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Thursday, November 21, 2013

एक ज़ोर से शोर सुनेगा -धड़ाम

क्या आज़ादी के 67  साल के बाद भी भारत में विभिन्न जातियों को आरक्षण की आवश्यकता है। फ़ूड सिक्यूरिटी बिल  की अब भी दरकार है ? सब्जियों के भाव पर अंकुश लगाया जाये। मूल भूत आवश्यक सामग्री के भाव नियंत्रण में रहे या यह माना जाये की चुनाव सिर  पर हैं। अभी तो शेयर बाज़ार की बारी भी है। एक ज़ोर से शोर सुनेगा -धड़ाम !! क्या अभी तक हमारे देश से पोलिओ का उन्मूलन नहीं हुआ है ? आख़िर  क्यों ? कब तक चलेगा।   कब तक हम यह सहन कअऋ करने की आदत पड़  गई  है। हमारी तो ज़िंदगी बस पिटने  में ही गुज़र  जाएगी।  पहले गुरु और मायतो ने पीटा और अब आगे अगली पीढ़ी  पिटेगी।  कैसा भारत देकर जायेंगे। 
अभी भी समय है। बदल डालो अपनी संकीर्ण मानसिकता। क्यों लात खा रहे हो  यह जानते हुवे की गलत हो रहा है। क्या फायदा इस आज़ादी का ? क्या योंही  पाछे पर खाते रहोगे। 

अभी भी वक़्त है। संभल  जा ज़रा। जाट का भी अब नैतिक पतन होने लगा है। पहले जब तक जाट बुलंद था तब तक उम्मीद थी की सब ठीक हो जायेगा पर अब वह उम्मीद धूमिल होती जा रही है। 

संभल जाओ विशाल जाट कौम। अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है। उठो ! चेतो !   और आगे बढ़ो   !
एक बार फिर मैं  तो यही  कहूँगा -

उठ   जा   जाट   उठा  अपनी  शमशीर 
गलत भोजन त्याग दे ,खा चुरमा  ख़ीर

अपनों से नाता जोड़ 
गैरों   से  नाता  तोड़

झूठी   राख  न मरोड़ 
बात का मूल्य करोड़ 

कुल्हड़ी में गुड़  न फोड़
आच्छी  बात की कर होड़ 

न छोड़ अपनी खोड़ 
सौ बातां का एक तौड़ 

पा बिछा जितनी  शो
'हरपाल ' छोड़ यह मोड़

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