एक बर की है अक एक जाट जंगल में पेड के पिछे बैठ के भगवान शिवजी की तपस्या करण बैठ गया।
एक साल बाद जद शिवजी भगवान प्रकट होये तो जाट दिख्या येः कोनी।
शिवजी उलटे चले गे।
फेर एक साल बाद आये अर न्यू ए वापस चले गये।
पांच साल पाच्छे शिवजी फेर आये तो उन्नैं पेड् की ओट में बैठया जाट नै टोह लिया।
शिवजी बोले उठो .. "वत्स । तुम्हारी तपस्या पुरी हुई वर मांगों।
हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न है।" जाट नै छो उठ रहया था बोल्या किमै वरदान भी देगा या सुका ही भाज ज्या गा।
शिवजी बोले .. "वर मांगों वत्स ये हमारा तीसरा चक्कर है तुम एक नही तीन वरदान मांगों।""
या सुणते ही जाट की खोपडी घुम गी।
फेर थोडा सोच कै बोल्या ...."मांगण नै तो मै तेरा यो नंदी बलद भी मांग सकु हु पर फेर यो के
धार देगा"
अर हल बाहण खातर मन्नैं टैक्टर ले राख्या सै।
आप तो न्यू करो यो वरदान दे दयो म्हारी भैस की धार कदै खत्म ना हो।"
शंकर जी बोले .... "तथास्तु "
फेर जाट बोल्या .... दुसरा वर यो दे दे अक दुनिया भर के सैठां की म्हारै तै देख्कै पिंडी कांपण लाग ज्या।
अर तीसरा वरदान यो दे दे अक गांम की चौधर खातर जद भी घमासान हो तो सेहरा म्हारै सिर पर आवै और छिताई औरां की हो।।
साभार :
विपिन नरवत
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