जिस अकबर ने आमेर की जोधा ब्याही वही अकबर 35 जाट खाप की बेटी धर्मकौर को नहीं पा सका।
पता नहीं इन इतिहास लिखने और संजोने वालों ने इस इतिहास में और क्या-क्या छिपाया है; और
छिपाया तो यह सिर्फ इसीलिए छिपाया कि यह जाट और खाप से संबंधित होता था? वरना जो किस्सा (जिसका अंदाजा आपको शीर्षक से लग ही गया होगा) बताने जा रहा हूँ वो अगर एक बार आमेर वालों ने भी सुन लिया होता तो वो भी अकबर को जोधा देने का विचार त्याग देते और अपना रजवाड़ा बचाने को अकबर
से बेटी ब्याहने की जगह ऐसे ही निर्भीक फैसला सुना देते जैसा जाट खाप ने सुनाया था| किस्सा इस प्रकार है:
जिला फिरोजपुर, (वर्तमान पंजाब में) के एक गाँव में चौधरी मीरमत्ता की युवा बेटी 'धर्मकौर' अति संदर और बलिष्ठ थी । अकबर उस समय गाँव के पास से दौरे पर जा रहा था कि उसने 'धर्मकौर' को सर पर घड़ा रखे हुए एक पाँव से भागते हुए बछड़े को उसके रस्से पर पाँव रख कर रोके रखा जब तक कि उसके पिता ने उस रस्से को पकड़ न लिया। यह दृश्य देख कर अकबर हैरान हो गया। बादशाह ने मीरमत्ता को बुला कर उसकी बेटी से शादी करने का आदेश दिया। यह सुनकर चौधरी मीरमत्ता ने कहा, "महाराजा मुझे इस बारे में अपने जाति बंधुओं से विचार करना पड़ेगा।इसलिए कुछ समय चाहिए।" बादशाह अकबर सहमत हो गया।
और मीरमत्ता ने "35 जाट वंशीय खापों की पंचायत” की। सर्वखाप ने निर्णय लिया "अकबर को जाट कन्या नहीं दी जा सकती। यदि वह सैन्य बल से लड़की को लेने का प्रयत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके हम अपने
सम्मान की रक्षा करेंगे।"
पंचायत का यह फैसला अकबर को सुना दिया गया। फैसला सुनकर अकबर लज्जित हुआ। परन्तु उसने सूझ-बूझ से काम लिया और अपना इरादा त्याग दिया। शायद वो समझ गया था कि यह आमेर नहीं सर्वखाप है| क्या अद्भुत लालिमा होती थी सर्वखाप के पराक्रम की, कि अकबर जैसा बादशाह भी चुपचाप लौट गया|
यह इस तरह का दूसरा किस्सा है सर्वखाप का| थोड़े दिन पहले प्रस्तुत 'अमरज्योति गोकुला जी महाराज' के
किस्से में भी सामने आया था कि कैसे 'औरंगजेब' के संधि प्रस्ताव पे 'गोकुला जी महाराज' ने कहलवा भेजा था कि, "बेटी दे जा और संधि ले जा"।
श्रोत : श्री सुखवीर सिंह दलाल द्वारा लिखित पुस्तक "जाट ज्योति" के सौजन्य से
पता नहीं इन इतिहास लिखने और संजोने वालों ने इस इतिहास में और क्या-क्या छिपाया है; और
छिपाया तो यह सिर्फ इसीलिए छिपाया कि यह जाट और खाप से संबंधित होता था? वरना जो किस्सा (जिसका अंदाजा आपको शीर्षक से लग ही गया होगा) बताने जा रहा हूँ वो अगर एक बार आमेर वालों ने भी सुन लिया होता तो वो भी अकबर को जोधा देने का विचार त्याग देते और अपना रजवाड़ा बचाने को अकबर
से बेटी ब्याहने की जगह ऐसे ही निर्भीक फैसला सुना देते जैसा जाट खाप ने सुनाया था| किस्सा इस प्रकार है:
जिला फिरोजपुर, (वर्तमान पंजाब में) के एक गाँव में चौधरी मीरमत्ता की युवा बेटी 'धर्मकौर' अति संदर और बलिष्ठ थी । अकबर उस समय गाँव के पास से दौरे पर जा रहा था कि उसने 'धर्मकौर' को सर पर घड़ा रखे हुए एक पाँव से भागते हुए बछड़े को उसके रस्से पर पाँव रख कर रोके रखा जब तक कि उसके पिता ने उस रस्से को पकड़ न लिया। यह दृश्य देख कर अकबर हैरान हो गया। बादशाह ने मीरमत्ता को बुला कर उसकी बेटी से शादी करने का आदेश दिया। यह सुनकर चौधरी मीरमत्ता ने कहा, "महाराजा मुझे इस बारे में अपने जाति बंधुओं से विचार करना पड़ेगा।इसलिए कुछ समय चाहिए।" बादशाह अकबर सहमत हो गया।
और मीरमत्ता ने "35 जाट वंशीय खापों की पंचायत” की। सर्वखाप ने निर्णय लिया "अकबर को जाट कन्या नहीं दी जा सकती। यदि वह सैन्य बल से लड़की को लेने का प्रयत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके हम अपने
सम्मान की रक्षा करेंगे।"
पंचायत का यह फैसला अकबर को सुना दिया गया। फैसला सुनकर अकबर लज्जित हुआ। परन्तु उसने सूझ-बूझ से काम लिया और अपना इरादा त्याग दिया। शायद वो समझ गया था कि यह आमेर नहीं सर्वखाप है| क्या अद्भुत लालिमा होती थी सर्वखाप के पराक्रम की, कि अकबर जैसा बादशाह भी चुपचाप लौट गया|
यह इस तरह का दूसरा किस्सा है सर्वखाप का| थोड़े दिन पहले प्रस्तुत 'अमरज्योति गोकुला जी महाराज' के
किस्से में भी सामने आया था कि कैसे 'औरंगजेब' के संधि प्रस्ताव पे 'गोकुला जी महाराज' ने कहलवा भेजा था कि, "बेटी दे जा और संधि ले जा"।
श्रोत : श्री सुखवीर सिंह दलाल द्वारा लिखित पुस्तक "जाट ज्योति" के सौजन्य से
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