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Tuesday, December 31, 2013
Monday, December 30, 2013
देन यह माँ-बाप की
कर्जा बहुत माँ-बाप का,सिर पर चढ़ा मत भूलना !!
मुखड़ा तुम्हारा देखने, पूजे थे बहुत देवी-देवता !
जन्मे तो सब हर्षित हुए,इस बात को मत भूलना !!
थाली बजा खुशियाँ मना, एकत्र
को कर लिया !
घर-घर फिर लड्डू भिजवाये, स्ने
सबह यह मत भूलना !!
बचपन मैं जब रोगी हुआ,कड़वी दवा माँ खिलाती थी ! टोना किया नज़रे उतारी, वह घडी मत भूलना !!
सर्दी की ठंडी रात मैं, बिस्तर सभी गीले किये !
तब साफ़ कर छाती लगाया, यह प्यार मत भूलना !!
गोदी बिठा कर ग्रास अपना, तोड़ कर मुख में दिया !
तू उगल वापिस थूक भरता यह समय मत भूलना !!
अब तो बड़ा हो गया , देन यह माँ-बाप की !! युगों युगों मत भूलना !!!
साभार :
राजबीर सिंह पूनिया
Sunday, December 29, 2013
बख्त के बोल
कुछ काम की बात जो म्हारे दादे -परदादेबता कः गये सै...
जो शरीर नै तंग करै वो खाणा ठीक नही
बेवक्त घरां गैर के जाणा ठीक नही!
ज़ार की यारी, वेश्या का ठिकाणा ठीक नही !
ख़ुशी के टेम पै मातम का गाणा ठीक नही !
बीर नै ज्यादा मुंह के लाणा ठीक नही !
बेटी हो घर की शोभा, घणा घुमाणा ठीक नही !!
पास के धन तै काम चालज्या तै कर्जा ठाना ठीक नही !
भाईचारे तै रहना चाहिए, बेबातगुस्सा ठाना ठीक नही !!
सुसराड में जमाई , बेटी कै बाप और गाम मैं साला ठीक नही !
पछैत मैं बारना,घर बीच मैं नाला ठीकनही!!
ऐश करण नै माल बिराना ठीक नही
अर तिल हो धोले रंग का ,दाल मैं क़ाला ठीक नही !
साभार : सुमित मलिक
Saturday, December 28, 2013
इकाई अगस्त्य होनी चाहिए
इतना सब पढ़ते हैं आप सब. तो ये पढ़िए.. और इसका मूल स्रोत फिर से खोजिये.. शायद अंग्रेजी किताबों में नए पन्ने जोड़ने जरूरी हैं..
महर्षि
अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। ये
वशिष्ठ मुनि (राजा दशरथ के राजकुल गुरु) के बड़े भाई थे। वेदों से लेकर
पुराणों में इनकी महानता की अनेक बार
चर्चा की गई है, इन्होने अगस्त्य संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमे
इन्होँने हर प्रकार का ज्ञान समाहित किया, इन्हें त्रेता युग में भगवान
श्री राम से मिलने का सोभाग्य प्राप्त हुआ उस समय श्री राम वनवास काल में
थे, इसका विस्तृत वर्णन श्री वाल्मीकि कृत रामायण में मिलता है, इनका आश्रम
आज भी महाराष्ट्र के नासिक की एक पहाड़ी पर स्थित है।
राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में पूना से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की।
भारत में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में
दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले। इस
संहिता के पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत के
विभागाध्यक्ष रहे डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल
सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक
श्री पी.पी. होले को वह दिया और उसे जांचने को कहा। श्री अगस्त्य ने
अगस्त्य संहिता में विद्युत उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा :
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
-अगस्त्य संहिता
अर्थात् एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें, उसमें ताम्र पट्टिका
(copper sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु
(wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury) तथा दस्ट लोष्ट (Zinc) डालें,
फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे मित्रावरुणशक्ति (बिजली) का उदय होगा।
अब थोड़ी सी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हुई
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो
शेष सामग्री तो ध्यान में आ गई, परन्तु शिखिग्रीवा समझ में नहीं आया।
संस्कृत कोष में देखने पर ध्यान में आया कि शिखिग्रीवा याने मोर की गर्दन।
अत: वे और उनके मित्र बाग गए तथा वहां के प्रमुख से पूछा, क्या आप बता सकते
हैं, आपके बाग में मोर कब मरेगा, तो उसने नाराज होकर कहा क्यों? तब
उन्होंने कहा, एक प्रयोग के लिए उसकी गर्दन की आवश्यकता है। यह सुनकर उसने
कहा ठीक है। आप एक अर्जी दे जाइये। इसके कुछ दिन बाद एक आयुर्वेदाचार्य से
बात हो रही थी। उनको यह सारा घटनाक्रम सुनाया तो वे हंसने लगे और उन्होंने
कहा, यहां शिखिग्रीवा का अर्थ मोर की गरदन नहीं अपितु उसकी गरदन के रंग
जैसा पदार्थ कॉपरसल्फेट (नीलाथोथा) है। यह जानकारी मिलते ही समस्या हल हो
गई और फिर इस आधार पर एक सेल बनाया और डिजिटल मल्टीमीटर द्वारा उसको नापा।
परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई।
प्रयोग सफल होने की सूचना डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को दी गई। इस सेल का
प्रदर्शन ७ अगस्त, १९९० को स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के चौथे
वार्षिक सर्वसाधारण सभा में अन्य विद्वानों के सामने हुआ।
आगे श्री अगस्त्य जी लिखते है :
अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदल कर
प्राण वायु (Oxygen) तथा उदान वायु (Hydrogen) में परिवर्तित हो जाएगा।
आगे लिखते है:
वायुबन्धकवस्त्रेण
निबद्धो यानमस्तके
उदान : स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्। (अगस्त्य संहिता शिल्प शास्त्र
सार)
उदान वायु (H2) को वायु प्रतिबन्धक वस्त्र (गुब्बारा) में रोका जाए तो यह
विमान विद्या में काम आता है।
राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने
में अपना जीवन लगाया, उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों में पाया
कि विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार पर
उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे गयें है:
(१) तड़ित् - रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।
(२) सौदामिनी - रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।
(३) विद्युत - बादलों के द्वारा उत्पन्न।
(४) शतकुंभी - सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।
(५) हृदनि - हृद या स्टोर की हुई बिजली।
(६) अशनि - चुम्बकीय दण्ड से उत्पन्न।
अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating)
के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना
या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: महर्षि अगस्त्य को कुंभोद्भव
(Battery Bone) कहते हैं।
आगे लिखा है:
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। -शुक्र नीति
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं
स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं
शातकुंभमिति स्मृतम्॥ ५ (अगस्त्य संहिता)
अर्थात् कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के
पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार
(सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है।
स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।
उपरोक्त विधि का वर्णन एक विदेशी लेखक David Hatcher Childress ने अपनी
पुस्तक " Technology of the Gods: The Incredible Sciences of the
Ancients" में भी लिखा है । अब दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे ग्रंथों को
विदेशियों ने हम से भी अधिक पढ़ा है। इसीलिए दौड़ में आगे निकल गये और
सारा श्रेय भी ले गये। और इंडिया के सेकुलर यो यो करते हुए अधपकी इंग्लिश
के साथ अपने आप को मॉर्डन समझ रहे हैँ।
आज हम विभवान्तर की इकाई वोल्ट तथा धारा की एम्पियर लिखते है जो क्रमश:
वैज्ञानिक Alessandro Volta तथा André-Marie Ampère के नाम पर रखी गयी है,
जबकि इकाई अगस्त्य होनी चाहिए थी।
अतुल्य वैदिक भारत साभार : अरुण सिंह रुहेला
लेख : विजय चौकसे जी
Wednesday, December 25, 2013
सरहद की रक्षा तथा शहीद होने वालों में जाट
अभिनेता आमिर ख़ान का कहना है कि जाट और खाप दोनों ही जंगली एवं असभ्य होते हैं। किसी को कोई हक़ नहीं है किसी का उपहास करे और यह कौम सारे विश्व में अपना परचम फहरा रही है।
मोटी रकम हज़म कर टीवी पर देशभक्ति का ढोंग करने वाले इस पाखंडी को यह
ज्ञात होना चाहिए देश में मात्र 3 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली यह
स्वाभिमानी कौम न सिर्फ भारतीय फ़ौज कि रीढ़ की हड्डी है बल्कि भारतीय
अर्थव्यवस्था की भी। देश में अन्न के भण्डार भरने वाली अकेले इस मेहनती कौम
द्वारा समूचे राष्ट्र का 70 फीसदी अनाज उपजाया जाता है। GDP की भाषा समझने
वाले इस ज्ञानी को बताएं तो 25 प्रतिशत योगदान सिर्फ इसी कौम का है।
इतिहास के पन्ने उठाओगे तो ज्ञान होगा की मुगलों तथा अंग्रेज़ो के शासन का
अंत करने में इसी बलिदानी कौम का योगदान अहम था। इस
शख्सियत कि मूर्खता को और सदैव अन्याय के खिलाफ बिगुल बजाने वाली इस कौम
के शौर्य को काले अक्षरों में समेटना असम्भव कार्य होगा।
आज भी सरहद की रक्षा तथा शहीद होने वालों में जाट सबसे ज्यादा हैं।
Monday, December 23, 2013
अभी भी वक़्त है
अगर
हम मे ये कमी ना होती तो आज हम ही इस देश के शासक होते और देश का ये हाल
भी ना होता, अब हमें आपसी मतभेत भुलाकर संगठित होकर अपने अधिकारों को हासिल
करने के लिए संघर्ष करना होगा, यदि समाज का शीर्ष नेतृत्व हमें एकजुट करने
के योग्य नहीं है तो अब हमारी पीढ़ी को ही समाज को संगठित करने का काम करना
होगा, हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है|
अभी भी वक़्त है। संभल जाओ जाटो।
अभी भी वक़्त है। संभल जाओ जाटो।
Sunday, December 22, 2013
वीरों जागो
जो कौम देश के लिए कुर्बानी देती है उसे देश पर राज भी करना चाहिए, कुर्बानी दे हम और राज करे कोई और ये तो हमारे साथ अन्याय है, क्या सदा हमें देशभक्ति और कुर्बानी के बदले अपमान ही मिलता रहेगा, हमने दोनों हाथों से देश की सेवा की और हमारे ही दोनों हाथ खाली रह गए और जिन लोगो और जातियों ने देश के साथ गद्दारी की और लोगो को बेवकूफ बनाया वे ही आज देश पर राज कर रहे है और हम हाथ पर हाथ रखे बठे है| जागो वीरों जागो बहुत सो लिए अब जागने की बारी है|
सोचो जाटो ! चेतो !!
Saturday, December 21, 2013
बडा गाँव पैगांव
रावत पाल का सबसे बडा गाँव पैगांव है यहाँ के कई युवा भरतपुर के सूरजमल राजा कि सेना में भर्ती थे जिनमै दो भाई नानकराम व अतुलराम भी थे। जून 1761में जब सूरजमल कि सेना ने आगरा के किले पर हमला करके अधिकार किया तो रावत भाइयोँ ने बडी वीरता दिखाई...आगरा कि इस लूट में राजा को 50लाख का माल प्राप्त हुआ।
इससे खुश होकर सूरजमल ने नानकराम को वर्तमान आगरा ग्वालियर राजमार्ग पर स्थित सेवला जाट गाँव के पास 800पक्के बीघे(455 करोड)जमीन ईनाम में दी।
और अतुलराम को मलपुरा आगरा के पास भी जमीन दी।
नानकराम ने
सेवला जाट के पास अपने नाम से नैनाना गाँव बसाया तथा अतुलराम ने थाना
मलपुरा आगरा के पास अत्तुल गाँव बसाया जिसे अब अत्तल कहते हैँ।
पैगाँव के अन्य रावत सैनिकोँ ने ईनाम में मिली जागीरोँ पर अपने दो नाम पर गाँव बसाए जैसे- आगरा मैँ रामबाग के पास जलेसर मार्ग पर नांदऊ,आगरा-टूंडला रोड पर कुशलगढ पाँच गाँव,हाथरस जिले कि इंगलास मैँ रामपुर,बिलखौर आठ गाँव,बिजनौर जिले मैँ जटपुर गाँव आदि।
और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मथुरा के छाता गाँव के जाटों ने अंर्गेजों को लूटा और उन्हें बाँध के सारे दिन बैल हकवाए..
Friday, December 20, 2013
दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीते जाटों कि सूची
महरौली से प्रवेश साहिब सिंह ( भाजपा )
रिठाला से कुलवंत राणा ( भाजपा )
नांगलोई जाट से मनोज कुमार शौकीन ( भाजपा )
नरेला से नील दमन खत्री ( भाजपा )
पालम से धर्म देव सोलंकी ( भाजपा )
बिजवासन से सत प्रकाश राणा ( भाजपा )
मुंडका से रामबीर शौकीन ( निर्दलीय )
Thursday, December 19, 2013
जाट विधायक राजस्थान 2013-18
1 डीग -कुम्हेर (कांग्रेस ) महाराजा भरतपुर विश्वेन्द्र सिंह (सिनसिनवार जाट )
2 झालरापाटन(बीजेपी) महारानी धोलपुर वसुंधरा राजे (राणा जाट )
3 नदबई (बीजेपी) राजकुमारी कृष्णेन्द्र कौर (देशवाल कि बहु और सिनसिनवार कि बेटी )
4 कामां (बीजेपी) जगत सिंह (भगोर जाट )
5 सादुलशहर (बीजेपी) गुरजंट सिंह बराड़ (बराड़ जाट सिख )
6 सूरतगढ़ (बीजेपी) राजेंद्र सिंह भादू (भादू जाट )
7 संगरिया (बीजेपी) कृष्ण कड़वा (कड़वा जाट )
8 हनुमानगढ़ (बीजेपी) डॉ रामप्रताप सिंह
9 नोहर (बीजेपी) अभिषेक कुमार (मटोरिया जाट)
10 भादरा(बीजेपी) संजीव कुमार (बेनीवाल जाट )
11 नोखा (कांग्रेस ) रामवेश्वर सिंह (डूडी जाट )
12 तारानगर (बीजेपी) जयनारायण (पूनिया जाट )
13 सूरजगढ़ (बीजेपी) संतोष (अहलावत जाट )
14 झुंझनु (कांग्रेस ) बृजेन्द्र कुमार (ओला जाट )
15 मंडावा (निर्दलीय ) नरेंद्र सिंह (खीचड़ जाट )
16 उदयपुरवाटी (बीजेपी) शुभकरण चौधरी
17 फतेहपुर (निर्दलीय ) नन्दकिशोर (महरिया जाट )
18 लछमनगढ़ (कांग्रेस ) गोविन्द सिंह (डोटासरा जाट )
19 दातारामगढ़ (कांग्रेस ) नारायण सिंह (बुरडक जाट )
20 खंडेला (बीजेपी) बंशीधर (बाजिया जाट )
21 श्रीमाधोपुर (बीजेपी) झाबर सिंह (खर्रा जाट )
22 विराटनगर (बीजेपी) फूलचंद भिंडा (भिण्ड तोमर जाट )
23 आमेर (राजपा ) नवीन कुमार ( पिलानिया जाट )
24 मुण्डावर (बीजेपी) धर्मपाल सिंह (अहलावत जाट )
25 किशनगढ़ (बीजेपी) भागीरथ चौधरी
26 नसीराबाद (बीजेपी) सांवरमल जाट (लाम्बा जाट )
27 खीवसर (निर्दलीय ) हनुमान (बेनीवाल जाट )
28 डेगाना (बीजेपी) अजय सिंह (किलक जाट )
29 मकराना (बीजेपी) श्रीराम (भीचर जाट )
30 नावां (बीजेपी) विजय सिंह चौधरी
31 ओसियां (बीजेपी) भैरूराम चौधरी (सियोल जाट )
32 बायतू (बीजेपी) कैलाश चौधरी
33 सहाडा (बीजेपी) बालूराम जाट
34 लूणी (बीजेपी ) जोगाराम
35 पंचपदरा (बीजेपी ) अमराराम चौधरी
36 भीनमाल (बीजेपी ) पूराराम चौधरी
Wednesday, December 18, 2013
अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम
आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :
1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनियामें इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों मेंअँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां कीभाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषाकी लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।
2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।
3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है। हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों मेंहर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Techकी जरूरत नहीं होती है।
उदाहरण: न्यूटन कक्षा9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि केपास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया। जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है। * जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। * दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मारखाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गालीहमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं। ॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेज ी की गुलामी छोड़ो॥ — जय सनातन आर्याव्रत जय माँ भारती हिन्दी, हिन्दु, हिन्दुस्तान वैदो की और लोटो*** अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम *** आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई : 1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनियामें इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों मेंअँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां कीभाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषाकी लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है। 2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सबUNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Zका ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली। 3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है। हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों मेंहर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Techकी जरूरत नहीं होती है।
उदाहरण: न्यूटन कक्षा9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया। जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है। जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मारखाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गालीहमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं। ॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो॥
जय सनातन आर्याव्रत जय माँ भारती हिन्दी, हिन्दु, हिन्दुस्तान वैदो की और लोटो ।
साभार :
विशाल भारद्वाज
1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनियामें इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों मेंअँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां कीभाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषाकी लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।
2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।
3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है। हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों मेंहर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Techकी जरूरत नहीं होती है।
उदाहरण: न्यूटन कक्षा9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि केपास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया। जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है। * जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। * दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मारखाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गालीहमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं। ॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेज ी की गुलामी छोड़ो॥ — जय सनातन आर्याव्रत जय माँ भारती हिन्दी, हिन्दु, हिन्दुस्तान वैदो की और लोटो*** अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम *** आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई : 1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनियामें इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों मेंअँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां कीभाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषाकी लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है। 2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सबUNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Zका ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली। 3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है। हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों मेंहर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Techकी जरूरत नहीं होती है।
उदाहरण: न्यूटन कक्षा9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया। जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है। जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मारखाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गालीहमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं। ॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो॥
जय सनातन आर्याव्रत जय माँ भारती हिन्दी, हिन्दु, हिन्दुस्तान वैदो की और लोटो ।
साभार :
विशाल भारद्वाज
Tuesday, December 17, 2013
Do not Pump Full Tank of Petrol
READ THE REASONS -- DO NOT DONATE FUEL
Recently I came across a very useful tip. I was surprised to know it but had a doubt so I talked to one of the pump technicians and he too accepted it as a fact. I think apart from providing space for the gas generated inside the petrol tank this is yet another reason why we shouldn't fill the tank to the brim. Many of us are not aware that the petrol kiosk pump has a return pipe-line (in Pink). When the petrol tank (in the car) reaches full level, there is a mechanism to trigger off the pump latch and at the same time a return-valve is opened (at the top of the pump station) to allow excess petrol to flow back into the pump. But the return petrol has already pass through the meter, meaning you are donating the petrol back to the Oil Dealer.
Also only fill up your car or truck in the early morning when the ground temperature is still cold. Remember that all service stations have their storage tanks buried below ground. The colder the ground the more dense the petrol, when it gets warmer petrol expands, so buying in the afternoon or in the evening....your liter is not exactly a liter. In the petroleum business, the specific gravity and the temperature of the petrol, diesel and jet fuel, ethanol and other petroleum products plays an important role.
A 1-degree rise in temperature is a big deal for this business. But the service stations do not have temperature compensation at the pumps.
When you're filling up do not squeeze the trigger of the nozzle to a fast mode If you look you will see that the trigger has three (3) stages: low, middle, and high. You should be pumping on low mode, thereby minimizing the vapours that are created while you are pumping. All hoses at the pump have a vapour return. If you are pumping on the fast rate, some of the liquid that goes to your tank becomes vapour. Those vapours are being sucked up and back into the underground storage tank so you're getting less worth for your money.
One of the most important tips is to fill up when your Petrol tank is HALF FULL. The reason for this is the more Petrol you have in your tank the less air occupying its empty space. petrol evaporates faster than you can imagine. petrol storage tanks have an internal floating roof. This roof serves as zero clearance between the Petrol and the atmosphere, so it minimizes the evaporation. Unlike service stations, here where I work, every truck that we load is temperature compensated so that every litre is actually the exact amount.
Another reminder, if there is a petrol truck pumping into the storage tanks when you stop to buy Petrol, DO NOT fill up; most likely the petrol is being stirred up as the Petrol is being delivered, and you might pick up some of the dirt that normally settles on the bottom.
To have an impact, we need to reach literally millions of Petrol buyers. It's really simple to do.
I'm sending this note to about thirty people. If each of you send it to at least ten more (30 x 10 = 300)...and those 300 send it to at least ten more (300 x 10 = 3,000) and so on, by the time the message reaches the sixth generation of people, we will have reached over Three MILLION consumers !!!!!!! If those three million get excited and pass this on to ten friends each, then 30 million people will have been contacted!
If It goes one level further, you guessed it..... THREE HUNDRED MILLION PEOPLE!!!
Sunday, December 15, 2013
भाइयो देखो ध्यान से जर्जर मकान कुछ कह रहा है
भाइयो देखो ध्यान से,ये जर्जर हुआ मकान हमें कुछ कह रहा है, हमने क्या कुर्बानियां दी और हमें क्या मिला, देखो एक और संधु गोत्री जाट भगत सिंह ने अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिये, अपने व्यक्तिगत जीवन को भी राष्ट्र की खातिर पनपने नहीं दिया,विवाह भी नहीं किया, अपना सब कुछ देश की खातिर दाव पर लगा दिया,उसकी देशभक्ति के बदले सरकार ने उसे लुटेरा करार दिया और उसे गुमनामी मे धकेलने की कोशिश की और ऐसा उसके साथ इसलिए हुआ क्योंकि वह उस जाट जाति मे पैदा हुआ था जिसमे वीरता तो है पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति का अभाव है....... वही दुसरी और ये आलीशान कोठी उस पंडित नेहरु की है जिसका सारा जीवन ऐयाशियों मे बिता और जिसने देशभक्ति को मजाक बना कर रख दिया,भोग-विलास मे ही सारा जीवन बिता दिया, इसने जातिय वर्चस्व को बढ़ावा दिया, ऐसे आदमी को सरकार व उसका समाज हर साल व समय समय पर याद करते है, इसके नाम को जिन्दा रखा गया है क्योंकि वो जिस कौम से है उसमे वीरता और देशभक्ति जैसे गुण हो या ना हो, वो राजनीतिक और सामाजिक रूप से जाग्रत और क्रियाशील है|
मेरे भाइयो,आपकी चेतना और जाग्रति से ही आपके समाज को उसका अधिकार मिल सकता है इसलिए खुद भी जागो और ओरो को भी जगाओ|
साभार : संदीप ठाकरान
Saturday, December 14, 2013
बुरा लगे चाहे गाँधी को
जर्जर ईटोँ से तुम कब तक, भला रोक सकोगे
आंधी को,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गांधी को !!
क्यूं इतिहास छिपा रखा है, बोलो सन् सत्तावन
का,
गांधी का फोटो छापा क्यूं नोटो पर मरणासन्न
का!!
रस्सी तुमने ढूँढ निकाली बकरी वाली गाँधी की,,
भगत की रस्सी कब ढूँढोगे, जिसपर
उसको फाँसी दी!!
गाँधी-नेहरू के जन्म-मरण पर तुम छुट्टी दे देते हो,
भगत-चन्द्र की बात करूँ तो क्यूँ चुप्पी ले लेते हो!!
अंधे सत्ता के रखवाले पीतल कर देंगे चाँदी को,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गाँधी को!!
जिसमें सुभाष लिखा महान, बोलो वो पन्ने
कहाँ गये,
जो पत्र लिखे थे "नाथू" ने, उनको बोलो क्यूँ
दबा गये!!
क्यूँ इतिहास पढ़ाया हमको, कायर, मुगल ,
लुटेरोँ का,
और अब तुम ही मिटा रहे हो, सच भारत के
वीरोँ का!!
वीर शिवाजी की गाथाएँ, रखती याद
जवानी थी,
अब किसको है याद कहो पन्ना की,
झाँसी रानी की!!
अंग्रेजोँ के तलवे चाटे, आज वो सोना लूट रहे,
सच्ची बातोँ पर तुम बोलो, क्यूँ अपनी छाती कूट
रहे!!
तुम सब दोनों गालोँ पर ही थप्पड़ खाने के
आदी हो,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गाँधी को!!
साभार :
पवन सहरावत
आंधी को,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गांधी को !!
क्यूं इतिहास छिपा रखा है, बोलो सन् सत्तावन
का,
गांधी का फोटो छापा क्यूं नोटो पर मरणासन्न
का!!
रस्सी तुमने ढूँढ निकाली बकरी वाली गाँधी की,,
भगत की रस्सी कब ढूँढोगे, जिसपर
उसको फाँसी दी!!
गाँधी-नेहरू के जन्म-मरण पर तुम छुट्टी दे देते हो,
भगत-चन्द्र की बात करूँ तो क्यूँ चुप्पी ले लेते हो!!
अंधे सत्ता के रखवाले पीतल कर देंगे चाँदी को,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गाँधी को!!
जिसमें सुभाष लिखा महान, बोलो वो पन्ने
कहाँ गये,
जो पत्र लिखे थे "नाथू" ने, उनको बोलो क्यूँ
दबा गये!!
क्यूँ इतिहास पढ़ाया हमको, कायर, मुगल ,
लुटेरोँ का,
और अब तुम ही मिटा रहे हो, सच भारत के
वीरोँ का!!
वीर शिवाजी की गाथाएँ, रखती याद
जवानी थी,
अब किसको है याद कहो पन्ना की,
झाँसी रानी की!!
अंग्रेजोँ के तलवे चाटे, आज वो सोना लूट रहे,
सच्ची बातोँ पर तुम बोलो, क्यूँ अपनी छाती कूट
रहे!!
तुम सब दोनों गालोँ पर ही थप्पड़ खाने के
आदी हो,
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे
गाँधी को!!
साभार :
पवन सहरावत
Friday, December 13, 2013
अजनबी हमसफ़र
वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली एक्स्ट्रा सीट पर बैठी थी, उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीसी ने आकर पकड़ लिया तो।
कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीसी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर
लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था। मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने
की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा।
फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया।
लगभग 1 घंटे के बाद टीसी आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा” “अंकल अहमदनगर तक जाना है”
“टिकेट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….
लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”
“अच्छा 300 रुपयेका पेनाल्टी बनेगा” “ओह … अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”
“ये तो गलत बात है बेटा ….
पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी” “सॉरी अंकल …. मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ
परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यदा पैसे रखना भूल गयी….
” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीसी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे अहमदनगर तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी। टीसी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था।
थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं … अहमदनगर स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी। मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे देदूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और
रो मत …. लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था। उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे। बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने
लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं। फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा, “बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए
देख रहा हूँ, जनता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही है इसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस
भी लिख रहा हूँ …..
जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो ….
वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो …..
अजनबी हमसफ़र ” एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे
भेजा है। नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा। लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था।
थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की।
लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था।
उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया …. फिर चादर का कोना हटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं..
पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी। जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन अहमदनगर स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक
छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया ..
और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र ….
आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …. मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है
इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …. उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ …
जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी।
उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे …. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन
उसका कोई ख़त आ जाये …. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला …
आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ ….
लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था ….
और आखिर में लिखा था ..
अजनबी हमसफ़र ……
साभार :
सतीश ढ़िल्लों
ज्ञान चक्षु
संभल जा रे जाट
पत्ते पर ना चाट
तावला ज्यागा पाट
किसने पढ़ाया यो पाठ
चाट के बना कौन लाठ
हरपाल बात के मार ले गाँठ
लुटावे क्यौं सारा इस हाट
होवण लाग रहया बारह बाट।
हरपाल
पत्ते पर ना चाट
तावला ज्यागा पाट
किसने पढ़ाया यो पाठ
चाट के बना कौन लाठ
हरपाल बात के मार ले गाँठ
लुटावे क्यौं सारा इस हाट
होवण लाग रहया बारह बाट।
हरपाल
मैंने गाँधी को क्यों मारा ?
मैंने गाँधी को क्यों मारा ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान-
(इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते )
नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान-
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ..............में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विश्लन मत करना
नाथूराम गोडसे
(इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते )
नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान-
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ..............में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विश्लन मत करना
नाथूराम गोडसे
Thursday, December 12, 2013
कल कौन सी तारिख
कल कौन सी तारिख थी 11 -12 -13
पक्का सोच लो अरे भई
.
.
.
.
.
.
कल तो 11- 12 – 2013 थी
हमें हमेशा शॉर्टकट में चलने की आदत हो गयी स ।
हरियाणा में कहते हैं जब पादी सर जा तो हागण की के ज़रुरत स।
क्यों कीमी गलत लाग्या।
ईब लाग भी गया तो के ज़ोर चले सह।
पक्का सोच लो अरे भई
.
.
.
.
.
.
कल तो 11- 12 – 2013 थी
हमें हमेशा शॉर्टकट में चलने की आदत हो गयी स ।
हरियाणा में कहते हैं जब पादी सर जा तो हागण की के ज़रुरत स।
क्यों कीमी गलत लाग्या।
ईब लाग भी गया तो के ज़ोर चले सह।
WHEN A LIZARD CAN, WHY CAN'T WE
This is I'm told a true story that happened in Japan.
In order to renovate the house, someone in Japan breaks open the wall.
Japanese houses normally have a hollow space between the wooden walls.
When tearing down the walls, he found that there was a lizard stuck there because a nail from outside hammered into one of it's feet.
He sees this, feels pity, and at the same time curious, as when he checked the nail,
it was nailed 5 years ago when the house was first built !!!
What happened?
The lizard has survived in such position for 5 years!!!!!!!!!!
In a dark wall partition for 5 years without moving, it is impossible and mind-boggling.
Then he wondered how this lizard survived for 5 years! without moving a single step--since it's foot was nailed!
So he stopped his work and observed the lizard, what it has been doing, and what and how it has been eating.
Later, not knowing from where it came, appears another lizard, with food in it's mouth.
Ah! He was stunned and touched deeply.
For the lizard that was stuck by nail, another lizard has been feeding it for the past 5 years...
Imagine? it has been doing that untiringly for 5 long years, without giving up hope on it's partner.
Imagine what a small creature can do that a creature blessed with a brilliant mind can't.
Please never abandon your loved ones
Never Say you're Busy When They Really Need You ...
You May Have The Entire World At Your Feet.....
But You Might Be The Only World To Them....
A Moment of negligence might break the very heart which loved you against all odds..
Before you say something just remember..it takes a moment to Break but an entire lifetime to make...
MUST SHARE AND SPREAD FURTHER.....
साभार: इंटरनेट पर से
Wednesday, December 11, 2013
इतिहास बना दे
जाट हिलादे, जाट मिलादे, जाट करादे ठाठ-बाट।
जाट गिरादे, जाट उठादे, जाट दिलादे राजपाट।।
और अगर जाट के जी में आज्या तो.....
यदि जाट कै जी मैं आज्या, धरती आसमां मिला दे जाट।
आगे कदम बढ़ा ले तो, हर मंजिल सुलभ बना दे जाट।।
हाथ से हाथ मिला ले तो, पर्वत भी ठा दिखला दे जाट।
आपस के बैर भुला ले तो, सबको खुशहाल बना दे जाट।।
कट-कट जो बढ़ता ही रहा, बस ज्या तो फूल खिला दे जाट।
मिल जुल कै मेल बढ़ा ले तो, धरती को स्वर्ग बना दे जाट।।
ओमपाल ज्ञान के दीप जला, ज्योत से ज्योत जलादे जाट।
पढ़ लिखकर हो ज्या अगर सफल, सच्चा इतिहास बना दे जाट।।
साभार :
रोहित नैन
Tuesday, December 10, 2013
तू छोरी सै शहर चंडीगढ़ की
तू छोरी सै शहर चंडीगढ़ की...., मेरी गैल
घणी तंग पावेगी....,,
"सरोहा "सै ठेठ जाट...., तू लक्क २८
आली कुकर जाटणी कुहावेगी....,,
तू खावै सै पिज्जे बर्गर...., मेरे खात्रर
चूरमा कित्त तै बनावेगी....,
रहवै सै तू एसी रूम में...., तू कित्त के खेत
कमावेगी....,
"सरोहा"नै तो रहना सै अपने गाम में....,
तन्ने गाम की हवा कुकर भावेगी....,
यु छोरा तो पहरे सै कुड़ता पजामा....,
तू कित्त के लूज़र नेर्र फसावेगी....,
तू छोरी सै शहर चंडीगढ़ की मेरी गैल
घंणी तंग पावेगी....,
तू कर्रे किट्टी पार्टी...., तन्ने चौपाल
क्यूकर सहुवावेगी....
मैं खाऊं देशी घी सारी हाण.... तू
आपने फिगर कहन लखावेगी....
तू चाले गाडी होंडा एकॉर्ड
में....''सरोहा''गैल झोटा बुग्गी में क्यूकर
धूप सहुवावेगी....
मैं यारा का सूं यार कसूत.... मेरी बाट
मैं क्यूकर गाल कहान लखावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की तन्ने आदत
डिस्को बार की.... क्यूकर
रागनी सहुवावेगी....
मन्ने आदत आशीर्वाद कमान की.... तू
क्यूकर मां के पां दबावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... मैं तडके
तडक ऊठूं सूं ४ बजे....,
फेर अखाड़े में जाऊ सूं.... उड़े तै आ के फेर
खेत कमा के लाऊ सूं....
तू बेशक गात तोड़े सै ज़िम में.... तू क्यूकर
न्यार पाड़ के ल्यावेगी....
...
तू यूज़ करै माइक्रोवेव .... क्यूकर चूल्हे पे
खाना बनावेगी....
तू क्यूकर गोबर ठावेगी, तन्ने
खाया निरा डालडा घी....
देसी घी क्यूकर ओट पावेगी.....
तू चश्मे लावे घाम्म में क्यूकर तन्ने धूल
सहुवावेगी....
तन्ने आदत महल अटारी की.... मेरे काचे
घर में क्यूकर शबर कर पावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की..... तू जावै
अंग्रेजी टायलेट में.... क्यूकर खेत मैं घूमन
जावेगी....
तू लावे लाली पावडर सै.... बिन मेक्
अप क्यूकर थम ज्यावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू
सोयी गद्दे आले बेड पे....
तेरे खाट की ज्योडी गड्ड ज्यावेगी, तू
पीवे लिम्का, वोडका.... देसी म
क्यूकर तान बजावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तन्ने
आदत इंग्लिश गाने की....
तन्ने मोर की पीहू पीहू क्यूकर राश
आवेगी....
....
तू बोले गिटपिट गिटपिट अंग्रेजी....
हरयाणवी कित्त समझ आवेगी....
मैं करू रोज़ राम राम गाम नै.... तेरी हाय्
हेल्लो किस नै समझ आवेगी....
मैं मीठे बोला का लाडदा सूं.... तू
क्यूकर इन्ह ते पेट भर पावेगी....
....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू
जीरो फिगर की तोड़ी हौड.... आड़े
गोलुमोलू सी भावेगी....
किम्मे गात घाल ले बैर्रण तू.... ना मन्ने
घन्नी सुन्न्वावेगी....
तेरा ऊँचा टॉप तेरी लो जीनस .... तू
मेरी इज्जत के घाह्क ल्वावेगी....
किम्मे सांग नै तेरा कुछ सै ना सवा.... तू
खामखा फ़ालतू मैं घनी गिर्वाव्व्गी...
.
तेरा रहन -सहन, चाल- चलन ना म्हारे
हिसाब का.... तोह क्यूकर बद्दाई सुन्न
पावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू ६१ -६२
करती चाले से..... गाम में लठ
बजवावेगी....,
ऑल्हे पाले का तने ज्ञान नहीं.... बड़े
बूढ़ा नै नहीं भावेगी...., हेल्लो हाय तै
तेरा काम चले....
क्यूकर माँ-दादी के पां हाथ
लावेगी...., तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर
की....!!
साभार :
सरोहा
घणी तंग पावेगी....,,
"सरोहा "सै ठेठ जाट...., तू लक्क २८
आली कुकर जाटणी कुहावेगी....,,
तू खावै सै पिज्जे बर्गर...., मेरे खात्रर
चूरमा कित्त तै बनावेगी....,
रहवै सै तू एसी रूम में...., तू कित्त के खेत
कमावेगी....,
"सरोहा"नै तो रहना सै अपने गाम में....,
तन्ने गाम की हवा कुकर भावेगी....,
यु छोरा तो पहरे सै कुड़ता पजामा....,
तू कित्त के लूज़र नेर्र फसावेगी....,
तू छोरी सै शहर चंडीगढ़ की मेरी गैल
घंणी तंग पावेगी....,
तू कर्रे किट्टी पार्टी...., तन्ने चौपाल
क्यूकर सहुवावेगी....
मैं खाऊं देशी घी सारी हाण.... तू
आपने फिगर कहन लखावेगी....
तू चाले गाडी होंडा एकॉर्ड
में....''सरोहा''गैल झोटा बुग्गी में क्यूकर
धूप सहुवावेगी....
मैं यारा का सूं यार कसूत.... मेरी बाट
मैं क्यूकर गाल कहान लखावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की तन्ने आदत
डिस्को बार की.... क्यूकर
रागनी सहुवावेगी....
मन्ने आदत आशीर्वाद कमान की.... तू
क्यूकर मां के पां दबावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... मैं तडके
तडक ऊठूं सूं ४ बजे....,
फेर अखाड़े में जाऊ सूं.... उड़े तै आ के फेर
खेत कमा के लाऊ सूं....
तू बेशक गात तोड़े सै ज़िम में.... तू क्यूकर
न्यार पाड़ के ल्यावेगी....
...
तू यूज़ करै माइक्रोवेव .... क्यूकर चूल्हे पे
खाना बनावेगी....
तू क्यूकर गोबर ठावेगी, तन्ने
खाया निरा डालडा घी....
देसी घी क्यूकर ओट पावेगी.....
तू चश्मे लावे घाम्म में क्यूकर तन्ने धूल
सहुवावेगी....
तन्ने आदत महल अटारी की.... मेरे काचे
घर में क्यूकर शबर कर पावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की..... तू जावै
अंग्रेजी टायलेट में.... क्यूकर खेत मैं घूमन
जावेगी....
तू लावे लाली पावडर सै.... बिन मेक्
अप क्यूकर थम ज्यावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू
सोयी गद्दे आले बेड पे....
तेरे खाट की ज्योडी गड्ड ज्यावेगी, तू
पीवे लिम्का, वोडका.... देसी म
क्यूकर तान बजावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तन्ने
आदत इंग्लिश गाने की....
तन्ने मोर की पीहू पीहू क्यूकर राश
आवेगी....
....
तू बोले गिटपिट गिटपिट अंग्रेजी....
हरयाणवी कित्त समझ आवेगी....
मैं करू रोज़ राम राम गाम नै.... तेरी हाय्
हेल्लो किस नै समझ आवेगी....
मैं मीठे बोला का लाडदा सूं.... तू
क्यूकर इन्ह ते पेट भर पावेगी....
....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू
जीरो फिगर की तोड़ी हौड.... आड़े
गोलुमोलू सी भावेगी....
किम्मे गात घाल ले बैर्रण तू.... ना मन्ने
घन्नी सुन्न्वावेगी....
तेरा ऊँचा टॉप तेरी लो जीनस .... तू
मेरी इज्जत के घाह्क ल्वावेगी....
किम्मे सांग नै तेरा कुछ सै ना सवा.... तू
खामखा फ़ालतू मैं घनी गिर्वाव्व्गी...
.
तेरा रहन -सहन, चाल- चलन ना म्हारे
हिसाब का.... तोह क्यूकर बद्दाई सुन्न
पावेगी....
तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर की.... तू ६१ -६२
करती चाले से..... गाम में लठ
बजवावेगी....,
ऑल्हे पाले का तने ज्ञान नहीं.... बड़े
बूढ़ा नै नहीं भावेगी...., हेल्लो हाय तै
तेरा काम चले....
क्यूकर माँ-दादी के पां हाथ
लावेगी...., तू छोरी सै चंडीगढ़ शहर
की....!!
साभार :
सरोहा
Monday, December 9, 2013
बाप किडनी बेच देता
कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देताहै
मिले गर भाव अच्छा जज भी कुर्सी बेच देता है
तवाइफ फिर भी अच्छी है के वो सीमित है कोठे तक
पुलिस वाला तो चौराहे पे वर्दी बेच देता है
जला दी जाती है ससुराल मेँ अक्सर वही बेटी
के जिस बेटी की ख़ातिर बाप किडनी बेच देता है
कोई मासूम लड़की प्यार मेँ कुर्बान है जिस पर
बनाकर वीडियो उसकी वो प्रेमी बेच देता है
ये कलयुग है कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीँ इसमेँ
कली,फल,पेड़,पौधे , फूल माली बेच देता है
उसे इंसान क्या हैवान कहने में भी शर्म आए
जो पैसोँ के लिए अपनी ही बेटी बेच देता है जुए
बिक गया हूँ में तो,हैरत क्यों है लोगों को
युधिष्ठर तो जुए में अपनी पत्नी बेच देता है"
साभार :
शकुन्या हेमंत
Sunday, December 8, 2013
कौन सुनेगा सैनिक की माँ का दर्द
वो औरत एक शहीद की माँ थी,
देशभक्ति की परंपरा उसके यहाँ थी...
जीवन भर सैनिकों की वर्दियां सींती रही,
बेटे को शहीद देखने की तमन्ना में जीती रही...
ख़ून को देती रही पसीने का कर्ज़,
बढ़ता रहा देशभक्ति का मर्ज़...
मेघदूत युद्ध का संदेश लाया,
संगीनों ने आषाढ़ गाया...
बेटा सरहदों पर सर बो गया,
इतिहास की ग़ुमनाम वादियों में
हमेशा के लिये खो गया...
माँ अपने सौभाग्य पर मुस्कराती रही,
बेटे की तस्वीर को फ़ौज़ी लिवास पहनाती रही...
रोज़ पढ़ती रही अख़बार,
ढूंढती रही, बेटे के शहीद होने का समाचार...
नेताओं की आदमकद तस्वीरें हंसंती रहीं,
इतिहास में शासक को जगह मिलती है,
शहीदों को नहीं...
जो इतिहास के पन्ने सींते हैं,
वो इतिहास पर नहीं, सुई की नोंक पर जीते हैं...
भूगोल होता है जिनके रक्त से रंगीन,
उनके बच्चों को मयस्सर नहीं दो ग़ज ज़मीन...
शहादत कहाँ तक अपना लहू पीती रही?
केवल शहीद को जन्म देने के लिये जीती रही ?
साभार :
भारतीय सेना
देशभक्ति की परंपरा उसके यहाँ थी...
जीवन भर सैनिकों की वर्दियां सींती रही,
बेटे को शहीद देखने की तमन्ना में जीती रही...
ख़ून को देती रही पसीने का कर्ज़,
बढ़ता रहा देशभक्ति का मर्ज़...
मेघदूत युद्ध का संदेश लाया,
संगीनों ने आषाढ़ गाया...
बेटा सरहदों पर सर बो गया,
इतिहास की ग़ुमनाम वादियों में
हमेशा के लिये खो गया...
माँ अपने सौभाग्य पर मुस्कराती रही,
बेटे की तस्वीर को फ़ौज़ी लिवास पहनाती रही...
रोज़ पढ़ती रही अख़बार,
ढूंढती रही, बेटे के शहीद होने का समाचार...
नेताओं की आदमकद तस्वीरें हंसंती रहीं,
इतिहास में शासक को जगह मिलती है,
शहीदों को नहीं...
जो इतिहास के पन्ने सींते हैं,
वो इतिहास पर नहीं, सुई की नोंक पर जीते हैं...
भूगोल होता है जिनके रक्त से रंगीन,
उनके बच्चों को मयस्सर नहीं दो ग़ज ज़मीन...
शहादत कहाँ तक अपना लहू पीती रही?
केवल शहीद को जन्म देने के लिये जीती रही ?
साभार :
भारतीय सेना
Saturday, December 7, 2013
जाट इस धरती पर बहुत पुराने वासिंदे हैं
जाट इस धरती पर बहुत पुराने वासिंदे हैं। यह सबसे पुरानी जनजाति है। यह बात हम नीचे लेख में कुछ बातें लिंक से जैसा लिखा है वैसे ही आप को प्रस्तुत कर रहें हैं। लिंक पर आप जायेंगे तो जाटों के बारे में। यह पुस्तक स्टीवन मकोलिनस द्वारा लिखी चार किताबों की श्रंखला में आखरी पुस्तक में दर्शाया गया है।
source: http://www.israelite.info/bookexcerpts/israelstribestoday.html
Asia's "Jats" and "Alani" Become Europe's "Jutes" and "Alans"
As the Saxons migrated into Europe and the British Isles, they were closely allied to the "Jutes." History records that after their entry into the British Isles, they settled in Kent, the Isle of Wight and parts of Hampshire.79 The Jutes left their name (Jute-land) on the Danish peninsula of "Jutland." Where did they come from? Is there evidence of their name in Asia? There certainly is, and even then we find them closely identified with the Sacae, who became the Saxons.
source: http://www.israelite.info/bookexcerpts/israelstribestoday.html
Asia's "Jats" and "Alani" Become Europe's "Jutes" and "Alans"
As the Saxons migrated into Europe and the British Isles, they were closely allied to the "Jutes." History records that after their entry into the British Isles, they settled in Kent, the Isle of Wight and parts of Hampshire.79 The Jutes left their name (Jute-land) on the Danish peninsula of "Jutland." Where did they come from? Is there evidence of their name in Asia? There certainly is, and even then we find them closely identified with the Sacae, who became the Saxons.
When
describing the Sacae Scythian tribes who migrated from the Caspian Sea region in
the second century, B.C., to settle within the Parthian Empire, historian George
Rawlinson notes that the greatest tribe, the Massagetae, was also named the "great
Jits, or Jats."80 These migrating Sacae
or Saka gave their name to the Parthian province of Sacastan and to the Saka kingdoms
of Northwest India. The term "Jat" has survived as a caste-name in northwest
India into modern times, attesting to the ancient dominance of the Jats in that region.
The Encyclopedia Britannica states the following about the ancient "Jats:"
"The
early Mohammedans wrote of the Jats country as lying between Kirman and Mansura...Speculation
has identified them with the Getae of Herodotus ...[or] Scythians or Indo-Scythians."81 (Emphasis
added)
The Asian Jats lived near the land of Kirman (i.e. the Kerman or German region of
Parthia). If they were Asian "Getae," their later European name was the "Getes" or "Goths." If
they were Scythians (Sacae), they became known as Germans or Saxons as they entered
Europe. Collier's Encyclopedia states of the Jats:
"They
are believed to be descended from the Saka or Scythians, who moved into India
in a series of migrations between the second century B.C. and the fifth century
A.D."82 (Emphasis
added)
Since the Jats were a branch of the "Sacae," called "Saxones" by
Ptolemy, it is not surprising that they were still allied to the "Saxons" and
called "Jutes" by the time they reached Europe and the British Isles. Note
that the consonants of the words “Jats” and “Jutes” are identical.
Many
Sacae moved into Parthia in the second century B.C., but some did stay in Asia centuries
after the fall of Parthia as we will document in the next chapter. In Asia, the Sacae
and Jats lived next to the Kermans (Germanii); in Europe they were called the Saxons
and Jutes, and were part of the migrating Germans. Their names changed very little
as they moved from Parthian Asia into Europe as part of the great Caucasian migrations.
The names "Kerman" and "Jats" also remained in the regions of
Asia where they once lived. Some Jats stayed in India and intermarried with other
tribes in the region. Today, the Indian Jats "in general have a fair complexion,"83 supporting
the conclusion that they had Saka ancestors. As discussed in books two and three
of this series, the Massagetae, a leading tribe of the Sacae were most likely the
descendants of the Israelite tribe of Manasseh, and the suffix "-getae" indicates
a common origin with the "Getae" ("Goths") of the Black Sea region.
Historian Herbert Hannay wrote about this connection:
Historian Herbert Hannay wrote about this connection:
"The
Goths, too, it will be remembered, when in Asia as the Massagetae, had been worshippers
of the Sun..."84(Emphasis
added)
The second book in this series discussed the Massagetae in detail, acknowledging
that they were sun-worshippers. After crushing the army of the Persian King, Cyrus
the Great, in the sixth century B.C., they migrated into Parthia in the second century
B.C. They lived in the Parthian province of Sakastan, named for their Sacae origins.
It must be acknowledged that while Christianity had significant numbers of converts
in the Parthian Empire, many Parthians and Scythians remained Zoroastrians or sun-worshippers.
Hannay's quote identifies the Massagetae with the "Goths" who migrated
into Europe. However, this author thinks most of the Massagetae (a "Sacae" tribe)
merged into the Saxon tribes who migrated into northern Europe after Parthia fell.
Another Asian tribe that moved from Asia into Europe was the Alans (or Alani). Historian
George Rawlinson notes that bands of Alani lived from the Black Sea region to the
east of the Caspian Sea.85 They have been
called "half-caste Scyths," and many Alani followed the Vandals into Europe.86 Collier's
Encyclopedia asserts the Alans were a tribe of "Iranian-speaking nomads" who
moved from Asia into Europe in the 5th century A.D., and established a kingdom of
their own in Portugal.87 Even as the numerous
third century Goths by the Black Sea exhibited "Iranian" (i.e., Parthian)
traits, the Alans had an "Iranian" language. This confirms they had a common
origin with the Parthians and Scythians, whose "Iranian" language and culture
is well-documented.
The Indo-Europeans who migrated from Asia into Europe in the aftermath of Parthia's
fall included many different nations and tribes. As tribes intermingled, became allied
or split up as they poured into Europe, there came to be considerable overlap in
terms such as "Germans," "Goths," and "Saxons." The
term "Caucasian" became an overall term to describe all these tribes migrating
into Europe through the Caucasus Mountain/Black Sea region.
Friday, December 6, 2013
अगर तुम युवा हो
अगर तुम युवा हो!
ग़रीबों-मजलूमों के नौजवान सपूतों!
उन्हें कहने दो कि क्रान्तियाँ मर गयीं
जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर.
तुम्हे तो इस नर्क से बाहर
निकलने के लिए
बंद दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निज़ामे-कोहना के ख़िलाफ़.
यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय,सच्चाई,स्वाभिमान
और सुन्दरता से भरी ज़िन्दगी
तो तुम्हें उठाना ही होगा
नए इंक़लाब का परचम फिर से
उन्हें करने दो 'इतिहास के अंत'
और 'विचारधारा के अंत' की अंतहीन बकवास
अन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी धुनों पर.
तुम गाओ
प्रकृति की लय पर ज़िन्दगी के गीत.
तुम पसीने और खून और
मिट्टी और रोशनी की बातें करो.
तुम बग़ावत की धुनें रचो.
तुम इतिहास के रंग मंच पर
एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो.
तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचण्ड झंझावात बन जाओ
साभार : अनुज चौधरी
किसान को उसके उत्पाद के मूल्य निर्धारण का अधिकार दिए जाने के सकारात्मक व् नकारात्मक पहलुओं पर खुली चर्चा
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारत में वर्त्तमान व्यवस्था के अनुसार सिर्फ
किसान ही एक ऐसा उत्पादक है जिसको अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारित करने का
अधिकार नहीं है| अन्यथा फल बेचने वाले से ले कर, जूते बनाने-गांठने वाले,
मिटटी-स्टील के बर्तन बनाने-बेचने वाले, कपडा बनाने-बेचने वाले, खाने की
वस्तुएं बनाने-बेचने वाले, तेल-पेट्रोल बेचने वाले, हर प्रकार के वाहन
बनाने-बेचने वाले, किसान को खाद-दवाइयां बनाने-बेचने वाले, आम आदमी को
स्वास्थ्य सेवाएं और दवाइयां देने वाले डॉक्टर-दवाई विक्रेता आदि-आदि, सबको
उनके सामान अथवा सेवा के बाजार भाव स्वंय तय करने का अधिकार है और करते
हैं| यहाँ तक कि आपकी कुंडली-पत्र-पतरा, किस्मत, भविष्य तक बताने वालों,
ब्याह-शादी में फेरे करवाने वालों, हवन-श्राद तक करवाने वाले तक
अपनी सेवाओं के मूल्य स्वंय तय करते हैं| ऐसे ही एक मजदूर तक भी अपनी
मजदूरी खुद तय करता है| तो फिर एक किसान को ही यह हक़ क्यों नहीं?
तो मैं निम्नलिखित प्रश्नों के साथ यह चर्चा शुरू करना चाहता हूँ:
1) एक किसान को क्यों नहीं उसके उत्पाद का मूल्य निर्धारण करने का हक़ दिया जाता?
2) उसको यह हक़ मिले तो उससे किसान को क्या-क्या फायदे होंगे?
3) उसको यह हक़ मिले तो उससे किसान को क्या-क्या नुक्सान होंगे?
4) कौन-कौन से सामाजिक समूह इसमें बाधा बनेंगे या आपत्ति जताएंगे और वो
बाधाएं और आपत्तियां किस-किस प्रकार की और कैसी-कैसी हो सकती हैं?
5) इसको लागू करने में क्या-क्या कानूनी पेचीदगियां आ सकती हैं या आएँगी?
6) किसान को अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारण करने के मसौदे का क्या प्रारूप हो?
ऐसे ही अन्य सम्भावित सवाल, जो कि आप भी इस चर्चा में भाग लेते वक्त जोड़ सकते हैं और पूछ भी सकते हैं|
विशेष: यह एक ऐसा हक़ है जो जब तक किसान को नहीं मिलता, किसान बंधुवा मजदूर
ही कहा जा सकता है, क्योंकि अपनी मेहनत के बदले दूसरों का निर्धारित किया
दाम चुपचाप पकड़ लेने वाला सिर्फ बंधुवा मजदूर ही कहलाता है| सो इस बंधुवा
मजदूरी से किसान को कैसे निजात मिले, यही चर्चा यहाँ शुरू करने का इरादा
है| उम्मीद करता हूँ कि इस सवेंदनशील मुद्दे को चर्चा के अंत और परिपक्वता
तक ले के जायेंगे और अंत परिणामस्वरूप कुछ बिंदु निकालेंगे जो हमें इस
समस्या की समझ के साथ-साथ समाधान भी दे सके|
साभार :
फूल कुमार मालिक
Thursday, December 5, 2013
अत्याचार
इल्लुमिनाती के 5 हथियार -------------------
विश्व में 5 बड़ी संस्थाए है जिसके जरिये दुनिया को मुर्ख बनाया जा रहा है, ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है, बर्बाद किया जा रहा है ! ये 5 संस्थाए अपना असली चेहरा छुपाने के लिए कुछ अच्छा काम भी करते है ताकि लोगों को पता ना लगे !
1. IMF (आई एम एफ): - गरीब देश, विकासशील देशो की मुद्रा का अवमूल्यन करना और अमेरिका की कागज़ की टुकड़ो का मूल्य बढ़ा देना ! विश्व की मुद्राओं का मुल्यांकन बहुत अन्याय और पक्षपातपूर्ण तरीके से करता है ! जिससे अमेरिका और यूरोप के बहुराष्ट्रीय कंपनी, बैंक जादा से जादा मुनाफा कमा सके ! [मुद्रा के मूल्य पर अत्याचार]
2. WORLD BANK (वर्ल्ड बैंक): - पूरी दुनिया के आम लोगों का पैसा इकठ्ठा करके उनको अपने ही हितों के लिए लगा देना, पक्षपातपूर्ण वितरण करना ताकि अमेरिका और यूरोप के बैंक को फ़ायदा हो ! [आर्थिक अत्याचार]
3. UNO (यूनाइटेड नेशनस आर्गेनाइजेशन) : - जो जो देश अमेरिका की बात न माने उनके ऊपर युद्ध थोपने का काम करता है जिससे अमेरिका और यूरोप के हतियार बनाने वाले कंपनियों का लाभ मिले ! [युद्ध के नाम पर अत्याचार]
4. WTO (वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन) : - पूरी दुनिया के गृह उद्योग, लघु उद्योग और छोटे व्यापारी को ख़तम करके उसकी जगह पर सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन बहुराष्ट्रीय कंपनीयों का बर्चश्व कायम करने का षड्यंत्र रचति है अंतराष्ट्रीय संधियों के माध्यम से ! [व्यापार के नाम पर लूट]
5. WHO (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) : - बीमारियों का भय, आतंक पैदा करना ताकि अमेरिका और यूरोपियन बहुराष्ट्रीय कंपनीया उनकी दावा गरीब, विकासशील देश में बेच सके और मुनाफा कमायें! [उपचार के नाम पर अत्याचार]
साभार :
आर्यवर्त भरतखण्ड संस्कृति
विश्व में 5 बड़ी संस्थाए है जिसके जरिये दुनिया को मुर्ख बनाया जा रहा है, ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है, बर्बाद किया जा रहा है ! ये 5 संस्थाए अपना असली चेहरा छुपाने के लिए कुछ अच्छा काम भी करते है ताकि लोगों को पता ना लगे !
1. IMF (आई एम एफ): - गरीब देश, विकासशील देशो की मुद्रा का अवमूल्यन करना और अमेरिका की कागज़ की टुकड़ो का मूल्य बढ़ा देना ! विश्व की मुद्राओं का मुल्यांकन बहुत अन्याय और पक्षपातपूर्ण तरीके से करता है ! जिससे अमेरिका और यूरोप के बहुराष्ट्रीय कंपनी, बैंक जादा से जादा मुनाफा कमा सके ! [मुद्रा के मूल्य पर अत्याचार]
2. WORLD BANK (वर्ल्ड बैंक): - पूरी दुनिया के आम लोगों का पैसा इकठ्ठा करके उनको अपने ही हितों के लिए लगा देना, पक्षपातपूर्ण वितरण करना ताकि अमेरिका और यूरोप के बैंक को फ़ायदा हो ! [आर्थिक अत्याचार]
3. UNO (यूनाइटेड नेशनस आर्गेनाइजेशन) : - जो जो देश अमेरिका की बात न माने उनके ऊपर युद्ध थोपने का काम करता है जिससे अमेरिका और यूरोप के हतियार बनाने वाले कंपनियों का लाभ मिले ! [युद्ध के नाम पर अत्याचार]
4. WTO (वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन) : - पूरी दुनिया के गृह उद्योग, लघु उद्योग और छोटे व्यापारी को ख़तम करके उसकी जगह पर सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन बहुराष्ट्रीय कंपनीयों का बर्चश्व कायम करने का षड्यंत्र रचति है अंतराष्ट्रीय संधियों के माध्यम से ! [व्यापार के नाम पर लूट]
5. WHO (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) : - बीमारियों का भय, आतंक पैदा करना ताकि अमेरिका और यूरोपियन बहुराष्ट्रीय कंपनीया उनकी दावा गरीब, विकासशील देश में बेच सके और मुनाफा कमायें! [उपचार के नाम पर अत्याचार]
साभार :
आर्यवर्त भरतखण्ड संस्कृति
Can I have yourAadhar card number
A Scene in 2030...
Operator: Hello Pizza Hut!
Customer: Hello, can you please take my order?
Operator : Can I have your multi purpose Aadhar card number first, Sir?
Customer: Yeah! Hold on..... My number is 889861356102049998-45-54610
Operator : OK... you're... Mr Singh and you're calling from 17 Jalan Kayu. Your home number is40942366, your office 76452302 and your mobile is 0142662566. You are calling from you home number now.
Customer: (Astonished) How did you get all my phone numbers?
Operator : We are connected to the system, Sir.
Customer: I wish to order your Seafood Pizza...
Operator : That's not a good idea Sir.
Customer: How come?
Operator : According to your medical records, you have high blood pressure and even higher cholesterol level, sir.
Customer: What?... What do you recommend then?
Operator : Try our Low Fat Hokkien Mee Pizza. You'll like it.
Customer: How do you know for sure?
Operator : You borrowed a book titled 'Popular Hokkien Dishes' from the National Library last week, sir.
Customer: OK I give up... Give me three family size ones then.
Operator : That should be enough for your family of 10, Sir. The total is Rs. 2,450.
Customer: Can I pay by credit card?
Operator : I'm afraid you have to pay us cash, Sir. Your credit card is over the limit and you owe your bank Rs. 1,51,758 since October last year. That's not including the late payment charges on your housing loan, Sir.
Customer: I guess I have to run to the neighbourhood ATM and withdraw some cash before your guy arrives.
Operator : You can't Sir. Based on the records, you've exhausted even your overdraft limit.
Customer: Never mind just send the pizzas, I'll have the cash ready. How long is it gonna take anyway?
Operator : About 45 minutes Sir, but if you can't wait you can always come and collect it on your motorcycle.
Customer: What?
Operator : According to the details in the system , you own a motorcycle registration number 1123.
Customer: "????" (hmmm.. these guys know my motorcyle number too!)
Operator : Is there anything else, sir?
Customer: Nothing.! .. by the way... aren't you giving me that 3 free bottles of cola as advertised?
Operator : We normally would sir, but based on your records, you're also diabetic... In the best interest of your health, we are holding this offer for you.
Customer: ***%&$%%### You $##$%%@!)))
Operator: Better mind your language sir. Remember on 15th July 2007 you were imprisoned for 2 months and fined Rs.5,000 for using abusive language against a policeman...?
Customer faints.....................
Courtesy:
Dinesh Kumar Gera
Operator: Hello Pizza Hut!
Customer: Hello, can you please take my order?
Operator : Can I have your multi purpose Aadhar card number first, Sir?
Customer: Yeah! Hold on..... My number is 889861356102049998-45-54610
Operator : OK... you're... Mr Singh and you're calling from 17 Jalan Kayu. Your home number is40942366, your office 76452302 and your mobile is 0142662566. You are calling from you home number now.
Customer: (Astonished) How did you get all my phone numbers?
Operator : We are connected to the system, Sir.
Customer: I wish to order your Seafood Pizza...
Operator : That's not a good idea Sir.
Customer: How come?
Operator : According to your medical records, you have high blood pressure and even higher cholesterol level, sir.
Customer: What?... What do you recommend then?
Operator : Try our Low Fat Hokkien Mee Pizza. You'll like it.
Customer: How do you know for sure?
Operator : You borrowed a book titled 'Popular Hokkien Dishes' from the National Library last week, sir.
Customer: OK I give up... Give me three family size ones then.
Operator : That should be enough for your family of 10, Sir. The total is Rs. 2,450.
Customer: Can I pay by credit card?
Operator : I'm afraid you have to pay us cash, Sir. Your credit card is over the limit and you owe your bank Rs. 1,51,758 since October last year. That's not including the late payment charges on your housing loan, Sir.
Customer: I guess I have to run to the neighbourhood ATM and withdraw some cash before your guy arrives.
Operator : You can't Sir. Based on the records, you've exhausted even your overdraft limit.
Customer: Never mind just send the pizzas, I'll have the cash ready. How long is it gonna take anyway?
Operator : About 45 minutes Sir, but if you can't wait you can always come and collect it on your motorcycle.
Customer: What?
Operator : According to the details in the system , you own a motorcycle registration number 1123.
Customer: "????" (hmmm.. these guys know my motorcyle number too!)
Operator : Is there anything else, sir?
Customer: Nothing.! .. by the way... aren't you giving me that 3 free bottles of cola as advertised?
Operator : We normally would sir, but based on your records, you're also diabetic... In the best interest of your health, we are holding this offer for you.
Customer: ***%&$%%### You $##$%%@!)))
Operator: Better mind your language sir. Remember on 15th July 2007 you were imprisoned for 2 months and fined Rs.5,000 for using abusive language against a policeman...?
Customer faints.....................
Courtesy:
Dinesh Kumar Gera
Wednesday, December 4, 2013
चाहे कुछ भी हो जाए...हिमालय का सर झुकने नहीं दुँगा
कैप्टन हनीफ उद्दीन
राजपूताना राइफल्स के कैप्टन हनीफ उद्दीन कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए 6 जुन 1999 को शहीद हो गए।
ऐसे वीर को भारत का सलाम।
इन्हें भी इनकी वीरता के लिए ‘वीरचक्र’ से सम्मानित किया गया।
कैप्टन हनीफ की शाहदत अमर रहे। सारा भारत उन्हें सलाम करता है।
भारत माँ को ऐसे सपूत पर फ़कर है।
जय हिन्द ! जय भारत !!
भारत माता की जय!
सही दिशा चाहिये
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने
पिता से पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.
फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.
बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.
रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
दोस्तो अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपना वर्त्तमान ओहदा (परिस्थिति ) को देख कर अपने आप को बिना कीमत का समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारा मूल्य कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत विशेष और ज़रूरी इंसान हैं . हमें हमेशा अपने आप को सुधारते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में रहना चाहिये ।
साभार :
मुकुल चौधरी
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.
फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.
बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.
रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
दोस्तो अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपना वर्त्तमान ओहदा (परिस्थिति ) को देख कर अपने आप को बिना कीमत का समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारा मूल्य कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत विशेष और ज़रूरी इंसान हैं . हमें हमेशा अपने आप को सुधारते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में रहना चाहिये ।
साभार :
मुकुल चौधरी
राबड़ी
खाना खजाना और फिर उसे चेपना में आप का स्वागत है ..
आज हम आपको सिखायेंगे छाछ की कूट्या राबड़ी
सामग्री -
एक लीटर छाछ
बाजरा कूटा हुआ - 100 ग्राम ,
कोरी हांडी - 1, नाल्डी
चाटू - 1,
घोटणी - 1,
लूण आवश्यकता अनुसार..
विधि :
सर्व प्रथम कोरी हांडी लीजिये, हांडी ले कर अपने गाँव में घर घर डोलिए, जिस किसी के घर छाछ बनी हो, 1 लीटर छाछ मांग कर लाइए, अब
घर आ कर 100 ग्राम बाजरा लेकर ऊखली में मूसल की सहायता से मोटी- मोटी कूटिए.. हांडी को चूल्हे पर चढ़ा दीजिये व कूटा हुआ बाजरा छाछ में नाख दीजिये.. धीमा धीमा बास्ते जगाते रहिये और घोटणी से कूटा बाजरा मिश्रित छाछ को हिलाते रहिये..
नमक अपने स्वादानुसार साथ में ही डाल सकते हैं, ध्यान रहे बास्ते जोर से हपड़बोझ वास्ते मत जगाइए इससे राबड़ी के हांडी में लगने
की गुन्जाईस रहती है... जब छाछ उफान लेने लग जाए तो 2-3 उफान दिराकर हांडी को उतार कर अराही पर रख दीजिये.
नाल्डी की सहायता से गर्मागर्म राबड़ी अपने मेहमानों को घाल दीजिये और आप भी थाली ले कर राबड़ी सबड़किये .....
हो सके तो फटाफट राबड़ी को सलटा दीजिये..बच जावे
तो सुबह सुबह कलेवे में भचीड दीजिये !
नोट : बच्चो को गर्म हांडी से दूर रखिये उन्हें प्यार से समझा कर दूर कीजिये, फिर भी ना माने तो जट पकड़
कर 2 -3 फाफले में दीजिये..
हमारा उद्देश्य : राबड़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाना है
साभार :
देसी जाट
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