Visitor

Friday, February 28, 2014

سکندر





سکندر نے جب پانسہ پلٹتے دیکھا تو اپنے سپاہیوں کے درمیان میں آن کھڑا ہوا اور وہ بھی خود بھی زہنی ٹوٹ پھوٹ کا شکار تھا۔ اور چاہتا تھا کہ لڑائی کسی صورت میں ختم ہو جائے، حتیٰ کہ اس نے فوجیوں کا جنگ روکنے کا حکم جاری کر دیا اور تیز آواز میں چلاتے ہوئے کہا " اے پورس، شہنشائے ہند، سنو مجھے تمہاری بے پناہ قوت اور طاقت کا بخوبی انداز ہو چکا ہے، علاوہ ازیں تمہاری حکمت عملی نے مجھے متاثر کیا ہے، میرا دل شکست خوردہ ہے، مجھے اپنی تھکن کا احساس ہے، معلوم نہیں ہم کہاں آ کر خوار ہو رہے ہیں۔ اب اگرچہ میں خود اپنی زندگی ختم کرنے کی کیفیت سے دوچار ہوں، تاہم میں اپنے سپاہیوں کو اس پر مجبور نہیں کرنا چاہتا، کیونکہ یونانی فوجوں کو ایسے حالات کا شکار کرنے کا ذمہ دار میں خود ہوں اور ایک بادشاہ کیلئے یہ مناسب نہیں کہ وہ وفادار فوج کی جان کی قیمت پر اپنی زندگی بچائے۔ آؤ ہم دونوں فوجوں کو لڑائی بند کرنے کا حکم دے کر خود مقابلہ کر لیں۔
جوزف بن گوریاں کی مطابق: اور جب سکندر کو اپنی فوج کی بے دلی کا علم ہوا تو اس نے شاہ ہند کو ایک پیغام بھیجا جس میں کہا گیا تھا "سنو پورس ہم دونوں کے درمیان لڑائی طول اختیار کر گئی ہے اور ہمارے اکثر سپاہی مایوسی کا شکار ہو چکے ہیں، آ، فوجوں کو پیچھے ہٹا کر اپنی تلوار سے دونوں جنگ کا فیصلہ کر لیں۔
فردوسی کے شاہنامہ میں لکھا ہے کہ جب لڑائی کی شدت انتہائی نکتے پر پہنچ گئی تو سکندر نے پورس کو یوں مخاطب کیا:
اے عظیم انسان
ہم دونوں کی فوجیں لڑائی سے تھک ہار گئی ہیں
جنگلی درندے (ہاتھی) انسانی کھوپڑیاں پیس رہے ہیں
گھوڑوں کے پاؤں سپاہیوں کی ہڈیاں توڑ رہے ہیں
ہم دونوں ہیرو، دلیر اور جوان
دونوں زہین، ہم پلہ اور زبردست
تو پھر سپاہیوں کا قتل عام کیوں
یا
پھر لڑائی کے بعد انکی زخمی زندگی کس کام کی

Thursday, February 27, 2014

jaat

31. कमाने वाले आठ है और
खाने वाले साठ हैँ।
फिर भी हमारे ठाठ हैं। कयो कि हम जाट
है।
~~~~~~~~~~~~~~~
32. बिकने वाले ओर भी हैं,_ जा कर खरीद ले_
"जाट" कीमत से नहीं,_
किस्मत से मिला करते हैं..
~~~~~~~~~~~~~~~
33.
Kon kahta h bekar h JAAT,, Apne aap me SarkaR h JAAT..
Ranbhumi me tej TalwaR h JAAT,,
Or kuch b nhi to Yaro ke Yaar h JAAT..
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
34.
"एकता के झंडे नीचे जिस दिन इकठ्ठे जाट होंगे कोई नहीं रोक सकता हमें दुनिया के सम्राट होंगे"
जय जाट एकता - जाटिज़्म
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
35.
"सीने पर जो जख्म हैं वो फूलों के गुच्छे हैं,
हमें जाट ही रहने दो, हम जाटही अच्छे हैं।" ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
36.
जाट *
....................नाम है उस इनसान का
,जो पकका है अपने ईमान का
,,,, .
दिल से जो दिलदार है
,यारो का जो यार है
,,,,
.
.देश का जो पेट भरता है ,देश के लिए जो ज़ान कुबारन करता है
,
.
.बात मै जिसकी दम है
,बुराइयाँ जिसमे कम है
, .
.अपनी बात ही जिसकी शाऩ है
,यही तो जाट कौम का अभिमान है।
~~~~~~~~~~~~~~
37. "जमीन चली गई होगी पर अभी तजुर्बे
नहीं गए हाथों से. . . तुम हथियार लेकर भी हार जाओगे हम
निहत्थे जाटों से". . .
~~~~~~~~~~~~
38. रहता जहाँ जहाँ जाट, वहां वहां जाट का राज है,
जलती सारी दिनया ह. मसे फिर भी सर पर ताज है..!!
~~~~~~~~~~~~ 39. जो मचछर से डर जाता है,
उसका खून भी लाल होता है।
जो शेर से लड जाता है,
उसका खून भी लाल होता है।।
लेिकन एक अजब खून का जलवा तो गजब ठाट
का होता है!! जो मौत को भी ललकारे वो खून
जाट का होता है !
~~~~~~~~~~~~JAI JAT

साभार :
रोहित नैन

Wednesday, February 26, 2014

jaat

21.
"घर अधूरा खाट बिना.. तराजू अधूरा बाट बिना..
राजा अधूरा ठाठ बिना..
देश अधूरा जाट बिना"
~~~~~~~~~~~~~~
22.
खेत मे "खराटोँ" का और
जिन्दगी मे "जाटो" का -
अलग ही मज्जा है
~~~~~~~~~~~~~~~
23.
जाट की है बात निराली
जाट की है शान
निराली,
निराले हे जाट
दुनिया में,
दुनिया ने ये बात मानी ।
रखते हे मूंछ ताव
देकर,
यारी निभाते जान
देकर,
खौफ खाती है दुनिया हमसे,
क्युकी जीते है शेर
सी दहाड़ लेकर..
~~~~~~~~~~~~~~~~
24.
SaAdhAn TATA ka,,, Juta BATA ka....
.
Aur
.
StylE JAATA ka.,,,...
inka koi Mukabla ni..... ~~~~~~~~~~~~~~~
25.
Jaat mara na janiye jab tak 13vi na hoy.
~~~~~~~~~~~~~~
26.
Sanny Leon Ka Figer .
Aur Jaat Ka Jiger
.
Puri Duniya Mein FamousHai...!!!
~~~~~~~~~~~~~~
27. दोस्तोँ जाट की यारी, और नौकरी सरकारीं,
किस्मत्त आलां ने मीलेँ ।।।।
~~~~~~~~~~~~~~~
28.
जाट मेरा महजब,,,,
जाट मेरा ईमान,,,, जाट मेरा खुदा,,,,
जाट मेरी जान,,,,
जाट ही है मेरी पहचान....!!
~~~~~~~~~~~~~~~
29.
जाट परिभाषा :- 'जा' से जान जिगर का जंगी,
जोश भरे जौहर से जीना|
जंगम जोर जवान जिश्म का,
जाथर जंग मरद का सीना|
जालिम का है जानी दुश्मन,
जाम जहर का बन जाता है| जिगरी की जायज जुबान पर,
जान दाव पर रख जाता है|
'ट' से टले न अटल जवान,
नहीं किसी की टर टर भाये|
कोई टण्टा टसल करे तो,
गर्दन पकड टाँग पर आये| टंच भरी ये टांग अडाये,
टालम टोल न बात की|
झुकता नहीं टूट ही जाये,
परिभाषा ये जाट की|
जय हिन्द
जय जाट ~~~~~~~~~~~~~~~
30.
सवारी बुलेट बरगी कोनी...,
.
यारी 'जाट' बरगी कोनी....!!
~~~~~~~~~~~~~~~


साभार :

रोहित नैन

शेष  आगे। …।

Tuesday, February 25, 2014

jaat

11.
JAAT lagaye waat
~~~~~~~~~~ 12.
dosti kro JAAT se,
aur jiyo zindgi thaat
se.
~~~~~~~~~~
13. JAAT ki yaari aur
sher ki swari
koi bacho ka khel nahi.
~~~~~~~~~~
14.
JAAT ki boli aur banduk ki goli
hamesha powerful
hoti h.
~~~~~~~~~~
15.
JAAT naata karzaa paata
~~~~~~~~~~
16.
JAAT khadi karde sab
ki khaat
~~~~~~~~~~ 17.
JAAT ke do hi thikane
theke or thane
~~~~~~~~~~
18 .
Khagd ki ladai mhe., bhediye ki chaturai mhe...
or "jaat" ki burai mhe..
bich me bolya fayda koni hoya kre..
~~~~~~~~~~~~~~
19.
4 मण के 4 पाये, अर 40 मण की खाट.।।
80 मण का कोठङा,
अर 100 मण का जाट ।।।।
~~~~~~~~~~~~~~~
20.
जैसे शेर के बच्चे को, कोई टोक नहीं सकता।
ऐसे ही बिगङे "जाट" को,
कोई रोक नहीं सकता॥
~~~~~~~~~~~~~~~


साभार :

रोहित नैन

to  be  continued ……

Monday, February 24, 2014

Jaat

1.
JAAT ke thaath
HUKKA aur KHAAT
~~~~~~~~~~
2.
JAAT risky after Wisky
~~~~~~~~~~
3.
J=just
A=as
A=a T=tiger
~~~~~~~~~~
4.
ek JAAT = jaat
do JAAT = moj
teen JAAT=campny char jaat = foj
~~~~~~~~~~
5.
no fear
when JAAT is hear
~~~~~~~~~~ 6.
JAAT
-only born to rule
~~~~~~~~~~
7.
JAAT -feel the power
~~~~~~~~~~
8.
JAAT
-one man army
~~~~~~~~~~ 9.
JAAT BULLET te
BULLET 100 te
~~~~~~~~~~
10.
no if, no but
only JATT
~~~~~~~~~~


साभार:  रोहित नैन

Sunday, February 23, 2014

जाटा का छोरा

लंदन का गोरा, चीन का चीनी, देखा तुर्क पठान।

कश्मीर से केरल तक हाडा, बंगाल से राजस्थान।

इस दुनिया में जिसका अलग ठिठोरा से।

वो जाटा का छोरा से।
मार मडासा ठा जेली जब गाडे खेता में

मिट्टी माथे लगा के सोना काढे रेता में।

दोस्त बने तो जिन्दगी भर ना यारी तोङेगा

दुश्मन बना तो निम्बु की तरह निचोङेगा।

जाट वही जो आवे देश कौम ओर धर्म के काम

राम तले न उतरे से जब गावे राज तमाम।
अपनी बात का पक्का मर्द, जिगर जिसका अलग टोरा से।

वो जाटा का छोरा सै।



साभार :

योगेश साहू

Saturday, February 22, 2014

सरदार अजीतसिंह

१. वो उन बिरले क्रान्तिकारियों में से थे, जिनका नाम ही अंग्रेज सरकार को अन्दर तक हिला देता था।
२. जब वो मात्र 25 वर्ष के थे, उनके लिए लोकमान्य तिलक जैसे व्यक्ति ने कहा था कि वो भारत का राष्ट्रपति बनाने की योग्यता रखते हैं।
३. वो शहीद-ए-आजम भगतसिंह के प्रेरणाश्रोत थे और उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर भगतसिंह क्रान्ति की राह के राही बने।
४. अपने अंतिम समय में भी भगतसिंह उन्हीं के दर्शन चाहते थे या उनके बारे में जानकारी चाहते थे।
५. उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए पूरे 38 वर्ष विदेशों में रहकर अलख जगाई और अपने को तिल तिल कर गला दिया।
६. जब देश से बाहर जाने के पूरे 38 वर्ष बाद वो भारत वापस आये तो उनकी एक झलक पाने के लिए पूरा कराची स्टेशन पर जमा हो गया था पर उनकी अपनी पत्नी को विश्वास नहीं हो पाया कि ये उनके पति ही हैं।
७. 15 अगस्त 1947 को जब स्वतंत्रता की देवी अपनी आँखें खोल रहीं थीं, ये हुतात्मा चहल पहल और जलसों से दूर अपनी आँखें बंद कर रहा था, हमेशा के लिए , इन शब्दों के साथ कि उसका लक्ष्य पूरा हुआ।
कौन थे ये महान हुतात्मा?
ये थे शहीद-ए-आजम भगतसिंह के चाचा, उनके प्रेरणाश्रोत,और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पंजाब के
आरम्भिक विप्लवियों में से एक सरदार अजीत सिंह ,जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने राजनीतिक विद्रोही घोषित कर
दिया था और जिनके जीवन का अधिकांश भाग जेलों में बीता |
पंजाब के जालंधर जिले में एक छोटे से गाँव खटकरकलां में उन फ़तेह सिंह के यहाँ अजीत सिंह का जन्म हुआ था जिन्होंने महाराज रणजीत सिंह के साथ अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और सब कुछ अंग्रेजी सरकार जब्त कर लिए जाने के बाबजूद भी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके| ऐसे परिवार में २३ जनवरी १८८१ को जन्में सरदार अजीत सिंह की पढाई पहले डी.ए.वी. कालेज लाहौर से हुयी और बाद में ला कालेज बरेली से परन्तु बीच में ही क्रान्तिकारी गतिविधियों और समाज सेवा के कार्यों में संलग्न हो जाने के कारण वो कानून की पढाई पूरी नहीं कर सके| वो १८५७ की तर्ज पर एक बड़ी क्रांति का आरम्भ चाहते थे और इस हेतु उन्होंने अथक प्रयास किये पर दुर्भाग्यवश ये सफल नहीं हो सके| तदोपरांत अपने प्रयासों को गति देने हेतु इन्होंने भारतमाता सोसाइटी की स्थापना की जो एक गुप्त संगठन था और जिसका उद्देश्य भारत को पराधीनता की बेड़ियों से किसी भी तरह से मुक्त कराना था| इसी समय पंजाब में ब्रिटिश शासन की गलत नीतियों के कारण किसानों में जबरदस्त असंतोष फैलने लगा और शीघ्र ही सरदार अजीत सिंह इस विद्रोह के सेनानायक बन कर सामने आये| ३ मार्च
१९०७ को उन्होंने सरकार के विरुद्ध एक बहुत बड़ी रैली का आयोजन किया जिसमें एक अखबार के सम्पादक
बांकेदयाल ने पगड़ी सम्हाल जट्टा, पगली सम्हाल नामक गीत प्रस्तुत किया| इस गीत की प्रसिद्धि इतनी फैली कि ये संघर्ष कर रहे किसानों के लिए मंत्र बन गया और सरदार अजीत सिंह का ये आन्दोलन पगड़ी सम्हाल जट्टा आन्दोलन के नाम से जाना जाने लगा| जल्दी ही सारा पंजाब अजीत सिंह के साथ नजर आने लगा और डर कर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें १९०७ में लाला लाजपत राय के साथ बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया, जहाँ से मुक्ति के बाद वो वो इरान चले गए और अपने प्रयासों से इसे ब्रिटिश सत्ता के विरोध में भारतीयों का केंद्र बना दिया पर १९१० में ब्रिटिश शासन के दबाव में इरानी सरकार ने कार्यवाही करते हुए सभी गतिविधियों को बंद करा दिया| अजीत सिंह जी इसके बाद रोम, जेनेवा, पेरिस और रिओ-डि-जेनेरियो गए और भारत को स्वतंत्र करने के प्रयास करते रहे| १९१८ में वो अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को में ग़दर पार्टी के संपर्क में आये और इसके साथ जुड़ कर अहर्निश काम किया| १९३९ में वो यूरोप लौटे और इटली में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मिशन को सफल बनाने में भरसक सहायता की| १९४६ में वो भारत लौटे और देहली में कुछ समय बिताने के बाद डलहौजी में रहने लगे| १५ अगस्त १९४७ को जब सारा भारत आज़ादी की खुशियाँ मना रहा था, आज़ादी की लड़ाई का ये सेनानी इन शब्दों के साथ अपनी आँखें मूँद रहा था कि भगवान तेरा शुक्रिया, मेरा लक्ष्य पूरा हुआ| डलहौजी के नजदीक पंजपुला में बनी उनकी समाधि हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी|
आश्चर्य कि भारतीयों को पीड़ित करने वाले डलहौजी का नाम अब भी एक स्थान के रूप इस देश में अमर है
और अपने को तिल तिल कर गला देने वाले सरदार अजीतसिंह गुमनाम हो गए। जिस देश में सेल्युलर जेल से कोई वास्ता ना होने वाले गाँधी जी के नाम पर वहां पट्टिका लगायी जा सकती है, केदारनाथ जैसे स्थान के
सरोवर का नाम गाँधी सरोवर किया जा सकता है, क्या वहां इस डलहौजी का नाम बदलकर अजीतसिंह नगर
नहीं होना चाहिए था?
इन पंक्तियों के साथ इस हुतात्मा को कोटि कोटि नमन एवं
विनम्र श्रद्धांजलि--
ये क्या समझेंगे कीमत इस आज़ादी की,
इन सबने तो घर पर बैठे आज़ादी पाई है।
कैसे समझाऊँ इन्हें कि तुमने खुद को गला दिया,
तभी अँधेरा मिटा था और नयी रौशनी आई है।
१. वो उन बिरले क्रान्तिकारियों में से थे, जिनका नाम
ही अंग्रेज सरकार को अन्दर तक हिला देता था।
२. जब वो मात्र 25 वर्ष के थे, उनके लिए लोकमान्य तिलक
जैसे व्यक्ति ने कहा था कि वो भारत का राष्ट्रपति बनाने
की योग्यता रखते हैं।
३. वो शहीद-ए-आजम भगतसिंह के प्रेरणाश्रोत थे और
उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर भगतसिंह क्रान्ति की राह के
राही बने।
४. अपने अंतिम समय में भी भगतसिंह उन्हीं के दर्शन चाहते
थे या उनके बारे में जानकारी चाहते थे।
५. उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए पूरे 38 वर्ष विदेशों में
रहकर अलख जगाई और अपने को तिल तिल कर गला दिया।
६. जब देश से बाहर जाने के पूरे 38 वर्ष बाद वो भारत वापस
आये तो उनकी एक झलक पाने के लिए पूरा कराची स्टेशन पर
जमा हो गया था पर उनकी अपनी पत्नी को विश्वास
नहीं हो पाया कि ये उनके पति ही हैं।
७. 15 अगस्त 1947 को जब स्वतंत्रता की देवी अपनी आँखें
खोल रहीं थीं, ये हुतात्मा चहल पहल और जलसों से दूर
अपनी आँखें बंद कर रहा था, हमेशा के लिए , इन शब्दों के
साथ कि उसका लक्ष्य पूरा हुआ।
कौन थे ये महान हुतात्मा?
ये थे शहीद-ए-आजम भगतसिंह के चाचा, उनके
प्रेरणाश्रोत,और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पंजाब के
आरम्भिक विप्लवियों में से एक सरदार अजीत सिंह ,जिन्हें
अंग्रेजी सत्ता ने राजनीतिक विद्रोही घोषित कर
दिया था और जिनके जीवन का अधिकांश भाग जेलों में बीता |
पंजाब के जालंधर जिले में एक छोटे से गाँव खटकरकलां में उन
फ़तेह सिंह के यहाँ अजीत सिंह का जन्म हुआ था जिन्होंने
महाराज रणजीत सिंह के साथ अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए
और सब कुछ अंग्रेजी सरकार जब्त कर लिए जाने के बाबजूद
भी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके| ऐसे परिवार में २३
जनवरी १८८१ को जन्में सरदार अजीत सिंह की पढाई पहले
डी.ए.वी. कालेज लाहौर से हुयी और बाद में ला कालेज
बरेली से परन्तु बीच में ही क्रान्तिकारी गतिविधियों और
समाज सेवा के कार्यों में संलग्न हो जाने के कारण वो कानून
की पढाई पूरी नहीं कर सके| वो १८५७ की तर्ज पर एक
बड़ी क्रांति का आरम्भ चाहते थे और इस हेतु उन्होंने अथक
प्रयास किये पर दुर्भाग्यवश ये सफल नहीं हो सके| तदोपरांत
अपने प्रयासों को गति देने हेतु इन्होंने
भारतमाता सोसाइटी की स्थापना की जो एक गुप्त संगठन
था और जिसका उद्देश्य भारत को पराधीनता की बेड़ियों से
किसी भी तरह से मुक्त कराना था| इसी समय पंजाब में
ब्रिटिश शासन की गलत नीतियों के कारण किसानों में
जबरदस्त असंतोष फैलने लगा और शीघ्र ही सरदार अजीत
सिंह इस विद्रोह के सेनानायक बन कर सामने आये| ३ मार्च
१९०७ को उन्होंने सरकार के विरुद्ध एक बहुत
बड़ी रैली का आयोजन किया जिसमें एक अखबार के सम्पादक
बांकेदयाल ने पगड़ी सम्हाल जट्टा, पगली सम्हाल नामक गीत
प्रस्तुत किया| इस गीत की प्रसिद्धि इतनी फैली कि ये
संघर्ष कर रहे किसानों के लिए मंत्र बन गया और सरदार
अजीत सिंह का ये आन्दोलन पगड़ी सम्हाल जट्टा आन्दोलन
के नाम से जाना जाने लगा| जल्दी ही सारा पंजाब अजीत सिंह
के साथ नजर आने लगा और डर कर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें
१९०७ में लाला लाजपत राय के साथ बर्मा की मांडले जेल
भेज दिया गया, जहाँ से मुक्ति के बाद वो वो इरान चले गए
और अपने प्रयासों से इसे ब्रिटिश सत्ता के विरोध में
भारतीयों का केंद्र बना दिया पर १९१० में ब्रिटिश शासन के
दबाव में इरानी सरकार ने कार्यवाही करते हुए
सभी गतिविधियों को बंद करा दिया| अजीत सिंह जी इसके बाद
रोम, जेनेवा, पेरिस और रिओ-डि-जेनेरियो गए और भारत
को स्वतंत्र करने के प्रयास करते रहे| १९१८ में
वो अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को में ग़दर पार्टी के संपर्क में
आये और इसके साथ जुड़ कर अहर्निश काम किया| १९३९ में
वो यूरोप लौटे और इटली में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के
मिशन को सफल बनाने में भरसक सहायता की| १९४६ में
वो भारत लौटे और देहली में कुछ समय बिताने के बाद
डलहौजी में रहने लगे| १५ अगस्त १९४७ को जब सारा भारत
आज़ादी की खुशियाँ मना रहा था, आज़ादी की लड़ाई का ये
सेनानी इन शब्दों के साथ अपनी आँखें मूँद रहा था कि भगवान
तेरा शुक्रिया, मेरा लक्ष्य पूरा हुआ| डलहौजी के नजदीक
पंजपुला में बनी उनकी समाधि हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी|
आश्चर्य कि भारतीयों को पीड़ित करने वाले
डलहौजी का नाम अब भी एक स्थान के रूप इस देश में अमर है
और अपने को तिल तिल कर गला देने वाले सरदार अजीतसिंह
गुमनाम हो गए। जिस देश में सेल्युलर जेल से कोई
वास्ता ना होने वाले गाँधी जी के नाम पर
वहां पट्टिका लगायी जा सकती है, केदारनाथ जैसे स्थान के
सरोवर का नाम गाँधी सरोवर किया जा सकता है,
क्या वहां इस डलहौजी का नाम बदलकर अजीतसिंह नगर
नहीं होना चाहिए था?
इन पंक्तियों के साथ इस हुतात्मा को कोटि कोटि नमन एवं
विनम्र श्रद्धांजलि--
ये क्या समझेंगे कीमत इस आज़ादी की,
इन सबने तो घर पर बैठे आज़ादी पाई है।
कैसे समझाऊँ इन्हें कि तुमने खुद को गला दिया,
तभी अँधेरा मिटा था और नयी रौशनी आई है। 
    
साभार:महक संधू

Friday, February 21, 2014

खाप क्या नहीं है

चिदंबरम साहब सुनिए गौर से...
खाप क्या नहीं है: खाप आपके दक्षिण में होने
वाली कट्टा पंचायतें नहीं हैं| खाप कोई गली-
मोहल्ले पे इकठ्ठा हुए कुछ
मनचलों या दबंगों का टोला नहीं हैं| खाप कोई
सौ-पचासों का समूह नहीं हैं| बीते सप्ताह कुछ
मीडिया वालों द्वारा एक बंगाल की पंचायत
जो खाप बता के उछाली गई, खाप वो नहीं हैं|
जो हॉनर किल्लिंग करते हैं वो खाप नहीं है|
जो औरत पे अत्याचार को स्वीकृति दे खाप
वो नहीं हैं| जो प्यार के जुर्म में सामूहिक
बलत्कार का आदेश दे वो खाप नहीं|
क्योंकि ना ही तो इनका चरित्र खाप की मूल
विचारधारा और सिद्धांत से मेल खाता और
ना ही इन औरों का इतिहास कहीं खापों के बराबर
खड़ा हो पाता| ये खापलैंड यानी प्राचीन
हरियाणा के यौद्धेयों की खापें हैं, जिनका इतिहास
किसी भी राजे-रजवाड़े से किसी भी स्तर पर
कमतर नहीं; अपितु बहुत से मामलों में तो राजे-
रजवाड़े ही इनके पास भी नहीं ठहरते| और यह
बात मैं कितनी सत्यता और धरातलियता से कह
रहा हूँ, इसका प्रमाण आपके ही अंदाज में
यहाँ पढ़िए:
1. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो इनकी मूल
कार्यप्रणाली से प्रभावित हो 643 ईस्वी में
ही महाराजा हर्षवर्धन इनके सत्ता-विकेंद्री
करण के लोकतान्त्रिक मॉडल को स्वीकृति दे,
इनको राजकीय मान्यता ना देते| आज
इनको राजकीय मान्यता मिले या ना मिले, परन्तु
यह भारतीय
संकृति का कितना बड़ा हिस्सा रही हैं, इस
उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है|
2. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो क्यों मलिक
खाप सर्वखाप का आह्वान कर हिन्दू व् सिख
जनता को कलानौर (रोहतक) रियासत के
नवाबों के कोला पूजन के जुल्मों से
छुटकारा दिलाने हेतु उस रियासत की चूलें
हिलाती और उन आततियों को धूल में मिलाती?
3. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों बागपत से
गर्जना लगा देश-खाप के
दादा चौधरी बाबा शाहमल तोमर 1857 के प्रथम
स्वंत्रता संग्राम में दिल्ली के उत्तरी छोर से
अंग्रेजों की नाक भींचते, और बागपत से ले
दिल्ली तक के यमुना नदी क्षेत्र में रण लड़ते?
और क्यों इन खापों से ही तंग आ इनकी ताकत
को विखंडित करने हेतु अंग्रेजों को प्राचीन
हरियाणा के चार टुकड़े करने पड़ते?
आशा करता हूँ कि आप इतना तो ही होंगे
कि वो चार टुकड़े कौन-कौन से थे?
4. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों 1663 में
हरियाणा के तिलपत में औरंगजेब से वीर गोकुल
जी महाराज सर्वखाप आर्मी ले के भिड़ते, और
क्यों हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु आगरा के
लालकिले पे अपने शरीर की बोटी-बोटी कटवाते?
और भारतीय इतिहास के पहले धर्मरक्षक
कहलाते?
5. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों 1669 में
संधि का बहाना दे औरंगजेब द्वारा बुलाये
इक्कीस खाप योद्धा हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु,
हँसते-हँसते अपने शीश उतरवाते| और इन
इक्कीस यौद्धेयों में सब एक जाति के नहीं थे,
इनमें ग्यारह जाट,
तीन राजपूत,
एक ब्रह्मण,
एक वैश्य,
एक सैनी,
एक त्यागी,
एक गुर्जर,
एक खान (जी हाँ मुसलमान भी थे इनमे),
और एक रोड थे|
क्या देखी है ऐसी अनोखी मिशाल भारतीय
संस्कृति के किसी अन्य अध्याय में? अगर
किसी धर्म तक में भी ऐसी मिशालें
मिलती हों तो, ला देंगे ढून्ढ के?
6. अगर खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो क्यों गोहद
की सर्वखाप किसान क्रांति खड़ी करती?
7. क्यों बालियान खाप के चौधरी बाबा महेंद्र
सिंह टिकैत हिन्दू-मुस्लिमों की एकता से
बनी भारतीय किसान यूनियन खड़ी करते, जिसमें
कि अगर मंच से नारा लगता "अल्लाह-हू-अकबर
" तो जनता नारा लगाती "हर-हर महादेव", मंच
से नारा लगता "हर-हर महादेव"
तो जनता नारा लगाती "अलाह-हू-अकबर"!
दिखाएंगे खापों को छोड़ कौनसी अन्य भारतीय
संस्कृति में यह मिशाल देखने को मिलती है?
8. खापें भारतीय
संस्कृति का हिस्सा नहीं होती तो बाबर
जैसा बादशाह इनके दर पे शीश नवाने नहीं आता|
मुझे नहीं पता आप किसको भारतीय
संस्कृति मानते हैं, लेकिन
क्या आपकी मान्यता वाली संस्कृति में दिखाएंगे
कभी ऐसा कीर्तिमान हुआ
हो कि विदेशी आक्रांता ने जा के जहाँ शीश नवायें
हो?
9. यही खापें अगर भारतीय
संस्कृति का हिस्सा ना होती तो ब्राहम्णों तक
पर जजिया कर लगा देने वाले औरंगजेब के
खिलाफ सर्वप्रथम कौन आवाज उठाता?
इन्हीं खापों ने 1663 में हरियाणा में तिलपत
मचाया था, जो कि अंग्रेज इतिहासकारों नें
भी विश्व की सबसे शौर्यतम व् भयंकर
लड़ाइयों में एक बताई है| इस लड़ाई में सर्वखाप
आर्मी ने औरंगजेब को संधि करने को मजबूर कर
दिया था| जरा पलटिये इतिहास के इन्
पन्नों को तब पता लगेगा आपको कि खापें
कौनसी संस्कृति का हिस्सा हैं|
10. ज़रा उठाइये इतिहास और देखिये कि कैसे
इसी भारतीय संस्कृति के हिस्से सर्वखाप ने
तैमूर लंग और गुलाम-वंश की ईंट-से-ईंट
बजा दी थी|
11. पढ़िए कि कैसे हांसी-हिसार के मैदानों में
यौद्धेय शिरोमणी दादा चौधरी जाटवान जी जाट
महाराज के नेतृत्व में गठवाला खाप की आयोजित
सर्वखाप आर्मी द्वारा कुतुबद्दीन ऐबक के
जुल्मों के विरुद्ध मचाई रणभेरी में क्या संग्राम
छिड़ा था| ऐसा संग्राम जिसपे कि दिल्ली वापिस
जा के कुतुबुद्दीन ऐबक खून के आंसू
रो पछताया था, और फूट पड़ा था कि काश मैंने
खापों के समाज को ना छेड़ा होता| यही वो खाप
संस्कृति थी जिसने उसके मुंह से ऐसे उदगार
निकलवा दिए थे|
12. पूछिए दिल्ली की रजिया सुलतान के अंश से
कि कैसे खापों ने शान बचाई थी उनकी और उनके
राज की उनके विरोधियों से|
13. पढ़िए खिलजी के कुलंच और देखिये जा के
तुंगभद्रा नदी के मुहानों और मचानों पर, वो आज
भी खापों के शौर्यों के किस्से गाते मिल जायेंगे|
14. सिकंदर
लोधी बतायेगा आपको कि क्यों आया था वो सर्वखाप
के मुख्यालय शोहरम पर शीश नवाने, पूछिए
उनकी जीवनी से कि खापें भारतीय
संस्कृति का कितना बड़ा हिस्सा रही हैं!
15. 1857 में बहादुशाह जफ़र ने 1857
की क्रांति की कमांड खापों को सौंपते हुए लिखे
गए ख़त की प्रति भी पढ़ लीजिये पढ़िए और जानिये कि ये खापें
ही थी जो बहादुरशाह को एक मात्र सहारा नजर
आई थी भारतीय संस्कृति की लाज बचाने का|
16. बीसवीं सदी में खापें कैसे भारतीय
संस्कृति का हिस्सा रही यह जानना है तो घूमिये
एक बार खापलैंड की धरती पर| हर दस कोस पर
खड़े विभिन्न विद्यालय, गुरुकुल और शिक्षालय
जो आपको मिलेंगे वो इन्हीं खापों की सोच और
पसीने का नतीजा रहे हैं|
17. अभी हाल ही के वर्षों में देखना है तो जाइये
देखिये हरियाणा में कि कैसे खापें कन्या-भ्रूण
हत्या व् हॉनर किल्लिंग के खिलाफ मुहीम चलाये
हुए हैं? उम्मीद है कि जब बीबीपुर की सर्वखाप ने
कन्या भ्रूण हत्या को अपराध बता, ऐसा कुकर्म
करने वालों के लिए मौत की सजा की मांग
की तो वह खबर आपतक पहुंची होगी;
तो क्या कोई असांस्कृतिक या असामाजिक
सभा ऐसा निर्यण ले सकती है? ये इन्हीं खापों ने
लिया है जो इसी भारत
की संस्कृति का हिस्सा हैं|
उम्मीद करता हूँ कि इसको पढ़ने से दो उद्देश्य
पूरे होंगे! एक आपको खापें क्या रही हैं और
क्या हैं, इसका भान होगा और दूसरा खापों पे
अपनी सोच को ले अपने गलत होने का अहसास
भी यह लेख आपको दिलवा जाए|
अगर ये खापें ना होती तो अभी सितंबर 2013 में
देश पर आये मानवता के संकट से इस देश और
धर्मों को कौन उभारता? आपकी तमाम तरह
की सरकारें तो जनता पर हो रहे जुर्म को एक
तरफ़ा पक्ष ले मूक-बधिर हो देख रही थी| और
अगर ये आगे ना बढ़ते
तो अराजकता फैलनी सुनिश्चित थी| इससे यह
भी साफ़ दीखता है कि आज भी उत्तर भारत
की सभ्यता, संस्कृति व् धर्म को बचाये रखने में
इनका कितना बड़ा स्वरूप है|
और एक विशेष बात, यह तो सिर्फ
इनका इतिहास-वर्त्तमान और महत्वता बताई
है, अगर इनके वंशों के राजे-रजवाड़ों का इतिहास
और सुना दूं तो आप सोचने पे मजबूर हो जाओगे
कि देशभक्ति और इसकी शक्ति-संचय के नाम पे
जिनको आप भारतीय संस्कृति का हिस्सा मानते
हैं, उन्होंने किया ही क्या है?
इसलिए जनाब यह पब्लिक appeasing
की राजनीति करने के चक्कर में इतने भी मत
बहकिये कि देश की संस्कृति पे सवाल खड़े कर
धर्म और सभ्यता को ही संकट में डाल दें|
और आपने एक बात और कही कि मैं वकील के
कपडे पहन कर स्वीमिंग पूल में
नहीं जा सकता और स्वीमिंग पूल के कपडे पहन
कर अदालत नहीं जा सकता?
तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि खेती-
बाड़ी करने वालों की कोई ड्रेस कोड
नहीं होना चाहिए अथवा नहीं होता?
क्या आप जानते हैं कि जीन्स पहन के गेहूं काटने
से पायजामा या धोती बाँध के गेहूं
काटना कितना आसान है? या दक्षिण भारत में
लुंगी बाँध के खेतों में काम करना कितना आसान
है, इतना तो आप जानते ही होंगे?
जो आम जिंदगी में जींस पहनते हैं जरा भेजिए
उनको अबकी बार अप्रैल-मई की गेहूं कटाई के
वक्त मेरे खेतों में, समझ में आ
जायेगी उनको कि खापों के लिए भी ड्रेस कोड
जरूरी क्यों होता है और क्यों यह जींस ठीक
उसी प्रकार उनके कार्यक्षेत्र के अनुरूप नहीं,
जैसे आप उदाहरण दे रहे हैं|
रही बात जब कॉलेज या स्कूल वगैरह में इनके
बच्चे जाते हैं तो लगभग सारे के सारे पेंट-जींस
ही पहन के जाते हैं| और जिसको आप
पाबन्दी कहते हैं वो पाबन्दी नहीं, नसीहत
होती है, ठीक वैसी ही नसीहत
जैसी आपको कोर्ट में जाते वक़्त कोट-पेंट पहन
के जाने की होती है अथवा स्वीमिंग पूल में जाते
वक़त स्वीमिंग सूट की|
लेखक: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 05/02/2014
सम्पादन: NH सलाहकार मंडल

साभार:  मनोज फोगाट जाट भारतीय

Thursday, February 20, 2014

भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध

भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध
ई.पू.
326 हाईडेस्पीज का युद्ध : सिकंदर और पंजाब के राजा पोरस के बीच जिसमे सिकंदर की विजय हुई |
261 कलिंग की लड़ाई : सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था और युद्ध के रक्तपात से विचलित होकर उन्होंने युद्ध न करने की कसम खाई |
ईस्वी
712 – सिंध की लड़ाई में मोहम्मद कासिम ने अरबों की सत्ता स्थापित की |
1191– तराईन का प्रथम युद्ध – मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच हुआ था | चौहान की विजय हुई |
1192 -तराईन का द्वितीय युद्ध – मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच| इसमें मोहम्मद गौरी की विजय हुई |
1194 -चंदावर का युद्ध – इसमें मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया |
1526 -पानीपत का प्रथम युद्ध -मुग़ल शासक बाबर और इब्राहीम लोधी के बीच |
1527 -खानवा का युद्ध – इसमें बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया |
1529-घाघरा का युद्ध -इसमें बाबर ने महमूद लोदी के नेतृत्व में अफगानों को हराया |
1539 – चौसा का युद्ध – इसमें शेरशाह सूरी ने हुमायु को हराया |
1540 – कन्नौज (बिलग्राम का युद्ध) : इसमें फिर से शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया व भारत छोड़ने पर मजबूर किया |
1556 – पानीपत का द्वितीय युद्ध :अकबर और हेमू के बीच |
1565 – तालीकोटा का युद्ध : इस युद्ध से विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया क्यूंकि बीजापुर, बीदर,अहमदनगर व गोलकुंडा की संगठित सेना ने लड़ी थी |
1576 – हल्दी घाटी का युद्ध : अकबर और राणा प्रताप के बीच, इसमें राणा प्रताप की हार हुई |
1757 – प्लासी का युद्ध : अंग्रेजो और सिराजुद्दौला के बीच, जिसमे अंग्रेजो की विजय हुई और भारत में अंग्रेजी शासन की नीव पड़ी |
1760– वांडीवाश का युद्ध : अंग्रेजो और फ्रांसीसियो के बीच, जिसमे फ्रांसीसियो की हार हुई |
1761 -पानीपत का तृतीय युद्ध :अहमदशाह अब्दाली और मराठो के बीच | जिसमे फ्रांसीसियों की हार हुई |
1764 -ब० – कन्नौज (बिलग्राम का युद्ध) : इसमें फिर से शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया व भारत छोड़ने पर मजबूर किया |
1556 – पानीपत का द्वितीय युद्ध :अकबर और हेमू के बीच |
1565 – तालीकोटा का युद्ध : इस युद्ध से विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया क्यूंकि बीजापुर, बीदर,अहमदनगर व गोलकुंडा की संगठित सेना ने लड़ी थी |
1576 – हल्दी घाटी का युद्ध : अकबर और राणा प्रताप के बीच, इसमें राणा प्रताप की हार हुई |
1757 – प्लासी का युद्ध : अंग्रेजो और सिराजुद्दौला के बीच, जिसमे अंग्रेजो की विजय हुई और भारत में अंग्रेजी शासन की नीव पड़ी |
1760– वांडीवाश का युद्ध : अंग्रेजो और फ्रांसीसियो के बीच, जिसमे फ्रांसीसियो की हार हुई |
1761 -पानीपत का तृतीय युद्ध :अहमदशाह अब्दाली और मराठो के बीच | जिसमे फ्रांसीसियों की हार हुई |
1764 -बक्सर का युद्ध : अंग्रेजो और शुजाउद्दौला, मीर कासिम एवं शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच | अंग्रेजो की विजय हुई | अंग्रेजो को भारत वर्ष में सर्वोच्च शक्ति माना जाने लगा |
1767-69 – प्रथम मैसूर युद्ध : हैदर अली और अंग्रेजो के बीच, जिसमे अंग्रेजो की हार हुई |
1780-84 – द्वितीय मैसूर युद्ध : हैदर अली और अंग्रेजो के बीच, जो अनिर्णित छूटा |
1790 – तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध : टीपू सुल्तान और अंग्रेजो के बीच लड़ाई संधि के द्वारा समाप्त हुई |
1799 – चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध : टीपू सुल्तान और अंग्रेजो के बीच , टीपू की हार हुई और मैसूर शक्ति का पतन हुआ |
1849 – चिलियान वाला युद्ध : ईस्ट इंडिया कंपनी और सिखों के बीच हुआ था जिसमे सिखों की हार हुई |
1962– भारत चीन सीमा युद्ध : चीनी सेना द्वारा भारत के सीमा क्षेत्रो पर आक्रमण | कुछ दिन तक युद्ध होने के बाद एकपक्षीय युद्ध विराम की घोषणा | भारत को अपनी सीमा के कुछ हिस्सों को छोड़ना पड़ा |
1965 – भारत पाक युद्ध : भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जिसमे पाकिस्तान की हार हुई | फलस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतन्त्र देश बना |
1999 -कारगिल युद्ध : जम्मू एवं कश्मीर के द्रास और कारगिल क्षेत्रो में पाकिस्तानी घुसपैठियों को लेकर हुए युद्ध में पुनः पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा और भारतीयों को जीत मिली |

साभार :

दिलीप चौधरी

Wednesday, February 19, 2014

सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी : भारतीय इतिहास



1. सिकन्दर कब मकदूनिया का शासक बना?— 336 ई०पू०
2. सिकन्दर के गुरू का क्या नाम था?— अरस्तू
3. सिकन्दर ने भारत पर कब आक्रमण किया था?— 326 ई०पू०
4. सिकन्दर किस रास्ते से भारत आया था?— खैबर दर्रा पार कर
5. तक्षशिला के किस शासक ने सिकन्दर की अधीनता स्वीकार की?— आमिभ
6. सिकन्दर का पहला और सबसे शक्तिशाली प्रतिरोध किस राजा ने किया था?— पोरस ने
7. सिकन्दर ने किस राजा की बहादुरी और साहस से खुश होकर जीती राज्य वापस कर दी?— पोरस की
8. हाइडेस्पीज का युद्ध किनके बीच हुआ था?— सिकन्दर और पुरू के मध्य
9. सिकन्दर की सेना किस नदी के तट पर पहुँचकर आगे बढ़ने से इंकार कर दिया?— व्यास नदी
10. सिकन्दर भारत पर क्यों आक्रमण किया था?— विश्व विजयी बनने हेतु
11. मगध राज्य के उत्थान में कौन-कौन वंशों का योगदान रहा?— वार्हÊथ वंश, हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नंद वंश, मौर्य वंश
12. मगध की राजधानी कहाँ थी और किसने इसका निर्माण करवाया था?— राजगृह, बिमिबसार ने
13. बिमिबसार का राजवैध कौन था?— जीवक
14. बिमिबसार का वध किसने किया था?— पुत्र आजात शत्रु ने
15. बिमिबसार कौन-सा धर्म अपनाया था?— बौद्ध धर्म
16. पितृहन्ता के नाम से इतिहास में कौन कुख्यात हैं?— आजात शत्रु
17. अजातशत्रु किस धर्म को मानता था?— जैन धर्म को
18. उदयन ने किस नगर की स्थापना की और अपनी राजधानी बनायी?— पाटलिपुत्र
19. अंतिम नंद राजा धनानन्द को किसने पराजित किया?— चन्द्रगुप्त मौर्य ने
20. किसकी सहायता से चन्द्रगुप्त ने राजा धनानन्द को हराया था?— विष्णुगुप्त
21. चन्द्रगुप्त के गुरू कौन थें?— चाणक्य या कौटिल्य या विष्णुगुप्त
22. चाणक्य का जन्म कहाँ हुआ था?— तक्षशिला में
23. मैगस्थनीज किसके शासनकाल में भारत आया था?— चन्द्रगुप्त मौर्य के
24. मैगस्थनीज द्वारा भारत के विषय में लिखित पुस्तक का नाम क्या है?— इणिडका
25. चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कहाँ हुई थी?— श्रवणवेलगोला ( कर्नाटक ) में
26. चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी कौन था?— बिन्दुसार ( पुत्र )
27. बिन्दुसार की राजसभा में आने वाला सीरिया का राजदूत कौन था?— डाइमेकस
28. बिन्दुसार के शासन काल में कहाँ विद्रोह हुआ था?— तक्षशिला में
29. बिन्दुसार किस धर्म का अनुयायी था?— ब्रह्मण धर्म का
30. बिन्दुसार की मृत्यु के बाद कौन मगध की गददी पर बैठा था?— अशोक
31. अशोक का राज्याभिषेक कहाँ हुआ था?— पाटलिपुत्र में
32. कौन-सा युद्ध अशोक के जीवन में एक महान परिवर्तन का सूत्रपात करता है?— कलिंग का युद्ध
33. अशोक के अभिलेख किस लिपि में लिखे गये हैं?— खरोष्ठी लिपि एवं ब्रह्मी लिपि
34. कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने किस धर्म को अपनाया था?— बौद्ध धर्म
35. अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अपने पुत्र महेन्द्र, बेटी चारू मित्रा व संघमित्रा को किस देश भेजा था?— श्रीलंका, नेपाल
36. अशोक के बौद्ध गुरू कौन थे?— उपगुप्त
37. अशोक के कहाँ के स्तम्भ पर चार सिंहों का शीर्ष बनाया गया है?— सारनाथ
38. खरोष्ठी कैसे लिखी जाती हैं?— दाई ओर से बाई ओर
39. अशोक के अधिकांश लेख प्रावमत भाषा में क्यों हैं?— अधिकांश लोंगों द्वारा समझने हेतु
40. शुंग वंश काल में किस-किस महाकाव्य की रचना हुई?— रामायण, महाभारत, मनुस्मृति
41. सातवाहन वंश काल सर्वश्रेष्ठ शासक कौन था?— गौतमीपुत्र शातकर्णि
42. सातवाहनों की राजकीय भाषा क्या थी?— प्रावमत
43. शक सम्वत का प्रारम्भ कब किया गया?— 78 ई. को कनिष्क द्वारा
44. कनिष्क का राजवैध कौन था?— चरक
45. कनिष्क के युग में कौन-कौन से कला का विकास हुआ था?— गांधार कला, सारनाथ कला, मथुरा कला, अमरावली कला
46. भगवान बुद्ध की मूर्तियों का सर्वप्रथम निर्माण किस शैली में हुआ?— गान्धार शैली
47. बौद्ध धर्म का ‘विश्व कोष’ किसे कहते हैं?— महाविभाषाशास्त्र को
48. कनिष्क का दरबारी कवि कौन था?— अश्वघोष
49. कनिष्क के शासन काल में कौन-कौन से विद्वान थे?— अश्वघोष, नागार्जुन, वसुमित्र, चरक
50. नागार्जुन को किस नाम से जाना जाता है?— भारत का आइंस्टीन
51. गुप्तकाल को भारतीय इतिहास में किस नाम से जाना जाता है?— स्वर्ण युग
52. गुप्तवंश का प्रथम महान सम्राट कौन था?— चन्द्रगुप्त प्रथम
53. चन्द्रगुप्त प्रथम ने कौन-सी उपाधि धारण की?— महाराजाधिराज
54. भारतीय इतिहास में किसे ‘भारतीय नेपोलियन’ के नाम से जाना जाता है?— समुद्रगुप्त को
55. किस प्राचीन भारतीय शासक को सौ युद्धों का विजेता माना जाता है?— समुद्रगुप्त
56. चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कौन-सी उपाधि धारण की थी?— विक्रमादित्य की
57. चन्द्रगुप्त द्वितीय शासनकाल में कौन-सा चीनी यात्री आया था?— फाह्यान
58. चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में प्रसिद्ध् कवि व नाटककार कौन थे?— कालिदास
59. चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में प्रसिद्ध् चिकित्सक कौन थे?— धन्वन्तरि
60. गुप्तकाल के कौन-से चित्र प्रमुख हैं?— अजंता की गुफाओं के चित्र


साभार :

दिलीप चौधरी

Tuesday, February 18, 2014

Liaquat Ali Khan Jatt





Nawabzada Liaquat Ali Khan often simply referred as Liaquat, was one of the leading Founding Fathers. of modern Pakistan, statesman, lawyer, and political theorist who became and served as the first Prime Minister of Pakistan, in addition, was also the first Defence minister he was the first Finance Minister of India, and minister of Commonwealth and Kashmir Affairs and from 1947 until his assassination in 1951.Born and hail from Karnal, East Punjab, Ali Khan was educated at the Aligarh Muslim University in India, and then the Oxford University in the United Kingdom. Well educated, he was an Islamic democracy political theorist who promoted the parliamentarism in India. After being invited by the Congress Party, he opted for the Muslim League led by influential Mohammad Ali Jinnah who was advocating and determining to eradicate the injustices and ill treatment meted out to the Indian Muslims by the British government.He pushed his role in the independence movements of India and Pakistan, while serving as the first Finance minister in the interim government of British Indian Empire, prior to partition. Ali Khan assisted Jinnah in campaigning for the creation of a separate state for Indian Muslims.Ali Khan's credentials secured him the appointment of Pakistan's first Prime Minister, Ali Khan's foreign policy sided with the United States and the West, though his foreign policy was determined to be a part of the Non-Aligned Movement. Facing internal political unrest, his government survived a coup hatched by the leftists and communists. Nonetheless, his influence grew further after Jinnah's death, and he was responsible for promulgating the Objectives Resolution. In 1951, at a political rally in Rawalpindi, Ali Khan was assassinated by a hired assassin, Sa'ad Babrak.He is Pakistan's longest serving Prime Minister spending 1,524 days in power, a record which has stood for 63 years to the present .


Family background

Liaquat Ali Khan was born into a Punjabi Jat Muslim Nawáb (lit. Noble) Marhal family in Karnal Eastern Punjab of India, on 1 October 1895 His father, Nawab Rustam Ali Khan, possessed the titles of Rukun-al-Daulah, Shamsher Jang and Nawab Bahadur, by the local population and the British Government who had wide respect for his family. The Ali Khan family was one of the few landlords whose property (300 villages in total including the jagir of 60 villages in Karnal) expanded across both eastern Punjab and the United Provinces. The family owned pre-eminence to timely support given by Liaqat's grandfather Nawab Ahmed Ali Khan of Karnal to British army during 1857 rebellion.(source-Lepel Griffin's Punjab Chiefs Volume One).Liaquat Ali Khan's mother, Mahmoodah Begum, arranged for his lessons in the Qur'an and Ahadith at home before his formal schooling started. His family had strong ties with the British Government, and the senior British government officers were usually visited at his big and wide mansion at their time of visit His family had deep respect for the Indian Muslim thinker and philosopher Syed Ahmad Khan, and his father had strong views and desires for young Liaqat Ali Khan to educated in the British educational system; therefore, his family admitted Ali Khan to famous Aligarh Muslim University (AMU) to study law and political science. Ali Khan was sent to Aligarh to attend the AMU where he would obtained degrees in law and political science.
In 1913, Ali Khan attended the Muhammedan Anglo-Oriental College (now Aligarh Muslim University), graduating with a BSc in Political science and LLB in 1918, and married his cousin, Jehangira Begum, also in 1918. After the death of his father in 1919, Ali Khan, with British Government awarding the grants and scholarship, went to England, attending the Oxford University's Exeter College to pursue his higher education. In 1921, Ali Khan was awarded the Master of Law in Law and Justice, by the college faculty who also conferred him with a Bronze Medallion. While a graduate student at Oxford, Ali Khan took active participation in student unions and was an elected Honorary Treasurer of the Majlis Society— a student union founded by Indian Muslim students to promote the Indian students rights at the university.Thereafter, Ali Khan was called to joined the Inner Temple, one of the Inns of Court in London.He was called to the Bar in 1922 by one of his English law professor, and starting his practices in law as an advocate


Courtsey:

Rajesh

Monday, February 17, 2014

جاٹ




جاٹ میں صرف اتفاق کی ضرورت ہے .جب جٹ کے خون میں اپنے خون کے لیا پیار ہو گا ،ہم سب کچھ کر

سکتے ہیں   

Sunday, February 16, 2014

Jats from Afganistan

Jats from Afganistan  part  4




Maharaja Gaj founded the Ghazni city of Afghanistan. Maharaja Gaj was killed in war with Mughals. Maharaja Gaj had sent his son Shalivahan to India before war with Mughals. The present Maharawal of Jaisalmer is descecdant of Maharaja Gaj. Mahraja Jaisalmer later on got converted to Rajput. The Gajrania gotra in jats is after Maharaja Gaj.

According to official gazet of Afghanistan there was Jat population of about 60000 in the year 1857 in Afghanistan. These used to be called Jats of Hind.

Some study about Afghanistan reveals that there are four provinces in Afghanistan in which I found similarity with Jat Gotras. These are: -

Ghazni: - Founded by Jat Maharaja Gaj. Gajrania gotra is found in jats who are descendants of Raja Gaj. (Jat Samaj 3/1998)
Kandahar: - It was founded by Kandahar gotra jats. Raj kumari of Kandahar was married to Maharaja Dhrit Rashtra. (Jat Samaj 3/1998)
Takhar: - Takhar is a gotra in jats in India.
Vardak: - It is similar to Burdak at times pronounced as Bardak.
Places in Afghanistan - Study of places in Afghanistan shows that there are many places in Afghanistan, which are after Jat gotra or names of Jat people. These names have no equivalent Sanskrit or Hindi names. This explains the movement of Jat people from Afghanistan to India. Almas, Bagram, Barazi, Baraz loghan, Barla, Bazar, Chahar, Chahar-borjak, Chahar-burjak, Kasawa, Ladu, Mahalla Sakhii, Mahalla Sakhri, Malla, Mano, Matu, Ma’dudi, Naik, Rohi, Rud, Saran, Sibji, Soran, Tabar, Takhra, Umara, Walian


Courtsey:

Rajesh Muller

Saturday, February 15, 2014

Jats from Afganistan



 Jats from Afganistan    3
In the history of the ruling dynasty of Jaisalmer there is reference to an event in Yudhisthra Samvat 3008, that when their ancestors were driven out of Gazni and were advancing towards India, they had to battle with Tak-is (Takshaks) on the banks of River Indus."

Wardak provinceWardak وردګ (Pashtoپښتو/ wardak vardag vardak, Hindi:
वरडक)) is one of the thirty-four provinces of Afghanistan. It is in the centre of the country. Its capital is Meydan Shahr. It is associated with the history of Burdak Jat clan.

The records of Kushan ruler Havishka have been unearthed at Wardak, to the west of Kabul.[2] Bhim Singh Dahiya has mentioned about an inscription of Wardak near Kabul of the year 51 of Saka era (129 AD), which relates the establishment of the relic of Lord Buddha in a stupa by Vagramarega who is shown as a scion of Kama Gulya. Here it is related with clan name Gulya of the Jats. [3] Wardak is associated with the history of Burdak Jat clan. Jats in
Afghanistan were of followers of Buddhism. About two thousand years back Kushan gotra Jat king Kanishka was ruler of Afghanistan also and his capital was Peshawar or Purushpur. His descendants ruled in Afghanistan till ninth vikram century.




courtsey:


Rajesh Muller


to be continued.........

Friday, February 14, 2014

Jats from Afganistan


Jats from Afganistan   contd 2

Todd, quoting Strabo writes that a large number of people East of Caspian Sea are called Scythians and further East live the Dahiyas the Maha Jati, who used to provide three hundred horsemen and seven hundred foot soldiers in times of need.

Gedown and Niel write that the forefathers, of Laumiri Baluchis were Jats.

According to Todd, in ancient times the boundaries of Jat
kingdom of Sindhu, included parts of Baluchistan, Makran, Balorari and the Salt Ranges.

People of Gill gotra came to known as Gilzai Pathans; Gill Jats at one time ruled the area of
Hindukush Mountains. The last ruler of Ghazni was Subhag Sen. At the time of Alexander's invasion king Chitra Verma ruled Baluchistan,

According to Todd, in 1023, Umer Bin Moosaiw wrested Hirat and Kaikan from the Jats and made 3000 Jat soldiers prisoners. The Tawarikh Tibri by Sulaiman Nadvi also mentions this event. It states that a Jat Commander of Umer Bin Moosa refused to join the attack. But inspite of this, Umer was victorious despite heavy losses.

Sialkot and Quetta of Baluchistan were capitals of Madrak Kings. Makran province of Baluchistan belonged to the Jats. When King Sapur the second of Sasanian dynasty became friendly with Samudra Gupta, Sindhu and Makran provinces were given to the Jats.





Courtsey:


Rajesh Muller


to be continued............

Thursday, February 13, 2014

Jats from Afganistan



Afghanistan

Legend about how Afghan word came into existenceAccording to Niamtulla's Makhzan-i-Afghani and Hamdulla Mustaufi's Tarikh-i-Guzida, in the eighteenth generation from Adam was born Ibrahim one of whose decendants was Talut or Saul. Talut had two sons, one of whom was named Irmia or Jermia. Irmia had a son named Afghan, who is supposed to have given his name to the Afghan people. Qais, a descendant of Afghan, with many of his kins men or Bani Israel settled down in Ghor, joined the Prophert's standard, and was converted to Islam.The Prophet was so pleased with Qais that he gave him the name of Abdur Rashid, called him Malik [king] and Pethan [keel or rudder of a ship] for showing his people the path of Islam. This explains how the Afghan and Pathan came into being and how they all love the title of Malik
Jats in AfghanistanAfghanistan was part of Bharat Varsh during Mahabharata period. The wife of Dhritrashtra, Gandhari, was from this area. Sometimes there were Indian rulers and sometimes there were Iranian rulers in Afghanistan. During Chandra Gupta’s period Saubhagsen was king in Afghanistan. Jat rulers till the invasion by Mughals ruled Kandahar. After the Mughal invasion some Jats moved to India and others were converted to Muslims. Jats from Afghanistan moved to India during the rule of Shalivahan. According to Henry Eliot, author of the book “Distribution of the races of north western provinces of India”, The Jats settled on the banks of Chenab River in Punjab, call there area as Herat because they believe that they had come from Herat of Iran. According to Thakur Deshraj the present Sistan was ruled by Jats and that area was known as Shivistan (place of Shivi gotra Jats). Cunningham states that Jats mixed with Rajputs and Afghans. Later these people were called Bloch.

According to Jat historian Ram Swarup Joon, "Afghanistan was called Upguanstan, Baluchijostan both of that are Sanskrit words. Both these countries were part of India till, as late as the Mogul period. King Seth of the Ardas branch of Yayati dynasty had a son called Arh, whose son Gandhara founded the town of Gandhar, now known as Kandhar. Gandhari, mother of Duryodhana was from this town. Jats have gotras of this dynasty named Gaindhar, Gaindhala and Gaindhu. King Gaj founded Ghazni.

 Courtsey:
Rajesh Muller


To be continued.......

Wednesday, February 12, 2014

जाट को एंटी-ब्राह्मण क्यों बोलते हैं

जाट को एंटी-ब्राह्मण क्यों बोलते हैं:

क्योंकि इसके अंदर जांचने, परखने, आलोचनात्मकता और विश्लेषण करने की निर्भीक क्षमता होती है| आलोचना करने की इसकी क्षमता पे तो कहा भी गया है कि " छिका हुआ जाट राजा के हाथी को भी गधा बता दे|" और, वैसे तो यह बड़ा ही विवादित रहा है कि जाट हिन्दू हैं या वैदिक आर्य (क्योंकि सर छोटूराम जी अपना धर्म 'हिन्दू' नहीं अपितु 'वैदिक आर्य' बताते थे और कहते थे कि हिन्दू 'वैदिक आर्यों' का सबसेट (subset) है क्योंकि हिन्दू बाद में हुए और आर्य अनंत काल से थे| और इसका प्रमाण है भगवद गीता, रामायण और
महाभारत की मूल-प्रतियों में हिन्दू शब्द का कहीं वर्णन ना होना| इसलिए हिन्दू शब्द वैदिक आर्यन काल के बाद सम्भवत: बोद्ध काल की कृति है|) लेकिन फिर भी वर्ण-व्यस्था में इनको क्षत्रिय सुनता आया हूँ| तो जहां इनके समकक्ष अन्य क्षत्रिय जातियां ब्राहम्णों के सुझावों, परामर्शों, निर्देशों, उपदेशों को बिना किसी तर्क-वितर्क और प्रतिरोध के स्वीकार करती आई, वहीँ जाटों ने हर बार अपनी जांचने, परखने और विश्लेषण शक्ति पर परख कर ही अच्छे-बुरे का चयन किया और अंध-भक्ति से हमेशा तटस्थ रहे|
जिस तरह हर जाति-समाज में अच्छे-बुरे दोनों पक्ष होते आये हैं, ऐसे ही जाटों ने जब स्वामी दयानद जी
(जो कि जाति से एक ब्राह्मण थे) का दिया आर्य- समाज सिद्धांत पाखंडो और आडम्बरों से रहित लगा तो सबसे ज्यादा गले लगाया (अगर कोई यह मानता हो कि जाट ब्राह्मिणों से या ब्राह्मण जाटों से घृणा करते हैं इसलिए उनको एंटी-ब्राह्मण कहा जाता है तो वह अपना यह पक्ष दुरुस्त कर ले और देखे कि एक ब्राह्मण के ही दिए आर्य-समाज के सिद्दांत को जाटों ने कैसे सर-धार्य किया|) और हरियाणा (जिसके वास्तविक स्वरूप में आज
का हरियाणा + दिल्ली + पश्चिमी उत्तर प्रदेश + दक्षिणी उत्तराखंड + उत्तरी राजस्थान आते हैं, इसको आप खापलैंड भी बोल सकते हैं) को ऐसी धरती बनाया कि जहां देश के कौने-कौने से साधू-तपस्वी आर्यसमाज की दीक्षा लेने आते रहे (जिनमें ताजा उदाहरण टीम अन्ना में रहे स्वामी अग्निवेश हैं जो मूलत: छतीसगढ़ के हैं लेकिन इन्होनें हरियाणा को अपनी कर्मभूमि बनाया) और जिस-जिस बात में खोट लगा उसका दुर्विरोध किया|
और क्योंकि यह आलोचना से ले विश्लेषण की दुर्लभ क्षमता और फिर इस क्षमता के बल पे सामने वाले
को थोबने की क्षमता ब्राह्मिणों के बाद जाटों के पास थी और जिस तरह विज्ञान के सम-पोल की थ्योरी (Theory of replusion of same poles) कहती है कि समान भाव वाले आवेशित पोल एक-दूसरे को अस्वीकार करते हैं तो ऐसे ही जाटों और ब्राह्मण के साथ हुआ और वो एक दूसरे को मनौवैज्ञानिक क्षमता पर अस्वीकार करते
रहे| जिसका फायदा इन दोनों जातियों में दूरियां बढ़ाने वालों ने उठाया और प्रचार किया जाने लगा कि जाट तो एंटी-ब्राह्मण हैं| जो कि विज्ञान के आधार पर देखो तो सत्य भी है परन्तु तार्किक क्षमता पर सबसे बड़ी समानता है| लेकिन लोग बजाये यह देखने के कि यह प्रचार किस आधार पर है इसमें दूर हटने की हीं भावना ज्यादा ढूँढ़ते हैं| हालंकि स्वस्थ कम्पीटिशन और अस्वीकार्यता तो समाज में अनिवार्य भी है लेकिन वह दुर्भावना में तब तब्दील होनी शुरू हो जाती है जब उसको सिद्ध करने को गलत रास्ते अपनाये जाते हैं| जैसे कि 1931 में लाहौर कोर्ट की एक न्यायप्रति में ब्राह्मिणों द्वारा जाटों को शुद्र करार करवा देना, और यह करार
करवाया गया ब्राह्मिणों में विदयमान स्वामी दयानंद के विरोधियों द्वारा| क्योंकि वो सोचने लगे थे कि जब से स्वामी दयानंद हुए हैं, जाटों ने आर्यसमाज को शिखर पर पहुंचा दिया है| सो इससे वो डर गए कि एक तो जाट पहले से ही उनके आलोचक रहे हैं और ऐसे में अगर इनका असर मर जायेंगे| इसलिए दूसरी जातियों को जाटों और स्वामी दयानंद के प्रभाव से हटाने के लिए और जाटों को आर्यसमाज की राह पर चलने से रोकने हेतु
हतोत्साहित करने के लिए उनको लाहौर कोर्ट से शुद्र ठहरवा दिया| जबकि धरातलीय सच्चाई यह
थी कि एक ब्राह्मण स्वामी दयानंद की प्रसिद्धि दूसरे ब्राह्मण वर्ग को पसंद नहीं आई|ब्राह्मण पूजक, मिझे लग रहा है की तू पैदा भी इन्ही ब्राह्मणों की कृपा से हुआ है, जाट बीज न है तू, ऐंवे ही सिनसिनवार गोत्र का नाम खराब कर रहा है, क्या महाराजा सूरजमल ऐसे ही विचार रखते थे????? की जाट गए भाद में लेकिन ब्राह्मणों पर आंच न आणि चाहिए, मुल्ला कहने से कुछ न होने का, तू सिर्फ यही prove कर रहा है की तू बह्मानो का बीज है nothing else, क्यिंकि जाट तो जाट ही रहेगा, चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लमान हो, सिख हो या इसी हो


साभार :
रजत सिंह जटराणा

Tuesday, February 11, 2014

कौम हित सर्वोपरी

 बदलाओ लाने  वाले ,क्रांति चिंतन वाले व्यक्ति सिर्फ देश हित में कार्य करते हैं।  ऐसे बन्दे किसी  जाति , मज़हब, देश,धर्म के नहीं होते। उन्हें रब, मानवता के उत्थान के लिए धरती पर भेजता  है।  कौम हित  सर्वोपरी।
जो व्यक्ति आत्म सम्मान जानता है वह देश हित के बारे में भी चिंतन करेगा।

Monday, February 10, 2014

निस्वार्थ भाव

अभिनेता आमिर ख़ान का कहना है कि जाट और खाप दोनों ही जंगली एवं असभ्य होते हैं।
मोटी रकम हज़म कर टीवी पर देशभक्ति का ढोंग करने वाले इस पाखंडी को यह ज्ञात होना चाहिए देश में मात्र 3 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली यह स्वाभिमानी कौम न सिर्फ भारतीय फ़ौज कि रीढ़ कि हड्डी है बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की भी। देश में अन्न के भण्डार भरने वाली अकेले इस मेहनती कौम द्वारा समूचे राष्ट्र का 70 फीसदी अनाज उपजाया जाता है। GDP की भाषा समझने वाले इस ज्ञानी को बताएं तो 25 प्रतिशत योगदान सिर्फ इसी कौम का है। इतिहास के पन्ने उठाओगे तो ज्ञान होगा की मुगलों तथा अंग्रेज़ो के शासन का अंत करने में इसी बलिदानी कौम का योगदान अहम था।
इस शख्सियत कि मूर्खता को और सदैव अन्याय के खिलाफ बिगुल बजाने वाली इस कौम के शौर्य को काले अक्षरों में समेटना असम्भव कार्य होगा। इस कौम ने देश बहुत कुछ निस्वार्थ भाव से दिया है। 

Sunday, February 9, 2014

आपसी काट की कमी

अगर हम मे आपसी काट की कमी ना होती तो आज हम ही इस देश के शासक होते और देश का ये हाल भी ना होता, अब हमें आपसी मतभेत भुलाकर संगठित होकर अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष करना होगा, यदि समाज का शीर्ष नेतृत्व हमें एकजुट करने के योग्य नहीं है तो अब हमारी पीढ़ी को ही समाज को संगठित करने का काम करना होगा, हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है|
सम्भ्लो जाटो !अभी भी वक़्त है।



Saturday, February 8, 2014

जाट होना कुछ खास है

"कभी कभी सोचता हूँ , क्या जाट होना एक अलग एहसास है ,
क्या इन रगों में बहता खून कुछ खास है ,
लेता हूँ हथियार हाथो में किसी की जान बचाने को ,
झुक जाता किसी का साचा प्यार पाने को ...
डरता हूँ बस रब से उसका आशीष पाने को ...
मर जाता हूँ अपने देश की आन बचाने को ...
यह देख पता लगा "जाट " होना कुछ खास है,
इसलिए एक जाट के दिल में यह अलग एहसास है,
हाँ जाट होना कुछ खास है , शायद बहुत खास है ..."
 
साभार :
विपिन नरवत

Friday, February 7, 2014

किसान मसीहा नाथूराम जी मिर्धा

8 फरवरी को नागौर मे किसान मसीहा स्व नाथूराम जी मिर्धा की मूर्ति अनावरण है ।  स्थान :पशु मैदान मेला मानासर चौराहा के पास । 
आप सब आमंत्रित हैं।

Self Appraisal

एक बहुत अच्छा मैसेज -

एक छोटा बच्चा एक बड़ी दुकान पर लगे टेलीफोन बूथ पर जाता हैं और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं।
दुकान का मालिक उस लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं -

लड़का - मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे
की साफ़ सफाई का काम देंगी?
औरत - (दूसरी तरफ से) नहीं, मैंने एक दुसरे
लड़के को अपने बगीचे का काम
देखने के लिए रख लिया हैं।
लड़का - मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस
लड़के से आधे वेतन में करने को
तैयार हूँ!
औरत - मगर जो लड़का मेरे बगीचे का
काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह
संतुष्ट हूँ।
लड़का - ( और ज्यादा विनती करते हुए)
मैडम मैं आपके घर की सफाई भी
फ्री में कर दिया करूँगा!!
औरत - माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत
नहीं हैं।
धन्यवाद।
लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया।

दुकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था वह लड़के के पास
आया और बोला- " बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ, मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ"।

लड़का - नहीं सर मुझे जॉब की जरुरत नहीं
हैं आपका धन्यवाद।
दुकानमालिक- (आश्चर्य से) अरे अभी तो तुम
उस लेडी से जॉब के लिए
इतनी विनती कर रहे थे !!
लड़का - नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था, उन्ही के यहाँ पर जॉब करता हूँ।

*"This is called Self Appraisal"

"आप अपना बेहतर दीजिये, फिर देखिये सारी दुनिया आपकी प्रशंसा करेगी..."


साभार :
मुकुल चौधरी

Thursday, February 6, 2014

नशा करना छोड़

जंगल में एक चीता बीड़ी पी रहा था ......
 
 तभी एक चूहा वहां पर आया और बोला भाई, नशा करना छोड़ दो ....
आओ मेरे साथ और देखो जंगल कितना सुन्दर है ........
 
 चीते ने बीड़ी फेंक दी और चूहे के पीछे चल दिया ........
आगे चलकर एक हाथी मिला जो कोकीन ले रहा था ...........
 
 चूहे ने हाथी से कहा भाई, नशा करना बुरी बात है .........
 
 आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि हमारा जंगल कितना सुन्दर है ..........
 
 हाथी भी कोकीन फेंक कर चूहे के पीछे-पीछे चल दिया ........... 
 आगे चले तो देखा एक शेर व्हिस्की का पेग मारने जा रहा है ............
 
चूहे ने शेर को भी ज्ञान दिया। चूहे की बात सुनकर शेर ने पेग रखा ........
 
 फिर उसको चार-पांच चांटे जड़ दिए ............... .
 
 हाथी को गुस्सा आ गया , क्यों मारा उसे ?
 
 शेर ने कहा इस साले ने कल भी भांग पीकर
मुझे 3 घंटे जंगल में घुमाया था . .
 
साभार :
विपिन नरवत

Wednesday, February 5, 2014

विचार








हमें सब कार्य शांत चित एवं धैर्य से करने चाहिए। हर बच्चे  को  अपने इतिहास को संज्ञान में लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए। विचार का मजबूत होना आवश्यक है।


 ऊँची  सोच उँच  विचार
इनसे    बढ़े     सदाचार
असीम उर्ज़ा का हो संचार
मिटा डालो  अत्याचार

होगा   बड़ा   चमत्कार।



अनिकेत 

Tuesday, February 4, 2014

चौधरी छोटू राम









चौधरी छोटू राम  हर मजहब के मसीहा थे। उन जैसी सख्शियत  भारत की आज़ादी के बाद मेरे हिसाब से कोई नहीं हुई। वे अपने आप में एक संस्था थे।

Monday, February 3, 2014

शहीद भगत सिंह






शहीद भगत सिंह का सम्पूर्ण परिवार देश के लिए समर्पित था। जाट कौम और अखंड भारत उन्हें  सत  सत प्रणाम करता है।

Saturday, February 1, 2014

विचारो

हर भारतीए  इसे अवश्य पढ़े। ……


शहीद नत्थुराम गोडसे 19 मई 1910 मैंने गांधी को क्यो मारा 1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो, गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
 2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
 3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
 4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
 5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
 6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
 7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
 8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
 9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
 10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
 11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया
 12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
 13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
 14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
 15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
 16.   22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा- "नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।

 साभार :
डॉ  सोदन सिंह चौधरी