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Saturday, January 21, 2017

सच्ची में

सच्ची में 

जीवन भी कमाल का है
डगर भी तो  कमाल की है
बच्चा इस सँसार  में आता  है
परिवार  ढेरों  खुशिया  मनाता  है
वाहियात खर्च कर दुनिया को दिखता है
बच्चे को डंग रखना सही नहीं सिखाता है
गंदगी और बागवानी में फ़र्क़ नहीं सिखलाता है
नन्हें  को गर्द  के चश्में  से खिंचता चला जाता है
माँ  बाप   की   सेवा   का   भाव   ठुकराता   है
वृद्ध  माँ  बाप  को   कोने   में   नकारता    है
उनकी सभी  धुप  छाँव  को भूल  जाता  है
माँ ने खाली  पेट रह तेरा  झेद  भरा  है
बुढ़ापे  में वृद्ध  आश्रम पटक आता है
लुगाई  संग  दाणद  निकालता है
खुद  का  भी   टेम  आया है

 सच्ची में 
उसकी  लाठी शोर नहीं करती
कहानी फिर से दोहराती
जीवन लीला योंही  नहीं करहाती 

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