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Friday, December 6, 2013

अगर तुम युवा हो

अगर तुम युवा हो!
ग़रीबों-मजलूमों के नौजवान सपूतों!
उन्हें कहने दो कि क्रान्तियाँ मर गयीं
जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर.
तुम्हे तो इस नर्क से बाहर
निकलने के लिए
बंद दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निज़ामे-कोहना के ख़िलाफ़.
यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय,सच्चाई,स्वाभिमान
और सुन्दरता से भरी ज़िन्दगी
तो तुम्हें उठाना ही होगा
नए इंक़लाब का परचम फिर से
उन्हें करने दो 'इतिहास के अंत'
और 'विचारधारा के अंत' की अंतहीन बकवास
अन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी धुनों पर.
तुम गाओ
प्रकृति की लय पर ज़िन्दगी के गीत.
तुम पसीने और खून और
मिट्टी और रोशनी की बातें करो.
तुम बग़ावत की धुनें रचो.
तुम इतिहास के रंग मंच पर
एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो.
तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचण्ड झंझावात बन जाओ
 
साभार :  अनुज चौधरी

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