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Sunday, March 5, 2017

अज़ब 3

गतांग  से।  . . .  . . .  

अज़ब  3


बन्दर करे 
गुणगान

कोई नहीं 
है अनजान 
लोमड़ी की चाल 
बड़ी बेचाल 
मचाई हलचल 
कोहरे का छाया 
आँचल 

आसमाँ  
खुलने का इंतज़ार   
कोई और 
नहीं फ़िराक़ 
अब  तो 
वसंत का 
है इंतज़ार 
मौसम 
होगा मस्त 

खिलेंगे 
कमल 
तोड़ेंगे हस्त 
यही है परंपरा 



©निर्मल खज़ाना 

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