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Sunday, July 2, 2017

ज़िंदगी बदल रही

जाट की जमीन न रही
जाट की वह शान भी ना रही
न रहा वह आसमान
न रहा वह सम्मान
जाट का वज़ूद ख़तम हो रहा
ज़ुल्मो को गुम शूम सहता रहा
रिश्तों  की कठिनाई  आ रही
भाइयों की बेल गल रही

ज़िंदगी बदल रही है रे
"हरपाल " क्या सोचता है रे
देश की सरहद पे कौन जायेगा रे
जाट ने माँ की सेवा करी है रे

अब ये चिंता खा रही है  रे
माँ भारती की  शान कौन बचाएगा रे 

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