मैं आज आप को प्याज़ के बढ़ते दामों के कारण से अवगत करवा रहा हूँ। मैं नीचे लेख को स्रोत सहित प्रकाशित कर रहा हूँ। पत्रिका के सहयोग से आपको यह जानकारी अच्छी प्रकार से प्राप्त हो पाई।में उनका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ। चलो अब प्याज की कथा की गहराईयों में खोते हैं।
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बड़े घोटालों के आड़ में जमाखोरों ने प्याज के कारोबार में हेराफेरी कर केवल चार महीनों में करीब 8,000 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। आड़त के व्यापार को जानने वाले यही बात रहे हैं।
नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है।
प्याज का रिश्ता प्रत्येक रसोई घर से है। सो यह मामला राजनीतिक स्तर पर भी गर्म हो रहा है। सरकार को जो नुकसान स्पेट्रम घोटाले से नहीं हुआ है, वह नुकसान प्याज की ऊंची कीमत से होने जा रहा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि कीमतों में आई तेजी को कम करने के लिए सरकार ने क्या और किस तेजी से कदम उठाए हैं। जबकि, इसकी लगातार बढ़ती कीमतों से आम आदमी बेहाल है। आश्चर्य है कि कई बड़े शहरों में प्याज की कीमत पेट्रोल की कीमतों को पीछे छोड़ने जा रही है। 90 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में उपलब्ध है। त्योहारों के इस मौसम में प्याज की ऊंची कीमतें आम आदमी की परेशानी का सबब बन रही हैं।
दिल्ली के लोगों को 1998 की याद आ रही है। उस वक्त भी चुनाव के दौरान प्याज की कीमत काफी बढ़ गई थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्याज सबसे बड़ मुद्दा बनकर उभरा था। कुछेक लोगों की राय है कि इतिहास स्वयं को दोहारा रहा है। 1998 में प्याज की बढ़ी कीमतों की वजह से दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इस बार कांग्रेस की बारी है।
दूसरी तरफ प्याज की बढ़ती कीमतों से निपटने को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठे तो केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने इसका ठीकरा जमाखोरों के सिर फोड़ दिया। इसके साथ-साथ राज्य सरकारों को उनकी भूमिका याद दिलाई। आनंद शर्मा ने जहां जमाखोरी को इसका कारण बताया, वहीं कृषि मंत्री शरद पवार जमाखोरी की थ्य़ोरी से ही कन्नी काटते नजर आए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जमाखोरी की वजह से प्याज के दाम बढ़े हैं।
पवार ने कहा, “नासिक में किसानों को प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है। मुझे समझ नहीं आता कि यह 90 रुपए किलो कैसे बिक रहा है। सरकार प्याज को नियंत्रित नहीं करती। न ही प्याज बेचती है। कीमत बाजार से तय होती है।” मीडिया में आई खबर के मुताबिक शरद पवार ने कहा कि अधिक बारिश के कारण कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्याज की फसल को नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए सरकार 921.98 करोड़ रुपए जारी करेगी। उन्होंने कहा कि प्याज की कीमत अगले दो से तीन सप्ताह में घट सकती है।
दूसरी तरफ एक समाचार चैनल ने अपने खुलासे में दिलचस्प तथ्य पेश किए हैं। उसके अनुसार नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है। इस खुलासे से केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के बातों कि हवा निकलती नजर आ रही है। पवार ने कहा था कि ‘नासिक में किसानों को इसका प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है।’
कृषि जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में बारिश से प्याज की फसल में देर हुई है, लेकिन इससे दाम इतने ज्यादा बढ़ेंगे, यह समझ से परे है। देरी के बावजूद मंडियों में खपत के मुताबिक पर्याप्त प्याज आ रहा है। फिर कीमतों में इतनी तेजी क्यों हो रही हैं?
इसपर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि कारोबारी बारिश से नुकसान का हल्ला मचाकर दाम बढ़ा रहे हैं। यह खेल नासिक, लासलगांव मंडियों में बैठे दर्जन भर कारोबारी कर रहे हैं। इनका नेटवर्क दिल्ली और दूसरे इलाकों में भी फैला हुआ है। आगे उन्होंने कहा कि पैदावार महज पांच फीसदी घटी है, लेकिन कोई किसानों से प्याज 10 से 15 रुपए किलोग्राम खरीदकर मंडियों में 50 से 60 रुपये किलो और खुदरा में 80 से 100 रुपये किलो बेचे तो सारा गणित समझ में आ जाता है। देवेंद्र शर्मा की माने तो वे बताते हैं कि जब प्याज की आवक का मौसम हो और देश का कृषि मंत्री कहे कि प्याज दो से तीन हफ्ते और महंगा रहेगा तो सरकार की गंभीरता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि जमाखोर जो कमाई कर रहे हैं, उसका बड़ा हिस्सा तथाकथित राजनेताओं को मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
Published on: गुरु | अक्तूबर ३१, २०१३
http://thepatrika.com/ NewsPortal/h?cID=RCd9Q7j3bpU%3D
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बड़े घोटालों के आड़ में जमाखोरों ने प्याज के कारोबार में हेराफेरी कर केवल चार महीनों में करीब 8,000 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। आड़त के व्यापार को जानने वाले यही बात रहे हैं।
नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है।
प्याज का रिश्ता प्रत्येक रसोई घर से है। सो यह मामला राजनीतिक स्तर पर भी गर्म हो रहा है। सरकार को जो नुकसान स्पेट्रम घोटाले से नहीं हुआ है, वह नुकसान प्याज की ऊंची कीमत से होने जा रहा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि कीमतों में आई तेजी को कम करने के लिए सरकार ने क्या और किस तेजी से कदम उठाए हैं। जबकि, इसकी लगातार बढ़ती कीमतों से आम आदमी बेहाल है। आश्चर्य है कि कई बड़े शहरों में प्याज की कीमत पेट्रोल की कीमतों को पीछे छोड़ने जा रही है। 90 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में उपलब्ध है। त्योहारों के इस मौसम में प्याज की ऊंची कीमतें आम आदमी की परेशानी का सबब बन रही हैं।
दिल्ली के लोगों को 1998 की याद आ रही है। उस वक्त भी चुनाव के दौरान प्याज की कीमत काफी बढ़ गई थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्याज सबसे बड़ मुद्दा बनकर उभरा था। कुछेक लोगों की राय है कि इतिहास स्वयं को दोहारा रहा है। 1998 में प्याज की बढ़ी कीमतों की वजह से दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इस बार कांग्रेस की बारी है।
दूसरी तरफ प्याज की बढ़ती कीमतों से निपटने को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठे तो केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने इसका ठीकरा जमाखोरों के सिर फोड़ दिया। इसके साथ-साथ राज्य सरकारों को उनकी भूमिका याद दिलाई। आनंद शर्मा ने जहां जमाखोरी को इसका कारण बताया, वहीं कृषि मंत्री शरद पवार जमाखोरी की थ्य़ोरी से ही कन्नी काटते नजर आए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जमाखोरी की वजह से प्याज के दाम बढ़े हैं।
पवार ने कहा, “नासिक में किसानों को प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है। मुझे समझ नहीं आता कि यह 90 रुपए किलो कैसे बिक रहा है। सरकार प्याज को नियंत्रित नहीं करती। न ही प्याज बेचती है। कीमत बाजार से तय होती है।” मीडिया में आई खबर के मुताबिक शरद पवार ने कहा कि अधिक बारिश के कारण कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्याज की फसल को नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए सरकार 921.98 करोड़ रुपए जारी करेगी। उन्होंने कहा कि प्याज की कीमत अगले दो से तीन सप्ताह में घट सकती है।
दूसरी तरफ एक समाचार चैनल ने अपने खुलासे में दिलचस्प तथ्य पेश किए हैं। उसके अनुसार नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है। इस खुलासे से केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के बातों कि हवा निकलती नजर आ रही है। पवार ने कहा था कि ‘नासिक में किसानों को इसका प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है।’
कृषि जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में बारिश से प्याज की फसल में देर हुई है, लेकिन इससे दाम इतने ज्यादा बढ़ेंगे, यह समझ से परे है। देरी के बावजूद मंडियों में खपत के मुताबिक पर्याप्त प्याज आ रहा है। फिर कीमतों में इतनी तेजी क्यों हो रही हैं?
इसपर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि कारोबारी बारिश से नुकसान का हल्ला मचाकर दाम बढ़ा रहे हैं। यह खेल नासिक, लासलगांव मंडियों में बैठे दर्जन भर कारोबारी कर रहे हैं। इनका नेटवर्क दिल्ली और दूसरे इलाकों में भी फैला हुआ है। आगे उन्होंने कहा कि पैदावार महज पांच फीसदी घटी है, लेकिन कोई किसानों से प्याज 10 से 15 रुपए किलोग्राम खरीदकर मंडियों में 50 से 60 रुपये किलो और खुदरा में 80 से 100 रुपये किलो बेचे तो सारा गणित समझ में आ जाता है। देवेंद्र शर्मा की माने तो वे बताते हैं कि जब प्याज की आवक का मौसम हो और देश का कृषि मंत्री कहे कि प्याज दो से तीन हफ्ते और महंगा रहेगा तो सरकार की गंभीरता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि जमाखोर जो कमाई कर रहे हैं, उसका बड़ा हिस्सा तथाकथित राजनेताओं को मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
Published on: गुरु | अक्तूबर ३१, २०१३
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