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Monday, September 30, 2013
मुजफ्फरनगर दंगे:
मुजफ्फरनगर दंगे:
जब सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना, तो पाकिस्तान से आने वाली रेलगाडिय़ों में सिख और हिंदुओं की लाशें आने लगीं तो पंजाब के(वर्तमान में हरियाणा भी शामिल था) जाटों का यह लाशें देखकर खून बौखला उठा और इस क्षेत्र में इसके बाद भारी धार्मिक दंगे हुए, लेकिन याद रहे कि ये दंगे सबसे पहले लाहौर के पास ही शुरू हुए थे, जिनका कारण मैंने अपनी पुस्तक असली लुटेरे कौन में विस्तार से बतलाया है, लेकिन इन दंगों का उत्तरप्रदेश के जाटों पर कोई असर नहीं हुआ और वहां के जाटों ने बहुत बड़ा धैर्य और धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण पेश किया, जो आज भी प्रशंसा योग्य है। इसके बाद उत्तरप्रदेश में कई बार धार्मिक दंगे हुए, लेकिन जाटों ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया और इसी सिद्धांत पर चौधरी चरण सिंह और चौधरी महेंद्र ङ्क्षसह टिकैत चलते रहे और हिंदू और मुस्लिम की एकता बनी रही और इन्होंने उत्तरप्रदेश में अपने अधिकारों की लड़ाई हमेशा मिलकर लड़ी, जिस पर हमें बड़ा गर्व है। सन् 1982 में मेरठ में दंगे हुए। मैं वहां ड्यूटी पर तैनात रहा, लेकिन मैंने वहां किसी जाट को इन दंगों में सम्मिलित होते हुए नहीं देखा, जबकि वह क्षेत्र जटलैंड कहलाता है। उसके बाद 1986 में मुरादाबाद में धार्मिक दंगे हुए, मैं वहां भी ड्यूटी पर रहा, मुरादाबाद तक भी जाटों की काफी संख्या है, लेकिन कभी कोई जाट इस बेहूदी कार्रवाई में सम्मिलित नहीं हुआ। सन् 1990 में अयोध्या में धर्म के नाम पर बहुत बड़ा ढ़ोंग रचाया गया। वहां भी मैंने देखा कि कोई इक्का-दुक्का ही जाट वहां गया। इसके बाद 6 दिसंबर, 1992 को बावरी मस्जिद को गिराया गया, उसमें भी जाटों का कोई भी रोल नहीं था। यहां मेरे कहने का अर्थ है कि उत्तरप्रदेश के जाटों ने हमेशा समझदारी से व ईमानदारी से काम लिया। लेकिन लगता है कि इन कुछ वर्षों में चौ. अजीत सिंह की जाटों पर पकड़ ढ़ीली पड़ गई और उस प्रकार की नहीं रही, जिस प्रकार कभी चौ. चरणङ्क्षसह और चौ. महेंद्र सिंह टिकैत की थी वर्ना ये कोई भी दंगे का कारण नहीं हो सकता कि किसी बिगडैल लडक़े ने किसी की भी लडक़ी छेड़ दी हो और पूरी जाट कौम चाहे वह हिंदु हो या मुस्लिम, एक दूसरे को मरने-मारने पर तुल जाएं क्योंकि उत्तरप्रदेश के जाटों की समझदारी खत्म नहीं हुई थी। इस घटना ने किसी भी समझदार जाट को झिंझोडक़र रख दिया है क्योंकि इस दंगे में चाहे हिंदू हो या मुसलमान, अधिकतर जानें हमारे ही खून वालों की ही गई हैं। खून तो खून है, चाहे आप माथे पर तिलक लगाएं या फिर दाढ़ी रख लें या सिर पर पगड़ी बांध लें, इससे खून पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि हम सभी जाट एक ही खून से बने हुए हैं। हमारे महापुरुष चौ. छोटूराम और चौ. चरणङ्क्षसह इसी नीति पर चले और उन्होंने कभी भी धर्म के नाम पर राजनीति नहीं की। इसीलिए ये महान पुरुष भी कहलाते हैं, लेकिन लगता है कि हमने उन्हें भुला दिया, इसीलिए हमें यह हादसा झेलना पड़ा।
मुजफ्फरनगर के दंगों के बारे में हम टीवी चैनलों की रिपोर्टों के आधार पर तथा वहां के हिंदू और मुस्लिम धर्म के जाटों से बात करते हैं, तो यह निष्कर्ष साफ तौर पर निकलकर आता है कि ये दंगे राजनेताओं ने अपने वोटों के लिए करवाए। मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि मुस्लिम जाट वोट कहीं मायावती, कांग्रेस या बीजेपी में न चले जाएं, इसीलिए उन्हें आने वाले चुनावों के लिए मुसलमानों की वोटें चिंतित किए हुए हैं। इसी कारण उनकी पार्टी ने जाटों को आग में झोंकने का कार्य करवाया। वहीं दूसरी ओर भाजपा चाहती है कि सभी हिंदू वोट उसे मिलने चाहिएं क्योंकि वह जानती है कि इस देश में 80 प्रतिशत हिंदू वोट हैं। उनके सामने स्पष्ट अनुभव है कि 1990 में वे इसी प्रकार से हिंदू लोगों की भावनाएं भडक़ाकर और बावरी मस्जिद गिराए जाने पर ही सत्ता में आए थे, लेकिन छह साल तक सत्ता में रहने के बावजूद न तो वे मंदिर बनवा पाए, न ही संविधान की 371 धारा समाप्त कर पाए, जिसके नाम पर उन्होंने उस समय चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। इसीलिए उत्तरप्रदेश के दंगे पूर्णतया वोटों के बंटवारे के लिए थे, जिसमें हमारे जाट समाज को बलि का बकरा बनाया गया।
प्यारे जाट भाईयो और बहनो तथा मित्रो, यदि हमने अपनी कौम को आगे बढ़ाना है, तो हमें निश्चित रूप में धर्म निरपेक्ष रहना होगा और चौ. छोटूराम की नीतियों के अनुसार ही हमें चलना होगा। इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। यदि हम लोगों ने किसी भी चुनाव में धर्म के बहकावे में आकर वोट दिए तो हमारी कौम का स्वरूप बिगडऩा निश्चित है क्योंकि हम जाट सभी धर्मों के मानने वाले हैं। इसलिए हमारे लिए धर्म से बड़ी हमारी जाति है और इस जाति की परंपराओं और गौरव को बनाए रखना हमारी प्राथमिक जिम्मेवारी है। यदि हम इसे नहीं निभा पाए तो हमारी आने वाली पीढिय़ां हमें किसी कीमत पर माफ नहीं करेंगी। आओ, सभी मिलकर एक बार मुजफ्फरनगर में हुए हमारे भाईचारे के नुकसान की भरपाई करने के लिए प्रयास करें और सच्चे प्रयास कभी असफल नहीं होते।
आजकल एक प्रचार केवल उत्तरप्रदेश ही नहीं, देश के दूसरे भागों में बड़ी तेजी से फैलाया जा रहा है कि मुस्लिम तो परिवार नियोजन नहीं करते, वे इस देश में केवल अपनी संख्या बढ़ाने का काम करते हैं ताकि वे हिंदुओं से अधिक हो जाएं। ये प्रचार और ये सोच कौन लोग पैदा कर रहे हैं, हमें अच्छी तरह से समझना होगा। मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि जब सन् 1530 में बाबर इस देश में आया तो केवल 25 हजार की सेना लेकर आया था, जिसमें कुछ हिंदू भी थे और उसकी सेना का एक सेनापति रेमीदास नाम का हिंदू भी था और इस देश में उस समय दस करोड़ से अधिक हिंदू थे, फिर ये हिंदू केवल 25 हजार के साथ क्यों नहीं लड़ पाए। इसीलिए मैं कहना चाहता हूं कि हिंदुओं को विशेषकर अपने जाट भाईयों को इस प्रकार की बातों पर विचार नहीं करना है क्योंकि हर मामले में संख्या काम नहीं आती। संख्या से ज्यादा कई बार इच्छाशक्ति प्रबल होती है। इसलिए मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा कि हम जाट पक्के राष्ट्रवादी हैं, इस बात का इतिहास गवाह है। इसीलिए हमें किसी भी कीमत पर धर्म के नाम से नहीं बहकना है और न ही धर्म के नाम से कभी वोट देना है। धर्म एक व्यक्ति का निजी मामला है और एक ही परिवार में पांच सदस्य अलग-अलग देवताओं की पूजा करते हैं, यह उनका अधिकार है। हमें उसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अतिरिक्त एक ही परिवार में अलग-अलग धर्म से जुड़े लोग भी हमारे देश में हैं। ये भी उनका अधिकार है। हमें उस पर टीका टिप्पणी करने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है। इसलिए मेरे जाट भाईयो, बहुत ही सोच-समझकर और विचार और मंथन करके धर्म के मामले में सावधान रहना होगा क्योंकि सामाजिक तौर पर देखा गया है कि लोगों के प्रचार ने हमको न तो पिछड़ा छोड़ा न ही अगाड़ी। किसी भी धर्मग्रंथ में जाटों को क्षत्रिय नहीं कहा गया है, न ही कभी उच्च जाति। सभी जगह शूद्र, मलेच्छ, वर्णशंकर और चांडाल कहा गया है। केवल अंग्रेजों ने हमें एक मार्शल रेस माना है, जो सच्चाई है। लेकिन इसके बावजूद भी हम अपने आप को उच्च जाति का समझते हैं तो यह हमारी भूल है क्योंकि हम केवल पिछड़े हैं, लेकिन कोई शूद्र या उच्च जाति के नहीं।
Courtesy: Hawa Singh Sangwan
Saturday, September 28, 2013
जाटों और अंग्रेजों के आंसु
जब जाटों ने अंग्रेजों का सूर्य उदय होने से रोक दिया एक कहावत है कि ‘अंग्रेजों के राज में उनका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था’ यह सच है कि इनके अधीन जमीन पर हमेशा कहीं ना कहीं दिन रहता था। भारत के इतिहास में अंग्रेजों के विरुद्ध केवल प्लासी की लड़ाई का वर्णन किया जाता है जबकि यह लड़ाई पूरी कभी लड़ी ही नहीं गई, बीच में ही लेन-देन शुरू हो गया था। सन् 1857 के गदर का इतिहास तो पूरा ही मंगल पाण्डे,नाना साहिब, टीपू सुलतान, तात्या टोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई के इर्द-गिर्द घुमाकर छोड़ दिया गया है, लेकिन जब जाटों का नाम आया और उनकी बहादुरी की बात आई तो इन साम्यवादी और ब्राह्मणवादी लेखकों की कलम की स्याही ही सूख गई। इससे पहले सन् 1805 में भरतपुर के महाराजा रणजीतसिंह (पुत्र महाराजा सूरजमल) की चार महीने तक अंग्रेजों के साथ जो लड़ाई चली वह अपने आप में
जाटों की बहादुरी की मिशाल और भारतीयइतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। भारत में अंग्रेजों का भरतपुर के जाट राजा के साथ समानता के आधार पर सन्धि करना एक ऐतिहासिक गौरवशाली दस्तावेज है जिसे 'Permanent Friendship Treaty on Equality Basis' नाम दिया गया। इस प्रकार की सन्धि अंग्रेजों ने भारतवर्ष में
किसी भी राजा से नहीं की। (वास्तव में दूसरों के साथ सन्धि करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी क्योंकि हमारे बहादुर कहे जाने वाले राजाओं ने जाटों को छोड़ अंग्रेजों की बगैर किसी हथियार उठाये गुलामी स्वीकार कर ली थी।) इतिहास गवाह है कि भारत के अन्य किसी भी राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ प्लासी युद्ध व मराठों के संघर्ष को छोड़कर अपनी तलवार म्यान से नहीं निकाली और बहादुरी की डींग हाकनेवालों ने नीची गर्दन करके अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार की। पंजाब में जब तक ‘पंजाबकेसरी’
महाराजा रणजीतसिंह जीवित थे (सन् 1839), अंग्रेजों ने कभी पंजाब की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं की और सन् 1845 में उन्होंने पंजाब में
प्रवेश किया, वह भी लड़ाई लड़कर। अंग्रेज इन लड़ाइयों के अन्त में विजयी रहे लेकिन कुछ हिन्दुओं की महान् गद्दारी की वजह से (आगे पढें)। भरतपुर की लड़ाई पर एक दोहा प्रचलित था -
हुई मसल मशहूर विश्व में, आठ फिरंगी नौ गोरे।
लड़ें किले की दीवारों पर, खड़े जाट के दो छोरे।
इस लड़ाई का विवरण अनेक पुस्तकों में लिखा मिलता है, जैसे कि ‘भारत में अंग्रेजी राज’ ‘जाटों के जोहर’ और ‘भारतवर्ष में अंग्रेजी राज के 200 वर्ष।’ लेकिन विद्वान् सवाराम सरदेसाई की पुस्तक “अजय भरतपुर” प्रमुख है। विद्वान् आचार्य गोपालप्रसाद ने तो यह पूरा इतिहास पद्यरूप में गाया है जिसका प्रारंभ इस प्रकार है-
अड़ कुटिल कुलिस-सा प्रबल प्रखर
अंग्रेजों की छाती में गढ़,
सर-गढ़ से बढ़-चढ़ सुदृढ़, यहअजय भरतपुर
लोहगढ़।
यह दुर्ग भरतपुर अजय खड़ा भारत
माँ का अभिमान लिए, बलिवेदी पर
बलिदान लिए, शूरों की सच्ची शान
लिए ॥
जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों के विरोध में तलवार नहीं उठाई तो जोधपुर के राजकवि बांकीदास से नहीं रहा गया और उन्होंने ऐसे गाया -
पूरा जोधड़, उदैपुर, जैपुर, पहूँ
थारा खूटा परियाणा।
कायरता से गई आवसी नहीं बाकें
आसल किया बखाणा ॥
बजियाँ भलो भरतपुर वालो, गाजै गरज
धरज नभ भौम।
पैलां सिर साहब रो पडि़यो, भड उभै
नह दीन्हीं भौम ॥
अर्थ है कि “है जोधपुर, उदयपुर और जयपुर के मालिको ! तुम्हारा तो वंश ही खत्म हो गया। कायरता से गई भूमि कभी वापिस नहीं आएगी,बांकीदास ने यह सच्चाई
वर्णन की है। भरतपुर वाला जाट तो खूब लड़ा। तोपें गरजीं, जिनकी धूम आकाश और पृथ्वी पर छाई। अंग्रेज का सिर काट डाला, लेकिन खड़े-खड़े अपनी भूमि नहीं दी।”
अंग्रेजों ने स्वयं अपने लेखों में भरतपुर लड़ाई पर जाटों की बहादुरी पर अनेक टिप्पणियाँ लिखीं। जनरल लेक ने वेलेजली (इंग्लैंड) को 7 मार्च 1805 को पत्र लिखा “मैं
चाहता हूँ कि भरतपुर का युद्ध बंद कर दिया जाये, इस युद्ध को मामूली समझने में हमने भारी भूल की है।” इस कारण भरतपुर का लोहगढ़ का किला अजयगढ़
कहलाया। उस समयकहावत चली थी लेडी अंग्रेजन रोवें कलकत्ते में क्योंकि अंग्रेज भरतपुर की लड़ाई में मर रहे थे, लेकिन उनके परिवार राजधानी कलकत्ता में रो रहे थे।
इतिहास गवाह है कि जाटों ने चार महीने तक अंग्रेजों के आंसुओं का पानी कलकत्ता की हुगली नदी के पानी में मिला दिया था। स्वयं राजस्थान इतिहास के
रचयिता कर्नल टाड ने लिखा - अंग्रेज लड़ाई में जाटों को कभी नहीं जीत पाए। इस प्रकार अंग्रेजों का सूर्य जो भारत में बंगाल से उदय हो चुका था भरतपुर, आगरा व मथुरा में उदय होने के लिए चार महीने इंतजार करता रहा, फिर भी इसकी किरणें पंजाब में 41 साल बाद पहुंच पाईं। पाठकों को याद दिला दें कि भारतवर्ष में
केवल जाटों कीदो रियासतों भरतपुर व धौलपुर ने कभी भी अंग्रेजोंको खिराज (टैक्स) नहीं दिया। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि भरतपुर में लौहगढ़ का किला भारत में एकमात्र ऐसा गढ़ है जिसे कभी कोई दूसरा कब्जा नहीं कर पाया। इसलिए इसका नाम अजयगढ़ पड़ा।
"जय भगवान, जाट बलवान"
Virender Saharan
Shaheed E azam Ko Pranam
शहीद - ऐ - आज़म शहीद भगत सिंह को सत सत नमऩ ।
Friday, September 27, 2013
जाट केवल जाट
जाट केवल जाट होते हैं, वो किसी धर्म या पंथ के बंधक नहीं होते। क्योंकि जाट एक "बेबाक सोच" है, एक "आजाद विचार" है, जिसका आधार सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक "न्याय" है।
हम किसी के थोथे विचारों से प्रभावित नहीं होते।
हम किसी के साथ अन्याय नहीं देख सकते।
हम किसी प्रकार की गुलामी नहीं कर सकते।
हम निजीस्वार्थ के लिए अपना विवेक नहीं खो सकते।
हम "जातिवादी" नहीं है, हम शोषक के खिलाफ हैं और शोषित के साथ हैं।
अगर कोई धर्म-पंथ इसको प्रभावित करता है तो उस धर्म-पंथ के लोग जाट नहीं हो सकते।
Vivek Beniwal
Saturday, September 21, 2013
Jat -major antidote
Jat alone can provide an effective remedy to all the problems the nation is facing today.
Jat ractifies and acknowledges the ages old tradition of humanity.
Jat always gives to the society out of selfishness .
Jat is an antidote and perfect remedy for all causes.
Jat ractifies and acknowledges the ages old tradition of humanity.
Jat always gives to the society out of selfishness .
Jat is an antidote and perfect remedy for all causes.
Monday, September 9, 2013
सेना सेवा अनिवार्य हो
सेना सेवा अनिवार्य हो
भारत के हर नागरिक के लिए सेना में पांच साल की सेवा अनिवार्य की जाये! याद रहे देश सर्वोपरि है! सैन्य सेवा से जाति, रंग भेद सब मिट जाएगा ! हमारे में देश के पर्ति देश भावना जागृत होगी ! हमारा दायरा हर क्षेत्र बढेगा !
आप सब की क्या राय है ! कृप्या अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत करें ! आपके विचारों का स्वागत है!
जय हिन्द !
Friday, September 6, 2013
Jat philosophy
Jats have philosophy of love and brotherhood. To help human and in need Jat is ready to help unconditionally (It's JAT's universal Philosophy)embedded in blood of JATS. We are a martial race (Kaum). Jithey Jat Uthey THaath hi THaath.
जाट ने सदा दिया है नि:सवार्थ भाव से ! इसमें कोई शक नहीं भगवान के बाद जाट ही संसार को देता है ! जाट महान है !
जिथे जाट उथे ठाठ ही ठाठ
ना देखे किसी की' बाट
होवे पूरा लाठ
सबसे अनोखा जाट
जाट ने सदा दिया है नि:सवार्थ भाव से ! इसमें कोई शक नहीं भगवान के बाद जाट ही संसार को देता है ! जाट महान है !
जिथे जाट उथे ठाठ ही ठाठ
ना देखे किसी की' बाट
होवे पूरा लाठ
सबसे अनोखा जाट
Thursday, September 5, 2013
तेजाजी का बलिदान
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी,
बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ.
लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ.
तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं
की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का
ह्रदय काँप उठा. वह बोला -
"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर
प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं
तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह
मेरा वरदान है."
तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं
हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा
करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर
गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए.
नागराज ने कहा -
"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम
तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का
काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर
जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा
और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."
नाग
को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और
अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की
रक्षा की।
लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -
"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज
हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार
जनों को आँखों से समझा देना."
तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर
पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह
श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ
सती हो गई.
पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती
है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही
प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी
पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि
को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को
धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही
मेरा अमर आशीष है "
तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल
सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के
किनारे पर बना है.
इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी।
14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai,,,
14 Sept. Teja Dashmi Kharnal Chalo जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के
मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल
माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात - अवतारी
तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को
नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ. लाछां गूजरी को
काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं
वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू
नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा
करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला - "मैं तुम्हारी इमानदारी और
बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ
मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे.
यह मेरा वरदान है." तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह
अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के
लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को
प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. नागराज ने कहा - "तेजा तुम
शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल
के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई
व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा.
किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम
कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है." नाग को उनके
क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत:
तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा
की। लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा - "लीलन तू धन्य
है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए
तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से
समझा देना." तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा
छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों
से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर
बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको
बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई.
लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी
के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद
कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है " तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी
दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी
खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की
तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। 14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh
Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai. Sagley mele mein padharau saa.
JAI VEER TEJAJI
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ.
लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ.
तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला -
"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है."
तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए.
नागराज ने कहा -
"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है."
नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की।
लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -
"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना."
तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई.
पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -
"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है "
तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है.
इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी।
14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,,
Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai,,,
14 Sept. Teja Dashmi Kharnal Chalo जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात - अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ. लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला - "मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है." तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. नागराज ने कहा - "तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है." नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की। लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा - "लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना." तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि - "भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है " तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। 14 September Ko Teja Dashmi Ke Subh Avsar Par Sampuran Bharat Ke Teja ji ke bhakat sadar Aamntrit hai,,,, Jai Veer Teja ji Maharaj Ki Jai. Sagley mele mein padharau saa.
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