सिकंदर ने जब पासा पलटते देखा तो अपने सिपाहियों के बीच ऑन खड़ा हुआ और वह भी स्वयं ज़हनी टूट फूट का शिकार था । वह चाहता था कि लड़ाई किसी स्थिति में समाप्त हो , यहां तक कि वह सैनिकों के युद्ध रोकने का आदेश कर दिया और तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा "हे पोरस ! नगनिशाए भारतीय , सुनो मुझे तुम्हारी बहुत शक्ति और शक्ति का बखूबी अंदाज हो गया है, इसके अलावातुम्हारी रणनीति ने मुझे प्रभावित किया है , मेरा दिल पराजित है , मुझे थकान का एहसास है , पता नहीं हम कहाँ आकर शुरू हो रहे हैं। अब हालांकि मैं खुद अपने जीवन समाप्त करने की स्थिति से ग्रस्त हैं , लेकिन अपने सैनिकों को मजबूर नहीं करना चाहता , क्योंकि यूनानी सेनाओं को ऐसे हालात का शिकार का जिम्मेदार मैं खुद हूं और एक राजा के लिए यह उचित नहीं कि वह वफादार सेना की जान की कीमत पर अपने जीवन बचाए . आओ हम दोनों सेनाओं को लड़ाई बंद करने का आदेश देकर खुद मुकाबला करें । यूसुफ बिन गोरिआं के अनुसार जब सिकंदर को सेना की बेदिली का पता चला तो उसने भारतीय राजा को एक संदेश भेजा , जिसमें कहा गया था " सुनो पोरस हम दोनों के बीच लड़ाई तूल ले गई है और हमारे सारे सिपाही निराशा का शिकार हो चुके हैं ,आओ , सेनाओं को वापस हटा कर अपनी तलवार म्यान रख दोनों युद्ध का फैसला कर लें। फिरदौस के शाहनामें में लिखा है कि जब लड़ाई की तीव्रता बहुत नुक्ते पर पहुंच गया तो सिकंदर ने पोरस को यूं संबोधित किया:
मेरे समक्ष आये प्रथम महान इंसान
हम दोनों की सेनाएं लड़ाई से थक हार गई हैं
जंगली दरिंदे ( हाथी ) मानव खोपड़ियां पीस रहे हैं
घोड़े के पैर सैनिकों की हड्डियां तोड़ रहे हैं
हम दोनों नायक , साहस और युवा
दोनों ज़हीन , हम पलड़ा और भारी
तो सिपाहियों का नरसंहार क्यों
या
फिर लड़ाई के बाद उनकी घायल जीवन किस काम का
सच्चाई तो यह थी की सिकन्दर था किन्तु इतिहासकारों ने सच्चाई छिपा कर झूठा इतिहास रच डाला जो हम आज तक पढ़ते आयें हैं।
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