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Friday, November 29, 2013

गाजी संहारक कमांडर इंद्र सिंह मलिक




गाज़ी  संहारक कमांडर इंद्र सिंह मलिक

पूर्वी पंजाब सूबे (वर्तमान हरियाणा ) के रोहतक जिले की सोनीपत तहसील (वर्तमान में जिला ) के आंवली गाँव में साधारण किसान चौधरी जागे राम के सुपुत्र रतिराम के घर पर 4 अक्तूबर 1924 को विलक्षण प्रतिभा के धनी एक बालक का जन्म हुआ । जिस दिन इस बालक ने जन्म लिया था ,उस दिन कई दिनों के बाद अच्छी वर्षा हुई थी | । इसलिए परिजनों ने बच्चे का नाम , वर्षा के देव इंद्र देव के नाम पर इंद्र सिंह रखा, जो कि परिवार अवं गाँव में खुशियाँ लेकर आया था ।
बालक इंद्र सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की । प्रतिभा के अनुरूप वह पढाई में अच्छे अंक लेकर आता था । इसीलिए उसके अध्यापक एवं परिजन उससे बहुत प्यार करते थे । खेलों में भी उसकी बहुत रूचि थी और उसका प्रदर्शन खेलों में भी बहुत अच्छा रहता था । आठवी की परीक्षा पास करने के उपरान्त इन्हें उच्च शिक्षा के लिए जाट स्कूल सोनीपत में दाखिला करवाया गया । यहीं से इन्होने अच्छे अंकों के साथ दसवी की परीक्षा पास की । जून 1944 में जब दूसरा महायुद्ध अपनी चरम सीमा पर था , उस समय नौजवान इंद्र सिंह रॉयल इंडियन नेवी में नाविक के रूप में भारती हो गये । प्रशिक्षण समाप्ति के उपरान्त इन्होने पूर्वी सेक्टर में युद्ध में भाग लिया। 
15 अगस्त ,1947 को भारतवर्ष स्वतंत्र हो गया और रॉयल भारतीय नौसेना का नाम भारतीय नौ-सेना हो गया | अपनी प्रतिभा के बल पर इन्होने 1957 में एक ऑफिसर के रूप में कमीशन प्राप्त किया | 1961 में गोवा मुक्ति ऑपरेशन में गोवा को मुक्त करवाने के लिए सक्रिय भूमिका अदा की और गोवा को मुक्त करवाया । 1965 के भारत-पाक युद्ध में इनकी नियुक्ति सुरक्षा के लिए पूर्वी-सेक्टर में रही जो उस समय प्राय: शांत रहा ।
1971 के दिसंबर माह की 3 तारिख को पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान ( बांग्लादेश ) से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए भारत पर पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर अचानक हमला बोल दिया । योजनाबद्ध तरीके से पाकिस्तानी युद्धक पंडूब्बी 15 गाजी भारतीय विमान वाहक युद्धपोत विक्रांत के नष्ट करने के लिए बंगाल की खाड़ी में घात लगाये हुई थी । इसकी सूचना 3-4 की रात को भारतीय नौ सेना को लगी तथा इस को नष्ट करने के लिए विशाखापटनम में तैनात ले. कमांडर इंद्र सिंह को आदेश मिला । आदेश मिलते ही तुरंत कार्यवाही करते हुए पीएनएस गाजी पर भयंकर गोलीबारी करते हुए कमांडर इन्दर सिंह ने इसे नशर कर दिया । इसके बाद आप के पोत ने विशेष नीति के तहत आगे बढ़ना जारी रखा तथा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में खुला नदी के मुहाने पर घात लगाये बैठे पाकिस्तानी युद्धपोत अनवर बक्श को हथियार डालने पर, मजबूर कर , उसे बंदी बना कर चारों और अपनी बहादुरी की डंका बजाया । पूर्वी पाकिस्तान की समुंदरी सीमा की नाकेबंदी कमांडर इंद्र सिंह के युध्ह्पोत की अहम् भूमिका रही |
16 दिसंबर 1971 को पूर्वी मोर्चे पर हार स्वीकार करते हुए धाक में पाकिस्तानी फौजों ने (लगभग 93 हजार सैनिकों ने ) भारतीय सेनाओं के सामने हथियार दाल दिए । इसके बाद 18 दिसंबर 1971 पश्चिमी सीमा पर भी युद्ध विराम हो गया । युद्ध समाप्ति पर गाजी संहारक के रूप में प्रसिद्द हो चुके कमांडर इंद्र सिंह को उनकी वीरता के लिए राष्ट्रपति वी वी गिरी ने एक भव्य समारोह  में वीरता के पुरुस्कार 'वीर चक्र ' प्रदान कर सम्मानित  किया । इसी पर किसी कवि ने ठीक कहा है -


जननी जने तो भक्तजन, या दाता या शूर।
नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे गंवाए नूर।।


35 वर्षों की लंबी नौसेना सेवा के उपरान्त कमांडर इन्दर सिंह 31 अक्टूबर , 1979 को सेवानिवृत हुए । सेवानिवृति के उपरान्त आपने रोहतक में निवास करते हुए भूतपूर्व सैनिकों अवं सैनिकों की विधवाओं के कल्याण के लिए
हरियाणा भूतपूर्व सैनिक संघ के गठन में अहम् भूमिका अदा की । तब से लेकर आज तक कमांडर इन्दर सिंह भूतपूर्व सैनिक संघ में कल्याणकारी कार्यों में दिलों-जान से निस्वार्थ भाव से लगे हुए है और भूतपूर्व सैनिकों अवं उनकी विधवाओं की अनेकों समस्याओं को सुलझाने में अग्रणी रहे है । वर्तमान में कमांडर साहब हरियाणा भूतपूर्व सैनिक संघ के अध्यक्ष के पद पर सेवाएं दे रहे है । हम सब इस बहादुर वयोवृद्ध भक्त को दिल की गहराईयों से सैल्यूट करते है तथा उनकी लंबे सुखमय जीवन की प्रभु से प्रार्थना करते है । 


लेखक - कप्तान जगबीर मलिक

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