुदाय भारतीय सेना में १० % हैं। सरदार
कभी भीख नहीं मांगता। और उनके s. g. p. c. के आव्हान को कोई सरदार नहीं
नकार सकता। इसलिए अगर प्रेरणा का अभाव हो तो आस पास झाँक लो। कोई हानि नहीं
होगी। इसलिए जट्टा जाग क्यूंकि सवाल अब पगड़ी का नहीं, वजूद कि पहचान और
गौरव का है।
गुरु जाम्भोजी ने हम में से ही बिश्नोई बनाये ताकि बीज और
अच्छा हो क्यूंकि शायद तब भी हम संक्रमित हो रहे थे , जैसा आज हो रहे हैं।
इसलिए आज के उपग्रह चैनल के युग में बीज को संक्रमण से बचाये वरना गौरव
कि बात तो दूर रही पीढ़ियों के नाम ही बेमेल हो जायेंगे। इसलिए निवेदन है कि
या तो सही दिशा में नेतृत्व दो या हट जाओ। प्रकृति समाज के सामंजस्य से
नेतृत्व ढूंढ लेती है। इसलिए समाज को बपौती मत समझो।
जाट विचार शक्ति ज़िंदाबाद।
साभार :
प्रकाश नवोदयन
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