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Sunday, December 8, 2013

कौन सुनेगा सैनिक की माँ का दर्द

वो औरत एक शहीद की माँ थी,
देशभक्ति की परंपरा उसके यहाँ थी...

जीवन भर सैनिकों की वर्दियां सींती रही,
बेटे को शहीद देखने की तमन्ना में जीती रही...

ख़ून को देती रही पसीने का कर्ज़,
बढ़ता रहा देशभक्ति का मर्ज़...

मेघदूत युद्ध का संदेश लाया,
संगीनों ने आषाढ़ गाया...

बेटा सरहदों पर सर बो गया,
इतिहास की ग़ुमनाम वादियों में
हमेशा के लिये खो गया...

माँ अपने सौभाग्य पर मुस्कराती रही,
बेटे की तस्वीर को फ़ौज़ी लिवास पहनाती रही...

रोज़ पढ़ती रही अख़बार,
ढूंढती रही, बेटे के शहीद होने का समाचार...

नेताओं की आदमकद तस्वीरें हंसंती रहीं,
इतिहास में शासक को जगह मिलती है,
शहीदों को नहीं...

जो इतिहास के पन्ने सींते हैं,
वो इतिहास पर नहीं, सुई की नोंक पर जीते हैं...

भूगोल होता है जिनके रक्त से रंगीन,
उनके बच्चों को मयस्सर नहीं दो ग़ज ज़मीन...

शहादत कहाँ तक अपना लहू पीती रही?
केवल शहीद को जन्म देने के लिये जीती रही ?
 

साभार :
भारतीय सेना

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