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Sunday, December 1, 2013

राष्ट्रवाद की गंगा को जन-जन तक पहुँचाना है

इतिहास वीर सावरकर को काला पानी की सजा के दौरान भयानक सैल्यूलर जेल मैं रखा गया । उन्हें दूसरी मंजिल की कोठी नंबर २३४ मैं रखा गया और उनके कपड़ो पर भयानक कैदी लिखा गया । कोठरी में सोने और खड़े होने पर दीवार छू जाती थी । उन्हें नारियल की रस्सी बनाने और ३० पोंड तेल प्रतिदिन निकालने के लिए बैल की तरह कोल्हू में जोता जाता था । इतना कष्ट सहने के बावजूद भी वह रात को दिवार पर कविता लिखते, उसे याद करते और मिटा देते ।१३ मार्च १९१० से लेकर १० मई १९३७ तक २७ वर्षो की अमानवीय पीडा भोग कर उच्च मनोबल, ज्ञान और शक्ति के साथ वह जेल से बाहर निकले जैसे अँधेरा चीर कर सूर्य निकलता है ।

आजादी के बाद भी पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस ने उनसे न्याय नहीं किया । देश का हिन्दू कहीं उन्हें न अपना नेता मान बैठे इसलिए उन पर महात्मा गाँधी की हत्या का आरोप लगा कर लाल किले में बंद कर दिया गया । बाद में न्यायालय ने उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया । पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें इतिहास में भी यथोचित स्थान नहीं दिया । स्वाधीनता संग्राम में केवल गाँधी और गांधीवादी नेताओं की भूमिका को बढा-चढ़ाकर उल्लेख किया गया ।

वीर सावरकर की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें नहीं छोडा । सन २००३ में वीर सावरकर का चित्र संसद के केंद्रीय कक्ष में लगाने पर कांग्रेस ने विवाद खडा कर दिया था । २००७ में कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर ने अंडमान के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर के नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गाँधी के नाम का पत्थर लगा दिया । जिन कांग्रेसी नेताओ ने राष्ट्र को झूठे आश्वासन दिए, देश का विभाजन स्वीकार किया, जिन्होंने शेख से मिलकर कश्मीर का सौदा किया, वो भले ही आज पूजे जाये पर क्या वीर सावरकर को याद रखना इस राष्ट्र का कर्तव्य नहीं है? आजादी केवल गांधीवादियों की देन नहीं है बल्कि भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के बलिदानों के चलते ही मिली है । राष्ट्र इन सभी के बलिदानों को याद रखे और इन्हें सम्मान दे । 


 धन्यवाद । जय हिन्द ! जय भारत !

 साभार :  दुर्गा शक्ति नागपाल

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