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Friday, January 31, 2014

तेजाजी

तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धौल्या जाट शासकों की वंशावली इस प्रकार है:-
 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार 29 जनवरी, 1074 को धुलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था। उनकी माता का नाम सुगना था। मनसुख रणवा ने उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा है। तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था। उनके नाना सोडा गोत्र के जाट थे ।
तेजाजी के माता-पिता शंकर भगवान के उपासक थे। शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई. कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार माना गया है। तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम रखा गया तेजा। उनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी -
"कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है, तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा."
 

तेजाजी के जन्म के बारे में मत है- जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।

गाँव के मुखिया को ‘हालोतिया’या हळसौतिया करके बुवाई की शुरुआत करनी है। मुखिया मौजूद नहीं है। उनका बड़ा पुत्र भी गाँव में नहीं है। उस काल में परंपरा थी की वर्षात होने पर गण या कबीले के गणपति सर्वप्रथम खेत में हल जोतने की शुरुआत करता था, तत्पश्चात किसान हल जोतते थे। मुखिया की पत्नी अपने छोटे पुत्र को, जिसका नाम तेजा है, खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहती है। तेजा माँ की आज्ञानुसार खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगा है। दिन चढ़ आया है। तेजा को जोरों की भूख लग आई है। उसकी भाभी उसके लिए ‘छाक’ यानी भोजन लेकर आएगी। मगर कब? कितनी देर लगाएगी? सचमुच, भाभी बड़ी देर लगाने के बाद ‘छाक’ लेकर पहुँची है। तेजा का गुस्सा सातवें आसमान पर है। वह भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगा है। तेजाजी ने कहा कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर कैसे लगादी. भाभी भी भाभी है। तेजाजी के गुस्से को झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी सो पलट कर जवाब देती है, एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है. कुछ शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते? तेजा को भाभी की बात तीर- सी लगती है। वह रास पिराणी फैंकते हैं और ससुराल जाने की कसम खाते हैं. वह तत्क्षण अपनी पत्नी पेमल को लिवाने अपनी ससुराल जाने को तैयार होता है। तेजा खेत से सीधे घर आते हैं और माँ से पूछते हैं कि मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई. माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आई और बताती है कि शादी के कुछ ही समय बाद तुम्हारे पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गयी. माँ बताती है कि तेजा तुम्हारा ससुराल गढ़ पनेर में रायमल्जी के घर है और पत्नी का नाम पेमल है. सगाई ताउजी बख्शा राम जी ने पीला- पोतडा़ में ही करदी थी. तेजा ससुराल जाने से पहले विदाई देने के लिये भाभी से पूछते हैं. भाभी कहती है -"देवरजी आप दुश्मनी धरती पर मत जाओ। आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी."तेजाजी ने दूसरे विवाह से इनकार कर दिया। बहिन के ससुराल में तेजाजी भाभी फिर कहती है कि पहली बार ससुराल को आने वाली अपनी दुल्हन पेमल का ‘बधावा’ यानी स्वागत करने वाली अपनी बहन राजल को तो पहले पीहर लेकर आओ। तेजाजी का ब्याह बचपन में ही पुष्कर में पनेर गाँव के मुखिया रायमल की बेटी पेमल के साथ हो चुका था। विवाह के कुछ समय बाद दोनों परिवारों में खून- खराबा हुआ था। तेजाजी को पता ही नहीं था कि बचपन में उनका विवाह हो चुका था। भाभी की तानाकशी से हकीकत सामने आई है। जब तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी के रास्ते में थे, तो एक मीणा सरदार ने उन पर हमला किया। जोरदार लड़ाई हुई। तेजाजी जीत गए। तेजाजी द्वारा गाडा गया भाला जमीन में से कोई नहीं निकाल पाया और सभी दुश्मन भाग गए. तबीजी पहुँचे और अपने बहनोई जोगाजी सियाग के घर का पता पनिहारियों से पूछा। उनके घर पधार कर उनकी अनुमति से राजल को खरनाल ले आए। तेजाजी का पनेर प्रस्थान तेजाजी अपनी माँ से ससुराल पनेर जाने की अनुमति माँगते हैं. माँ को अनहोनी दिखती है और तेजा को ससुराल जाने से मना करती है। भाभी कहती है कि पंडित से मुहूर्त निकलवालो. पंडित तेजा के घर आकर पतड़ा देख कर बताता है कि उसको सफ़ेद देवली दिखाई दे रही है जो सहादत की प्रतीक है. सावन व भादवा माह अशुभ हैं। पंडित ने तेजा को दो माह रुकने की सलाह दी. तेजा ने कहा कि तीज से पहले मुझे पनेर जाना है चाहे धन-दान ब्रह्मण को देना पड़े। वे कहते हैं कि जंगल के शेर को कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं है। तेजा ने जाने का निर्णय लिया और माँ-भाभी से विदाई ली। अगली सुबह वे अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार हुए और अपनी पत्नी पेमल को लिवाने निकल पड़े। जोग-संयोगों के मुताबिक तेजा को लकडियों से भरा गाड़ा मिला, कुंवारी कन्या रोती मिली, छाणा चुगती लुगाई ने छींक मारी, बिलाई रास्ता काट गई, कोचरी दाहिने बोली, मोर कुर्लाने लगे। तेजा अन्धविसवासी नहीं थे। सो चलते रहे, बरसात का मौसम था। कितने ही उफान खाते नदी-नाले पार किये। सांय काल होते-होते वर्षात ने जोर पकडा। रास्ते में बनास नदी उफान पर थी। ज्यों ही उतार हुआ तेजाजी ने लीलण को नदी पार करने को कहा जो तैर कर दूसरे किनारे लग गई। तेजाजी बारह कोस अर्थात ३६ किमी का चक्कर लगा कर अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे। तेजाजी का पनेर आगमन शाम का वक्त था। पनेर गढ़ के दरवाजे बंद हो चुके थे. कुंवर तेजाजी जब पनेर के कांकड़ पहुंचे तो एक सुन्दर सा बाग़ दिखाई दिया. तेजाजी भीगे हुए थे। बाग़ के दरवाजे पर माली से दरवाजा खोलने का निवेदन किया। माली ने कहा बाग़ की चाबी पेमल के पास है, मैं उनकी अनुमति बिना दरवाजा नहीं खोल सकता। कुंवर तेजा ने माली को कुछ रुपये दिए तो झट ताला खोल दिया। रातभर तेजा ने बाग़ में विश्राम किया और लीलन ने बाग़ में घूम-घूम कर पेड़-पौधों को तोड़ डाला. बाग़ के माली ने पेमल को परदेशी के बारे में और घोडी द्वारा किये नुकशान के बारे में बताया। पेमल की भाभी बाग़ में आकर पूछती है कि परदेशी कौन है, कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा। तेजा ने परिचय दिया कि वह खरनाल का जाट है और रायमल जी के घर जाना है। पेमल की भाभी माफ़ी मांगती है और बताती है कि वह उनकी छोटी सालेली है. सालेली (साले की पत्नि) ने पनेर पहुँच कर पेमल को खबर दी। कुंवर तेजाजी पनेर पहुंचे। पनिहारियाँ सुन्दर घोडी पर सुन्दर जवाई को देखकर हर्षित हुई. तेजा ने रायमल्जी का घर पूछा। सूर्यास्त होने वाला था। उनकी सास गाएँ दूह रही थी। तेजाजी का घोड़ा उनको लेकर धड़धड़ाते हुए पिरोल में आ घुसा। सास ने उन्हें पहचाना नहीं। वह अपनी गायों के डर जाने से उन पर इतनी क्रोधित हुई कि सीधा शाप ही दे डाला, ‘जा, तुझे काला साँप खाए!’ तेजाजी उसके शाप से इतने क्षुब्ध हुए कि बिना पेमल को साथ लिए ही लौट पड़े। तेजाजी ने कहा यह नुगरों की धरती है, यहाँ एक पल भी रहना पाप है। तेजाजी का पेमल से मिलन अपने पति को वापस मुड़ते देख पेमल को झटका लगा। पेमल ने पिता और भाइयों से इशारा किया की वे तेजाजी को रोकें। श्वसुर और सेल तेजाजी को रोकते हैं पर वे मानते नहीं हैं। वे घर से बहार निकल आते हैं। पेमल की सहेली थी लाछां गूजरी। उसने पेमल को तेजाजी से मिलवाने का यत्न किया। वह ऊँटनी पर सवार हुई और रास्ते में मीणा सरदारों से लड़ती- जूझती तेजाजी तक जा पहुँची। उन्हें पेमल का सन्देश दिया। अगर उसे छोड़ कर गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी। उसके मां-बाप उसकी शादी किसी और के साथ तय कर चुके हैं। लाछां बताती है, पेमल तो मरने ही वाली थी, वही उसे तेजाजी से मिलाने का वचन दे कर रोक आई है। लाछन के समझाने पर भी तेजा पर कोई असर नहीं हुआ। पेमल अपनी माँ को खरी खोटी सुनाती है। पेमल कलपती हुई आई और लिलन के सामने कड़ी हो गई। पेमल ने कहा - आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकले। मेरे साथ घर वालों ने कैसा वर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ। आज आप चले गए तो मेरा क्या होगा। मुझे भी अपने साथ ले चलो। मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी। पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके। सभी ने पेमल के पति को सराहा। शाम के समय सालों के साथ तेजाजी ने भोजन किया. देर रात तक औरतों ने जंवाई गीत गए। पेमल की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। तेजाजी पेमल से मिले। अत्यन्त रूपवती थी पेमल। दोनों बतरस में डूबे थे कि लाछां की आहट सुनाई दी। लाछां गुजरी की तेजाजी से गुहार लाछां गुजरी ने तेजाजी को बताया कि मीणा चोर उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं…. अब उनके सिवाय उसका कोई मददगार नहीं। लाछां गुजारी ने तेजाजी से कहा कि आप मेरी सहायता कर अपने क्षत्रिय धर्म की रक्षा करो अन्यथा गायों के बछडे भूखे मर जायेंगे। तेजा ने कहा राजा व भौमिया को शिकायत करो। लाछां ने कहा राजा कहीं गया हुआ है और भौमिया से दश्मनी है। तेजाजी ने कहा कि पनेर में एक भी मर्द नहीं है जो लड़ाई के लिए चढाई करे। तुम्हारी गायें मैं लाऊंगा। तेजाजी फिर अपनी लीलण घोड़ी पर सवार हुए। पंचों हथियार साथ लिए. पेमल ने घोडी कि लगाम पकड़ कर कहा कि मैं साथ चलूंगी। लड़ाई में घोडी थम लूंगी। तेजा ने कहा पेमल जिद मत करो। मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ। मैं अकेला ही मीणों को हराकर गायें वापिस ले आऊंगा। तेजाजी के आदेश के सामने पेमल चुप हो गई. पेमल अन्दर ही अन्दर कंप भी रही थी और बद्बदाने लगी - डूंगर पर डांडी नहीं, मेहां अँधेरी रात पग-पग कालो नाग, मति सिधारो नाथ अर्थात पहाडों पर रास्ता नहीं है, वर्षात की अँधेरी रात है और पग- पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति में मत जाओ। तेजाजी धर्म के पक्के थे सो पेमल की बात नहीं मानी और पेमल से विदाई ली. पेमल ने तेजाजी को भाला सौंपा। वर्तमान सुरसुरा नामक स्थान पर उस समय घना जंगल था। वहां पर बालू नाग , जिसे लोक संगीत में बासक नाग बताया गया है, घात लगा कर बैठे थे। रात्रि को जब तेजाजी मीणों से गायें छुड़ाने जा रहे थे कि षड़यंत्र के तहत बालू नाग ने रास्ता रोका। बालू नाग बोला कि आप हमें मार कर ही जा सकते हो। तेजाजी ने विश्वास दिलाया कि मैं धर्म से बंधा हूँ। गायें लाने के पश्चात् वापस आऊंगा। मेरा वचन पूरा नहीं करुँ तो समझना मैंने मेरी माँ का दूध नहीं पिया है। वहां से तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर लीलन पर चढ़ उन्होंने चोरों का पीछा किया। सुरसुरा से १५-१६ किमी दूर मंडावारियों की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए। तेजाजी ने मीणों को ललकारा। तेजाजी ने बाणों से हमला किया। मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया। तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी । लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर लाने के लिए बोला। तेजाजी वापस गए. पहाड़ी में छुपे मीणों पर हमला बोल दिया व बछड़े को ले आये. इस लड़ाई में तेजाजी का शारीर छलनी हो गया। बताते हैं कि लड़ाई में १५० मीणा लोग मारे गए जिनकी देवली मंदावारिया की पहाड़ी में बनी हैं। सबको मार कर तेजाजी विजयी रहे एवं वापस पनेर पधारे। तेजाजी की वचन बद्धता लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ। तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो। बालू नाग का ह्रदय काँप उठा। वह बोला -"मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया। अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है."तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा। बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया। तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए। वे कलयुग के अवतारी बन गए। लोक परम्परा में तेजाजी को काले नाग द्वारा डसना बताया गया है। कहते हैं की लाछां गूजरी जब तेजाजी के पास आयी और गायों को ले जाने का समाचार सुनाया तब रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक काला नाग आग में घिरा नजर आया। उन्होंने नाग को आग से बाहर निकाला। बासग नाग ने उन्हें वरदान की बजाय यह कह कर शाप दिया कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने। बासग नाग ने फटकार कर कहा - मेरा बुढापा बड़ा दुखदाई होता है. मुझे मरने से बचाने पर तुम्हें क्या मिला। तेजाजी ने कहा - मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है। मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया। भलाई का बदला बुराई से क्यों लेना चाहते हो। नागराज लीलन के पैरों से दूर खिसक जाओ वरना कुचले जाओगे। नाग ने प्रायश्चित स्वरूप उन्हें डसने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने नाग को वचन दिया कि लाछां गूजरी की गायें चोरों से छुड़ा कर उसके सुपुर्द करने के बाद नाग के पास लौट आएँगे। तेजाजी ने पाया कि लाछां की गायें ले जाने वाले उसी मीणा सरदार के आदमी थे, जिसे उन्होंने पराजित करके खदेड़ भगाया था। उनसे लड़ते हुए तेजाजी बुरी तरह लहुलूहान हो गए। गायें छुड़ा कर लौटते हुए अपना वचन निभाने वे नाग के सामने प्रस्तुत हो गए। नागराज ने कहा - तेजा नागराज कुंवारी जगह बिना नहीं डसता. तुम्हारे रोम- रोम से खून टपक रहा है. मैं कहाँ डसूं? तेजाजी ने कहा अपने वचन को पूरा करो। मेरे हाथ की हथेली व जीभ कुंवारी हैं, मुझे डसलो। नागराज ने कहा -"तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे। यही मेरा अमर आशीष है."नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की। तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुलाया और कहा,"भाई आसू देवासी ! मुसीबत में काम आने वाला ही घर का होता है, तू मेरा एक काम पूरा करना. मेरी इहलीला समाप्त होने के पश्चात् मेरा रुमाल व एक समाचार रायमल्जी मेहता के घर लेजाना और मेरे सास ससुर को पांवा धोक कहना. पेमल को मेरे प्यार का रुमाल दे देना, सारे गाँव वालों को मेरा राम-राम कहना और जो कुछ यहाँ देख रहे हो पेमल को बतादेना और कहना कि तेजाजी कुछ पल के मेहमान हैं."लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -"लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख- दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना."आसू देवासी सीधे पनेर में रायमल्जी के घर गया और पेमल को कहा -"राम बुरी करी पेमल तुम्हारा सूरज छुप गया. तेजाजी बलिदान को प्राप्त हुए. मैं उनका मेमद मोलिया लेकर आया हूँ."तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -"भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे। यही मेरा अमर आशीष है"लीलन घोड़ी सतीमाता के हवाले अपने मालिक को छोड़ अंतिम दर्शन पाकर सीधी खरनाल की तरफ रवाना हुई।  परबतसर के खारिया तालाब पर कुछ देर रुकी और वहां से खरनाल पहुंची. खरनाल गाँव में खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को अनहोनी की शंका हुई।   लीलन की शक्ल देख पता लग गया की तेजाजी संसार छोड़ चुके हैं. तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी, फिर खड़ी हुई और माता-पिता, भाई-भोजाई से अनुमति लेकर माँ से सत का नारियल लिया और खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता चिन्वाकर भाई की मौत पर सती हो गई. भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा उदहारण है. राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में हैं. तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। तेजाजी की चमत्कारी शक्तियां आज के विज्ञान के इस युग में चमत्कारों की बात करना पिछड़ापन माना जाता है और विज्ञान चमत्कारों को स्वीकार नहीं करता. परन्तु तेजाजी के साथ कुछ चमत्कारों की घटनाएँ जुडी हुई हैं जिन पर नास्तिक व्यक्तियों को भी बरबस विस्वास करना पड़ता है।

राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में तेजाजी के गीत सुरीली आवाज और मस्ती भरे अंदाज में गाये जाते हैं।  जेठ के महीने में वर्षा होने पर किसान तेजाजी का नाम ले खेतों में हल जोतते हैं। बच्चे बूढे सभी लम्बी टेर में तेजा गीत गाते हैं। जन मानस द्वारा गाये इन गीतों के माध्यम से ही जाट संस्कृति और इतिहास जिन्दा रहा।



-बोलिए सत्यवादी झूँझार वीर तेजाजी महाराज की जय हो...


साभार :

मानवेंद्र सिंह तोमर

Thursday, January 9, 2014

अतीत का सँरक्षण करो

दागी लोग जब मूर्खोँ के दिवस मनाते है..
बेजुबाँ बुत शहिदोँ के हमेँ लानत लाते है..
यह देख मन करता है कि कदम रोक लूँ..
आग की भीषण लपट मेँ अपना बदन झोँक लूँ..
फिर आखिर इस जीवन मेँ रखा ही क्या है..
देशभक्तोँ के लिए ना जिये तो फिर जिया क्या है..
शायद थौङे डरपोक से हो गये है..
जूनून ए अरमाँ शायद सो गये है..
घिन्ऩ सी आती है ढोँगी नेताओँ की बातोँ से..
क्युँ नहिँ समझाती इन्हेँ जनता लातोँ से..
खोलो अपनी आँखे जो चुँधिया सी गई है..
सँभालो नब्ज को जो हो मरण सी रही हो..
क्या वोट रुपी फसल का मुल्य कभी वसूलोगे..
या हर बार कि तरह झोँपङियोँ मेँ रो लोगे..
ये नेता अपने रहे ना रहे स्वाभिमान अपना है..
वो पूर्वज भी अपने थे उनका दर्द भी अपना है..
नेता लोग फिताकाटी तक सीमित रहते है..
पर स्मारक बनाना यारोँ हमारे हि जिम्मे है..
अपना अतीत सहेजो उनका सँरक्षण करो..
ना कि उनकी बलिदानी यादोँ का भक्षण करो..
युवाओँ ये दुख केवल मेरा मत समझना तुम..
इस प्रश्न को सदा मस्तिष्क मेँ रखना तुम..
शायद उनके आशीर्वाद हमारे काम आ जाये..
आने वाली नस्लोँ को हमारा इतिहास दिख जाये..
.
इँकलाब जिँदाबाद
.
 
साभार :
बलवीर गिनथाला

Wednesday, January 8, 2014

Pay attention to this



PLEASE READ. WILL NOT HURT TO AND FORWARD.

Kids are putting Drano, tin foil, and a little water in plastic drink bottles
and capping it up - leaving it on lawns, in mail boxes, in gardens, on
driveways etc. just waiting for you to pick it up intending to put it in the
rubbish, but you'll never make it!!!
If the bottle is picked up, and the bottle is shaken even just a little - in
about 30 seconds or less it builds up enough gas which then explodes with
enough force to remove some your extremities. The liquid that comes out is
boiling hot as well.


Don't pick up any plastic bottles that may be lying in your yards or in the
gutter, etc.

Pay attention to this. A plastic bottle with a cap. A little Drano. A little
water. A small piece of foil.
Disturb it by moving it; and BOOM!!

No fingers left and other serious effects to your face, eyes, etc.

Please ensure that everyone that may not have email access are also informed
of this.

Tuesday, January 7, 2014

राष्ट्रप्रेम के नाम पर जवानी

जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं...
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं...
सिंहों को 'म्याऊं' कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है..
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है...
'भय बिन होय न प्रीत गुसांई'- रामायण सिखलाती है...
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है...
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं..
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं...
केवल पाक पर मत थोपो अपने पापों को...
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को...
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है...
कला की नगरी मुंबई लहू में सन जाती है...
देखलो सीने की आग कितनी भङकती है..
राष्ट्रप्रेम के नाम पर जवानी कितनी फङकती है...
"तेजाभक्त" के ये कथन बहरोँ के भाँती एकबार सुनलो..
और फिर से अँधे होकर कायरोँ की सरकार चुन लो..
 
 
साभार :
बलवीर घिंथाला "तेजाभगत "

Monday, January 6, 2014

पूली भी साथै भिजवानी सै के

ठीक कही सै – जाट के आगे भुत भी नाचे सै.. 
एक बारी, एक जाट ने शमशान घाट में हल जोड़ दिया भूत किते बाहर जा रह्या था
भूतनी जाट न डरावन खातर कांव कांव करण लागी. पर जाट ने कोई परवाह कोणी करी... आख़िर भूतनी बोली “तू यो के
करह सै” जाट बोल्या “में उरे बाजरा बोवुंगा” भूतनी बोली “हम कित रहंगे” जाट बोल्या “मनें ठेका नि ले राख्या
भूतनी बोली “तू म्हारे घर का नास मत करै, हाम तेरे घर में 100 मण बाजरा भिजवा दयांगे”.
जाट बोल्या “ठीक सै लेकिन तड़की पूंचना चाहिए नि तो में आके फेर हल जोड़ द्यूंगा”
शाम नै भुत घर आया तो भूतनी बोली आज तो नास होग्या था
। न्यूं न्यूं बणी अर जाट 100 मण बाजरे में मसाए मान्या।
भुत ने भोत गुस्सा आया और बोल्या तने क्यों ओट्टी, मन्ने
इसे जाट भोत देखे सै. मन्ने उसका घर बता में उसने इब
सीधा कर दयुन्गा
अर भुत जाट कै घर चल्या गया। जाट कै घर में एक बिल्ली हील री थी। वा रोज आके दूध पी जाया करदी
जाट नै खिड़की में एक सिकंजा लगा लिया और रस्सी पकड़ के बैठ ग्या अक आज बिल्ली आवेगी और मैं उसने पकडूँगा
भुत नै सोची तू खिड़की मैं बड़के जाट ने डरा दे। वो भीतर नै सीर करके खुर्र-खुर्र करण लाग्या आर जाट नै सोची –
बिल्ली आगी। उसने फट रस्सी खिंची आर भुत की नाड़ सिकंजा मैं फस गी आर वो चिर्र्र – चिर्र्र करण लाग ग्या
जाट बोल्या रै तू कोण सै ?
वो बोल्या मैं भुत सूं।
जाट बोल्या उरै के करे सै ? 
भुत बोल्या “मैं तो न्यू बुझंन आया था एके तू 100 मण बाजरे मैं मान ज्यागा अके पूली भी साथै भिजवानी सै?
 
साभार:
विपिन नरवत

Sunday, January 5, 2014

तेरा फूफा आ रहा तो

एक आदमी ने लिफ्ट मांग ली।
आगे रैड लाइट थी जाट ने बड़ी तेजी से रैड लाइट पर  गाड़ी को निकाल दिया पीछे बैठा आदमी डर गया।
आदमी बोल्या चौधरी साहेब , रैड लाइट थी  यह क्या कर रहे हो ?
जाट:"हम जाट है रैड लाइट पे नहीं रुकते" बातों  बातों में   आगे  फिर रैड लाइट आई फिर से रेड लाइट से निकाल लिया। आदमी और ज्यादा डर गया। आदमी
बोल्या चौधरी साहब  मरवाओगे क्या अब फिर रैड लाइट थी"
जाट:"हम जाट हैं जाट रैड लाइट पे नहीं रुकते"
आगे ग्रीन लाइट आई तो जाट ने जोर का ब्रैक मारा और वही रुक गया। 
 आदमी:बोल्या चौधरी साहब , अब तो चलो ग्रीन लाइट है पीछे पों पों हो रही है। 
जाट बोल्या अब्बे मरवाएगा क्या-
उधर से तेरा फूफा कोई दूसरा जाट आ रहा होगा तो
 
 
साभार :
विपिन नरवत

Saturday, January 4, 2014

वरदान दे

एक बर की है अक एक जाट जंगल में पेड के पिछे बैठ के भगवान शिवजी की तपस्या करण बैठ गया।
एक साल बाद जद शिवजी भगवान प्रकट होये तो जाट दिख्या येः  कोनी।
शिवजी उलटे चले गे।
फेर एक साल बाद आये  अर न्यू ए वापस चले गये।
पांच साल पाच्छे शिवजी फेर आये तो उन्नैं पेड् की ओट में बैठया जाट नै टोह लिया।
शिवजी बोले उठो .. "वत्स । तुम्हारी तपस्या पुरी हुई वर मांगों।
हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न है।" जाट नै छो उठ रहया था बोल्या किमै वरदान भी देगा या सुका ही भाज ज्या गा
शिवजी बोले .. "वर मांगों वत्स ये हमारा तीसरा चक्कर है तुम एक नही तीन वरदान मांगों।""
या सुणते ही जाट की खोपडी घुम गी।
फेर थोडा सोच कै बोल्या ...."मांगण नै तो मै तेरा यो नंदी बलद भी मांग सकु हु पर फेर यो के
धार देगा"

अर हल बाहण खातर मन्नैं टैक्टर ले राख्या सै।
आप तो न्यू करो यो वरदान दे दयो म्हारी  भैस की धार कदै खत्म ना हो।"
शंकर जी बोले .... "तथास्तु "
फेर जाट बोल्या .... दुसरा वर यो दे दे अक दुनिया भर के सैठां की म्हारै तै देख्कै   पिंडी कांपण लाग ज्या।
अर तीसरा वरदान यो दे दे अक गांम की   चौधर खातर जद भी घमासान हो तो सेहरा म्हारै सिर पर आवै और छिताई औरां की हो।।
 
साभार :
 
विपिन नरवत

Friday, January 3, 2014

इँकलाब जिँदाबाद]

एक शाम देश के असली हिरो के नाम:-
"कोई जर्ऱा नहीँ ऐसा कि जिसमेँ रब नहीँ होता...

लङाई वे हि करते है जिन्हेँ कोई मतलब नहीँ होता....

सदायेँ मस्जिदोँ की जा मिली मँदिर के घँटो से....

वतन से बढकर दूनियाँ मेँ कोई मजहब नहीँ होता..."

[इँकलाब जिँदाबाद]
साभार :
बलवीर घिंथाला
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Thursday, January 2, 2014

लठ बजाने में

जाट : मुझे संस्कृत सीखा दो न।

पंडितजी: क्यों जजमान ?

जाट : ये देवताओं की भाषा है, स्वर्ग में काम आएगी न।

पंडितजी: अगर नरक में गया तो??

जाट: लठ  बजाने में तो P.H.D कर राखी  स।




साभार :
हितेश्वर हुड्डा

Wednesday, January 1, 2014

वाह रे मेरे देश के .....

वाह रे मेरे देश के नेताओँ..

बकरी की रस्सी तुम्हेँ याद है..
शहीदोँ के खून से रँगे धागे नहीँ..
चँद बुजदिलोँ को तो प्यार करते हो..
क्या वे क्राँतिकारी अपने सगे नहीँ..

पापीयोँ के बुत चौराहोँ पर खङे कर दिये..
शहिदोँ का जिक्र पन्ऩोँ तक मेँ नहीँ..
झूठे नारे लगाकर दिल ठँडा करलो..
जब मोहब्बत गर्मी सीने तक मेँ नहीँ..

केवल लाठी खाने वाला महान नहिँ होता..
लाठी का जवाब लठ से देना इँसाफ है..
दुश्मनोँ से समझौता समझदारी नही..
सीने मेँ गोली उतारना ही असली फैसला है..

कुछ लोग महात्मा बन गये चरखे चलाकर..
मगर शेर भी शहिदे आजम कहलाते है..
बुजदिल अगर उनके सपने पालते है तो..
हम भी विचार क्राँतिकारी रखते है..

कायरोँ के महल तुम्हेँ स्मारक लगते है..
शहिदोँ के घर आज जर्जर होने को है..
उनके दिवस तुम्हेँ पर्व लगते है..
और अनगिनीत बलीदान मँजर होने को है..

जब तक जियेँगे भगत को दिल मेँ जिलायेँगे..
गाँधिवादि खून हमारी रगोँ मेँ नहीँ..
आरजू ए इँकलाब सदा दिल से लगायेँगे..
ढोँगियोँ को जयकार करे हम उन लोगोँ मेँ नहीँ..
[इँकलाब जिँदाबाद]
लेखक- 
 
बलवीर घिंटाला