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Saturday, November 30, 2013

Serve old parents best way

An 65 year old man was sitting on the sofa in his house along with his 38 years old highly educated son. Suddenly a crow perched on their window.

The Father asked his Son, "What is this?"
The Son replied "It is a crow".
After a few minutes, the Father asked his Son the 2nd time, "What is this?"
The Son said "Father, I have just now told you "It's a crow".
After a little while, the old Father again asked his Son the 3rd time, what is this?"
At this time some expression of irritation was felt in the Son's tone when he said to his Father with a rebuff. "It's a crow, a crow".
A little after, the Father again asked his Son t he 4th time, "What is this?"
This time the Son shouted at his Father, "Why do you keep asking me the same question again and again, although I have told you so many times 'IT IS A CROW'. Are you not able to understand this?"

A little later the Father went to his room and came back with an old tattered diary, which he had maintained since his Son was born. On opening a page, he asked his Son to read that page. When the son read it, the following words were written in the diary:-

"Today my little son aged three was sitting with me on the sofa, when a crow was sitting on the window. My Son asked me 23 times what it was, and I replied to him all 23 times that it was a Crow. I hugged him lovingly each time he asked me the same question again and again for 23 times. I did not at all feel irritated I rather felt affection for my innocent child".

While the little child asked him 23 times "What is this", the Father had felt no irritation in replying to the same question all 23 times and when today the Father asked his Son the same question just 4 times, the Son felt irritated and annoyed.

So, if your parents attain old age, do not repulse them or look at them as a burden, but speak to them a gracious word, be cool, obedient, humble and kind to them. Be considerate to your parents. From today say this aloud, "I want to see my parents happy forever. They have cared for me ever since I was a little child. They have always showered their selfless love on me. They crossed all mountains and valleys without seeing the storm and heat to make me a person presentable in the society today".

Say a prayer to God, "I will serve
my old parents in the BEST way. I will say all good and kind words to my dear parents, no matter how they behave."

Courtsey:
Ritu Raj Singh

ایک ایک فوجی قیمتی ہے


ہمارے بھارت کی تیرہ لاکھ فوج ہم ایک سو بیس کروڑ ہندوستانیوں کی حفاظت کرتی ہے. جب دو فوجی شہید ہوتے ہیں تو یہ سمجھيے کی 1846 ہندوستانیوں کی جان کو خطرہ ہے. ہمارا ایک ایک فوجی قیمتی ہے یہ بات ہمارے ذہن میں کب آئے گی. ہر ایک فوجی ہمارے لیے جیتا ہے اور ہماری حفاظت کرتے ہوے مرتا ہے. آپ سب کب چےتوگے. جاگو! ہوشیار!! ہوشیار!!!

جے ہند! وند ماترم!!
آپکی مخلص:


بھارتی فوج



اور جانکاری واسطے آپ نیچے لکھے لنک پر پڑھے

http://compulsory-military-service.blogspot.in/2013/11/blog-post_29.html

ਯਿਕ ਏਇਕ ਫੌਜ਼ੀ ਕੀਮਤੀ ਹੇਗਾ

ਸਾਡੇ ਭਾਰਤ ਤੇ ਤੇਰਹ ਲਖ ਫੌਜੀ  ਯਿਕ ਸੌ ਵੀ ਕਰੋੜ ਭਾਰਾਤਵਾਸਿਯੋੰ ਟੀ ਰਕਸ਼ਾ ਕਰਦੀ ਹੇ। ਜਬ ਦੋ ਫੌਜੀ ਸਹੀਦ ਹੋਂਦੀ ਹੈ  ਤੁਸੀ ਏਹ ਮਾਨਿਏ ਕੇ 1846 ਭਾਰ੍ਤੀਯਾਉਣ  ਕੀ ਜਾਂ ਕੋ ਖਤਰਾ ਹੇਗਾ। ਸਾਦਾ ਯਿਕ ਯਿਕ ਫੌਜੀ ਕੀਮਤੀ ਹੇਗਾ ,ਏਹ ਗੱਲ ਸਾਡੀ ਦਿਮਾਗ ਵਿਚ ਕਦੋ ਆਵੇਗੀ। ਹਰ ਏਇਕ ਫੌਜੀ ਸਾਡੇ ਵਾਸ੍ਤੀ ਜੀਤਾ ਹੇਗਾ ਔਰ ਸਾਡੀ ਵਾਸ੍ਤੀ ਹੀ ਸਾਡੀ ਰਕਸ਼ਾ ਕਰਤੀ ਹੁਵੇ ਸਹੀਦ ਹੋਤਾ ਹੈ। ਤੁਸੀ ਸਬ ਕਬ ਚੇਤੋਗੀ !ਕਬ ਜਾਗੋਗੀ। ਸਮਯ  ਹੇਗਾ ਸੰਭਾਲ ਜੋ ਨਾ ਟੀ। ....


ਜੈ ਹਿੰਦ !   ਵੰਡੇ ਮਾਤਰਮ !!


ਸਾਭਾਰ :
ਭਾਰਤੀਯ ਫੌਜ਼ 
ਆਗੇ ਔਰ ਪਢਨੇ ਕੇ  ਲੀਏ ਤੁਸੀ ਲੋਗ ਇਨ ਕਰੇਂ :

ठीक के गोबर करेगा


एक क्लिनिक के पास लम्बी कतार  लगी थी।
एक आदमी बार बार क़तार में घुसता
एक के बाद एक कर के सब उसे धक्का देकर बाहर निकाल देते।
दुबारा फिर लाईन में घुसता
फिर सब उसे धक्का देकर बाहर निकाल देते।

 उसने क्या कहा कोई बताएगा  ज़रा
थोडा दिमाग पे ज़ोर लगाओ
थोडा और ……

क्यूँ आज खाना नहीं खाया क्या ……

आप चाह  रहे हैं की मैं  बता दूँ  और
आप दिमाग की उर्ज़ा कतई खरच न करें।

फिर आप वोही  हँसी  कब्जी वाली ……
अरे भई  हंस तो खुल के लो
कोई टैक्स लगेगा क्या . ………
 चलो बता देता हूँ
या मैं  पेशआ …
(बात पूरी हुई नहीं पीछे से आवाज़ आने लगी )


क्या भाई साब  सुबह सुबह गाली
छोडो यार।

उस आदमी ने तंग होकर कहा 
अबे सालो  मुझे क्लिनिक तो खोलन दो ………



भीड़ में से आवाज़ आई --
अरे डाकदर होक्कीं  ग़ाली  दे ठीक के गोबर करेगा ................



नरेंद्र  सिंह  सांगवान 

35 जाट खाप की बेटी धर्मकौर

जिस अकबर ने आमेर की जोधा ब्याही वही अकबर 35 जाट खाप की बेटी  धर्मकौर को नहीं पा सका।
पता नहीं इन इतिहास लिखने और संजोने वालों ने इस इतिहास में और क्या-क्या छिपाया है; और
छिपाया  तो यह सिर्फ इसीलिए छिपाया कि यह जाट और खाप से संबंधित होता था? वरना जो किस्सा (जिसका अंदाजा आपको शीर्षक से लग ही गया होगा) बताने जा रहा हूँ वो अगर एक बार आमेर वालों ने भी सुन लिया होता तो वो भी अकबर को जोधा देने का विचार त्याग देते और अपना रजवाड़ा बचाने को अकबर
से बेटी ब्याहने की जगह ऐसे ही निर्भीक फैसला सुना देते जैसा जाट खाप ने सुनाया था| किस्सा इस प्रकार है:
जिला फिरोजपुर, (वर्तमान पंजाब में) के एक गाँव में चौधरी मीरमत्ता की युवा बेटी 'धर्मकौर' अति संदर  और बलिष्ठ थी । अकबर उस समय गाँव के पास से दौरे पर जा रहा था कि उसने 'धर्मकौर' को सर पर घड़ा रखे हुए एक पाँव से भागते हुए बछड़े को उसके रस्से पर पाँव रख कर रोके रखा जब तक कि उसके पिता ने उस रस्से को पकड़ न लिया। यह दृश्य देख कर अकबर हैरान हो गया। बादशाह ने मीरमत्ता को बुला कर उसकी बेटी से शादी करने का आदेश दिया। यह सुनकर चौधरी मीरमत्ता ने कहा, "महाराजा मुझे इस बारे में अपने जाति बंधुओं से विचार करना पड़ेगा।इसलिए कुछ समय चाहिए।"  बादशाह अकबर सहमत हो गया।
और मीरमत्ता ने "35 जाट वंशीय खापों की पंचायत” की। सर्वखाप ने निर्णय लिया "अकबर को जाट कन्या नहीं दी जा सकती। यदि वह सैन्य बल से लड़की को लेने का प्रयत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके हम अपने
सम्मान की रक्षा करेंगे।"
पंचायत का यह फैसला अकबर को सुना दिया गया। फैसला सुनकर अकबर लज्जित हुआ। परन्तु उसने सूझ-बूझ से काम लिया और अपना इरादा त्याग दिया। शायद वो समझ गया था कि यह आमेर नहीं सर्वखाप है|  क्या अद्भुत लालिमा होती थी सर्वखाप के पराक्रम की, कि अकबर जैसा बादशाह भी चुपचाप लौट गया|
 

यह इस तरह का दूसरा किस्सा है सर्वखाप का| थोड़े दिन पहले प्रस्तुत 'अमरज्योति गोकुला जी महाराज' के
किस्से में भी सामने आया था कि कैसे 'औरंगजेब' के संधि प्रस्ताव पे 'गोकुला जी महाराज' ने कहलवा भेजा था कि, "बेटी दे जा और संधि ले जा"।


श्रोत : श्री सुखवीर सिंह दलाल द्वारा लिखित पुस्तक "जाट ज्योति" के सौजन्य से

Friday, November 29, 2013

गाजी संहारक कमांडर इंद्र सिंह मलिक




गाज़ी  संहारक कमांडर इंद्र सिंह मलिक

पूर्वी पंजाब सूबे (वर्तमान हरियाणा ) के रोहतक जिले की सोनीपत तहसील (वर्तमान में जिला ) के आंवली गाँव में साधारण किसान चौधरी जागे राम के सुपुत्र रतिराम के घर पर 4 अक्तूबर 1924 को विलक्षण प्रतिभा के धनी एक बालक का जन्म हुआ । जिस दिन इस बालक ने जन्म लिया था ,उस दिन कई दिनों के बाद अच्छी वर्षा हुई थी | । इसलिए परिजनों ने बच्चे का नाम , वर्षा के देव इंद्र देव के नाम पर इंद्र सिंह रखा, जो कि परिवार अवं गाँव में खुशियाँ लेकर आया था ।
बालक इंद्र सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की । प्रतिभा के अनुरूप वह पढाई में अच्छे अंक लेकर आता था । इसीलिए उसके अध्यापक एवं परिजन उससे बहुत प्यार करते थे । खेलों में भी उसकी बहुत रूचि थी और उसका प्रदर्शन खेलों में भी बहुत अच्छा रहता था । आठवी की परीक्षा पास करने के उपरान्त इन्हें उच्च शिक्षा के लिए जाट स्कूल सोनीपत में दाखिला करवाया गया । यहीं से इन्होने अच्छे अंकों के साथ दसवी की परीक्षा पास की । जून 1944 में जब दूसरा महायुद्ध अपनी चरम सीमा पर था , उस समय नौजवान इंद्र सिंह रॉयल इंडियन नेवी में नाविक के रूप में भारती हो गये । प्रशिक्षण समाप्ति के उपरान्त इन्होने पूर्वी सेक्टर में युद्ध में भाग लिया। 
15 अगस्त ,1947 को भारतवर्ष स्वतंत्र हो गया और रॉयल भारतीय नौसेना का नाम भारतीय नौ-सेना हो गया | अपनी प्रतिभा के बल पर इन्होने 1957 में एक ऑफिसर के रूप में कमीशन प्राप्त किया | 1961 में गोवा मुक्ति ऑपरेशन में गोवा को मुक्त करवाने के लिए सक्रिय भूमिका अदा की और गोवा को मुक्त करवाया । 1965 के भारत-पाक युद्ध में इनकी नियुक्ति सुरक्षा के लिए पूर्वी-सेक्टर में रही जो उस समय प्राय: शांत रहा ।
1971 के दिसंबर माह की 3 तारिख को पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान ( बांग्लादेश ) से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए भारत पर पश्चिमी और पूर्वी दोनों सीमाओं पर अचानक हमला बोल दिया । योजनाबद्ध तरीके से पाकिस्तानी युद्धक पंडूब्बी 15 गाजी भारतीय विमान वाहक युद्धपोत विक्रांत के नष्ट करने के लिए बंगाल की खाड़ी में घात लगाये हुई थी । इसकी सूचना 3-4 की रात को भारतीय नौ सेना को लगी तथा इस को नष्ट करने के लिए विशाखापटनम में तैनात ले. कमांडर इंद्र सिंह को आदेश मिला । आदेश मिलते ही तुरंत कार्यवाही करते हुए पीएनएस गाजी पर भयंकर गोलीबारी करते हुए कमांडर इन्दर सिंह ने इसे नशर कर दिया । इसके बाद आप के पोत ने विशेष नीति के तहत आगे बढ़ना जारी रखा तथा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में खुला नदी के मुहाने पर घात लगाये बैठे पाकिस्तानी युद्धपोत अनवर बक्श को हथियार डालने पर, मजबूर कर , उसे बंदी बना कर चारों और अपनी बहादुरी की डंका बजाया । पूर्वी पाकिस्तान की समुंदरी सीमा की नाकेबंदी कमांडर इंद्र सिंह के युध्ह्पोत की अहम् भूमिका रही |
16 दिसंबर 1971 को पूर्वी मोर्चे पर हार स्वीकार करते हुए धाक में पाकिस्तानी फौजों ने (लगभग 93 हजार सैनिकों ने ) भारतीय सेनाओं के सामने हथियार दाल दिए । इसके बाद 18 दिसंबर 1971 पश्चिमी सीमा पर भी युद्ध विराम हो गया । युद्ध समाप्ति पर गाजी संहारक के रूप में प्रसिद्द हो चुके कमांडर इंद्र सिंह को उनकी वीरता के लिए राष्ट्रपति वी वी गिरी ने एक भव्य समारोह  में वीरता के पुरुस्कार 'वीर चक्र ' प्रदान कर सम्मानित  किया । इसी पर किसी कवि ने ठीक कहा है -


जननी जने तो भक्तजन, या दाता या शूर।
नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे गंवाए नूर।।


35 वर्षों की लंबी नौसेना सेवा के उपरान्त कमांडर इन्दर सिंह 31 अक्टूबर , 1979 को सेवानिवृत हुए । सेवानिवृति के उपरान्त आपने रोहतक में निवास करते हुए भूतपूर्व सैनिकों अवं सैनिकों की विधवाओं के कल्याण के लिए
हरियाणा भूतपूर्व सैनिक संघ के गठन में अहम् भूमिका अदा की । तब से लेकर आज तक कमांडर इन्दर सिंह भूतपूर्व सैनिक संघ में कल्याणकारी कार्यों में दिलों-जान से निस्वार्थ भाव से लगे हुए है और भूतपूर्व सैनिकों अवं उनकी विधवाओं की अनेकों समस्याओं को सुलझाने में अग्रणी रहे है । वर्तमान में कमांडर साहब हरियाणा भूतपूर्व सैनिक संघ के अध्यक्ष के पद पर सेवाएं दे रहे है । हम सब इस बहादुर वयोवृद्ध भक्त को दिल की गहराईयों से सैल्यूट करते है तथा उनकी लंबे सुखमय जीवन की प्रभु से प्रार्थना करते है । 


लेखक - कप्तान जगबीर मलिक

राजकवि बांकीदास

जब राजस्थान के राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों के विरोध में तलवार नहीं उठाई तो जोधपुर के राजकवि बांकीदास से नहीं रहा गया और उन्होंने ऐसे गाया -

पूरा जोधड़, उदैपुर, जैपुर, पहूँ थारा खूटा परियाणा।
कायरता से गई आवसी नहीं बाकें आसल किया बखाणा ॥
बजियाँ भलो भरतपुर वालो, गाजै गरज धरज नभ भौम।
पैलां सिर साहब रो पडि़यो, भड उभै नह दीन्हीं भौम



इसका  अर्थ है कि - जोधपुर, उदयपुर और जयपुर के मालिको ! तुम्हारा तो वंश ही खत्म हो गया। कायरता से गई भूमि कभी वापिस नहीं आएगी, बांकीदास ने यह सच्चाई वर्णन की है। भरतपुर वाला जाट तो खूब लड़ा। तोपें गरजीं, जिनकी धूम आकाश और पृथ्वी पर छाई। अंग्रेज का सिर काट डाला, लेकिन खड़े-खड़े अपनी भूमि नहीं दी

Thursday, November 28, 2013

खुराक बढ़ा दो


एक  डॉक्टर   ने सम्मलेन में कहा -इंसान के लिए सबसे उत्तम दवा प्यार , सेवा और मोहब्बत है। 
किसी ने  बीच में ही पूछा -यदि  यह काम ना करे तो  फिर क्या करें। 
डॉक्टर साहिब  ने  हल्की मुस्कान के साथ कहा -उसकी खुराक बढ़ा दीजिए।

 साभार :
मनमीत  सिंह 
 



(मनमीत सिंह जी इकलोते  सिख हैं जो टीवी धारावाहिक ,भारत एवं रूसी फिल्मों और मशहूरी में भी आते हैं। )

रहबरे आज़म दीनबंधू चौधरी छोटू राम

रहबरे  आज़म दीनबंधू  चौधरी छोटू राम एक बहुत ही बड़ी ,हर मेहनतकश इंसान के दिलों में रमे हुवे थे । रहबरे   आज़म किसानों के सच्चे मसीहा  थे। उन्होंने सर फैजले  हुसैन  के साथ मिलकर एक राजनीतिक पार्टी बनाई।उस पार्टी  का नाम था यूनियनिस्ट  पार्टी (जमींदारा  लीग), उन्होंने  सदा  ग़रीब ,दबे हुए  , महिला ,बच्चे ,कमज़ोर वर्ग ,मज़दूर  तथा ग्रामीण की सदा हिमाकत की। उन्होंने  गरीबों को उनकी ज़मीन साहूकारों से वापिस दिलवाई। वे सभी धर्म ,मज़हब ,वर्ग के साझे  नेता थे।
सन् 1936 -37  के चुनाव में उनकी पार्टी को 175  में से 120  सीट मिली। संयुक्त पँजाब  में 57  % मुस्लिम ,28 % हिन्दू ,13 % सिख ,तथा     2 %  ईसाई  थे। सर सिकंदर हयात  खान तथा मलिक खिज़र हयात टिवाणा  का उन्हे सदा सहयोग मिला।
सर सिकंदर हयात  खान साहब वज़ीरे  आला (प्रीमियर )बने। मलिक खिज़र हयात टिवाणा  आख़री प्रीमियर बने जो गढ़ी सांपला  , रोहतक में जन्मे थे। दोनों ही  मौला  जाट थे। 
सन्  1947 में भारत और पाकिस्तान बना। साथ ही जाटों  का भी बटवारा हो गया।  वर्त्तमान में पाकिस्तान के उप प्रधान मंत्री  चौधरी परवेज़  इलाही   एक जाट  हैं। पाकिस्तान की विदेश मंत्री  हिना रबानी खार  भी जाट  नस्ल  से सम्बन्ध रखती हैं। 
अब सोचने वाली बात यह है की चौधरी छोटू राम जी को पाकिस्तान में आज भी  बड़ी ईज्ज़त  बख्शी  जाती है। उनके आज भी जाट मुरीद हैं। ऐसा सुनने में आया है की लाहौर  असेंबली में रहबरे  आज़म दींन  बंधू  चौधरी छोटू राम साहब  की मूर्ति स्थापित की जायेगी।
 
सब जाट एक हो जाओ फिर देखो मज़ाल  किसकी जो नज़दीक आ जाये।
जय जाट।  जाट बलवान।
 जाट महान।   जाट  क़दरदान। 
 

 
 

Wednesday, November 27, 2013

जाट को संयम से बोलो

हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा -
जितनी बार मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने मेरा मुकाबला किया । भरतपुर, मथुरा व आगरा के जाट तो नुकीले काटों की तरह है । 
पं० इन्द्र विद्यावाचस्पति- जाटों को प्रेम से वश में करना जैसा सरल है, आँख दिखाकर दबाना उतना ही कठिन है ।

डॉ० रिस्ले - “When Jat  runs wild it needs God to hold him back   अर्थात् यदि जाट बिगड़ जाए तो उसे भगवान ही काबू कर  सकता     है ।”
विख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार - जाट समाज में जाटनियां परिश्रम करना अपना राष्ट्रीय धर्म समझती हैं, इसलिए वे सदैव जाटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती हैं । वे आलसी जीवन के प्रति मोह नहीं रखती ।
 

Imam Abū Ḥanīfah

Imam Abū Ḥanīfah Nuʿmān ibn Thābit ibn Zūṭā ibn Marzubān also known as Imam Abū Ḥanīfah (699 — 767 CE / 80 — 148 AH) Name, birth and ancestry Abū Ḥanīfah was born in the city of Kufa in Iraq, during the reign of the Umayyad caliph Abd al-Malik ibn Marwan. His father, Thabit bin Zuta, a trader from Kabul, Afghanistan, was 40 years old at the time of Abū Ḥanīfah's birth. His ancestry is generally accepted as being of non-Arab origin as suggested by the etymology of the names of his grandfather (Zuta) and great-grandfather (Mah). The historian Al-Khatib al-Baghdadi records a statement from Imām Abū Ḥanīfah's grandson, Ismail bin Hammad, who gave Abū Ḥanīfah's lineage as Thabit bin Numan bin Marzban and claiming to be of Persian origin The discrepancy in the names, as given by Ismail of Abū Ḥanīfah's grandfather and great-grandfather, are thought to be due to Zuta's adoption of the Arabic name (Numan) upon his acceptance of Islam and that Mah and Marzban were titles or official designations in Persia, with the latter, meaning a margrave, referring to the noble ancestry of Abū Ḥanīfah's family as the Sasanian Marzbans (equivalent of margraves) of Kabul. Those stories maintain for his ancestors having been slaves purchased by some Arab benefactor are, therefore, untenable and seemingly fabricated. There is a discussion on being of Turkic or Persian origin. But the widely accepted opinion, however, is that most probably he was of Persian ancestry from Kabul Adulthood and death In 763, al-Mansur, the Abbasid monarch offered Abu Hanifa the post of Chief Judge of the State, but he declined to accept the offer, choosing to remain independent. His student Abu Yusuf was appointed Qadi Al-Qudat (Chief Judge of the State) of al-Mansur regime instead of himself. In his reply to al-Mansur, Abū Ḥanīfah recused himself by saying that he did not regard himself fit for the post. Al-Mansur, who had his own ideas and reasons for offering the post, lost his temper and accused Abū Ḥanīfah of lying. "If I am lying," Abū Ḥanīfah said, "then my statement is doubly correct. How can you appoint a liar to the exalted post of a Chief Qadi (Judge)?" Incensed by this reply, the ruler had Abū Ḥanīfah arrested, locked in prison and tortured. He was never fed nor cared for Even there, the jurist continued to teach those who were permitted to come to him. In 767, Abū Ḥanīfah died in prison. The cause of his death is not clear, as some say that Abū Ḥanīfah issued a legal opinion for bearing arms against Al-mansoor, and the latter had him poisoned to death.[8] It was said that so many people attended his funeral that the funeral service was repeated six times for more than 50,000 people who had amassed before he was actually buried. On the authority of historian Khatib, it can be said that for full twenty days people went on performing funeral prayer for him. Later, after many years, the Abū Ḥanīfah Mosque was built in the Adhamiyah neighborhood of Baghdad. The tomb of Abū Ḥanīfah and other Sunni sites including tomb of Abdul Qadir Gilani were destroyed by Shah Ismail of Safavi empire in 1508. In 1533, Ottomans reconquered Iraq and rebuilt the tomb of Imām Abū Ḥanīfah and other Sunni sites. Sources and methodology The sources from which the imama abu hanifa derive Islamic law, in order of importance and preference, are: the Qur'an, the authentic narrations of the Muslim prophet Muhammad (known as Hadith), consensus of the Muslim community (ijma), analogical reasoning (qiyas), juristic discretion (Istihsan) and the customs of the local population enacting said law (Urf). The development of analogical reason and the scope and boundaries by which it may be used is recognized by the majority of Muslim jurists, but its establishment as a legal tool is the result of the Hanafi school. While it was likely used by some of his teachers, Abu Hanifa is regarded by modern scholarship as the first to formally adopt and institute analogical reason as a part of Islamic law As the fourth Caliph, Ali had transferred the Islamic capital to Kufa, and many of the first generation of Muslims had settled there, the Hanafi school of law based many of its rulings on the prophetic tradition as transmitted by those first generation Muslims residing in Iraq. Thus, the Hanafi school came to be known as the Kufan or Iraqi school in earlier times. Ali and Abdullah, son of Masud formed much of the base of the school, as well as other personalities from the direct relatives of Muhammad from whom Abu Hanifa had studied such as Muhammad al-Baqir, Ja'far al-Sadiq, and Zayd ibn Ali. Many jurists and historians had lived in Kufa including one of Abu Hanifa's main teachers, Hammad ibn Sulayman. jatt in arabic say zutt


 Courtsey::
Rajesh Muller

Tuesday, November 26, 2013

कहीं आपका बच्चा तो नहीं

नीचे लेख में बहुत गहराई छुपी है।  हमें बता सकते हैं वह क्या है। आप हमें अवश्य भेजिएगा कमेंट बॉक्स के ज़रीये। हमें  एहसास हो जायेगा की आप यकीनन बच्चों के शुभचिंतक   हैं।
वह प्राइमरी स्कूल की शिक्षिका  थी | सुबह उसने बच्चो का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपिया जाँचने के लिए घर ले आई थी | बच्चो की कॉपिया  देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | उसका पति वही लेटे TV देख रहा था |  उसने रोने का कारण पूछा ।टीचर बोली , “सुबह मैंने बच्चो को  ‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ  पंक्तिया लिखने को कहा था ; एक बच्चे  ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे टेलीविजन बना   दे |
यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे | टीचर बोली , “आगे तो सुनो बच्चे ने  लिखा है यदि मै टीवी बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और  सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा |  जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान  से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेंगा और नहीं उल्टे सवाल होंगे |  जब मै  टीवी बनूंगा, तो पापा ऑफिस से  आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे  साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा, तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ  रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के  बीच मेरे पास रहने के लिए झगडा होगा |  यहाँ तक की जब टीवी बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होंगी |  और हाँ ,टीवी  के रूप में मै सबको ख़ुशी  भी दे सकूँगा | “

यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा  गंभीर होते हुए बोला , ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके  माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं

देते !’ टीचर पत्नी ने आंसूं भरी आँखों से  उसकी तरफ देखा और बोली,  “जानते हो, यह बच्चा कौन है? ………………………हमारा अपना बच्चा……

.. हमारा छुटकू  |”

सोचिये, यह छुटकू कही आपका बच्चा  तो नहीं ।

मित्रों , आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी  में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी  सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर गेम  खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में  गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की  अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार  को नहीं समझ पायेंगे।
अपने अमूल्य विचार भेजें। 
आप सब से निवेदन है कि आप अपना कीमती समय बच्चों  के साथ बिताएं। यकीन मानिये आप दुनिया के सब से खुश नसीब इंसान होंगे। 

Monday, November 25, 2013

Arvind Kejriwal's letter to Anna

I received the letter right in my mail box.I am hereby sharing with you.Kindly give your views what does it reveal.Give your views.They are always welcome.
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Respected Anna Ji,
Last night, while returning after our election campaigning, it was brought to my notice that we received a letter from you. At first, I felt very happy, as every message from you is like a blessing to me. But after reading your letter, I must say that I felt sad and disappointed.


You have mentioned in your letter that some groups have approached you to complain against me. Many serious questions have been raised by you through your letter. I have great respect for you. I hold you in high esteem, respect you as my teacher, and regard you as a father figure. It is my responsibility to answer the questions raised by you.

Issues raised by you have already been addressed extensively in the past. You had been satisfied with the answers to those questions. I was concerned because I wonder who is spreading these false and baseless accusations and what their intentions might be. However at the end of the letter you write - "I believe that these statements will not be truthful". You continue to trust me, I am happy about that.

Your letter asks three questions. The first question is about how we can promise to pass the Jan Lokpal Bill in the Assembly Elections. Anna, as you know, Prashant Bhushan, myself and many other members understand the intricacies of the laws. Obviously the bills passed by the Delhi Assembly will not apply to the Prime Minister, Members of Parliament or employees of the Central Government. We have not promised any such law. You might remember that when Uttarakhand agreed to pass this bill, you yourself supported the Chief Minister Khanduri at a press conference. On 29th December we intend to pass the same bill that will apply in the Delhi State area. The Chief Minister, ministers, Members of Legislative Assembly and all officers and workers of the Delhi government would be under its purview. I hope that you will bless us with your presence on this occasion. I also believe that we can soon pass this bill in the parliament with the support of the people of India.

Your second question was if our party is using your name in our campaign fundraising and campaign related activities. I do not know who is fabricating these lies and what motives they might have. As soon as you made a public appeal that we do not use your name in our campaigning, we have respected your request. We have not used your photograph in any of our campaign materials including posters and films. We do say that in 2011 there was an Anna Movement. This is a historical fact, which no one can deny, not even you.

With respect to the "Anna Card," the Aam Aadmi Party is not involved in it in any way. You may not remember this, but this card was issued with your full knowledge and permission in February 2012. This card was worth 25 rupees and the funds raised as a result were used to send movement related SMS. We received 1,59,415 rupees through the sale of these cards in Feb-March 2012 and 7,67,115 is April-July 2012. The funds collected from the card campaign are clearly mentioned in the audit accounts of the PCRF (Public Cause Research Foundation). The sale of these cards was stopped many months before the formation of the party. Further, the funds that remained unused were even refunded to the people. Hence there is no question of the Aam Aadmi Party using even a single paisa from the proceeds of the Anna Card.

Your third question was how much funds have been raised during Jan LokPal movement, and whether if we are using this fund for Delhi Elections? Anna, according to Income Tax law, we definitely cannot use the funds raised during a movement in elections. This would defy the law of Income Tax, and we would be strictly prosecuted if we ever do so.

You have also mentioned in your letter that you are unaware of the funds raised during the protests at the Ramleela Maidan and at Jantar Mantar. Anna - Of all your questions and statements, this one has hurt me the most. We have discussed this not once, but several times, both formally and informally. Multiple audits have also been done. You had sent a special team to audit our accounts who has checked everything to ensure that you are satisfied and informed about the accounts. Even after that, if you raise the same question, you can imagine how painful that would be for me, personally. Its possible that you may not remember each point from our previous conversations, discussions and audits. So I am re-iterating the key ones here.
1. 'India Against Corruption' is not a legislative organization or constitutional entity, so the entire transactions have been brought under the purview of PCRF (Public Cause Research Foundation).
2. Right after the protest at Ramleela Maidan, under your guidance, IAC's core committee gathered for a meeting on 10th and 11th of September, 2011. According to the outcome of this meeting, starting from April to September, auditing of income and expenses of the social movement have been conducted. On 1st of November 2011, the results of this audit have also been posted on website, and the same report has been handed over to Income Tax department even though no one asked for it.
3. In May 2012, we have requested you to personally examine the accounts of PCRF records.You had constituted a special team comprising of your representatives Sh. Suresh Pathare, Dad Pathare & some other people. This team had audited complete PCRF accounts and found them to their satisfaction.
4. Also, besides the Income tax law that I cited previous, there is no question of the Andolan money being used. PCRF accounts (audited as mentioned above) clearly show that on April 1, 2011 (before the start of the Andolan), PCRF has Rs 54 Lakh (approx). The money that I got from the Magsaysay award was also added to this to help the Andolan. In August 2012, when the Anshann got over, there was only 14 lakh left in the PCRF account. This proves that, not only was the money raised Andolan completely spent, but PCRF ended up contributing another 40 lakh in addition to my Magasay award grant towards the Andolan.


Anna - All this happened with your knowledge, consent and direction. Whenever questions were raised on the finances of the andolan, after consultation with you, complete audit was carried out. With your blessing, this Andolan established new benchmarks of financial transparency in public life.


If, in spite of and after all this, you have questions, its my duty to answer them. We want the politics of India to be clear & transparent. Therefore, we would like to be the first ones to be audited & investigated in full public view, so that there are no questions that remain unanswered.


My proposal, if you agree is this. Let someone of the stature and credibility of Justice Santosh Hegde (or any other person who you trust) audit the accounts of IAC, PCRF and the Aam Aadmi Party. Justice Hedge would also for any complaints against us from the people as well. To carry out this investigation, whatever he needs from us will be provided to him. I want that Justice Hedge finish this investigation next week itself.


I assure you and the entire nation that if Justice Hedge’s investigation reveals financial irregularities with IAC funds, or its use for AAP operations, then I will withdraw my candidacy from Delhi Assembly elections.


If no irregularities are found after investigation, it is not only my hope but the country’s hope that you will come to Delhi to campaign for AAP.


Anna, like you I am always mindful that those in public life have to be extra careful of how they use the public’s money. That is why, despite all the devious and malicious plotting by our opponents, there is not a stain on the record of the movement or of AAP. I sincerely believe that this investigation will settle once and for all that I have abided by your high ideals that I respect greatly.


Yours,

Arvind

Tension Generator-W

Which is the most dangerous Alphabet
Answer -- "W".
It is tension generator..
All the worries  get initiated with 'w'. . . .

Who

Why

What

When

Which

Whom

Where

War 

Wine

Whisky

Wealth

Work

Worries

Woman

& finally. . .
Believe it or not

**WIFE**

and the most dangerous �� question coming from my  (W)ife

Woh kaun thi ?





contributed by:
Hiteshwar Hooda

Sunday, November 24, 2013

एक फौज़ी की अरदास आप सब को

सभी मित्रोँ से हाथ जोडकर निवेदन है LIKE करेँ ना करेँ, SHARE करेँ ना करेँ, पर पोस्ट जरुर को पूरा पढेँ...

जब कभी आप खुलकर हंसोंगे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना...
जो अब कभी नही हँसेंगे...
जब आप शाम को अपने घर लौटें,
और अपने अपनों को इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे...
जब आप अपने परिवार के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे...
जब आप अपने बच्चो के साथ खेले,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद
नही मिल
पाएंगी...
जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना...
वो अब भी मेरे लिए जागते है...
मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं,
मुझे भी कभी याद कर लेना...
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं…………..
किसी के पास हैँ शहीदोँ के जवाब??? कौन
नहीँ चाहता जीना ये हमारे जवान
अपनी माँ अपने बच्चे परिवार सबकुछ
छोडकर
चले जाते हैँ क्यूँ?
क्या इन्हेँ अपनी जिन्दगी से प्यार
नहीँ होता अपने परिवार से प्यार
नहीँ होता?
मेरे भाईयोँ होता है प्यार होता है लेकिन
इनके
लिये अपने देश और अपने देशवासियोँ से
बढकर
कुछ नहीँ होता ये अपना सबकुछ छोडकर चले
जाते हैँ तो सिर्फ हमारे लिये ताकि आज हम
अपने परिवार के साथ खुश रह सकेँ।
और फिर बात आती है कि ये तो अपनी जान
तक
भी दे जाते हैँ हमारे लिये हमारे देश के लिये
और
हम?
हम क्या करते हैँ इनके लिये?
क्या करते हैँ देश के लिये?
नहीँ नहीँ नहीँ कुछ नहीँ करते हम कुछ
भी नहीँ और तो और जो चले गये हमारे लिये
और
जिनकी वजह से आज हम सुरक्षित हैँ अपने
घरोँ मेँ आज उनके लिये इतना समय
भी नहीँ है
हमारे पास कि एक पल के लिये भी उन्हेँ
याद कर
लेँ।
सच बताऊँ तो हम भूल चुके
उनकी कुर्बानी देश
कहीँ जाओ हमेँ क्या मतलब हमेँ तो बस खुद से
मतलब है स्वार्थी हैँ हम।
ये सच है- आज का युवा जान देता है रोज
ना जाने कितने रेल के नीचे आकर
फाँसी लगाकर
जहर खाकर मर हैँ पता है क्यूँ?
अपनी प्रेमिकाओँ के लिये।
थू थू थू
मेरे दिल मैँ इन लोगोँ के लिये कोई सम्मान
नहीँ है
बेहतर समझता हूँ ऐसे लोगोँ का तो मर
ही जाना और ना ही मुझे अफसोस है कि इन
लोगोँ ने कुछ नहीँ किया देश के लिये? अरे
जरा सोचो क्या कर भी क्या सकते हैँ ये
लोग देश
के लिये अपनी माँ के ना हुऐ तो देश के
क्या होते?
अब जरा एकबार ऊपर चित्र पर ध्यान देँ
और
मुझे बतायेँ क्या लगा आपको ये देखकर?
भाईयोँ मुझे गर्व खुद पर क्योँकी मेरी आँखे
भर
आती हैँ अपने शहीद जवानोँ के बारे मेँ
सुनकर...
कोई कहीँ जाये लेकिन मैँने तो कसम
खा ली है मैँ
भारत माता के इन
शेरोँ की कुर्बानी जाया नहीँ जाने दुँगा। ये
मेरा भाग्य है के आज इतने लोगोँ के बीच मैँ
अपनी बात रख पा रहा हूँ फिर एक बार
कहना चाहूँगा उन मित्रोँ से
जो प्रेमी प्रेमिकाओँ
के प्यार मेँ डूबे हैँ मेरे भाईयोँ जितने आशूँ आप
इनके लिये बहा देते हैँ इतने आँशू शहीदोँ के
लिये
बहाकर देखो क्या होता है।
आपको भी मेरी तरह गर्व होगा खुद पर
कितना उठ जायेँगेँ आप खुद की नजरोँ मेँ।
इतना प्यार करो अपने भारत से कि इनके
लिये
प्यार बचे ही ना। कितना फर्क होता है
उन
दो इन्सानोँ मेँ जिनमेँ एक तो अपनी भारत
माता के लिये सीने पर गोली खा के
हमेशा के लिये
अमर हो जाता है और एक अपने प्यार मेँ रेल
से
कटकर मर जाता है? अरे कौन पूछता है उस
मज्नू
को जो रेल से मरता है को हाथ
भी नहीँ लगाता और जो शेर शहीद होकर
तिरंगे मेँ
लिपट कर आता है अगर कोई छू भी ले
उसकी लाश को तो ये उसका बडा भाग्य
होता है।
कितने दिन लोग उस आशिक को याद करते हैँ
और कितने दिन उस शहीद को?
क्या बात शहीद के बारे मेँ होती हैँ
क्या बात उस
कायर के बारे मे? ये बताने की जरुरत
नहीँ है सब
जानते हैँ कि कायरोँ की तरह मरने और
शहीद
होने मेँ कितना बडा अन्तर होता है।
देश के लिये शहीदोँ के लिये लिखते लिखते
इतना भावुक हो जाता हूँ के
पता ही नहीँ चलता कितना लिख दिया।
लिख
तो और भी बहुत कुछ सकता था और
लिखना भी चाहता था पर
नहीँ लिखा क्योँकी-
ये भी सच है-
आज लोगोँ के पास समय नहीँ देश के लिये
पढने
के लिये जिसमेँ लेख भी इतना बडा हो अगर
एक
भी भाई ने इसे पूरा पढ लिया और एक
भी भाई
कि सोच थोडी भी बदल गई इसे पढके तो मैँ
समझुंगा के मेरी महनत मुझे मिल गयी पर
मित्रोँ विचार जरूर करना और ये पढकर
जो लोग
मेरे साथ हैँ जरूर बताना... अगर लेख पसन्द
आये
तो कमेंट  भी कर देना...

  भारत माता की जय
 
 Bravo
वंदे मातरम!   जय हिंद !!

   भारतीय सेना
 

Saturday, November 23, 2013

چھا مست

چھا گئے جاتا 
جات ہووے مست 
سہی سب کاسٹ 
رہے پھیر بھی مست 
نا ہوے پست 



एक लडकी और एक औरत से बेहतर

एक लडकी को जवान होने से
चेहरे पर झुर्रिया आने तक
लाखों ऐसी आँखों का सामना करना
पड़ता है.....

जो चील की तरह मांस ढूंढ़ती हुई होती है
मासाहारी लोगो के बीच में
रहकर खुद को शाकाहारी
साबित करना कितना कठिन है.....
एक औरत से बेहतर
कोई नही बता सकता।।।।।।



साभार :

वी एम  बेचैन

प्याज़ के बढ़ते दामों के कारण

मैं  आज आप को प्याज़  के बढ़ते दामों  के कारण  से अवगत करवा रहा हूँ। मैं  नीचे लेख  को स्रोत  सहित प्रकाशित कर रहा हूँ। पत्रिका के सहयोग से  आपको यह जानकारी अच्छी प्रकार से प्राप्त हो पाई।में उनका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ।   चलो अब प्याज की कथा की गहराईयों में खोते हैं।

******************************

बड़े घोटालों के आड़ में जमाखोरों ने प्याज के कारोबार में हेराफेरी कर केवल चार महीनों में करीब 8,000 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। आड़त के व्यापार को जानने वाले यही बात रहे हैं।
नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है।

प्याज का रिश्ता प्रत्येक रसोई घर से है। सो यह मामला राजनीतिक स्तर पर भी गर्म हो रहा है। सरकार को जो नुकसान स्पेट्रम घोटाले से नहीं हुआ है, वह नुकसान प्याज की ऊंची कीमत से होने जा रहा है। लोग सवाल कर रहे हैं कि कीमतों में आई तेजी को कम करने के लिए सरकार ने क्या और किस तेजी से कदम उठाए हैं। जबकि, इसकी लगातार बढ़ती कीमतों से आम आदमी बेहाल है। आश्चर्य है कि कई बड़े शहरों में प्याज की कीमत पेट्रोल की कीमतों को पीछे छोड़ने जा रही है। 90 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में उपलब्ध है। त्योहारों के इस मौसम में प्याज की ऊंची कीमतें आम आदमी की परेशानी का सबब बन रही हैं।

दिल्ली के लोगों को 1998 की याद आ रही है। उस वक्त भी चुनाव के दौरान प्याज की कीमत काफी बढ़ गई थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्याज सबसे बड़ मुद्दा बनकर उभरा था। कुछेक लोगों की राय है कि इतिहास स्वयं को दोहारा रहा है। 1998 में प्याज की बढ़ी कीमतों की वजह से दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इस बार कांग्रेस की बारी है।

दूसरी तरफ प्याज की बढ़ती कीमतों से निपटने को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठे तो केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने इसका ठीकरा जमाखोरों के सिर फोड़ दिया। इसके साथ-साथ राज्य सरकारों को उनकी भूमिका याद दिलाई। आनंद शर्मा ने जहां जमाखोरी को इसका कारण बताया, वहीं कृषि मंत्री शरद पवार जमाखोरी की थ्य़ोरी से ही कन्नी काटते नजर आए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जमाखोरी की वजह से प्याज के दाम बढ़े हैं।

पवार ने कहा, “नासिक में किसानों को प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है। मुझे समझ नहीं आता कि यह 90 रुपए किलो कैसे बिक रहा है। सरकार प्याज को नियंत्रित नहीं करती। न ही प्याज बेचती है। कीमत बाजार से तय होती है।” मीडिया में आई खबर के मुताबिक शरद पवार ने कहा कि अधिक बारिश के कारण कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्याज की फसल को नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए सरकार 921.98 करोड़ रुपए जारी करेगी। उन्होंने कहा कि प्याज की कीमत अगले दो से तीन सप्ताह में घट सकती है।

दूसरी तरफ एक समाचार चैनल ने अपने खुलासे में दिलचस्प तथ्य पेश किए हैं। उसके अनुसार नासिक की मंडियों पर शरद पवार कि पार्टी एनसीपी का अधिपत्य है। सोना गिरवी रखकर किसान प्याज की उपज करते हैं। कर्ज में डूबे इन किसानों को मजबूरन 50-80 पैसे प्रति किलो में प्याज बेचना पड़ रहा है। बाकी का मुनाफ़ा इन जमाखोरों और कारोबारियों के जेब में जा रहा है। इस खुलासे से केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के बातों कि हवा निकलती नजर आ रही है। पवार ने कहा था कि ‘नासिक में किसानों को इसका प्रति किलो 45 रुपए का भाव मिल रहा है।’

कृषि जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में बारिश से प्याज की फसल में देर हुई है, लेकिन इससे दाम इतने ज्यादा बढ़ेंगे, यह समझ से परे है। देरी के बावजूद मंडियों में खपत के मुताबिक पर्याप्त प्याज आ रहा है। फिर कीमतों में इतनी तेजी क्यों हो रही हैं?

इसपर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि कारोबारी बारिश से नुकसान का हल्ला मचाकर दाम बढ़ा रहे हैं। यह खेल नासिक, लासलगांव मंडियों में बैठे दर्जन भर कारोबारी कर रहे हैं। इनका नेटवर्क दिल्ली और दूसरे इलाकों में भी फैला हुआ है। आगे उन्होंने कहा कि पैदावार महज पांच फीसदी घटी है, लेकिन कोई किसानों से प्याज 10 से 15 रुपए किलोग्राम खरीदकर मंडियों में 50 से 60 रुपये किलो और खुदरा में 80 से 100 रुपये किलो बेचे तो सारा गणित समझ में आ जाता है। देवेंद्र शर्मा की माने तो वे बताते हैं कि जब प्याज की आवक का मौसम हो और देश का कृषि मंत्री कहे कि प्याज दो से तीन हफ्ते और महंगा रहेगा तो सरकार की गंभीरता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि जमाखोर जो कमाई कर रहे हैं, उसका बड़ा हिस्सा तथाकथित राजनेताओं को मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

Published on: गुरु | अक्‍तूबर ३१, २०१३

http://thepatrika.com/NewsPortal/h?cID=RCd9Q7j3bpU%3D

एक कड़वा सच


वकील चाहता है कि हम
किसी विवाद में पड़ें ...
चिकित्सक चाहता है कि हम
बीमार पड़ें...
पुलिस चाहती है कि हम कुछ
अपराध करें...
अध्यापक की नज़रों में हम
पैदाइशी बेवकूफ हैं...
कफ़न बनाने वाला चाहता है
कि हम मर जाएँ...
पर केवल एक चोर चाहता है कि हम अमीर रहें. और जब
भी वो घर मेँ चोरी करे उसे
वहाँ से बहुत धन मिले।
 
 
हमारा शुभ  चिंतक कौन हुआ। 
थोड़ा   विचार करें …………… 
 
साभार :
विक्रम 
 
 

Friday, November 22, 2013

झंडा ऊँचा रहे हमारा


विजयी विश्व तिरंगा प्यारा


झंडा ऊँचा रहे हमारा  !


जय हिन्द !!

वंदे मातरम !!!

किसको भारत रत्न मिलना चाहिए


सचिन की विदाई पर बीस पच्चीस हज़ार रुपए के टिकट खरीद कर रो रहे लोगों की आँखों में तब

क्या जरा सा भी पानी आया था ...जब हिन्दुस्तान के फौजी के सर काट कर पाकिस्तानी सूअर ले गये थे

उन फौजियों को एक दो लाख रुपए देकर सरकार ने अपने धर्म का निर्वाह कर लिया ....ना किसी को उनके परिवार की चिंता ना देश की .... अगर यही हाल रहा तो आने वाले वक़्त में कोई माँ अपने बच्चे को फौजी नहीं बनाएगी ......... और कांग्रेसी कुत्तों को क्यूँ होने लगी फौजियों की चिंता ..क्यूंकि उनके हिसाब से तो फ़ौज मे लोग मरते ही रहते हैं ..... अगर सरकार हर बात को इतने ही हलके से लेती है सचिन पर इतनी मेहरबान     क्यूँ ?क्यूँ दिया भारत रत्न का अवार्ड ??? बाकी इतने नामचीन खिलाड़ी क्या झक मार रहे हैं ??? अगर फौजी मरते ही रहते हैं तो ऐसे खिलाड़ी भी क्या कमाल कर रहे हैं ,,,,अपनी जेब भी खूब भरी है सचिन   ने ,,,,,फ्री में नहीं खेले ,,,,,, लेकिन उन फौजियों के बारे में सरकार कब ठीक से सोचेगी .........सरकार इस तरह का भेदभाव करके लोगों में फूट डाल रही है ....और एक सन्देश दे रही है हिन्दुस्तान की जनता को .... कि कांग्रेस के तलवे चाटो और भारत रत्न ले जाओ .....अभी तो सारे देश को पेप्सी की आग में ठंडा भी करना है और हिन्दुस्तान का पैसा बाहर भी पहुँचाना हैं ........दोस्तों आँखे खोलो और देखो ,,,,सियासत की आड  में देश का क्या हाल हो गया ...... मैं सचिन के खिलाफ नहीं हूँ ,,कतई नहीं।।।।  लेकिन शायद वो भी नहीं समझ पा रहे की वो गलत हाथों में जा चुके हैं।
वन्दे मातरम..


भारत माता कि जय !!!

साभार :
कैलाश विशनोई  
भारतीय सेना

जाट रेजिमेंट ध्वज दिवस

आज एक मात्र  रॉयल ख़िताब  विजेता  जाट रेजिमेंट ध्वज  दिवस है। 
सलाम ! जय हिन्द ! सत श्री अकाल !
भारत माता की जय !!
वंदे मातरम !!!

Thursday, November 21, 2013

इतिहास एक घोटाला है

इतिहास एक घोटाला है-या फिर इतिहास एक चक्कर प्रसार है। कहने का तात्पर्य है  सत्ता वर्ग ने  मन अनुकूलित इतिहास लिखवाया है और इतिहास लेखक की भलाई और मनवाछित  , इस बात में निहित होती है कि वह अपने आकाँ की खुशी के लिए उनकी शान में डफलयाँ बजाते रहे .सिकंदर फिर तौर पर पंजाबी पोरस से पूरी  जीत हासिल करने में विफल रहा था और इसलिए उसने अनुसार यूनानी इतिहासकार जो सिकंदर के साथ थे , पोरस को राज्य वापस कर दिया  था।  क्या ये जुर्रत  कर सकते थे ? कि पूरी ईमानदारी से स्वीकार करते है कि सिकंदर को चिनाब के किनारों पर इतनी मुश्किल  पड़ी थी कि उसके सिपाही ने न केवल विद्रोह कर दिया था बल्कि हिंदुस्तान में अंदर जाने से मना कर दिया था। उसे क्या मालूम था कि पहले समर में ही यह हाल होगा अब तो " अल्लाह जाने क्या होगा आगे "। उसने ठान ली  की  चलो चलो ग्रीस वापस चलो " मोड़  लो वापिस अपनी सेना को। "इसलिए सिकंदर साहब ने टैक्सिला में वापसी का बिगुल बजाया , आधी सेना नावों में वापस भेजा और शेष आधों  के साथ वे सूखे  के रास्ते बाबुल पहुंचे और एक रिवायत के अनुसार मुल्तान के मिली जाटों के हाथों घायल होने के बाद फौत हो  गए . "भारत  शायद दुनिया का एकमात्र देश है जो हमलावरों के स्मारक निर्माण कराता  हैं और जो मिट्टी की जरी लोग थे , जिन्होंने उनका बे स्थरी से मुकाबला किया , उन्हें भुला देते हैं , सिर्फ इसलिए कि पोरस एक हिंदू जाट था . पोरस के  ज़माने में अभी उपमहाद्वीप में इस्लाम की रोशनी नहीं फैली थी , तो यहां के स्थानीय लोगों ने हिंदू या बौद्ध ही थे।  वह मुसलमान कैसे हो सकता था? लेकिन हमने  केवल इसलिए सिकंदर को सरआंखों पर बिठाया एक तो हम उसका नाम इस्लामी समझते थे और दूसरा यह कि वह एक हिंदू राजा ने  यूनानी इतिहासकारों को  शिकस्त दी थी।  इतिहास का एक सरसरी  छात्र होने  के नाते मैं  यह बताना चाहूँगा  की मोहम्मद हनीफ़ रामे और एतजाज अहसन अनुसंधान के अनुसार सिकंदर को पोरस के हाथों हार हासिल हुई थी , जो मैसेडोनिया से भारतीय जीत के इरादे से निकला था ( उन दिनों हिंदुस्तान को जीत का बड़ा रिवाज था) पहले समर के बाद अगर वह जीता हुआ था तो वापसी की राह क्यों साधे रखी थी।  

क्या कारण  था उसने वापसी की राह पकड़ ली। इतिहास सारा तोड़ा मरोड़ा है। देसी  अलफ़ाज़ में यह कहूंगा उसकी पतलून गीली कर दी और दाँत खट्टे कर दिए। वह यहाँ से दूम दबाकर भगा था। 
 (यह लेख एक शोध  छात्र द्वारा लिखा गया है। आपके लिए यहाँ प्रस्तुत है। आवश्यक बदलाव किया गया है। )


تاریخ کا کڑوا سچ

تاریخ ایک گھپلا ہے، یا پھر تاریخ ایک چکر بازی ہے، یعنی برسراقتدار طبقہ اپنی من مرضی کے مطابق تاریخ لکھواتا ہے اور تاریخ نویس کی بھی عافیت اور منفعت، اس بات میں پنہاں ہوتی ہے کہ وہ اپنے آقاں کی خوشنودی کیلئے ان کی شان میں ڈفلیاں بجاتا رہے۔
سکندر اعظم بہر طور پر پنجابی پورس کے مقابلے میں مکمل فتح حاصل کرنے میں ناکام رہا تھا اور اس لئے اس نے بقول یونانی تاریخ دانوں کے جو سکندر کے ہمراہ تھے، پورس کو اس کی سلطنت واپس کر دی تھی۔ کیا وہ یہ جرت کر سکتے تھے؟ کہ پوری ایمانداری سے اقرار کرتے کہ سکندر اعظم کو چناب کے کناروں پر اتنی "پھینٹی" پڑی تھی کہ اس کے سپاہ نے نہ صرف بغاوت کر دی تھی بلکہ ہندوستان کے اندر جانے سے انکار کر دیا تھا کہ پہلے معرکے میں ہی یہ حشر ہوا ہے تو "اللہ جانے کیا ہو گا آگے" تو "چلو چلو یونان واپس چلو"۔
چنانچہ سکندر صاحب نے ٹیکسلا میں واپسی کا بگل بجایا، آدھی فوج کو کشتیوں میں واپس بھیجا اور بقیہ نصف کے ہمراہ وہ خشکی کے راستے بابل پہنچے اور ایک روایت کے مطابق ملتان کے ملی جاٹوں کے ہاتھوں زخمی ہونے کے بعد وہاں انتقال فرما گئے۔ "ہم شائد دنیا کی واحد قوم ہیں جو حملہ آوروں کی یادگاریں تعمیر کرتے ہیں اور جو اس سرزمین کی جری لوگ تھے، جنہوں نے ان کا بے جگری سے مقابلہ کیا، انہیں فراموش کر دیتے ہیں، صرف اس لئے کہ پورس ایک ہندو جاٹ تھا.پورس" ہوگزرے ہیں۔ اب اگر ان زمانوں میں ابھی برصغیر میں اسلام کی روشنی نہیں پھیلی تھی، تو یہاں کے مقامی لوگوں نے ہندو یا بدھ ہی ہونا تھا، مسلمان کیسے ہو سکتے تھے؟ لیکن ہم صرف اس لئے سکندر اعظم کو سرآنکھوں پر بٹھاتے ہیں ایک تو ہم اس کے نام کو اسلامی سمجھتے تھے اور دوسرا یہ کہ اس نے ایک ہندو راجے کو، بقول یونانی تاریخ دانوں کے شکست دی تھی۔
میں تو تاریخ کا ایک سرسری سا طالب علم ہوں لیکن محمد حنیف رامے اور اعتزاز احسن کی تحقیق کے مطابق سکندر اعظم کو پورس کے ہاتھوں شکست ہوئی تھی، وہ جو مقدونیہ سے ہندوستان فتح کرنے کی نیت سے نکلا تھا (ان دنوں ہندوستان کو فتح کرنے کا بڑا رواج تھا) پہلے معرکے کے بعد اگر وہ فتح یاب ہوا تھا تو واپسی کی راہ کیوں اختیار کر لی تھی





एक ज़ोर से शोर सुनेगा -धड़ाम

क्या आज़ादी के 67  साल के बाद भी भारत में विभिन्न जातियों को आरक्षण की आवश्यकता है। फ़ूड सिक्यूरिटी बिल  की अब भी दरकार है ? सब्जियों के भाव पर अंकुश लगाया जाये। मूल भूत आवश्यक सामग्री के भाव नियंत्रण में रहे या यह माना जाये की चुनाव सिर  पर हैं। अभी तो शेयर बाज़ार की बारी भी है। एक ज़ोर से शोर सुनेगा -धड़ाम !! क्या अभी तक हमारे देश से पोलिओ का उन्मूलन नहीं हुआ है ? आख़िर  क्यों ? कब तक चलेगा।   कब तक हम यह सहन कअऋ करने की आदत पड़  गई  है। हमारी तो ज़िंदगी बस पिटने  में ही गुज़र  जाएगी।  पहले गुरु और मायतो ने पीटा और अब आगे अगली पीढ़ी  पिटेगी।  कैसा भारत देकर जायेंगे। 
अभी भी समय है। बदल डालो अपनी संकीर्ण मानसिकता। क्यों लात खा रहे हो  यह जानते हुवे की गलत हो रहा है। क्या फायदा इस आज़ादी का ? क्या योंही  पाछे पर खाते रहोगे। 

अभी भी वक़्त है। संभल  जा ज़रा। जाट का भी अब नैतिक पतन होने लगा है। पहले जब तक जाट बुलंद था तब तक उम्मीद थी की सब ठीक हो जायेगा पर अब वह उम्मीद धूमिल होती जा रही है। 

संभल जाओ विशाल जाट कौम। अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है। उठो ! चेतो !   और आगे बढ़ो   !
एक बार फिर मैं  तो यही  कहूँगा -

उठ   जा   जाट   उठा  अपनी  शमशीर 
गलत भोजन त्याग दे ,खा चुरमा  ख़ीर

अपनों से नाता जोड़ 
गैरों   से  नाता  तोड़

झूठी   राख  न मरोड़ 
बात का मूल्य करोड़ 

कुल्हड़ी में गुड़  न फोड़
आच्छी  बात की कर होड़ 

न छोड़ अपनी खोड़ 
सौ बातां का एक तौड़ 

पा बिछा जितनी  शो
'हरपाल ' छोड़ यह मोड़

सरफ़रोशी की तमन्ना



"आज़ादी के सूरज को आज गृहण क्यूँ लग गया??
ये गुलामी का दिया क्यूँ फिर से आज जग गया,

आज बैठे हम बन चूहे अपने बिल में हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ना आज "किसके दिल में है??

एक इंक़ेलाब के लिए जान दी शूरवीरों ने,
आज अर्जुन मर गया है खुद अपने तीरों से,

दोस्ती का नकाब ओढ़े कई दुश्मन महफ़िल में हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ना आज "किसके" दिल में है???

देखकर था जिन्हें, फांसी का फंदा कांपता,
आज वो जहां से क्यूँ हो गए हैं लापता,

ढूँढता हूँ सोचकर की बैठे मेरी महफ़िल में हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ना आज "किसके" दिल में है???

एक तरफ ये राजनेता देश को हैं नोचते,
एक तरफ हम सभी बस अपने बारे सोचते,

इस "आज़ाद" मुल्क में हम करते अपने दिल की हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ना आज "किसके" दिल में है???

"घूसखोरी" और "गरीबी" को मिलता आशियाँ यहाँ,
"आज़ादी" को तरसते ये ज़मीं और आस्मां,

भारत माता रही पुकार "तुझे",
भारत माता बढ़ी मुश्किल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना आज "किसके" दिल में है???

पूछता है भगत सिंह आज "तुमसे" —

सरफ़रोशी की तमन्ना क्या तुम्हारे दिल में है???"
सरफ़रोशी की तमन्ना क्या तुम्हारे दिल में है??

पटना जिले में एक जाट विद्यालय है

सन 2007 में  अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रयासों से पता लगा कि बिहार के कई इलाकों में यथा पटना, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, गया, औरंगाबाद तथा भागलपुर जिलों में जाट बिखरे पड़े है।   इनकी आबादी 84 गाँवों में पाई जाती है।    इन्हें ये चौरासी जाट कहते हैं।
इनके प्रमुख गोत्र हैं:
महलौत, चौपड़ , खंगूरा, बालियान, रावत, कुंडल, भूरा, गेमर, मीठा आदि।
ये जाट वहां प्राचीन समय से आबाद है।  इनमें पर्दा-प्रथा का रिवाज नहीं है।  इन जाटों को बिहार राज्य में पिछड़ी जाति  का आरक्षण मिला हुआ है। पटना जिले के गाँव चवरा में एक जाट विद्यालय है।  8 अगस्त 2009 को मेरठ में आयोजित जाट महा सम्मलेन में बिहार से कुछ जाट आये हुए थे।
जिनमें  वहाँ की  जाट महासभा के प्रतिनिधि प्रधान चौधरी शिवनाथ सिंह खंगुरा  और महासचिव चौधरी उत्तम कुमार बाल्यान   साथ आये थे।

 
 साभार :
मानवेंद्र  सिंह  जाट
 
 

Wednesday, November 20, 2013

मलाई खाने वालों की बहार

चारो तरफ बागियों कि बहार आये हुई है। उन बागियों कि जो सत्ता कि मलाई खाने से चंद कदम पहले रोक दिए गए और उनकी जगह उनके ही भाई बंधू ज्यादा चांदी के सिक्को का चढ़ावा देकर,रसूख और गलत सलत तथ्यो और मालिश से दावेदार बन गए। अच्छा हुआ जो इनके करतब जनता के सामने आ गए। दोनों बड़ी पार्टियो के यही हाल हैं और दम्भियों के चाल , चेहरे और चरित्र सामने है। अब वोटर के हाथ और विवेक पर है कि वो सही वोट करता है या हमेशा कि तरह दारु या पैसो में ,जात के कार्ड में खोकर वोट का कचरा करके आता है। सच्चे बागी तो कामरेड हैं जो सीमित संसाधनो ,तमाम प्रशासनिक बंदिशों ,माफिआ के घोर षडयंत्रो के बावजूद दीवानो कि तरह देश और समाज कि बेहतरी के लिए ,निडर होकर इंक़लाब का झंडा बुलंद किये हुए हैं। मगर क्या कहु कि ये रोजगार के झूठे वादे नहीं कर सकते , ट्रान्सफर माफिया कि सेटिंग नहीं जानते , उद्योग , ठेके ,खानो के टेंडर नहीं दिलवा सकते। रुपये खाकर जुल्म के खिलाफ संगर्ष बंद नहीं कर सकते तो बोलो फिर कोई इस तरह के लाभ चाहने वाला चोर ,ठग ,व्यापारी और कर्मचारी कामरेड्स का पक्ष क्यों लेगा ? इसलिए लाल झंडे के जो भी समर्थक है वो झुझारू विद्यार्थी , मेहनतकश किसान और मजदूर या सरहद कि रक्षा करने वाले सैनिक ही होंगे न ! इसलिए आप खुद ही सोच लो कि आप क्या हो , क्या चाहते हो और देश आपके लिए क्या है ? आजादी और इंक़लाब को आप क्या समझते हैं। भैया संघर्ष करते वक़्त तो मौत ,लट्ठ , भूख और मुकदमे सब हिस्से आते हैं इसीलिए भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव और सुभाष हर दिन नहीं पैदा होते। हां मगर उनसे प्रेरित होकर उनके बताये रास्ते पर जरुर चला जा सकता है। यह मेरा दृढ विश्वास है। 
 
 
साभार :
प्रकाश नवोदयन 
 

जाटों की गौरव गाथा

मैं जाटों की गौरव गाथा को सही सुनाना चा हता हूं।
उसका सच्चा इतिहास खाश सबको बतलाना चाहता हूं। ।

धरती ही कर्म, धर्म धरती, धरती ही भरा खजाना है।

धरती ही जननी इनकी, धरती में अन्न उपजाना है।।

धरती ही रक्षा हित इनका होता सब ताना बाना है।

कभी सीम कभी सीमा पर जाटों को बैठा पाता हूं।।

सिर कलम चाहे हो जाए धरती की लाज बचाता हूं।।

भूखे प्यासे भी रहकर जो भरते हैं पेट जमाने का। इनको कभी टेम नहीं मिलता, ना पीने का या खाने का।।

सुबह राम का नाम लिया फिर दिन और रात कमाने का।

सर्दी गर्मी बरसात भी हो आराम कभी नहीं पाने का।।

इन धरतीपुत्र जाटों की मैं बात बताना चाहता हूँ।

सुना-सुना के कथा इन्हें कुछ होश में लाना चाहता हूँ।।
 
 
साभार :  
मोहन लाल चौधरी

Only marja' on Pakistani soil

Grand Ayatollah Muhammad Hussain Najafi (Dhakku Jat) - Shia Marja. Grand Ayatollah Allama Shaikh Muhammad Hussain Najafi (born April 1932) is a Twelvth  Shi'i alim from Pakistan and has been elevated to the status of marjiyyat. At present, there are two maraji of Pakistani descent, the other one Basheer Hussain Najafi. As Basheer Hussain Najafi has chosen to reside in Najaf, Iraq, Muhammad Hussain Najafi is the only marja' on Pakistani soil, running a Hawza in Sargodha. He was included in the lists  "The 500 Most Influential Muslims" for the years 2010 and 2011.


courtsey :  Rajesh  Muller