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Thursday, August 27, 2015

जाति पाती छोड़ो

जरूर पढ़िए -- जाति पाती का षड्यंत्र हमारे समाज को दीमक की तरह अंदर से खोखला कर रहा है। इंसानियत विरोधी और देशविरोधी ताकतें आजकल फिर इस जहर को झूठे इतिहास,गलत तथ्यों व तर्कों से पूरी शक्ति से फैलाने में लगी हैं। खासकर तथाकथित सवर्णों और तथाकथित शूद्रों के बीच तनाव चरम सीमा की तरफ बढ़ रहा है जो कि हमारे सनातन धर्म व सनातन संस्कृति के बिलकुल विपरीत है और भारत की आंतरिक शांति व अखण्डता के लिए अत्यंत घातक। जाति वाद की
वास्तविकता क्या है ये देखिये---- नीचे दिए ज्यादातर बिन्दु सभी तथाकथित नीची जातियों(दलितों) के लिए सही हैं। फिर भी
सबसे पहले हम खासतौर पर बात करेंगे वाल्मीकि समाज पर। जो बात अन्य दलितों पर लागू होगी वहां कोष्ठक में दलित लिखा गया है।
1. आमतौर पर यह जाति पंजाब में मजहबी सिख व शेष उत्तर भारत में वाल्मीकि, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में सुदर्शन व मखियार तथा गुजरात में रूखी नाम से जानी जाती है। लेखन की सुविधा हेतु सबके लिए वाल्मीकि शब्द ही प्रयोग किया जायेगा।
2. वाल्मीकि समाज (व सभी दलित)आज अत्यंत दीन हीन अवस्था व भीषण गरीबी में है। राजनैतिक भेदभाव,शोषण व अस्वीकृति इतने चरम पर है कि इसका प्रभाव सामाजिक भेदभाव,शोषण व अस्वीकृति के रूप में भी दृष्टिगोचर होने लगा है।
3. किसी भी देश या जाति के लिए बिंदु 2 की स्थिति तब आती है जब उसमे कई शताब्दियों से महापुरुषों व विद्वानों का सर्वथा अभाव हो गया हो।
4. प्रश्न उठता है तो क्या वाल्मीकि समाज (व दलित) बिंदु 3 की स्थिति से गुजरा है ?
5. उत्तर है बिलकुल नहीं। मध्यकाल के महान योद्धाओं और अत्याचारी मुस्लिम शासकों से लोहा लेने वाले महापुरुषों, माटी के अमर सपूतों तथा भारतीय धर्म-संस्कृति के रक्षकों में इनकी अहम भूमिका रही है। फिर इस दुर्दशा की वजह क्या है ?
6. 800 साल विदेशी मुस्लिम अत्याचारी शासकों,200 साल निर्दयी अंग्रेजों व आजादी के बाद 60 साल तक कांग्रेस व वामपंथी शासन के दौरान इतिहास लेखन में मुस्लिम सुल्तानों के चाटुकारों, अंग्रेजों के पिट्ठुओं व कांग्रेसी टुकड़ों पर पलने वाले मानव खून चूसने वाली जोंकों ने (BJP ने पूर्ण बहुमत से अपनी पारी अभी शुरू की है,इसके कामों का विश्लेषण कुछ तर्कसंगत वर्षों बाद ही किया जा सकता है ) अपने शासकों व उनके तलवे चाटने वालों का अत्यधिक गुणगान किया और असली देशभक्तों के एक वर्ग की उपेक्षा की गयी।
क्रमशः (शेष कल)

हरदीप  सूरा  बुगाना 


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