वाह रे मेरे देश के नेताओँ..
बकरी की रस्सी तुम्हेँ याद है..
शहीदोँ के खून से रँगे धागे नहीँ..
चँद बुजदिलोँ को तो प्यार करते हो..
क्या वे क्राँतिकारी अपने सगे नहीँ..
पापीयोँ के बुत चौराहोँ पर खङे कर दिये..
शहिदोँ का जिक्र पन्ऩोँ तक मेँ नहीँ..
झूठे नारे लगाकर दिल ठँडा करलो..
जब मोहब्बत गर्मी सीने तक मेँ नहीँ..
केवल लाठी खाने वाला महान नहिँ होता..
लाठी का जवाब लठ से देना इँसाफ है..
दुश्मनोँ से समझौता समझदारी नही..
सीने मेँ गोली उतारना ही असली फैसला है..
कुछ लोग महात्मा बन गये चरखे चलाकर..
मगर शेर भी शहिदे आजम कहलाते है..
बुजदिल अगर उनके सपने पालते है तो..
हम भी विचार क्राँतिकारी रखते है..
कायरोँ के महल तुम्हेँ स्मारक लगते है..
शहिदोँ के घर आज जर्जर होने को है..
उनके दिवस तुम्हेँ पर्व लगते है..
और अनगिनीत बलीदान मँजर होने को है..
जब तक जियेँगे भगत को दिल मेँ जिलायेँगे..
गाँधिवादि खून हमारी रगोँ मेँ नहीँ..
आरजू ए इँकलाब सदा दिल से लगायेँगे..
ढोँगियोँ को जयकार करे हम उन लोगोँ मेँ नहीँ..
[इँकलाब जिँदाबाद]
लेखक-
बलवीर घिंटाला
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